घरेलू प्राकृतिक उपायों से करें शरीर को डिटॉक्स और निकालें विषैले पदार्थों को बाहर, श्राद्ध पक्ष में – पितृतर्पण, मनुष्यतर्पण, देवतर्पण,भीष्मतर्पण, मनुष्य पितृतर्पण, यमतर्पण की विधि और उसके चमत्कारिक लाभ, आज का पंचाग आपका राशि फल

🕉श्री हरिहरौ विजयतेतराम 🌄सुप्रभातम🌄

🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓

🌻बुधवार, १८ सितम्बर २०२४🌻

सूर्योदय: 🌄 ०६:११, सूर्यास्त: 🌅 ०६:१९

चन्द्रोदय: 🌝 १८:३३, चन्द्रास्त: 🌜❌❌❌

अयन 🌖 दक्षिणायणे (उत्तरगोलीय)

ऋतु: 🎄 शरद 

शक सम्वत: 👉 १९४६ (क्रोधी)

विक्रम सम्वत: 👉 २०८१ (पिंगल)

मास 👉 भाद्रपद, पक्ष 👉 शुक्ल 

तिथि 👉 पूर्णिमा (०८:०४ से प्रतिपदा, २८:१९ से द्वितीया)

नक्षत्र 👉 पूर्वाभाद्रपद (११:०० से उत्तराभाद्रपद)

योग 👉 गण्ड (२३:२९ से वृद्धि)

प्रथम करण 👉 बव (०८:०४ तक)

द्वितीय करण 👉 बालव (१८:११ तक)

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॥ गोचर ग्रहा: ॥ 

🌖🌗🌖🌗

सूर्य 🌟 कन्या, चंद्र 🌟 मीन 

मंगल 🌟 मिथुन (उदित, पूर्व, मार्गी)

बुध 🌟 सिंह (उदय, पूर्व, मार्गी)

गुरु 🌟 वृष (अस्त, पश्चिम, मार्गी)

शुक्र 🌟 कन्या (उदय, पूर्व, मार्गी)

शनि 🌟 कुम्भ (उदित, पूर्व, वक्री)

राहु 🌟 मीन, केतु 🌟 कन्या   

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शुभाशुभ मुहूर्त विचार

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अभिजित मुहूर्त 👉 ❌❌❌

अमृत काल 👉 २७:५१ से २९:१५

विजय मुहूर्त 👉 १४:१३ से १५:०२

गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:१८ से १८:४२

सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:१८ से १९:२९

निशिता मुहूर्त 👉 २३:४७ से २४:३४

राहुकाल 👉 १२:११ से १३:४२

राहुवास 👉 दक्षिण-पश्चिम

यमगण्ड 👉 ०७:३५ से ०९:०७

होमाहुति 👉 चन्द्र

दिशाशूल 👉 उत्तर

नक्षत्र शूल 👉 दक्षिण (११:०० तक)

अग्निवास 👉 पृथ्वी (०८:०४ तक)

चन्द्र वास 👉 उत्तर

शिववास 👉 श्मशान में (०८:०४ से गौरी के साथ, २८:१९ से सभा में)

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☄चौघड़िया विचार☄

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॥ दिन का चौघड़िया ॥ 

१ – लाभ २ – अमृत

३ – काल ४ – शुभ

५ – रोग ६ – उद्वेग

७ – चर ८ – लाभ

॥रात्रि का चौघड़िया॥ 

१ – उद्वेग २ – शुभ

३ – अमृत ४ – चर

५ – रोग ६ – काल

७ – लाभ ८ – उद्वेग

नोट👉 दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 

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शुभ यात्रा दिशा

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उत्तर-पश्चिम (गुड़ अथवा दूध का सेवन कर यात्रा करें)

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तिथि विशेष

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स्नान-दान हेतु भाद्रपद पूर्णिमा, सन्यासियों का चातुर्मास समाप्त, खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण (भारत में नहीं), प्रतिपदा तिथि आदि।

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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण 

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आज ११:०० तक जन्मे शिशुओ का नाम                

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (द, दि) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम उत्तराभाद्रपाद नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (दू, थ, झ, ञ) नामाक्षर से रखना शास्त्र सम्मत है।

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उदय-लग्न मुहूर्त

कन्या – ३०:०० से ०८:१८

तुला – ०८:१८ से १०:३८

वृश्चिक – १०:३८ से १२:५८

धनु – १२:५८ से १५:०१

मकर – १५:०१ से १६:४२

कुम्भ – १६:४२ से १८:०८

मीन – १८:०८ से १९:३२

मेष – १९:३२ से २१:०६

वृषभ – २१:०६ से २३:००

मिथुन – २३:०० से २५:१५

कर्क – २५:१५ से २७:३७

सिंह – २७:३७ से २९:५६

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पञ्चक रहित मुहूर्त

शुभ मुहूर्त – ०६:०३ से ०८:०४

चोर पञ्चक – ०८:०४ से ०८:१८

शुभ मुहूर्त – ०८:१८ से १०:३८

रोग पञ्चक – १०:३८ से ११:००

शुभ मुहूर्त – ११:०० से १२:५८

मृत्यु पञ्चक – १२:५८ से १५:०१

अग्नि पञ्चक – १५:०१ से १६:४२

शुभ मुहूर्त – १६:४२ से १८:०८

रज पञ्चक – १८:०८ से १९:३२

अग्नि पञ्चक – १९:३२ से २१:०६

शुभ मुहूर्त – २१:०६ से २३:००

रज पञ्चक – २३:०० से २५:१५

शुभ मुहूर्त – २५:१५ से २७:३७

शुभ मुहूर्त – २७:३७ से २८:१९

चोर पञ्चक – २८:१९ से २९:५६

शुभ मुहूर्त – २९:५६ से ३०:०४

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आज का राशिफल

🐐🐂💏💮🐅👩

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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)

आज के दिन कोई भी निर्णय जल्दबाजी में ना ले वरना बाद में पछताना पड़ेगा परिस्थितियां आज हानिकारक बनी हुई है सही दिशा में जा रहा काम भी किसी की गलती से बिगड़ने की संभावना है। कार्य व्यवसाय में आज किसी भी प्रकार की जोर जबरदस्ती नुकसान कराएगी। धन को लेकर दो पक्षो में खींचतान की स्थिति बनेंगी धर्य से काम लें अन्यथा मामला गंभीर हो सकता है। कार्य स्थल पर सहकर्मियों का असहयोगी व्यवहार अखरेगा। काम के समय आज सभी पीठ दिखाएंगे केवल घर के सदस्य ही कठिन परिस्थिति में साथ देंगे। पारिवारिक वातावरण भी किसी ना किसी कारण उखड़ा सा रहेगा। आरोग्य में कमी रहेगी।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)

आज का दिन राज-समाज मे आपकी प्रतिष्ठा बढ़ाएगा। आज कुछ ना करने पर भी आपका व्यक्तित्त्व बढ़ा हुआ रहेगा। लेकिन थोड़ी सी प्रशंसा पाकर अहम की भावना भी आएगी अपने से छोटो को अहमियत नही देंगे जहां से स्वार्थ सिद्धि की संभावना रहेगी वहां चापलूसी करने से भी नही चूकेंगे परन्तु जहां कोई लाभ नजर नही आएगा वहां देखेंगे तक नही। कार्य व्यवसाय में बुद्धि चातुर्य से लाभ कमाएंगे लेकिन किसी ना किसी कारण कुछ समय के लिये अशांति बनेगी। नौकरो अथवा सहकर्मियों पर ज्यादा दबाव डालने पर अकेले काम करने की नौबत आ सकती है। गृहस्थ जीवन मे आप हास्य के पात्र बनेंगे लेकिन शन्ति रहेगी। सेहत आज कुछ बेहतर बनेगी।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)

आज का दिन कार्यो में सफलता दिलाने वाला रहेगा परन्तु सफलता को धन के साथ ना जोड़े अन्यथा दुखी होना पड़ेगा। आर्थिके दृष्टिकोण से दिन पहले की तुलना में बेहतर रहेगा परन्तु इसके लिये सहयोग की आवश्यकता भी पड़ेगी। वैसे तो आज आप व्यवहारिक ही रहेंगे लेकिन उच्चवर्गीय लोगो के साथ संपर्क में में अभिमान जगायेगा जो आगे के लिये स्नेह संबंधों में खटास ला सकता है। कार्य क्षेत्र पर सरकारी सहयोग पाने के लिये दिन उत्तम है प्रयास में कमी ना रखें। नौकरी वालो पर अधिकारी कृपा दृष्टि रखेंगे लेकिन ज्यादा उत्सुक ना हो इसके पीछे बड़ा स्वार्थ हो सकता है। परिवार का वातावरण आपकी अनदेखी के कारण अशान्त होगा स्वतः ही सामान्य भी हो जाएगा। सेहत में कुछ समय के लिये नरमी रहेगी।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)

आज का दिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से लाभदायक रहेगा। धर्म कर्म के प्रति आज निष्ठा रहेगी दान पुण्य करने के अवसर सुलभ होंगे इनका लाभ निकट भविष्य में किसी भी रूप में अवश्य मिलेगा। कार्य-व्यवसाय की स्थिति मध्यान तक दयनीय रहेगी इसके बाद एक आध सौदे मिलने से खर्च निकालने लायक आय हो जाएगी ज्यादा धन कमाने की कामना से आज डोर रहना ही बेहतर रहेगा सहज रूप से जितना मिले उसमे संतोष करें अन्यथा कोई नई मुसीबत आ सकती है। संध्या का समय व्यवसायी वर्ग के लिये सुखद रहेगा भविष्य से संबंधित शुभ समाचार मिलेंगे। घर की सुख शांति वाणी पर नियंत्रण पर निर्भर रहेगी। पेट संबंधित विकार होगा।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)

आज का दिन मिला-जुला फल देगा। आज आप जिस कार्य को करने का मन बनाएंगे उसके आरम्भ में पहले खराब सेहत बाधा डालेगी आरम्भ होने के बाद भी सरकारी अथवा अन्य आर्थिक कारणों से बीच मे छोड़ना पड़ा सकता है। कार्य क्षेत्र की गतिविधियां आपकी सोच के विपरीत रहेंगी सहकर्मी अथवा कर्मचारी आपकी अनदेखी का फायदा उठाने से चूकेंगे नही लोग अपना हित साधने के लिये आपके नुकसान की परवाह नही करेंगे। धन को लेकर आज कुछ ना कुछ समस्या लगी रहेगी। सही समय पर कार्य पूर्ण ना होने पर आगे के व्यावसायिक व्यवहार प्रभावित होंगे। परिजन अथवा अन्य बाहरी व्यक्ति किसी बात का बदला ले सकता है। 

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)

आज दिन के आरंभ से ही मानसिक रूप से स्फूर्ति रहेगी सेहत उत्तम रहने पर भी आलस्य नही जाएगा। लेकिन दिनचार्य गई गति धीमी होने पर भी मध्यान बाद गंभीरता से कार्य कर कमियों की भरपाई कर लेंगे। आज आप जिस भी कार्य को करेंगे उसमे सफलता निश्चित रहेगी लेकिन कार्य आरंभ से पहले भ्रमित होने से बचें अन्य किसी से मार्गदर्शन की अपेक्षा ना रखें वरना कुछ उल्टा ही होगा। धन की आमद में पिछले दिनों से सुधार होगा दैनिक खर्च आसानी से निकल जायेंगे भविष्य के लिये संचय भी कर सकेंगे। नए व्यवसाय अथवा व्यवसाय विस्तार के लिये निवेश अत्यंत शुभ रहेगा। घर के सदस्य कामना पूर्ति में विलंब होने पर गुस्सा करेंगे पूर्ति होने के बाद उत्साहित रहेंगे। असन्तुलित खान-पान अथवा दिनचार्य नए रोग को जन्म देगी।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)

आज का दिन सम्पन्नता कारक रहेगा दिन के आरंभिक भाग में किसी महत्त्वपूर्ण कार्य का निर्णय लेने में दुविधा होगी लेकिन परिजन अथवा अन्य किसी वरिष्ठ व्यक्ति का मार्गदर्शन इससे बाहर निकलेगा। कार्य-व्यवसाय में भाग्य का साथ मिलने पर प्रतिस्पर्धा के बाद भी संतोषजनक लाभ पा लेंगे धन के साथ ही अन्य सुख के साधनों में भी वृद्धि होगी। लेकिन ध्यान रहे आज छोटी मोटी बातो पर बहस करने से बचें अन्यथा भविष्य के लाभदायक संबंध खराब हो सकते है। नौकरी पेशा लोग अन्य लोगो से बेहतर कार्य करने पर सम्मानित होंगे। परिजनों अथवा किसी नजदीकी से उपहार लाभ मिलेगा पर इसके बीचे कुछ निजी स्वार्थ भी रहेगा। आरोग्य के ऊपर खर्च होगा।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)

आज आपके व्यक्तित्त्व में विकास होगा अधिकांश कार्यो को देखभाल कर ही करेंगे वाणी में मिठास रहेगी लेकिन मन मे कड़वाहट परिजनो से नही छुपा सकेंगे। कार्य क्षेत्र पर किस पुरानी बात को लेकर वैर भाव बढेगा लेकिन विवेक जाग्रत रहने के कारण स्थिति गंभीर नही हो सकेगी। काम-धंधे से आज चालाकी से ही लाभ कमाया जा सकता है परंतु प्रलोभन से बचे अन्यथा पुराने व्यवसायिक संबंध खराब हो सकते हैं। धन लाभ समय रहेगा। नौकरी करने वाले अपनी विद्या बुद्धि के बल से उन्नति पाएंगे सामाजिक क्षेत्र पर आप अत्यंत बुद्धिमान समझे जाएंगे परन्तु घर मे आपकी छवि कुटिल जैसी रहेगी। घरेलू कामो की अनदेखी अशान्ति फैला सकती है। सेहत मानसिक परिश्रम अधिक रहने के कारण विपरीत रहेगी। 

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)

आज का दिन प्रतिकूल फलदायी रहेगा। दिन का पहला भाग नासमझी के कारण व्यर्थ खराब होगा। परिजनो से बिना कारण के ही फटकार सुननी पड़ेगी स्वभाव में उद्दंडता तो रहेगी परन्तु स्थिति को भांप विरोध नही करेंगे। कार्य क्षेत्र पर भी आज मानसिक दबाव में कार्य करना पड़ेगा जो निर्णय सही लग रहे होंगे वह अंत समय मे गलत सिद्ध होंगे धन संबंधित व्यवहार आज देख भाल कर ही करें विवाद होने की आशंका है। कार्य क्षेत्र पर भी गरमा गरमी का माहौल बनेगा जिसका सीधा असर काम पर पड़ेगा धन लाभ में कमी आने से भी परेशान रहेंगे। संध्या का समय घर मे मौन रहकर बिताये धैर्य खोने पर विवाद बढ़ सकता है।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)

आज आपको लाभ की सम्भावना दिन के आरंभ से ही रहेगी कुछ शुभ प्रसंग घटने पर मानसिक रूप से निश्चिन्त रहेंगे। कार्य क्षेत्र पर आज अन्य दिनों की तुलना में कम मेहनत से अधिक लाभ प्राप्त कर सकेंगे। नौकरी वाले लोग अतिरिक्त आय बनाने के लिये जोड़ तोड़ करेंगे इसमें सफलता मिलेगी लेकिन विलंब से। आर्थिक रूप से दिन मध्यान तक उदासीन रहने के कारण अधीरता आएगी जल्दबाजी से बचें धन लाभ विलंब से सही लेकिन होगा जरूर। व्यापार में विस्तार कर सकते है लेकिन नया व्यवसाय आरम्भ करने के लिये एक दिन और प्रतीक्षा करें। पारिवारिक सदस्य आपके निर्णय की प्रतीक्षा में रहेंगे किसी को निराश नही करेंगे। धर्म कर्म में आस्था बढ़ेगी। सेहत में आपकी गलती से शिथिलता आएगी।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)

आज के दिन आप कुछ अभाव का अनुभव करेंगे फिर भी परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढाल लेना ही बेहतर समझेंगे। आज आप अपने स्वभाव में परिवर्तन लाने का प्रयास करेंगे इसमें काफी हद तक सफल भी रहेंगे लेकिन मन की इच्छाओं को मारना आंतरिक दुख का कारण बनेगा। आज परोपकार और आध्यात्म की भावना रहने से अपने कार्य छोड़ औरो की सहायता को तत्पर रहेंगे इसके पीछे कुछ स्वार्थ भी अवश्य रहेगा। कार्य क्षेत्र से लाभ की आशा अन्य दिनों की तुलना में कम रहेगी दिनचार्य को भी उसी अनुसार रखेंगे। संध्या के आस पास थोड़ा बहुत धन मिलने से संतोष होगा लेकिन परिजन आपसे असंतुष्ट ही रहेंगे। सेहत आज लगभग ठीक ही रहेगी।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

आज के दिन से आप कुछ अधिक आशा लगाए रहेंगे दिन के मध्यान तक दिनचार्य सुव्यवस्थित रहेगी लेकिन मध्यान बाद से स्वभाव में लापरवाही आने के कारण अव्यवस्था बढ़ेगी। धन लाभ आज किसी ना किसी रूप में अवश्य होगा परन्तु आशानुकूल ना होने पर मन उदास भी रहेगा। आपका मनमौजी व्यवहार स्नेहीजन से संबंध में कड़वाहट लायेगा। किसी से किया वादा अंत समय मे तोड़ने पर कलह की स्थिति बनेगी। धर्म कर्म में आस्था तो रहेगी लेकिन पूजा पाठ केवल औपचारिकता पूर्ति के लिये ही करेंगे। कार्य व्यवसाय की गति सामान्य रहेगी परन्तु मन की चंचलता उचित लाभ से दूर रखेगी। स्वास्थ्य में सुधार आएगा मौज शौक पर बिना विचारे खर्च करेंगे।

〰️〰️〰️〰️〰️〰️🙏राधे राधे🙏

*इन प्राकृतिक उपायों से करें शरीर को डिटॉक्स और निकालें विषैले पदार्थों को बाहर*

1 अदरक : अदरक में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते है जो मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त रखने के साथ ही शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर करने में मदद करते है।
2 लहसुन : लहसुन को एक प्राकृतिक डिटॉक्सिफाइंग एजेंट माना जाता है। इसमें पाए जाने वाले एलिसिन में एंटी वायरल, एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल और एंटी ऑक्सिडेंट के गुण होते हैं।
3 शहद, नींबू और गर्म पानी : शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर करने का ये भी एक असरदार तरीका है। इसके लिए आप रोजाना सुबह शहद और नींबू के साथ गर्म पानी पिएं।
4 फाइबर युक्त चीजे खाएं : अपने खाने में साबुत अनाज, सब्जियां और फलों को शामिल करके भी शरीर से विषैले पदार्थों को करे सकते है।
5 एलोवेरा जूस : इसका नियमित सेवन करने से भी शरीर के जहरीले रसायन बाहर होने में मदद मिलती हैं। इसके लिए रोजना सुबह एलोवेरा का जूस पीया जा सकता है।

देव, ऋषि और पितृ सम्पूर्ण तर्पण विधि (पुनः प्रेषित)
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।।ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।…ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।

पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ है। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारंबार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें।

क्या है तर्पण
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पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं।

श्राद्ध पक्ष का माहात्म्य उत्तर व उत्तर-पूर्व भारत में ज्यादा है। तमिलनाडु में आदि अमावसाई, केरल में करिकडा वावुबली और महाराष्ट्र में इसे पितृ पंधरवडा नाम से जानते हैं।

‘हे अग्नि! हमारे श्रेष्ठ सनातन यज्ञ को संपन्न करने वाले पितरों ने जैसे देहांत होने पर श्रेष्ठ ऐश्वर्य वाले स्वर्ग को प्राप्त किया है वैसे ही यज्ञों में इन ऋचाओं का पाठ करते हुए और समस्त साधनों से यज्ञ करते हुए हम भी उसी ऐश्वर्यवान स्वर्ग को प्राप्त करें।’- यजुर्वेद

ऋषि और पितृ तर्पण विधि
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तर्पण के प्रकार
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पितृतर्पण, मनुष्यतर्पण,
देवतर्पण,भीष्मतर्पण,
मनुष्य पितृतर्पण,यमतर्पण

तर्पण विधि
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सर्वप्रथम पूर्व दिशा की और मुँह कर,दाहिना घुटना जमीन पर लगाकर,सव्य होकर(जनेऊ व् अंगोछे को बांया कंधे पर रखें) गायत्री मंत्र से शिखा बांध कर, तिलक लगाकर, दोनों हाथ की अनामिका अँगुली में कुशों का पवित्री (पैंती) धारण करें । फिर हाथ में त्रिकुशा ,जौ, अक्षत और जल लेकर संकल्प पढें—

ॐ विष्णवे नम: ३। हरि: ॐ तत्सदद्यैतस्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रोत्पन्न: अमुकशर्मा (वर्मा, गुप्त:) अहं श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं देवर्पिमनुष्यपितृतर्पणं करिष्ये ।

तीन कुश ग्रहण कर निम्न मंत्र को तीन बार कहें-

ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमोनमः।

तदनन्तर एक ताँवे अथवा चाँदी के पात्र में श्वेत चन्दन, जौ, तिल, चावल, सुगन्धित पुष्प और तुलसीदल रखें, फिर उस पात्र में तर्पण के लिये जल भर दें । फिर उसमें रखे हुए त्रिकुशा को तुलसी सहित सम्पुटाकार दायें हाथ में लेकर बायें हाथ से उसे ढँक लें और देवताओं का आवाहन करें ।

आवाहन मंत्र : ॐ विश्वेदेवास ऽआगत श्रृणुता म ऽइम, हवम् । एदं वर्हिनिषीदत ॥

‘हे विश्वेदेवगण ! आप लोग यहाँ पदार्पण करें, हमारे प्रेमपूर्वक किये हुए इस आवाहन को सुनें और इस कुश के आसन पर विराजे ।

इस प्रकार आवाहन कर कुश का आसन दें और त्रिकुशा द्वारा दायें हाथ की समस्त अङ्गुलियों के अग्रभाग अर्थात् देवतीर्थ से ब्रह्मादि देवताओं के लिये पूर्वोक्त पात्र में से एक-एक अञ्जलि तिल चावल-मिश्रित जल लेकर दूसरे पात्र में गिरावें और निम्नाङ्कित रूप से उन-उन देवताओं के नाममन्त्र पढते रहें—

1.देवतर्पण:
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ॐ ब्रह्मास्तृप्यताम् । ॐ विष्णुस्तृप्यताम् ।

ॐ रुद्रस्तृप्यताम् । ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम् ।

ॐ देवास्तृप्यन्ताम् । ॐ छन्दांसि तृप्यन्ताम् ।

ॐ वेदास्तृप्यन्ताम् । ॐ ऋषयस्तृप्यन्ताम् ।

ॐ पुराणाचार्यास्तृप्यन्ताम् ।ॐ गन्धर्वास्तृप्यन्ताम् 

ॐ इतराचार्यास्तृप्यन्ताम् ।

ॐ संवत्सररू सावयवस्तृप्यताम् ।

ॐ देव्यस्तृप्यन्ताम् । ॐ अप्सरसस्तृप्यन्ताम् ।

ॐ देवानुगास्तृप्यन्ताम् । ॐ नागास्तृप्यन्ताम् ।

ॐ सागरास्तृप्यन्ताम् । ॐ पर्वतास्तृप्यन्ताम् ।

ॐ सरितस्तृप्यन्ताम् । ॐ मनुष्यास्तृप्यन्ताम् ।

ॐ यक्षास्तृप्यन्ताम् । ॐ रक्षांसि तृप्यन्ताम् ।

ॐ पिशाचास्तृप्यन्ताम् । ॐ सुपर्णास्तृप्यन्ताम् ।

ॐ भूतानि तृप्यन्ताम् । ॐ पशवस्तृप्यन्ताम् ।

ॐ वनस्पतयस्तृप्यन्ताम्।ॐओषधयस्तृप्यन्ताम् 

ॐ भूतग्रामश्चतुर्विधस्तृप्यताम् ।

2.ऋषितर्पण
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इसी प्रकार निम्नाङ्कित मन्त्रवाक्यों से मरीचि आदि ऋषियों को भी एक-एक अञ्जलि जल दें—

ॐ मरीचिस्तृप्यताम् ।ॐ अत्रिस्तृप्यताम् ।

ॐ अङ्गिरास्तृप्यताम् ।ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम् ।

ॐ पुलहस्तृप्यताम् ।ॐ क्रतुस्तृप्यताम् ।

ॐ वसिष्ठस्तृप्यताम् ।ॐ प्रचेतास्तृप्यताम् ।

ॐ भृगुस्तृप्यताम् ।ॐ नारदस्तृप्यताम् ॥

3.मनुष्यतर्पण
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उत्तर दिशा की ओर मुँह कर, जनेऊ व् गमछे को माला की भाँति गले में धारण कर, सीधा बैठ कर निम्नाङ्कित मन्त्रों को दो-दो बार पढते हुए दिव्य मनुष्यों के लिये प्रत्येक को दो-दो अञ्जलि जौ सहित जल प्राजापत्यतीर्थ (कनिष्ठिका के मूला-भाग) से अर्पण करें—

ॐ सनकस्तृप्यताम् -2ॐ सनन्दनस्तृप्यताम् – 2

ॐ सनातनस्तृप्यताम् -2ॐ कपिलस्तृप्यताम् -2

ॐ आसुरिस्तृप्यताम् -2ॐ वोढुस्तृप्यताम् -2

ॐ पञ्चशिखस्तृप्यताम् -2

4.पितृतर्पण
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दोनों हाथ के अनामिका में धारण किये पवित्री व त्रिकुशा को निकाल कर रख दे ,

अब दोनों हाथ की तर्जनी अंगुली में नया पवित्री धारण कर मोटक नाम के कुशा के मूल और अग्रभाग को दक्षिण की ओर करके अंगूठे और तर्जनी के बीच में रखे, स्वयं दक्षिण की ओर मुँह करे, बायें घुटने को जमीन पर लगाकर अपसव्यभाव से (जनेऊ को दायें कंधेपर रखकर बाँये हाथ जे नीचे ले जायें ) पात्रस्थ जल में काला तिल मिलाकर पितृतीर्थ से (अंगुठा और तर्जनी के मध्यभाग से ) दिव्य पितरों के लिये निम्नाङ्कित मन्त्र-वाक्यों को पढते हुए तीन-तीन अञ्जलि जल दें—

ॐ कव्यवाडनलस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: – 3

ॐ सोमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: – 3

ॐ यमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: – 3

ॐ अर्यमा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: – 3

ॐ अग्निष्वात्ता: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तेभ्य: स्वधा नम: – 3

ॐ सोमपा: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तेभ्य: स्वधा नम: – 3

ॐ बर्हिषद: पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तेभ्य: स्वधा नम: – 3

5.यमतर्पण
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इसी प्रकार निम्नलिखित मन्त्रो को पढते हुए चौदह यमों के लिये भी पितृतीर्थ से ही तीन-तीन अञ्जलि तिल सहित जल दें—

ॐ यमाय नम: – 3 ॐ धर्मराजाय नम: – 3

ॐ मृत्यवे नम: – 3 ॐ अन्तकाय नम: – 3

ॐ वैवस्वताय नमः – 3 ॐ कालाय नम: – 3

ॐ सर्वभूतक्षयाय नम: –3 ॐ औदुम्बराय नम:3

ॐ दध्नाय नम: – 3ॐ नीलाय नम: – 3

ॐ परमेष्ठिने नम: – 3 ॐ वृकोदराय नम: – 3

ॐ चित्राय नम: – 3 ॐ चित्रगुप्ताय नम: – 3

6.मनुष्यपितृतर्पण

इसके पश्चात् निम्नाङ्कित मन्त्र से पितरों का आवाहन करें—

ॐ आगच्छन्तु मे पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’

ॐ हे पितरों! पधारिये तथा जलांजलि ग्रहण कीजिए।

‘हे अग्ने ! तुम्हारे यजन की कामना करते हुए हम तुम्हें स्थापित करते हैं । यजन की ही इच्छा रखते हुए तुम्हें प्रज्वलित करते हैं । हविष्य की इच्छा रखते हुए तुम भी तृप्ति की कामनावाले हमारे पितरों को हविष्य भोजन करने के लिये बुलाओ ।’

तदनन्तर अपने पितृगणों का नाम-गोत्र आदि उच्चारण करते हुए प्रत्येक के लिये पूर्वोक्त विधि से ही तीन-तीन अञ्जलि तिल-सहित जल इस प्रकार दें—

अस्मत्पिता अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यतांम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: – 3

अस्मत्पितामह: (दादा) अमुकशर्मा रुद्ररूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: – 3

अस्मत्प्रपितामह: (परदादा) अमुकशर्मा आदित्यरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम: – 3

अस्मन्माता अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम: – 3

अस्मत्पितामही (दादी) अमुकी देवी रुद्ररूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम: – 3

अस्मत्प्रपितामही परदादी अमुकी देवी आदित्यरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जल तस्यै स्वधा नम: – 3

इसके बाद नौ बार पितृतीर्थ से जल छोड़े।

इसके बाद सव्य होकर पूर्वाभिमुख हो नीचे लिखे श्लोकों को पढते हुए जल गिरावे—

देवासुरास्तथा यक्षा नागा गन्धर्वराक्षसा: । पिशाचा गुह्यका: सिद्धा: कूष्माण्डास्तरव: खगा: ॥

जलेचरा भूमिचराः वाय्वाधाराश्च जन्तव: । प्रीतिमेते प्रयान्त्वाशु मद्दत्तेनाम्बुनाखिला: ॥

नरकेषु समस्तेपु यातनासु च ये स्थिता: । तेषामाप्ययनायैतद्दीयते सलिलं मया ॥

येऽबान्धवा बान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवा: । ते सर्वे तृप्तिमायान्तु ये चास्मत्तोयकाङ्क्षिण: ॥

अर्थ : ‘देवता, असुर , यक्ष, नाग, गन्धर्व, राक्षस, पिशाच, गुह्मक, सिद्ध, कूष्माण्ड, वृक्षवर्ग, पक्षी, जलचर जीव और वायु के आधार पर रहनेवाले जन्तु-ये सभी मेरे दिये हुए जल से भीघ्र तृप्त हों । जो समस्त नरकों तथा वहाँ की यातनाओं में पङेपडे दुरूख भोग रहे हैं, उनको पुष्ट तथा शान्त करने की इच्छा से मैं यह जल देता हूँ । जो मेरे बान्धव न रहे हों, जो इस जन्म में बान्धव रहे हों, अथवा किसी दूसरे जन्म में मेरे बान्धव रहे हों, वे सब तथा इनके अतिरिक्त भी जो मुम्कसे जल पाने की इच्छा रखते हों, वे भी मेरे दिये हुए जल से तृप्त हों ।’

ॐ आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवषिंपितृमानवा: । तृप्यन्तु पितर: सर्वे मातृमातामहादय: ॥

अतीतकुलकोटीनां सप्तद्वीपनिवासिनाम् । आ ब्रह्मभुवनाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम् ॥

येऽबान्धवा बान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवा: ।ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मया दत्तेन वारिणा ॥

अर्थ : ‘ब्रह्माजी से लेकर कीटों तक जितने जीव हैं, वे तथा देवता, ऋषि, पितर, मनुष्य और माता, नाना आदि पितृगण-ये सभी तृप्त हों मेरे कुल की बीती हुई करोडों पीढियों में उत्पन्न हुए जो-जो पितर ब्रह्मलोकपर्यम्त सात द्वीपों के भीतर कहीं भी निवास करते हों, उनकी तृप्ति के लिये मेरा दिया हुआ यह तिलमिश्रित जल उन्हें प्राप्त हो जो मेरे बान्धव न रहे हों, जो इस जन्म में या किसी दूसरे जन्म में मेरे बान्धव रहे हों, वे सभी मेरे दिये हुए जल से तृप्त हो जायँ ।

वस्त्र-निष्पीडन करे तत्पश्चात् वस्त्र को चार आवृत्ति लपेटकर जल में डुबावे और बाहर ले आकर निम्नाङ्कित मन्त्र : “ये के चास्मत्कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृतारू । ते गृह्णन्तु मया दत्तं वस्त्रनिष्पीडनोदकम् ” को पढते हुए अपसव्य होकर अपने बाएँ भाग में भूमिपर उस वस्त्र को निचोड़े । पवित्रक को तर्पण किये हुए जल मे छोड दे । यदि घर में किसी मृत पुरुष का वार्षिक श्राद्ध आदि कर्म हो तो वस्त्र-निष्पीडन नहीं करना चाहिये ।

7.भीष्मतर्पण :
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इसके बाद दक्षिणाभिमुख हो पितृतर्पण के समान ही अनेऊ अपसव्य करके हाथ में कुश धारण किये हुए ही बालब्रह्मचारी भक्तप्रवर भीष्म के लिये पितृतीर्थ से तिलमिश्रित जल के द्वारा तर्पण करे । उनके लिये तर्पण का मन्त्र निम्नाङ्कित श्लोक है–

“वैयाघ्रपदगोत्राय साङ्कृतिप्रवराय च । गङ्गापुत्राय भीष्माय प्रदास्येऽहं तिलोदकम् । अपुत्राय ददाम्येतत्सलिलं भीष्मवर्मणे ॥”

अर्घ्य दान:
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फिर शुद्ध जल से आचमन करके प्राणायाम करे । तदनन्तर यज्ञोपवीत सव्य कर एक पात्र में शुद्ध जल भरकर उसमे श्वेत चन्दन, अक्षत, पुष्प तथा तुलसीदल छोड दे । फिर दूसरे पात्र में चन्दन् से षडदल-कमल बनाकर उसमें पूर्वादि दिशा के क्रम से ब्रह्मादि देवताओं का आवाहन-पूजन करे तथा पहले पात्र के जल से उन पूजित देवताओं के लिये अर्ध्य अर्पण करे ।

अर्ध्यदान के मन्त्र निम्नाङ्कित हैं—
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ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमत: सुरुचो व्वेन ऽआव:। स बुध्न्या ऽउपमा ऽअस्य व्विष्ठा: सतश्च योनिमसतश्व व्विव:॥ ॐ ब्रह्मणे नम:। ब्रह्माणं पूजयामि ॥

ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्यपा, सुरे स्वाहा ॥ ॐ विष्णवे नम: । विष्णुं पूजयामि ॥

ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव ऽउतो त ऽइषवे नम: । वाहुब्यामुत ते नम: ॥ ॐ रुद्राय नम: । रुद्रं पूजयामि ॥

ॐ तत्सवितुर्व रेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो न: प्रचोदयात् ॥ ॐ सवित्रे नम: । सवितारं पूजयामि ॥

ॐ मित्रस्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य सानसि । द्युम्नं चित्रश्रवस्तमम् ॥ ॐ मित्राय नम:। मित्रं पूजयामि ॥

ॐ इमं मे व्वरूण श्रुधी हवमद्या च मृडय । त्वामवस्युराचके ॥ ॐ वरुणाय नम: । वरूणं पूजयामि ॥

फिर भगवान सूर्य को अघ्र्य दें –
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एहि सूर्य सहस्त्राशों तेजो राशिं जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणाघ्र्य दिवाकरः।
हाथों को उपर कर उपस्थान मंत्र पढ़ें –

चित्रं देवाना मुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरूणस्याग्नेः। आप्राद्यावा पृथ्वी अन्तरिक्ष सूर्यआत्माजगतस्तस्थुशश्च।

फिर परिक्रमा करते हुए दशों दिशाओं को नमस्कार करें।

ॐ प्राच्यै इन्द्राय नमः। ॐ आग्नयै अग्नयै नमः। ॐ दक्षिणायै यमाय नमः। ॐ नैऋत्यै नैऋतये नमः। ॐ पश्चिमायै वरूणाय नमः। ॐ वायव्यै वायवे नमः। ॐ उदीच्यै कुवेराय नमः। ॐ ऐशान्यै ईशानाय नमः। ॐ ऊध्र्वायै ब्रह्मणै नमः। ॐ अवाच्यै अनन्ताय नमः।

इस तरह दिशाओं और देवताओं को नमस्कार कर बैठकर नीचे लिखे मन्त्र से पुनः देवतीर्थ से तर्पण करें।

ॐ ब्रह्मणै नमः। ॐ अग्नयै नमः। ॐ पृथिव्यै नमः। ॐ औषधिभ्यो नमः। ॐ वाचे नमः। ॐ वाचस्पतये नमः। ॐ महद्भ्यो नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ अद्भ्यो नमः। ॐ अपांपतये नमः। ॐ वरूणाय नमः।

फिर तर्पण के जल को मुख पर लगायें और तीन बार ॐ अच्युताय नमः मंत्र का जप करें।

समर्पण- उपरोक्त समस्त तर्पण कर्म भगवान को समर्पित करें।

ॐ तत्सद् कृष्णार्पण मस्तु।

यदि नदी में तर्पण किया जाय तो दोनों हाथों को मिलाकर जल से भरकर गौ माता की सींग जितना ऊँचा उठाकर जल में ही अंजलि डाल दें। इस विधि से श्राद्ध पूजा तर्पण करने से पितृ तृप्त होते हैं पितृदोष शामक होता है और आपके समस्त रूके हुए काम बनते हैं अड़चनें समाप्त होती हैं और धनवान बनने की संभावना बढ़ जाती है। 
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