आज का पंचाग आपका राशि फल, साधनों में सन्तोष  करना चाहिए लेकिन साधना में निरंतर प्रयास यानी सांसारिक उपलब्धियों में संतोष और सांस्कारिक उन्नति में निरंतरता, रामायण में जटायु संपाति की भूमिका, वे जिन्हें चंद्रयान 3 की सफलता पच नहीं रही, भारत के क्षत्रीय राजा कभी हारे ही नहीं उन्हें पाठ्यक्रम में जानबूझकर हराया गया

🕉श्री हरिहरौ विजयतेतराम🕉  

🌄सुप्रभातम🌄

🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓

🌻शुक्रवार, २५ अगस्त २०२३🌻

सूर्योदय: 🌄 ०६:०७

सूर्यास्त: 🌅 ०६:५१

चन्द्रोदय: 🌝 १३:५६ 

चन्द्रास्त: 🌜००:०५

अयन 🌖 दक्षिणायणे (उत्तरगोलीय)

ऋतु: 🏔️ शरद 

शक सम्वत: 👉 १९४५ (शोभकृत)

विक्रम सम्वत: 👉 २०८० (नल)

मास 👉 श्रावण (द्वितीय, शुद्ध)

पक्ष 👉 शुक्ल 

तिथि 👉 नवमी (०२:०२ से दशमी)

नक्षत्र 👉 अनुराधा (०९:१४ से ज्येष्ठा)

योग 👉 वैधृति (१८:५१ से विष्कुम्भ)

प्रथम करण 👉 बालव (१४:४२ तक)

द्वितीय करण 👉 कौलव (०२:०२ तक)

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॥ गोचर ग्रहा: ॥ 

🌖🌗🌖🌗

सूर्य 🌟 सिंह 

चंद्र 🌟 वृश्चिक 

मंगल 🌟 कन्या (उदित, पश्चिम, मार्गी)

बुध 🌟 सिंह (उदय, पश्चिम, वक्री)

गुरु 🌟 मेष (उदित, पश्चिम, मार्गी)

शुक्र 🌟 कर्क (उदित, पश्चिम)

शनि 🌟 कुम्भ (उदित, पूर्व, वक्री)

राहु 🌟 मेष 

केतु 🌟 तुला 

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शुभाशुभ मुहूर्त विचार

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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:५३ से १२:४५

अमृत काल 👉 ००:०३ से ०१:३७

सर्वार्थसिद्धि योग 👉 ०५:४९ से ०९:१४

रवियोग 👉 ०९:१४ से ०५:५०

विजय मुहूर्त 👉 १४:२९ से १५:२०

गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:४८ से १९:१०

सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:४८ से १९:५४

निशिता मुहूर्त 👉 २३:५७ से ००:४१

ब्रह्म मुहूर्त 👉 ०४:२१ से ०५:०५

प्रातः सन्ध्या 👉 ०४:४३ से ०५:४९

राहुकाल 👉 १०:४१ से १२:१९

राहुवास 👉 दक्षिण-पूर्व

यमगण्ड 👉 १५:३३ से १७:११

होमाहुति 👉 शुक्र

दिशाशूल 👉 पश्चिम

नक्षत्र शूल 👉 पूर्व (०९:१४ से)

अग्निवास 👉 पृथ्वी (०२:०२ तक)

चन्द्रवास 👉 उत्तर

शिववास 👉 गौरी के साथ (०२:०२ से सभा में)

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☄चौघड़िया विचार☄

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॥ दिन का चौघड़िया ॥ 

१ – चर २ – लाभ

३ – अमृत ४ – काल

५ – शुभ ६ – रोग

७ – उद्वेग ८ – चर

॥रात्रि का चौघड़िया॥ 

१ – रोग २ – काल

३ – लाभ ४ – उद्वेग

५ – शुभ ६ – अमृत

७ – चर ८ – रोग

नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 

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शुभ यात्रा दिशा

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उत्तर-पश्चिम (दहीलस्सी अथवा राई का सेवन कर यात्रा करें)

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तिथि विशेष

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वरद लक्ष्मी व्रत, भूमि-भवन क्रय-विक्रय मुहूर्त प्रातः ०५:४५ से ०९:१४ तक आदि ।

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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण 

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आज ०९:१४ तक जन्मे शिशुओ का नाम अनुराधा नक्षत्र के चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (ने) नामक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (नो, या, यी, यू) नामक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।

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उदय-लग्न मुहूर्त

सिंह – ०५:१८ से ०७:३७

कन्या – ०७:३७ से ०९:५५

तुला – ०९:५५ से १२:१६

वृश्चिक – १२:१६ से १४:३५

धनु – १४:३५ से १६:३९

मकर – १६:३९ से १८:२०

कुम्भ – १८:२० से १९:४६

मीन – १९:४६ से २१:०९

मेष – २१:०९ से २२:४३

वृषभ – २२:४३ से ००:३८

मिथुन – ००:३८ से ०२:५३

कर्क – ०२:५३ से ०५:१४

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पञ्चक रहित मुहूर्त

मृत्यु पञ्चक – ०५:४९ से ०७:३७

अग्नि पञ्चक – ०७:३७ से ०९:१४

शुभ मुहूर्त – ०९:१४ से ०९:५५

रज पञ्चक – ०९:५५ से १२:१६

शुभ मुहूर्त – १२:१६ से १४:३५

चोर पञ्चक – १४:३५ से १६:३९

शुभ मुहूर्त – १६:३९ से १८:२०

रोग पञ्चक – १८:२० से १९:४६

शुभ मुहूर्त – १९:४६ से २१:०९

शुभ मुहूर्त – २१:०९ से २२:४३

रोग पञ्चक – २२:४३ से ००:३८

शुभ मुहूर्त – ००:३८ से ०२:०२

मृत्यु पञ्चक – ०२:०२ से ०२:५३

अग्नि पञ्चक – ०२:५३ से ०५:१४

शुभ मुहूर्त – ०५:१४ से ०५:५०

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आज का राशिफल

🐐🐂💏💮🐅👩

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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)

आज के दिन आप किसी कार्य को लेकर कुछ ज्यादा ही मानसिक बोझ लेंगे जिससे सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। सर अथवा शरीर के अन्य अंगों में दर्द की शिकायत रह सकती है। कार्य क्षेत्र पर सामान्य से कम व्यवसाय रहेगा फिर भी बुद्धिबल से कठिन परिस्थिति में भी हार नही मानेंगे धन की आमद आज अकस्मात होने वाली है। सरकारी कार्य आज करने से शीघ्र सफल हो सकते है। घर मे किसी की जिद के कारण माहौल कुछ समय के लिये थोड़ा अस्त व्यस्त बनेगा। बड़े बुजुर्गों का मार्गदर्शन मिलेगा।

 

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)

आज की परिस्थिति भी आपके लिए अनुकूल बनी रहेगी आज आलस्य ना करें समय का लाभ उठाएं धन लाभ के अच्छे अवसर मिलेंगे। व्यवसाय से अगर चाहे तो मनचाहा लाभ अर्जित किया जा सकता है इसके लिए दृढ़ संकल्प शक्ति की आवश्यकता है। धन लाभ आज हर परिस्थिति में होकर ही रहेगा। 

शारीरिक रूप से कुछ सुस्ती रहेगी नसों में दुर्बलता रहने से कमजोरी अनुभव करेंगे। पारिवारिक स्थिति में आर्थिक उलझने कम होने से कुछ सुधार आएगा। घर बाहर के लोगो से सम्मान मिलेगा नए संबंध बनेंगे। धर्म मे निष्ठा बढ़ेगी। 

 

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)

आज के दिन आप धन लाभ के साथ ही घरेलू सुख के साधनों में भी वृद्धि कर सकेंगे। भोजन अथवा अन्य खाद्य सामग्री पर खर्च भी करना होगा। मितव्ययता से चलने पर भी कुछ अनावश्यक खर्च परेशान कर सकते है। व्यापार में आज आशा से थोड़ी कम बिक्री रहेगी फिर भी दैनिक खर्च आसानी से निकल जाएंगे। गृहस्थ की जिम्मेदारी में कमी आने से महिलाये राहत में रहेंगी। आज मामूली बात पर क्रोध आएगा इससे बचने का प्रयास करें वार्ना किसी के अपशब्द सुनने पड़ेंगे। मध्यान बाद संताने शुभ समाचार देंगी। 

 

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)

आज के दिन विवेकी व्यवहार अपनाएंगे जिससे व्यर्थ के झगड़ो से बचे रहेंगे। कार्य व्यवसाय में आज कुछ विशेष सफलता नही मिलेगी फिर भी जितना मिले उसी में संतोष का परिचय देंगे। लेकिन परिवार में आज किसी सदस्य की इच्छा पूर्ति ना होने पर वातावरण खराब हो सकता है। नए कार्य की योजना बना रहे है तो अभी रुके वार्ना धन संबंधित उलझनों में फंस सकते है। नौकरी पेशा जातक काम मे ऊबन अनुभव करेंगे। मनोरंजन के अवसर नही मिलने से निराशा बढ़ेगी। संध्या का समय दिन की तुलना में मानसिक रूप से शांति दिलाएगा। सेहत लगभग ठीक ही रहेगी।

 

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)

आज के दिन आप व्यर्थ की बयानबाजी से बचें स्वभाव में भी राशि अनुसार अहम कुछ अधिक ही रहेगा गलती करके भी उद्दंडता दिखाना आज भारी पड़ सकता है। घर एवं बाहर कलह के प्रसंग बनेंगे। आज आप स्वयं तो बेपरवाह रहेंगे परन्तु घर के सदस्य एवं अन्य लोगो को परेशान करेंगे। कार्य क्षेत्र में भी आपकी गलती से आर्थिक नुकसान हो सकता है सहकर्मियों से आज बना कर रहे अन्यथा किसी बड़ी मुश्किल में फंसने की सम्भवना है। आय की अपेक्षा खर्च अधिक होगा। सरकारी एवं अन्य उलझनों वाले कार्य आज टालना ही बेहतर है।

 

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)

आज आपकी दिनचर्या आडम्बर युक्त अधिक रहेगी। लेकिन आज किसी भी बात को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना आपको ही मुश्किल में।डालेगा। सरकार संबंधित कागजी कार्य आज आसानी से पूर्ण हो सकेंगे लेकिन धन खर्च भी होगा। व्यवसाय में ले देकर काम चलाने की प्रवृति शुरू में हानि लेकिन बाद में लाभदायक सिद्ध होगी। आज किसी के मनमाने व्यवहार के कारण तीखी बहस भी हो सकती है जिसमे विजय आपकी ही होगी आपका सामाजिक व्यक्तित्त्व निखरेगा। परिवार के बीच मौन रहने से कई समस्याओं के समाधान स्वतः ही हो जायेगा। प्रतियोगी परीक्षा में सफलता मिलेगी। आरोग्य बना रहेगा।

 

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)

आपका आज का दिन भी कुछ विशेष नही रहेगा कल की ही भांति आज भी कारोबार अथवा अन्य धन संबंधित कार्य बाधा आने से अटके रहेंगे फिर भी आज खर्च लायक आमद जोड़ तोड़ करने से हो ही जाएगी। पारिवारिक अथवा अन्य कारणों से यात्रा करनी पड़ेगी आज धन खर्च के साथ आकस्मिक दुर्घटना अथवा चोटादि लग्ने का भी भय है सावधानी रखें। स्वभाव में स्वार्थ सिद्धि दिखेगी इस कारण अन्य लोग भी आज आपसे मतलब से ही बात करेंगे। धार्मिक कार्य मे अरुचि रहेगी फिर भी आज किये गए पूण्य कर्म शीघ्र फलदायी रहेंगे। घर का वातावरण अस्तव्यस्त रहेगा आज का दिन धैर्य से बिताएं।

 

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)

आज का दिन आपके लिए लाभदायी रहेगा लेकिन मन की चंचलता बने बनाये लाभ पर पानी भी फेर सकती है। दिन के आरंभ में कार्यो में सहज सफलता मिलने से अतिआत्मविश्वाश की भावना अन्य कार्यो को बिगाड़ सकती है विवेक से काम लें आज लाभ अवश्य होकर रहेगा। सौंदर्य प्रसाधन अथवा अन्य सुखोपभोग की वस्तुओं पर खर्च करेंगे। विपरीत लिंगीय के प्रति आज आकर्षण अधिक रहने से शीघ्र समर्पण कर देंगे। लघु यात्रा हो सकती है। स्वास्थ्य आज ठीक रहेगा फिर भी चोट आदि से परेशानी हो कि सम्भवना है सतर्क रहें।

 

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)

आज का दिन भी आपको प्रतिकूल फल देने वाला है। आज भला करने पर भी बुराई ही मिलेगी गृहस्थ में भी वैर-विरोध अधिक रहने से मानसिक रूप से हताश रहेंगे। कार्य व्यवसाय में आकस्मिक हानि हो सकती है देख परख कर ही कोई कार्य हाथ मे लें। नए अनुबंध और उधारी के व्यवहार से बचें। नौकरी पेशा जातक एवं व्यापारी भी किसी सरकारी उलझन में फंस सकते है। आज लाभ कमाने के लिए स्वभाव में सरलता ही एकमात्र रास्ता है। भाई बंधुओ से कोई मामूली बात निकट भविष्य में गहरा सकती है स्वभाव में अधिक खुलापन आज ठीक नही। फिजूल खर्ची अधिक रहेगी।

 

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)

आज का दिन आपके अनुकूल रहेगा लेकिन आज आपके बनते कार्यो में कोई ना कोई टांग अवश्य अड़ाएगा इसे अनदेखा कर अपने कार्यो में लगे रहे अगर विरोध किया तो लाभ से वंचित रह जाएंगे। मित्रो खास कर प्रेम प्रसंगों के कारण आज अधिक खर्च होगा फिर भी सुख की प्राप्ति आशानुकूल नही होगी। धन लाभ थोड़े विलम्ब से लेकिन आवश्यकतानुसार हो जाएगा। सार्वजनिक कार्यो में दिखावे के लिए भाग लेंगे फिर भी सम्मान मिलेगा। सेहत में थोड़ा बहुत उतार चढ़ाव रहने पर भी दैनिक कार्य प्रभावित नही होंगे।

 

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)

आज का दिन भी आपके लिए शुभ बना रहेगा कुछ मामूली उलझनों को छोड़ दैनिक कार्य सामान्य गति से चलते रहेंगे। नौकरी धंधे से अपेक्षित लाभ कमाने के लिए आज किसी के सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी लेकिन आपके उदासीन व्यवहार के कारण सहयोग प्राप्त करने में थोड़ा विलंब हो सकता है। व्यवसायी वर्ग दिन के आरंभ में परेशान रहेंगे लेकिन बाद में आर्थिक समस्या का समाधान होने से शांति मिलेगी। पारिवारिक सुख आज सामान्य रहेगा। कुछ समय के लिये शारीरिक स्फूर्ति खत्म जैसी लगेगी दवा लेने पर सामान्य हो सकती है।

 

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

आज के दिन आपकी रुचि धर्म-कर्म में अधिक रहेगी फिर भी कोई ना कोई व्यवधान आने से इसके लिए समय कम ही निकाल पाएंगे। आलसी प्रवृति के कारण कार्य क्षेत्र पर आलोचना होगी अधिकारी वर्ग आपकी गलती पकड़ने में लगे रहेंगे सतर्क रहें। आज आपका मन कार्य क्षेत्र पर कम मौज-शौक की ओर ज्यादा भटकेगा। काम वासना भी अधिक रहेगी। व्यर्थ के खर्च भी आज अधिक करेंगे। पारिवारिक वातावरण उथल-पुथल रहने पर भी दिनचर्या सामान्य रूप से चलती रहेगी। तीर्थ यात्रा के प्रसंग बनेंगे। सेहत आज ठीक ठाक ही रहेगी।

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*॥ श्रीहरि: ॥*
दिनांक 24.08.2023.
वि. सं. 2080, शुद्ध श्रावण मास, शुक्ल पक्ष, अष्टमी, गुरुवार।

1- परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का प्रवचन—
दिनांक— 24.2.1995, प्रातः 5.18 बजे।
स्थान— श्रीमुरली मनोहर धोरा, भीनासर।

2- गीता पाठ— अध्याय 10 श्लोक 1 से 10 तक।
*****
*✓✓ साधनों में सन्तोष  करना चाहिए लेकिन साधना में उच्चतम स्थिति के लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए । एक सांसारिक उन्नति होती है और एक पारमार्थिक उन्नति होती है; सांसारिक उन्नति में तो सन्तोष ही करना चाहिए, लेकिन पारमार्थिक उन्नति में सन्तोष करना ही नहीं चाहिए। जब तक उद्धार नहीं हुआ, तत्त्वबोध नहीं हुआ, भगवत्प्राप्ति नहीं हुई, भगवान् के चरणों में प्रेम नहीं हुआ, तब तक क्या सत्संग किया ? जिसे अपनी आध्यात्मिक उन्नति में सन्तोष नहीं होता है, उसकी उन्नति होती चली जाती है; पारमार्थिक उन्नति की कोई सीमा नहीं है। हम सन्तोष करके अपनी उन्नति में खुद ही बाधा लगा लेते हैं।*
*✓✓ जिनकी प्राप्ति प्रारब्ध के अधीन है, उन स्त्री, पुत्र, धन, सम्पत्ति, परिस्थितियों आदि में सन्तोष करना चाहिए और जिनकी प्राप्ति पुरुषार्थ के अधीन है, उन जप-तप, दान-पुण्य, सत्संग-स्वाध्याय आदि में सन्तोष नहीं करना चाहिए।*
*✓✓ एक क्रियात्मक गति है जैसे— चलना-फिरना, उठना-बैठना आदि; और एक क्रियारहित स्वत: गति है। सत्संग-स्वाध्याय आदि से मनुष्य के काम-क्रोध, राग-द्वेष आदि में फर्क पड़ता है, आध्यात्मिक गहरी-गहरी बातें समझ में आने लगती हैं— तो यहाँ भी गति हुई है, लेकिन यह गति कर्तृत्व और अभिमान रहित है। स्वयं की यह क्रियारहित गति परमात्मा की तरफ होती है। साधक सावधानीपूर्वक अपनी वृत्तियों का आकलन करता रहे, तो उसकी विशेष उन्नति होती है। साधक होता है, वह एक-दो घंटे के लिए साधक नहीं होता है, वह चौबीसों घंटे साधक होता है; और उसका साधन भी सीमित समय के लिए नहीं होता है। अखण्ड साधन ही कल्याणकारी होता है।*
*✓✓ साधकों के सत्संग में सुनी हुई बातों को काम में लाने की इच्छा-शक्ति रहनी चाहिए। सत्संग में सुनकर परमात्म संबंधी बातों को समझने की विशेष चेष्टा करें तो थोड़े सत्संग से और कम समय में बहुत उन्नति हो सकती है और बेपरवाही से सुनते रहें तो लाभ तो होता है, लेकिन विशेष और तत्काल लाभ नहीं होता; इसलिए सत्संग में तत्परता रहनी चाहिए। सामान्य व्याख्यान की अपेक्षा साधक का प्रश्न होने पर समझायी गई बात विशेष समझ में आती है।*

*सपनों और लक्ष्यों के बीच के अंतर को जानना ही*  *सफलता की पहली सीढ़ी है* *अपने लक्ष्यों पर ध्यान दें* *रात सुबह की प्रतीक्षा नहीं करती,*  *खुशबू मौसम की प्रतीक्षा नहीे करती,* *जो भी खुशी मिले उसका आनंद लिया करो, * क्योंकि जिंदगी वक्त का इंतजार नहीं करती…,‌* 

 *ख़ुशी उनको नही मिलती**जो अपने उद्देश्य से**ज़िन्दगी जिया करते है**ख़ुशी* 

*उनको मिलती है**जो दुसरो की ख़ुशी*

 *के लिए अपने* *उद्देश्य बदल दिया करते है*       🙏🌹 *सुप्रभात* 🌹🙏🌷🌷🌷🌷🌷

सम्पाती

रामायण में हमें सम्पाती एवं जटायु नाम दो पक्षियों का वर्णन मिलता है, जो गिद्ध जाति से सम्बंधित थे। रामायण में इन दोनों का बहुत अधिक वर्णन तो नहीं है किन्तु फिर भी जटायु का वर्णन हमें बहुत प्रमुखता से मिलता है। सम्पाती का वर्णन हमें केवल सीता संधान के समय ही मिलता है, किन्तु फिर भी उनकी कथा बहुत प्रेरणादायक है। आज हम इन दोनों भाइयों में से ज्येष्ठ, सम्पाती के विषय में जानेंगे। अगले लेख में हम उनके छोटे भाई जटायु के विषय में चर्चा करेंगे।

परमपिता ब्रह्मा के पुत्र महर्षि मरीचि हुए जो सप्तर्षियों में से एक थे। उन्होंने कर्दम प्रजापति की पुत्री कला से विवाह किया जिनसे उन्हें महर्षि कश्यप पुत्र के रूप में प्राप्त हुए। महर्षि कश्यप ने दक्ष प्रजापति की १७ कन्याओं से विवाह किया और उन्ही के पुत्रों से समस्त जातियों की उत्पत्ति हुई। महर्षि कश्यप के वंश के बारे में विस्तार पूर्वक आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

महर्षि कश्यप की एक पत्नी थी विनता जिन्होंने अपने पति से पुत्र प्राप्ति की याचना की। तब महर्षि कश्यप ने उनसे पूछा कि उन्हें कितने पुत्र चाहिए, तब उन्होंने केवल २ प्रतापी पुत्रों की कामना की। समय आने पर विनता ने दो अंडों का प्रसव किया किन्तु १०० वर्ष बीत जाने के बाद भी उन अंडों से किसी जीव की उत्पत्ति नही हुई। तब अधीरता दिखाते हुए विनता ने उनमें से एक अंडे को फोड़ दिया। उस अंडे से एक विशालकाय पक्षी निकला किन्तु उसका शरीर आधा ही बना था, शेष आधा शरीर अभी तक अविकसित था।

तब उन्होंने अपनी माता के अनुचित कृत्य के बारे में रोष दिखाते हुए कहा कि उन्होंने समय से पहले ही उसे अंडे से निकाल दिया जिससे उनका आधा शरीर दुर्बल रह गया। किन्तु अब वो वही भूल दूसरे अंडे के साथ ना करे। महर्षि कश्यप ने उन्हें अरुण नाम दिया और वो सूर्यनारायण की तपस्या करने वन चले गए। अपने पुत्र की बात ध्यान रखते हुए विनता ने दूसरे अंडे को सहेज कर रखा और समय बीतने पर उससे एक महापराक्रमी पक्षी की उत्पत्ति हुई। अरुण के उस छोटे भाई का नाम गरुड़ रखा गया।

उधर अरुण ने अपनी घोर तपस्या से सूर्यदेव को प्रसन्न कर लिया। जब उन्होंने उनसे वरदान मांगने को कहा तो अरुण ने सूर्यनारायण का सारथि होने का वरदान माँगा। सूर्यदेव ने तथास्तु कहा और अरुण ने उनके सारथी का पद ग्रहण किया। समय आने पर अरुण का विवाह श्येणी नामक कन्या से हुआ जिससे उन्हें दो पुत्र प्राप्त हुए – सम्पाती और जटायु। इस प्रकार अरुण से गिद्ध और गरुड़ से गरुड़ जाति की उत्पत्ति हुई।

युवा होने पर एक बार सम्पाती और जटायु में प्रतिस्पर्धा लगी कि दोनों में कौन सूर्य को छू सकता है। उसके पीछे उनकी अपने पिताश्री के दर्शनों की भी अभिलाषा थी। तब दोनो भाइयों ने सूर्य तक दौड़ लगाई। जैसे जैसे वे सूर्य के निकट पहुंचे, वैसे वैसे ही सूर्य के ताप से उन्हें पीड़ा होने लगी। किन्तु फिर भी दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नही हुआ। किन्तु सूर्य के थोड़ा और निकट जाने पर दोनों के पंख जलने लगे। तब अपने भाई को बचाने के लिए सम्पाती ने अपने पंखों से उसे ढक लिया। इससे जटायु तो बच गए किन्तु सम्पाती के दोनों पंख पूरी तरह जल गए और वो समुद्र तट के निकट विंध्य पर्वत पर जा गिरे।

पंख जल जाने और इतनी ऊंचाई से गिरने के कारण सम्पाती छः दिनों तक अचेत रहे। चेतना आपने पर सूर्य के ताप से बचने के लिए वे किसी प्रकार एक कंदरा में पहुँचे, जहाँ उनकी भेंट निशाकर नामक एक सिद्ध ऋषि से हुई। कहीं-कहीं इन ऋषि का नाम चंद्र भी बताया गया है। निशाकर ने अपनी सिद्धि से सम्पाती को उनकी पीड़ा से मुक्ति दिलवाई और कहा कि भविष्य में पंख पुनः उग आएंगे किन्तु अभी उन्हें अपने पंखों से रहित इसी समुद्र तट पर रहना होगा क्यूंकि भविष्य में उन्हें श्रीहरि के अवतार का एक महत्वपूर्ण कार्य करना है।

तत्पश्चात सम्पाती वही समुद्र तट पर रहने लगे और जटायु पंचवटी में जाकर बस गए। बहुत काल के बाद जब श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण पंचवटी आये तो जटायु उन्ही के निकट रहने लगे। जब रावण ने माता सीता का हरण किया तब जटायु अतिवृद्ध होने के बाद भी रावण से उन्हें बचाने के लिए लड़े, किन्तु अंततः उसके हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए। बाद में श्रीराम ने स्वयं उनका अंतिम संस्कार किया।

रामायण में सम्पाती की पत्नी का वर्णन नहीं है किन्तु कुछ स्थानों पर उनके एक पुत्र “सुपार्श्व” का वर्णन आता है। चूँकि सम्पाती पंख रहित थे और उड़ नहीं सकते थे, उनके पुत्र सुपार्श्व भी वही अपने पिता के साथ रहने लगे। वही अपने पिता के लिए भोजन, जल इत्यादि की व्यवस्था करते थे। 

एक दिन सुपार्श्व बहुत देर से अपने पिता के पास आये और उनके लिए भोजन की भी उन्होंने कोई व्यवस्था नहीं की। इस पर क्रुद्ध होते हुए सम्पाती ने सुपार्श्व से पूछा कि उन्होंने भोजन की व्यवस्था क्यों नहीं की? तब सुपार्श्व ने उन्हें बताया कि आज उन्होंने एक राक्षस को आकाश मार्ग से एक स्त्री का हरण कर के ले जा रहा था। उसे देखने में ही उसे इतना विलम्ब हो गया और उसने भोजन की व्यवस्था नहीं की। तब सम्पाती को समझ में आ गया कि उसकी मुक्ति का समय निकट आ गया है। 

कुछ काल बाद जब अंगद के नेतृत्व में वानर सेना माता सीता को खोजने दक्षिण दिशा में गयी तो वही उनकी भेंट सम्पाती से हुई। उन्होंने सम्पाती को उनके छोटे भाई जटायु की मृत्यु का समाचार दिया जिसे सुनकर उन्हें अपार दुःख हुआ। जब जांबवंत और हनुमान ने उनसे सहायता मांगी तब सम्पाती ने ही अपनी दूर दृष्टि से देख कर वानरों को ये बताया कि माता सीता को रावण इस १०० योजन समुद्र के पार लंका ले कर गया है। तब हनुमान ने समुद्र पार जाकर उनका पता लगाया। कुछ स्थानों पर ऐसा भी वर्णन है कि सम्पाती ने ही वानरों को समुद्र पार कर माता सीता का पता लगाने के लिए उत्साहित किया। 

कुछ ग्रंथों में ये वर्णित है कि सम्पाती उसी समुद्र तट पर राम नाम लेते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए किन्तु वाल्मीकि रामायण में ऐसा वर्णन है कि माता सीता का पता लगाने के बाद ऋषि निशाकर के कथनानुसार सम्पाती के लाल रंग के दो विशाल पंख उग आये और वे वहाँ से उड़ गए। इस प्रकार अरुण के दोनों पुत्र – सम्पाती एवं जटायु, श्रीराम की सहायता कर इतिहास में अमर हो गए।🕉️इस मूर्ति को 15 हजार स्कावयर फिट में बनाया गया है। समुद्र से भी 350 मी इस मूर्ति की ऊंचाई है। जटायू की मूर्ति की लंबाई की बात करें तो 200 फिट है और इसकी चौड़ाई 70 फिट। पक्षीराज जटायू की मूर्ति एक पहाड़ पर बनाई गई है और केरल फिल्‍मों के निर्माता राजीब अंचल ने इसे बनाने का विचार किया था। 

#तकनीक_और_स्वतंत्रता

भारत ही नहीं संसार भर में ‘गुप्त युग’ मानवता का स्वर्णयुग था।

पूरे विश्वव्यापार में भारत 35 से 45% हिस्सा था।
समाज के निम्नतम वर्ग में भी अभूतपूर्व समृद्धि थी।

वैदिक, जैन, बौद्ध सभी हिंदू संप्रदायों में अभूतपूर्व सद्भाव था।

कानून अदृश्य था और उसकी नैतिक शक्ति हर जगह उपस्थित थी।

गहनों से लदी सुंदर नवयौवना सुनसान मार्गों पर अर्धरात्रि को भी सुरक्षित थी।

हिंदू सेनाएं इतनी शक्तिशाली थीं कि सासानिद शाहंशाह थर थर कांपते थे और सुदूर वंक्षु तक हमारा पहरा था

इन सबके मूल में क्या था?

राजनैतिक नेतृत्व और तकनीकी विकास।

धातु विज्ञान में प्रमाण देखना हो तो महरौली के लौह स्तंभ को देख आइये।

गणित व एस्ट्रोलॉजी में प्रमाण देखना हो तो आर्यभट्ट को पढिये।

सैन्यविज्ञान देखना हो तो गुप्तों की अश्वसेना का संगठन देखिये जिनके कारण भारत की पहुँच मध्यएशिया तक थी।

इसके बाद हमारा संतुलन गड़बड़ा गया।

विज्ञान के स्थान पर धार्मिक कठमुल्ले हावी हो गए जिन्हें समुद्र पार करने में, तकनीक में धर्म की हानि दिखने लगी।

हमने अपनी आजादी दरअसल तब खोई जब समृद्धि में चूर हिंदुओं ने स्वयं को संसार से काटकर तकनीकी विकास को अवरुद्ध कर दिया।

मोदी जी की नितनिरन्तर बढ़ती लोकप्रियता और चंद्रयान की सफलता पर झूमते भारत को देखकर कुढ़ते झींकते और गरीबी का रोना रोते ये लोग उन्हीं कठमुल्लों की विरासत के वंशज हैं जो मोदी युग में नेहरू का सपना देख रहे हैं।

Note:- प्रतीकात्मक चित्र #इंदु_से_सिंधु_पुस्तक से गुप्त युग के अपराजेय स्वर्णिम युग के अध्याय से है जिसमे उदयगिरि की आदिवराह मूर्ति और महरौली स्थित लौह स्तम्भ है जो कभी अफगानिस्तान में हिंदुकुश के ‘विष्णुपद पर्वत’ पर गड़ा हुआ था।

देवेन्द्र सिकरवार

वो हारे नहीं थे, पुस्तकों में हरा दिया गया।

कविता देखें – उधर वीरवर गोरा का धड़ अरिदल काट रहा था इधर बादल शत्रु की लाशों से भूतल पाट रहा था। 

यदि हमारे पूर्वज युद्ध हारते ही रहे, तो हम 1200 साल से जिंदा कैसे हैं?

आजकल लोगों की एक सोच बन गई है कि राजपूतों ने लड़ाई तो की,

लेकिन वे एक हारे हुए योद्धा थे, जो कभी अलाउद्दीन से हारे, कभी बाबर से हारे, कभी अकबर से, कभी औरंगज़ेब से…

क्या वास्तव में ऐसा ही है ? यहां तक कि समाज में भी ऐसे कई

दिग्भ्रमित राजपूत हैं, जो महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जैसे कालजयी योद्धाओं को महान तो कहते हैं, लेकिन उनके मन में ये हारे हुए योद्धा ही हैं!

महाराणा प्रताप के बारे में ऐसी पंक्तियाँ गर्व के साथ सुनाई जाती हैं :-

“जीत हार की बात न करिए, संघर्षों पर ध्यान करो”

“कुछ लोग जीतकर भी हार जाते हैं, कुछ हारकर भी जीत जाते हैं”

वास्तविक तथ्य ये है कि हमें वही इतिहास पढ़ाया जाता है, जिनमें हम हारे हैं, क्योंकि हमारा मनोबल कम हो, ये कुकृत्य वामपंथियो द्वारा किया गया। मेवाड़ के राणा सांगा ने 100 से अधिक युद्ध लड़े और जीते 

जिनमें मात्र एक युद्ध में पराजित हुए और आज उसी एक युद्ध के बारे में दुनियां जानती है, उसी युद्ध से राणा सांगा का इतिहास शुरु किया जाता है और उसी पर ख़त्म…

राणा सांगा द्वारा लड़े गए खंडार, अहमदनगर, बाड़ी, गागरोन, बयाना, ईडर, खातौली जैसे युद्धों की बात आती है, तो शायद हम बता नहीं पाएंगे और अगर बता भी पाए तो उतना नहीं जितना खानवा के बारे में बता सकते हैं ।

भले ही खातौली के युद्ध में राणा सांगा अपना एक हाथ व एक पैर गंवाकर दिल्ली के इब्राहिम लोदी को दिल्ली तक खदेड़ दे, तो वो मायने नहीं रखता, बयाना के युद्ध में बाबर को भागना पड़ा हो तब भी वह गौण है…

इनके लिए मायने रखता है तो खानवा का युद्ध जिसमें मुगल बादशाह बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया!

सम्राट पृथ्वीराज चौहान की बात आती है तो, तराईन के दूसरे युद्ध में गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया!

तराईन का युद्ध तो पृथ्वीराज चौहान द्वारा लडा गया आखिरी युद्ध था, उससे पहले उनके द्वारा लड़े गए युद्धों के बारे में कितना जानते हैं हम ?

इसी तरह महाराणा प्रताप का वर्णन आता है तो हल्दीघाटी नाम सबसे पहले सुनाई देता है ।

हालांकि इस युद्ध के परिणाम शुरु से ही विवादास्पद रहे, कभी अनिर्णित माना गया, कभी अकबर को विजेता माना तो हाल ही में महाराणा को विजेता माना!

महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा, चावण्ड, मोही, मदारिया, कुम्भलगढ़, ईडर, मांडल, दिवेर जैसे कुल 21 बड़े युद्ध जीते व 300 से अधिक मुगल छावनियों को ध्वस्त किया!

महाराणा प्रताप के समय मेवाड़ में लगभग 50 दुर्ग थे, जिनमें से तकरीबन सभी पर मुगलों का अधिकार हो चुका था व 26 दुर्गों के नाम बदलकर मुस्लिम नाम रखे गए, जैसे उदयपुर बना मुहम्मदाबाद, चित्तौड़गढ़ बना अकबराबाद…

फिर कैसे आज उदयपुर को हम उदयपुर के नाम से ही जानते हैं ?…

ये हमें कोई नहीं बताता!

असल में इन 50 में से 2 दुर्ग छोड़कर शेष सभी पर महाराणा प्रताप ने विजय प्राप्त की थी व लगभग सम्पूर्ण मेवाड़ पर दोबारा अधिकार किया था!

दिवेर जैसे युद्ध में भले ही महाराणा के पुत्र अमरसिंह ने अकबर के काका सुल्तान खां को भाले के प्रहार से कवच समेत ही क्यों न भेद दिया हो, लेकिन हमें तो सिर्फ हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास पढाएगे,

बाकी युद्ध तो सब गौण हैं इसके आगे!

महाराणा अमरसिंह ने मुगल बादशाह जहांगीर से 17 बड़े युद्ध लड़े व 100 से अधिक मुगल चौकियां ध्वस्त कीं, लेकिन हमें सिर्फ ये पढ़ाया जाता है कि 1615 ई. में महाराणा अमरसिंह ने मुगलों से संधि की |

ये कोई नहीं बताएगा कि 1597 ई. से 1615 ई. के बीच क्या क्या हुआ..!

महाराणा कुम्भा ने 32 दुर्ग बनवाए, कई ग्रंथ लिखे, विजय स्तंभ बनवाया, ये हम जानते हैं, पर क्या आप उनके द्वारा लड़े गए गिनती के 4-5 युद्धों के नाम भी बता सकते हैं ?

महाराणा कुम्भा ने आबू, मांडलगढ़, खटकड़, जहांजपुर, गागरोन, मांडू, नराणा, मलारणा, अजमेर, मोडालगढ़, खाटू, जांगल प्रदेश, कांसली, नारदीयनगर, हमीरपुर, शोन्यानगरी, वायसपुर, धान्यनगर, सिंहपुर, बसन्तगढ़, वासा, पिण्डवाड़ा, शाकम्भरी, सांभर, चाटसू, खंडेला, आमेर, सीहारे, जोगिनीपुर, विशाल नगर, जानागढ़, हमीरनगर, कोटड़ा, मल्लारगढ़, रणथम्भौर, डूंगरपुर, बूंदी, नागौर, हाड़ौती समेत 100 से अधिक युद्ध लड़े व अपने पूरे जीवनकाल में किसी भी युद्ध में पराजय का मुंह नहीं देखा!

चित्तौड़गढ़ दुर्ग की बात आती है तो सिर्फ 3 युद्धों की चर्चा होती है :

1) अलाउद्दीन ने रावल रतनसिंह को पराजित किया,

2) बहादुरशाह ने राणा विक्रमादित्य के समय चित्तौड़गढ़ दुर्ग जीता;

3) अकबर ने महाराणा उदयसिंह को पराजित कर दुर्ग पर अधिकार किया!

क्या इन तीन युद्धों के अलावा चित्तौड़गढ़ पर कभी कोई हमले नहीं हुए ?

इस तरह राजपूतों ने जो युद्ध हारे हैं, इतिहास में हमें वही पढ़ाया जाता है ।

बहुत से लोग हमें ज्ञान देते हैं कि राजपूतों के पूर्वजों ने सही रणनीति से काम नहीं लिया, घटिया हथियारों का इस्तेमाल किया इसीलिए हमेशा हारे हैं…

अब उन्हें किन शब्दों में समझाएं कि उन्हीं हथियारों से राजपूतों ने अनगिनत युद्ध जीते हैं, मातृभूमि का लहू से अभिषेक किया है, सैंकड़ों वर्षों तक विदेशी शत्रुओं की आग उगलती तोपों का अपनी तलवारों से सामना किया है और बार बार शत्रुओं को धूल चटाई है।

भारत में एक से बढ़कर एक योद्धा हुए है, इनमें एक नाम था “समुद्र गुप्त” जिस का नाम इतिहास के एक कोने में ही सिमट के रहा गया, जिसे भारत का नेपोलियन कहा जाता है, वो इन मुगलों को भगा भगा के मारा, अफगान, ईरान, इराक कहीं भी नहीं छोड़ा ईरान, इराक़ इनके अधिकार में आया था। साथ ही 3 बार विश्व विजय के लिए निकला था

लेकिन ऐसे योद्धा को गुमनाम कर दिया!

हम जानते हैं कि वास्तव में हमारा इतिहास भारत से प्रेम करने वाली विचारधारा ने लिखा ही नहीं है, और कहीं न कहीं पक्षपात पूर्ण इतिहास को मान्यता भी मिली है हमारे देश में…

अब इतिहास का विद्वानों द्वारा पुनर्मूल्यांकन होना चाहिए।

ताकि आप और हम अपने गौरवशाली भारत के चक्रवर्ती सम्राटों और महापुरुषों के बारे में वास्तविक इतिहास पढ़ सकें और आने वाली पीढ़ियां हमें वही समझे, जो वास्तव में हम थे और हिंदुस्तान के उन वास्तविक वीरों को शत शत नमन कर सकें ।।।