निर्भीक पत्रकारिता के लिए हर वर्ष दिया जायेगा एक लाख का भैरवदत धूलिया पुरस्कार

जन्म तिथि 18 मई पर विशेष
निर्भीक पत्रकारिता के जनक और आजादी के आंदोलन के अग्रणी थे भैरवदत्त धूलिया
लैंसडौन / गढ़वाल की पत्रकारिता के सबसे सशक्त हस्ताक्षरों में भैरवदत्त धूलिया का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है / 18 मई 1901 में द्वारीखाल विकास खंड के मदनपुर गाँव के प्रतिष्ठित परिवार पंडित हरिदत्त धूलिया तथा श्रीमती सावित्री देवी के घर भैरवदत्त धूलिया का जन्म हुआ था /
इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी / 13 वर्ष की आयु में इनका विवाह चमेठा गांव के केवलराम कोटनाला की सुपुत्री सावित्री देवी संग हुआ था / विवाह के बाद वे संस्कृत की पढ़ाई के लिये बनारस चले गए थे /
वर्ष 1920 में हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद धूलिया जी गढ़वाल के कुली – बेगार आंदोलन में सक्रिय हो गए थे / यहीँ से उनके संघर्ष भरे सामाजिक व राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी / कुली – बेगार और सत्याग्रह आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भागीदारी निभाने के बाद वर्ष 1925 में वे संस्कृत व अंग्रेजी की पढ़ाई के लिये पुनः बनारस चले गए / किन्तु इनका मन सामाजिक आंदोलनों में रमता रहा / जिसके कारण वे फाइनल परीक्षा नहीं दे सकें /
वर्ष 1935- 1936 में काशी विद्यापीठ के कुमार विद्यालय में कुछ समय अध्यापन करने के बाद पटना से प्रकाशित समाचार पत्र नवशक्ति के संपादकीय विभाग में भी कार्य किया /
सन 1939 का वर्ष गढ़वाल की पत्रकारिता के इतिहास का एक महत्वपूर्ण वर्ष रहा / भक्त दर्शन जी और धूलिया जी ने प्रयागदत्त धस्माना और हरेंद्र सिंह के सहयोग से लैंसडौन में हिमालयन ट्रेडिंग तथा पब्लिशिंग कम्पनी की स्थापना करके कर्मभूमि साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया / सन 1939 की बसंत पंचमी को कर्मभूमि का पहला अंक लैंसडौन से प्रकाशित किया गया / धूलिया जी कर्मभूमि के संपादन से जुड़े रहे / आजादी के आंदोलन के दिनों में लैंसडौन राजनीतिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण केंद्र था / और यहीँ से कर्मभूमि की शुरुआत की गई थी /

कुछ माह बाद कर्मभूमि के प्रबंधकीय विभाग से कुछ वैचारिक मतभेद होने के कारण धूलिया जी दिल्ली चले गए / और तिबिया कॉलेज में प्रोफेसर हो गए / उनके जाते ही कर्मभूमि में संपादकीय छपने बंद हो गए /
सामाजिक कार्यकर्ता व पूर्व प्रधानाचार्य सुरेश वर्मा बताते हैं कि वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में धूलिया ने सक्रिय भूमिका निभाई थी / इसी दौरान उनके द्वारा लिखी पुस्तक ‘अंग्रेजों को हिंदुस्तान से निकाल दो ‘ ने ब्रिटिश सरकार की चुलें हिला दी / यह पुस्तक योगेश्वर प्रसाद धूलिया के प्रयास से मुंबई से प्रकाशित कराके वितरित की गई थी / ब्रिटिश हुकूमत की आंखों में धूल झोंकने व जनमानस को आजादी के आंदोलन से जोड़ने के लिये इस पुस्तक को छदम नाम से प्रकाशित किया गया था / इस पुस्तक ने समूचे गढ़वाल में क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित करने का काम किया था /
हनुमान चालीसा लिखने के अपराध में 8 नवंबर 1942 को धूलियाजी एवं उनके साथियों को पुलिस ने रात 3 बजे उनके निवास से बंदी बनाया और कोटद्वार में इन पर अलग अलग धाराओं में मुकदमा चलाया गया / 10 नवंबर 1942 को भैरवदत्त धूलिया को विद्रोह करने के अपराध में 3 वर्ष और बागियों को शरण देने के अपराध में 4 वर्ष कुल 7 वर्ष की सजा सुनाई गई / उन्हें जिला जेल बरेली भेजा गया / बाद में इन्हें बी श्रेणी मिल जाने पर जिला जेल मेरठ भेजा गया / पर्वतीय क्षेत्र के आंदोलनकारियों में धूलिया जी को ही सबसे अधिक जेल की सजा हुई थी / जेल से मुक्त होने के बाद उन्होंने पुनः कर्मभूमि का संपादन किया / निर्भीकता उनके तन मन में कूट कूट कर बसी रही / निर्भीक पत्रकार का यह गुण जीवन भर उनके साथ रहा /डोला – पालकी आंदोलन, छुआछूत, टिहरी राजशाही के अत्यंचारों के विरुद्ध जन मानस को जागृत करने,शराबबंदी आंदोलन, में धूलिया जी ने न केवल अपने लेखन के जरिये बल्कि इन आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी कर इनका नेतृत्व भी किया / भ्रष्टाचार के खिलाफ वे जीवन भर संघर्षरत रहे / जन समस्याओं के समाधान की दिशा में वे हर वक्त आगे आकर काम करते रहे / 1967 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने तत्कालीन दिग्गज मंत्री जगमोहन सिंह नेगी को पराजित किया / लेकिन सविंद सरकार की कार्य प्रणाली से नाराज होकर उन्होंने सरकार से इस्तीफा दे दिया /
5 जुलाई 1988 को 88 वर्ष की आयु में वे इस संसार से विदा हो गए / उनकी यादों को चिर स्थाई बनाने के लिये उनके परिजनों द्वारा कर्मभूमि फाउंडेशन बनाया गया है / फाउंडेशन के सचिव हिमांशु धूलिया ने बताया कि 18 मई 2023 को देहरादून में आयोजित एक समारोह में पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले एक पत्रकार को सम्मानित किया जाना है / हर वर्ष 18 मई को एक निर्भीक पत्रकार का चयन कर उसे सम्मान दिया जाना है / जिसमें उसे 1 लाख की नकद राशि, प्रशास्ति पत्र, शॉल भेंट कर उसे सम्मानित किया जायेगा /✍️कुलदीप कंडवाल