*༺𝕝𝕝 卐 𝕝𝕝༻*
*श्री हरिहरौ**विजयतेतराम*सुप्रभातम*
*आज का पञ्चाङ्ग*
*_गुरुवार, १९ अक्टूबर २०२३_*
*═══════⊰⧱⊱═══════*
सूर्योदय: 🌄 ०६:३३
सूर्यास्त: 🌅 ०५:५२
चन्द्रोदय: 🌝 १०:४४
चन्द्रास्त: 🌜२०:४७
अयन 🌖 दक्षिणायणे
(दक्षिणगोलीय)
ऋतु: 🏔️ शरद
शक सम्वत:👉१९४५ (शोभकृत)
विक्रम सम्वत:👉२०८० (पिंगल)
मास 👉 आश्विन
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि👉पञ्चमी(२४:३१ से षष्ठी)
नक्षत्र 👉ज्येष्ठा(२१:०४ से मूल)
योग 👉 सौभाग्य (०६:५४
से शोभन)
प्रथम करण👉बव(१२:५५ तक)
द्वितीय करण 👉 बालव
(२४:३१ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 तुला
चंद्र 🌟 धनु (२१:०३ से)
मंगल🌟तुला(अस्त,पश्चिम,मार्गी)
बुध🌟तुला (अस्त, पूर्व, वक्री)
गुरु🌟मेष (उदित, पश्चिम, वक्री)
शुक्र🌟सिंह(उदित,पश्चिम,मार्गी)
शनि 🌟 कुम्भ
(उदित, पूर्व, वक्री)
राहु 🌟 मेष
केतु 🌟 तुला
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:३९ से १२:२४
अमृत काल 👉 १२:१४ से १३:५१
रवियोग 👉 २१:०४ से ३०:२२
विजय मुहूर्त 👉 १३:५५ से १४:४१
गोधूलि मुहूर्त 👉 १७:४२ से १८:०८
सायाह्न सन्ध्या 👉 १७:४२ से १८:५८
निशिता मुहूर्त 👉 २३:३७ से २४:२७
ब्रह्ममुहूर्त 👉 २८:४० से २९:३०
प्रातः सन्ध्या 👉 २९:०५ से ०६:२१
राहुकाल 👉 १३:२७ से १४:५२
राहुवास 👉 दक्षिण
यमगण्ड 👉 ०६:२१ से ०७:४६
दुर्मुहूर्त 👉 १०:०८ से १०:५३
होमाहुति 👉 बुध
दिशाशूल 👉 दक्षिण
नक्षत्र शूल 👉 पूर्व (२१:०४ तक)
अग्निवास 👉 पृथ्वी
चन्द्रवास 👉 उत्तर (पूर्व २१:०४ से)
शिववास 👉 कैलाश पर (२४:३१ से नन्दी पर)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – शुभ २ – रोग
३ – उद्वेग ४ – चर
५ – लाभ ६ – अमृत
७ – काल ८ – शुभ
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – अमृत २ – चर
३ – रोग ४ – काल
५ – लाभ ६ – उद्वेग
७ – शुभ ८ – अमृत
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
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पूर्व-उत्तर (दही का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
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ललिता पंचमी, उपांग ललिता व्रत, सिंह- कन्या लग्न (मध्यरात्रि ०१:५२ से अतंरात्रि ०५:०८) तक, भूमि-भवन क्रय-विक्रय मुहूर्त रात्रि ०९:०४ से ०९:५५ तक, देवप्रतिष्ठा मुहूर्त प्रातः १०:४५ से दोपहर १२:१२ तक आदि।
आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज २१:०४ तक जन्मे शिशुओ का नाम ज्येष्ठा नक्षत्र के द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (या, यी, यू) नामक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम मूल नक्षत्र के प्रथम एवं द्वितीय चरण अनुसार क्रमशः (ये, यो) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
उदय-लग्न मुहूर्त
तुला – ३०:१९ से ०८:३९
वृश्चिक – ०८:३९ से १०:५९
धनु – १०:५९ से १३:०२
मकर – १३:०२ से १४:४४
कुम्भ – १४:४४ से १६:०९
मीन – १६:०९ से १७:३३
मेष – १७:३३ से १९:०७
वृषभ – १९:०७ से २१:०१
मिथुन – २१:०१ से २३:१६
कर्क – २३:१६ से २५:३८
सिंह – २५:३८ से २७:५७
कन्या – २७:५७ से ३०:१५
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पञ्चक रहित मुहूर्त
रोग पञ्चक – ०६:२१ से ०८:३९
शुभ मुहूर्त – ०८:३९ से १०:५९
मृत्यु पञ्चक – १०:५९ से १३:०२
अग्नि पञ्चक – १३:०२ से १४:४४
शुभ मुहूर्त – १४:४४ से १६:०९
रज पञ्चक – १६:०९ से १७:३३
अग्नि पञ्चक – १७:३३ से १९:०७
शुभ मुहूर्त – १९:०७ से २१:०१
रज पञ्चक – २१:०१ से २१:०४
शुभ मुहूर्त – २१:०४ से २३:१६
चोर पञ्चक – २३:१६ से २४:३१
शुभ मुहूर्त – २४:३१ से २५:३८
रोग पञ्चक – २५:३८ से २७:५७
शुभ मुहूर्त – २७:५७ से ३०:१५
मृत्यु पञ्चक – ३०:१५ से ३०:२२
आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज का दिन आपके लिए बीते दिनों की अपेक्षा राहत भरा रहेगा। कुछ दिनों से चल रही शारीरिक एवं पारिवारिक समस्या आज भी मध्यान तक यथावत बानी रहेगी जिससे दैनिक कार्यो पर विपरीत असर पड़ेगा लेकिन दोपहर के बाद धीरे धीरे इनका समाधान होने से संतोष अनुभव होगा। आज आप सामाजिक कार्य के प्रति रूचि दिखाएंगे लेकिन सामाजिक क्षेत्र पर आर्थिक लेनदेन से बचे धन नाश होने की संभावना है। कला एवं तकनीकी क्षेत्र से जुड़े जातको के लिए आज का दिन लाभदायी सिद्ध होगा। मित्रो रिश्तेदारों के ऊपर खर्च होगा। संतान की प्रगति से संतुष्टि होगी। यात्रा का मन बनेगा।
वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज का दिन आपको लंबे समय तक याद रखने वाली स्मृतियां देकर जाएगा। आज दिनचर्या को व्यवस्थित बनाने पर भी मध्यान अटक विलंब होगा इसके बाद जिस भी कार्यो को हाथ मे लेंगे उसे पूर्ण कर कुछ न कुछ लाभ अवश्य कमाएंगे। ठेकेदारी को छोड़कर अन्य किसी भी व्यापार में निवेश भविष्य के लिए लाभदायक सिद्ध होगा। कार्य क्षेत्र में परिवर्तन करने का मन भी बनेगा लेकिन अभी इसके लिए उपयुक्त समय नही है। समाज के प्रतिष्ठित लोगो से लाभदायक सम्बन्ध बनेंगे। माध्यम बाद आर्थिक लाभ के लिए प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा। संतान अथवा किसी अन्य व्यक्ति से पीड़ा मिल सकती है।
मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज का दिन आपके लिए शुभ फलदायी रहेगा परन्तु अत्यंत खर्चीला भी रहेगा। आज कुछ दिन से चली आ रही गृहस्थ की समस्याओं से निजात मिलने से शारीरिक एवं मानसिक रूप से दृढ़ रहेंगे। लेकिन आपका स्पष्ट बोलना किसी को अखर सकता है। दोपहर बाद व्यापारियों को व्यवसाय में गति मिलने से आर्थिक लाभ होगा एवं व्यापार में उन्नति के अवसर भी मिलेंगे। व्यक्तिगत एवं पारिवारिक खर्च अधिक रहेंगे मनोकामना पूर्ति करने के बाद परिजनों से मतभेद सुलझेंगे। संध्या के बाद स्फूर्ति और प्रसन्नता का अभाव रहेगा फिर भी मनोरंजन के अवसरों का आनंद उठाएंगे।
कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज का दिन आपके लिए मध्यम फलदायी रहेगा। आज आप प्रत्येक कार्य को विचार कर ही करेंगे परन्तु फिर भी दिन के मध्यान तक प्रत्येक कार्य में विघ्न आएंगे। परिश्रम का यथोचित लाभ ना मिलने से मन में हताशा उत्पन्न होगी। खर्च बढ़-चढ़ कर रहेंगे हताशा आपकी वाणी की कटुता के कारण घर-बाहर का वातावरण अशान्त हो सकता है। आज दिखावटी व्यवहार एवं स्वभाव से बचे अन्यथा भविष्य के लाभ से वंचित रह सकते है। संध्या पश्चात स्थिति में सुधार होगा। कार्य में गति आने से धन की आमद होगी। परिजनों से सुलह के लिए आपको नम्र होना पड़ेगा।
आरोग्य बना रहेगा।
सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आपको आज का दिन भी धैर्य से बिताने की सलाह है। कार्य में असफलता अथवा किसी व्यक्ति विशेष के कारण आज आवेश से भरे रह सकते है विशेषकर कार्य क्षेत्र पर सहयोगियों का विपरीत व्यवहार परेशान करेगा। कार्य क्षेत्र पर आज अत्यधिक परिश्रम के बाद भी अल्प लाभ से संतोष करना पड़ेगा। घर मे भी स्वयं अथवा किसी परिजन के द्वारा हानि हो सकती है फिर भी आज वाणी एवं क्रोध को शांत रख दिन धैर्य से बिताए। यात्रा में चोटादि का भय है वाहन चालान अतिआवश्यक होने पर ही करें। सेहत के प्रति लापरवाही से बचें।
कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज का दिन आपके लिए थोड़ा उतार चढ़ाव से भरा रहेगा। दिन के पूर्वार्ध में आपके सब कार्य व्यवहार कुशलता के बल पर सरलता से पूर्ण होंगे। मध्यान के आस पास सार्वजनिक क्षेत्र पर किसी पुराने विवाद को लेकर बदनामी होने का भय सताएगा लेकिन यहाँ किसी पुराने परिचित का सहयोग मिलने से उलझनों से मुक्ति मिलेगी। परंतु मध्यान के बाद स्थिति पुनः विपरीत होने से किसी पारिवारिक कारण से चिंता बढ़ेगी। पारिवारिक सदस्यों में झगड़ा अथवा कोई दुर्घटना होने की सम्भवना है। जिससे मन अशांत रहेगा। परिवार के बुजुर्गो के साथ समय बिताएं।
तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज का दिन आपको मिला-जुला फल देगा। प्रातः काल का समय किसी के पुराने मतभेद सुलझाने में व्यतीत होगा परंतु इसमे सफलता मध्यान के बाद ही मिलेगी। आज मध्यान के बाद ही अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य करना हितकर रहेगा। कार्य क्षेत्र पर आज प्रतिस्पर्धा अधिक रहेगी नौकरी पेशा लोगो को भी अपने काम निकालने के लिए किसी ना पसंद व्यक्ति की खुशामद करनी पड़ेगी। आज किसी ये आर्थिक लेन-देन ना करें अगर आवश्यक हो तो किसी को मध्यस्थ बना कर ही करें। संध्या के समय मित्र परिचितों के साथ भोजन पर्यटन पर जा सकते है। लोहे की वस्तुओं से सावधानी रखें।
वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज का दिन आपको शुभ फल की प्राप्ति कराएगा। स्वभाव से आप मनमौजी ही रहेंगे फिर भी आज मध्यान बाद तक सभी से सम्बन्ध मधुर रहेंगे तथा किसी स्वजनं द्वारा लाभ भी हो सकता है। व्यापर नौकरी में भी मामूली उलझनों के बाद अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलेगा। लेकिन आज अधिकारी वर्ग से सतर्क रहना पड़ेगा।व्यवसायी वर्ग को संध्या तक रुक रुक कर लाभ होगा। आज किसी प्रिय व्यक्ति से भेंट आनंद देगी। मध्यान पश्चात परिजनों के साथ पर्यटन पर जा सकते है। संध्या के आस पास का समय विशेष खर्चीला सिद्ध होगा। यात्रा में हानि का डर है सतर्क रहें।
धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज का दिन विषम परिस्थितियों वाला रहेगा फिर भी आपका मन मौजी व्यवहार अन्य लोगो के लिये मुश्किलें बढ़ाएगा। अपनी कमियों को छुपाकर अन्य को उपदेश देना मान हानि कराएगा। आज कार्य के क्षेत्र पर अव्यवस्था की स्थिति रहने के कारण कर्मचारियों से तकरार होने की संभावना है नौकरी पेशा जातको से अधिकारी अप्रसन्न रहेंगे। अनावश्यक खर्च बढ़ने से आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है। आज परिजनों के साथ समय बिताने से आगे के लिए मार्गदर्शन मिल सकता है। नशीली वस्तुओं के सेवन से बचे शरीर के साथ मान हानि भी हो सकती है।
मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज का दिन आपके लिए हर प्रकार से लाभदायी रहेगा। आज सेहत उत्तम रहने से प्रत्येक कार्य उत्साह के साथ करेंगे मध्यान के समय किसी कार्य मे असमंजस की स्थिति बनेगी लेकिन किसी विशेष व्यक्ति का सहयोग मिलने से शंका समाधान हो जाएगा। आप जिस काम में हाथ डालेंगे उसमे धन के साथ कुछ अतिरिक्त लाभ हो सकता है। कई दिनों से रुकी मनचाही यात्रा के अवसर मिलने रोमांचित होंगे। स्नेहीजनों से भेंट आनंद बढ़ाएगी। रुके हुए धन की उगाही करने के लिए भी उत्तम समय है। आज दिन रहते आवश्यक कार्य कर ले इसके बाद कोई ना कोई विघ्न आने लगेगा।
कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज का दिन आपके लिए कार्य सिद्धि दायक रहेगा। आज आपको प्रत्येक कार्य भर जैसा लगेगा लेकिन एक बार आरम्भ करने पर इससे आशाजनक फल प्राप्त होगा। व्यवसायी वर्ग जिस कार्य को उलझन वाला समझेंगे उसी में मनोवांछित सफलता मिलने से मन हर्षित रहेगा। आज सांसारिक सुख सुविधाओं की वस्तुएं संकलित करने पर भी धन खर्च होगा। विवाहोत्सुकों के लिए योग्य साथी की तलाश पूरी हो सकती है। पारिवारिक दायित्वों की पूर्ति करने पर घर मे मान बड़ाई मिलेगी। आज किसी को बिना मांगे सलाह देना मुश्किल में डाल सकता है। सेहत लगभग ठीक ही रहेगी।
मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज का दिन आपके लिए मिश्रित फलदायी रहेगा। वैसे तो आज आप धर्म कर्म के प्रति निष्ठावान रहेंगे लाभ हानि का विवेक भी रहेगा लेकिन आज कम समय मे अधिक लाभ पाने के चक्कर में कई काम एक साथ हाथ में लेंगे कोई अनैतिक कार्य भी प्रलोभन में आकर कर सकते है आरम्भ में इससे लाभ होता दिखाई देगा लेकिन बाद में लाभ की जगह हानि ही होगी। मध्यान पश्चात दिन भर के परिश्रम का फल मिलता धन लाभ के रूप में नजर आएगा। आकस्मिक लाभ की सम्भवना है लेकिन उतनी ही जल्दी खर्च भी होगा। परिवार का वातावरण अनुकूल रहने से शांति मिलेगी। लंबी यात्रा की योजना बनेगी। ठंडी वस्तु के सेवन से बचे लंबे समय के रोग हो सकते है।
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*दस महाविद्या, महान विद्या रूपी देवी 🚩*
महाविद्या, देवी पार्वती के दस रूप हैं, जो अधिकांश तान्त्रिक साधकों द्वारा पूजे जाते हैं, परन्तु साधारण भक्तों को भी अचूक सिद्धि प्रदान करने वाली है।
दस महाविद्या विभिन्न दिशाओं की अधिष्ठातृ शक्तियां हैं।
भगवती काली और तारा देवी- उत्तर दिशा की,
श्री विद्या (षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी)- ईशान दिशा की,
देवी भुवनेश्वरी, पश्चिम दिशा की,
श्री त्रिपुर भैरवी, दक्षिण दिशा की,
माता छिन्नमस्ता, पूर्व दिशा की,
भगवती धूमावती पूर्व दिशा की,
माता बगला (बगलामुखी), दक्षिण दिशा की,
भगवती मातंगी वायव्य दिशा की तथा
माता श्री कमला र्नैत्य दिशा की अधिष्ठातृ है।
▪️ दस महाविद्याओं की उत्पत्ति : –
पुराणों अनुसार जब भगवान शिव की पत्नी सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहां जाने से मना किया। इस इनकार पर माता ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कर अपनी शक्ति की झलक दिखला दी। इस अति भयंकरकारी दृश्य को देखकर शिवजी घबरा गए। क्रोध में सती ने शिव को अपना फैसला सुना दिया, ‘मैं दक्ष यज्ञ में जाऊंगी ही। या तो उसमें अपना हिस्सा लूंगी या उसका विध्वंस कर दूंगी।’
हारकर शिवजी सती के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने सती से पूछा- ‘कौन हैं ये?
सती ने बताया, ये मेरे दस रूप हैं। आपके सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं, आपके ऊपर नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।
यही दस महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है।
बाद में मां ने अपनी इन्हीं शक्तियां का उपयोग दैत्यों और राक्षसों का वध करने के लिए किया था।
1. मां काली :-
सबसे पहले माता सती ने मां काली का रूप धारण किया उनका वह रूप भयभीत करने वाला था। उनका रंग काला और केस खुले और उलझे हुए थे। उनकी आंखों में गहराई थी और भौहें तलवार की तरह प्रतीत हो रही थी। कपालों की माला धारण किए हुए उनकी गर्जना से दसों दिशाएं भयंकर ध्वनि से भर गई। मां काली का उल्लेख और उनके कार्यों की रूपरेखा चंडी पाठ में दी गई है।
इन्होंने ही चण्ड और मुंड का वध किया और रक्तबीज का रक्त पिया था। इनको कोषकी भी कहा जाता है। शुंभ निशुंभ का वध करने वाली मां काली 10 महाविद्याओं में पहले स्थान पर आती हैं। वो समय से परे हैं और अंधेरे को दूर कर हमें ज्ञान की रोशनी से भर देतीं हैं।
मंदिर – कोलकाता, गुजरात और उज्जैन में महाकाली के प्रसिद्ध मंदिर हैं।
2. मां तारा : –
श्री तारा महाविद्या इस सृष्टि के केंद्रीय सर्वोच्च नियामक और क्रिया रूप दसमहाविद्या में से द्वितीय विद्या के रूप में सुसज्जित हैं। इनका रंग नीला है और इनकी जीभ बाहर को है जो भय उत्पन्न करती है और वह एक बाघ की खाल पहने हुए हैं। इनकी तीन आंखें हैं।
शक्ति का यह स्वरूप सर्वदा मोक्ष प्राप्त करने वाला तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार से घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाला है। देविका घनिष्ठ संबंध मुक्ति से है फिर वह जीवन और मरण रूपी चक्र हो या अन्य किसी प्रकार के संकट से मुक्ति हेतु।
मंदिर – पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में तारापीठ है इनका दूसरा प्रसिद्ध मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में है।
3. मां षोडशी : –
10 महाविद्या में मां षोडशी भगवती का तीसरा स्वरूप है। जिन्हें त्रिपुरसुंदरी भी कहा गया है। भगवान सदाशिव की तरह मां त्रिपुर सुंदरी के भी चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से तंत्र शास्त्रों में पंचवक्त्र अर्थात पांच मुख वाली कहा गया है।
मां 16 कलाओं से संपूर्ण है इसीलिए इनका नाम षोडशी भी है। इन्हें तंत्र में श्री विद्या की अधिष्ठात्री देवी और श्री यंत्र अर्थात श्री चक्र सामग्री के नाम से भी जाना जाता है।
षोडशी साधना सुख के साथ-साथ मुक्ति के लिए भी की जाती है। त्रिपुर सुंदरी साधना, शरीर, मन, और भावनाओं को नियंत्रण करने की शक्ति प्रदान करती हैं।
4. मां भुवनेश्वरी : –
मां भुवनेश्वरी चौथी महाविद्या है। भुवन का अर्थ है ब्रह्मांड और ईश्वरी का अर्थ है शासक इसीलिए वे ब्रह्मांड की शासक हैं। वे राज राजेश्वरी के रूप में भी जानी जाती हैं और ब्रह्मांड की रक्षा करतीं हैं।
वे कई पहलुओ में त्रिपुर सुंदरी से संबंधित है। माँ भुवनेस्वरी को आदि शक्ति के रूप में जाना जाता है यानी शक्ति के शुरुआती रूपों में से एक हैं।
देवी भुवनेश्वरी देवी पार्वती के रूप में जानी जाती हैं। देवी तीन नेत्रों से युक्त त्रिनेत्रा हैं। उन्होंने अपने मस्तक पर अर्ध चंद्रमा धारण किया हुआ है।
चार भुजाओं से युक्त देवी भुवनेश्वरी अपने दो भुजाओं में पाश तथा अंकुश धारण करती हैं और अन्य दो भुजाओं में वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं। इन्होंने ही दुर्गामासुर नामक दैत्य का वध कर समस्त जगत को भयमुक्त किया था और इसी कारण वे देवी दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध हुई जो दुर्गम संकटो से अपने भक्तों को मुक्त करती हैं।
यह शाकम्भरी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
5. मां भैरवी :-
10 महाविद्याओं में मां भैरवी पांचवा स्वरूप हैं। भैरवी देवी का एक क्रुद्ध और दिल दहला देने वाला रूप है जो प्रकृति में मां काली से शायद ही अभी वाच्य है। देवी भैरवी भैरव के समान ही हैं जो भगवान शिव का एक उग्र रूप है जो सर्वनाश से जुड़ा हुआ है।
देवी भैरवी को मुख्य रूप से दुर्गा सप्तशती में चंडी के रूप में देखा जाता है जो चण्ड और मुंड को मारती हैं। वे सभी भय से मुक्त हैं और हमें सभी भय से मुक्त कराते हैं। देवी भैरवी की साधना बुरी आत्माओं और शारीरिक कमजोरियों से छुटकारा पाने के लिए की जाती है।
6. मां छिन्नमस्तिका : –
10 महाविद्या देवी का छठा स्वरूप है उन्हें प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है।
छिन्नमस्तिका देवी के हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है तथा दूसरे हाथ में कटार है। देवी छिन्नमस्ता की उत्पत्ति के बारे में कई कहानियां हैं और कई पुराणों में भी इनका अलग-अलग उल्लेख है और उनकी मानें तो देवी ने कोई बड़ा और महान कार्य पूरा करने के लिए ही यह रूप धरा था। उनके स्वरूप को हम देखें तो वह एक हाँथ में खड़क और दूसरे हाँथ में धारण किए हुए हैं। अपने कटे हुए स्कंद से रक्त की जो धाराएं निकलती हैं उनमें से एक को वह स्वयं पीती हैं और अन्य दो धाराएं से अपनी वर्णनी और शाकिनी नाम की दो गणों को तृप्त कर रहीं हैं। शिव शक्ति के विपरीत रति आलिंगन पर आप स्थित है।
छिन्नमस्तिका साधना अपने क्रूर स्वभाव के कारण तांत्रिकों, योग्य, और सब कुछ त्याग चुके महानुभावों तक ही सीमित है। आम लोगों के लिए इनकी उपासना खतरनाक है हालांकि शत्रु का नाश करने के लिए छिन्नमस्तिका साधना की जाती है।
मंदिर – झारखंड की राजधानी रांची में स्थिति है।
7. मां धूमावती : –
मां धूमावती दसमहाविद्या का सातवां स्वरूप है विशेषताओं और प्रकृति में उनकी तुलना देवी अलक्ष्मी, देवी जेष्ठा और देवी नीर्ती के साथ की जाती है। ये तीनो देवियां नकारात्मक गुणों का अवतार हैं लेकिन साथ ही वर्ष के एक विशेष समय पर उनकी पूजा भी की जाती है।
पुराणों के अनुसार एक बार मां पार्वती को बहुत तेज भूख लगी हुई थी और वो भगवान शंकर के पास जाती हैं और उनसे भोजन की मांग करती हैं किंतु उस समय शंकर जी अपनी समाधि में लीन होते हैं। मां पार्वती के बार-बार निवेदन के बाद भी शंकर जी ध्यान से नहीं उठते और वे ध्यान मुद्रा में ही मगन रहते हैं।
मां पार्वती की भूख और तेज हो जाती है और भूख से व्याकुल हो उठती हैं परन्तु जब मां पार्वती को खाने की कोई चीज नहीं मिलती है तब वो श्वास खींचकर शिवजी को ही निकल जाती हैं। भगवान शिव के कंठ में विष होने के कारण मां के शरीर से धुआं निकलने लगता है।
उनका स्वरूप शृंगार विहीन तथा विकृत हो जाता है तथा मां पार्वती की भूख शांत होती है। तत्पश्चात् भगवान शिव माया के द्वारा मां पार्वती के शरीर से बाहर आते हैं और पार्वती के धूम से व्याप्त स्वरूप को देख कर कहते हैं अब से आप इस वेश में भी पूजे जाएंगे। इसी कारण मां पार्वती का नाम देवी धूमावती पड़ा। देवी धूमावती की साधना अत्यधिक गरीबी से छुटकारा पाने के लिए की जाती है।
शरीर को सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करने के लिए भी उनकी पूजा की जाती है।
8. मां बगलामुखी :-
बगलामुखी 10 महाविद्याओं में 8 वीं महाविद्या है। और इनको स्तंभन शक्ति की देवी भी माना जाता है। सौराष्ट्र में प्रकट हुए महा तूफान को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप मां बगलामुखी का प्राकट्य हुआ था। मां बगलामुखी को पितांबरा के नाम से भी जाना जाता है।
पितांबरा आत्मा का ऐसा स्वरूप है जो पीत अर्थात पीला वस्त्रों से, पीत आभूषणों से, स्वर्ण आभूषणों से, और पीत पुष्पों से सुसज्जित है। मां के चेहरे पर स्वर्ण के समान आभा शोभायमान है मां बगलामुखी को पीला रंग बहुत प्रिय है। इनकी पूजा तंत्र की पूजा है अतः बिना किसी गुरु के निर्देशन के नहीं करनी चाहिए। शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिए बगलामुखी जन्मोत्सव पर इनकी पूजा की जाती है।
मंदिर – भारत में इनके तीन प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं।
9. देवी मातंगी : –
महाविद्याओं में 9वीं देवी मातंगी वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप है और श्री कुल के अंतर्गत पूजी जाती हैं। यह सरस्वती ही हैं और वाणी, संगीत, ज्ञान, विज्ञान, सम्मोहन, वशीकरण, मोहन की अधिष्ठात्री हैं।
इंद्रजाल विद्या जादुई शक्ति में देवी पारंगत है साथ ही वाक् सिद्धि संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में निपुण है। नाना सिद्ध विद्याओं से संबंधित है देवी तंत्र विद्या में पारंगत हैं।
ग्रंथों के अनुसार मातंग भगवान शिव का ही एक नाम है इनकी आदि शक्ति देवी मातंगी है।
10. देवी कमला : –
देवी कमला 10 महाविद्याओं में दसवीं देवी हैं। देवी कमला को देवी का सबसे सर्वोच्च रूप माना जाता है जो उनके सुंदर पहलु को पूर्णता दर्शाता है। उनकी केवल देवी लक्ष्मी के साथ तुलना ही नहीं की जाती है बल्कि इन्हे देवी लक्ष्मी के रूप में भी पूजा जाता है। इन्हे तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है।
देवी का संबंध सम्पन्ता, सुख समृद्धि, सौभाग्य, और वंश विस्तार से है। स्वच्छता, पवित्रता, निर्मलता देवी को अति प्रिय हैं तथा देवी ऐसे स्थानों पर ही वास करती हैं। प्रकाश से देवी कमला का घनिष्ठ संबंध है देवी उन्हीं स्थानों को अपना निवास बनाती हैं जहां अंधेरा ना हो।
*जय माता दी 🚩
*नवरात्रि में माँ के मंत्रों द्वारा भौतिक तापो से मुक्ति के उपाय*
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माँ दुर्गा के इन मंत्रो का जाप प्रति दिन भी कर सकते हैं। पर नवरात्र में जाप करने से शीघ्र प्रभाव देखा गया हैं।
सर्व प्रकार कि बाधा मुक्ति हेतु:
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सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥
अर्थातः- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब “”बाधाओं से मुक्त”” तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें जरा भी संदेह नहीं है।
कम से कम सवा लाख जप कर ‘दशांश’ हवन अवश्य करें।
किसी भी प्रकार के संकट या बाधा कि आशंका होने पर इस मंत्र का प्रयोग करें। उक्त मंत्र का श्रद्धा एवं विश्वास से जाप करने से व्यक्ति सभी प्रकार की बाधा से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र की प्राप्ति होती हैं।
बाधा शान्ति हेतु:
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सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥
अर्थातः- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।
विपत्ति नाश हेतु:
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शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थातः- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।
पाप नाश हेतु:
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हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्। सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥
अर्थातः- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है।
विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति हेतु:
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करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।
अर्थातः- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।
भय नाश हेतु:
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सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्। पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्। त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥
अर्थातः- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।
सर्व प्रकार के कल्याण हेतु:
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सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थातः- नारायणी! आप सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। आपको नमस्कार हैं।
व्यक्ति दु:ख, दरिद्रता और भय से परेशान हो चाहकर भी या परीश्रम के उपरांत भी सफलता प्राप्त नहीं होरही हों तो उपरोक्त मंत्र का प्रयोग करें।
सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति हेतु:
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पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥
अर्थातः- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।
शक्ति प्राप्ति हेतु:
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सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थातः- तुम सृष्टि, पालन और संहार करने वाली शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।
रक्षा प्राप्ति हेतु:
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शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥
अर्थातः- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।
देह को सुरक्षित रखने हेतु एवं उसे किसी भी प्रकार कि चोट या हानी या किसी भी प्रकार के अस्त्र-सस्त्र से सुरक्षित रखने हेतु इस मंत्र का श्रद्धा से नियम पूर्वक जाप करें।
विद्या प्राप्ति एवं मातृभाव हेतु:
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विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्तिः॥
अर्थातः- देवि! विश्वकि सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे हो।
समस्त प्रकार कि विद्याओं की प्राप्ति हेतु और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये इस मंत्रका पाठ करें।
प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु:
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प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि। त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥
अर्थातः- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीय परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।
आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति हेतु:
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देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
अर्थातः- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि मेरे शत्रुओं का नाश करो।
महामारी नाश हेतु:
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जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
अर्थातः- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।
रोग नाश हेतु:
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रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥
अर्थातः- देवि! तुमहारे प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।
विश्व की रक्षा हेतु:
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या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥
अर्थातः- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।
विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश हेतु:
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देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
अर्थातः- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।
विश्व के पाप-ताप निवारण हेतु:
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देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥
अर्थातः- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो।
विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने हेतु:
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यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥
अर्थातः- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें।
सामूहिक कल्याण हेतु:
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देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥
अर्थातः- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें।
कैसे करें मंत्र जाप :-
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नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन संकल्प लेकर प्रातःकाल स्नान करके पूर्व या उत्तर दिशा कि और मुख करके दुर्गा कि मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या “षोड्षोपचार से पूजा करें।
शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष, स्फटिक, तुलसी या चंदन कि माला से मंत्र का जाप १,५,७,११ माला जाप पूर्ण कर अपने कार्य उद्देश्य कि पूर्ति हेतु मां से प्राथना करें।
संपूर्ण नवरात्रि में जाप करने से मनोवांच्छित कामना अवश्य पूरी होती हैं।
उपरोक्त मंत्र के विधि-विधान के अनुसार जाप करने से मां कि कृपा से व्यक्ति को पाप और कष्टों से छुटकारा मिलता हैं
और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुगम प्रतित होता हैं।
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🙏*जानिए भारत की सनातन परंपराओं के पीछे का वैज्ञानिक महत्व
जानिए भारत की 20 अंधविश्वासी हिंदू परंपराओं के पीछे का वैज्ञानिक महत्व
हमेशा से यह माना गया है कि भारत एक सांस्कृतिक और पारंपरिक देश है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि भारत की संस्कृति और सभ्यता संसार के सबसे धनी, और सभ्य संस्कृतियों में से एक है। जिसकी झलक हमें भारतीय ग्रंथों और पुराणों में देखने को मिल मिलती है। विभिन्न संस्कृति और परम्परा के रह रहे लोग यहां सामाजिक रूपों से स्वतंत्र हैं और इसी कारण से धर्मों की विविधता में एकता के मजबूत संबंधों का यहां अस्तित्व है।
भले ही भारत कितना भी आगे बढ़ जाए, लोग कितने भी आधुनिक हो जाएं, लेकिन आज भी ऐसी कुछ परंपरा और रीति-रिवाज हैं, जो सदियों से लोग निभाते आ रहे हैं और निभाते रहेंगे क्योंकि यही भारतीयों की पहचान है। कई लोग हमारी परंपराओं, हमारी संस्कृति और रीति-रिवाजों पर सवाल खड़े करते हैं कि यह बस हमारा अंधविश्वास है और कुछ नहीं। आइए जानते हैं, भारतीय संस्कृति की 20 ऐसी परंपराओं और रीति-रिवाजों के बारे में जिन पर लोगों का अंधविश्वास है और उनके इस अंधविश्वास के पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्या महत्व है।
1. दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करना
हम भारतीय जब किसी से मिलते हैं तो अभिवादन के स्वरुप उसे हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं। यह किसी भी अपरिचित और मेहमान से परिचय की शुरुआत करने का पहला चरण होता है साथ ही इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। जब दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार किया जाता है तो अंगुलियों के टिप्स आपस में जुड़ जाते हैं। यह टिप्स कानों, आंखों और दिमाग के प्रेशर पॉइंट होते हैं। जब दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार किया जाता है तो प्रेशर पॉइंट सक्रिय हो जाते हैं, जिससे आप किसी व्यक्ति को लम्बे समय तक याद रख पाते हैं।
2. महिलाओं द्वारा बिछिया पहनना
बिछिया पैर की अंगूठी होती है। औरतों द्वारा बिछिया को पहनने का वैज्ञानिक महत्व यह है कि इससे खून की दौड़ान विनियमित रहती है। चांदी का बिछिया ध्रुवीय ऊर्जा को अवशोषित करके शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
3. माथे पर तिलक
माथे पर तिलक लगाने का भी अपना महत्व है। आज भी जब कहीं पूजा होती है तो माथे पर तिलक से शुरुआत होती है। यह शरीर को एकाग्र बनाए रखने में मदद करता है। इसके अलावा तिलक शरीर की ऊर्जा को नष्ट होने से बचाता है।
4. नदी में सिक्कों का फेंकना
आपने अक्सर नदियों में लोगों को सिक्के फेंकते देखा होगा। नदी में सिक्के को फेंकना भाग्य के लिए अच्छा माना जाता है। इसके पीछे वैज्ञानिक महत्व यह है कि सिक्के कॉपर के बने होते हैं और जब हम इन्हें नदी में फेंकते हैं तो कई बार हमें नदी के पानी से कॉपर मिलता है। नदी का पानी-पीने के लिए उपयोग में लाया जाता है तो इससे शरीर में कॉपर का संतुलन बना भी रहता है।
5. मंदिरों में घंटी का लटकना
ज्यादातर सभी मंदिरों के द्वार पर घंटी टंगी होती है, जिससे लोग मंदिर में प्रवेश और निकलते समय बजाते हैं। घंटी बजाने का वैज्ञानिक महत्व यह है कि जब भी इसे बजाया जाता है तो इसकी गूँज 7 सेकंड तक रहती है, यही गूँज हमारे शरीर की सात हीलिंग केंद्रों को सक्रिय कर देती हैं। जिससे हमारे दिमाग में आने वाले सभी नकारात्मक विचार ख़त्म हो जाते हैं।
6. खाने के बाद मीठा खाने की परम्परा
अक्सर लोग खाना खाने के बाद मीठा खाना पसंद करते हैं। मसालेदार और चटपटा भोजन शरीर में पाचक रस और एसिड को सक्रिय करने में मदद करता है, जिससे शरीर में भोजन को पचाने की प्रक्रिया अच्छी तरह से चलती है। इसके बाद मीठा खाने से बनने वाले कार्बोहाइड्रेट पचे हुए भोजन को डाइजेस्ट करने में मदद करते हैं।
7. विवाह में हाथ और पैर में मेहँदी लगाना
ऐसा देखा गया है, लड़के और लड़की की शादी से पहले पैर और हाँथ में मेहँदी की रस्म निभाई जाती निभाई जाती है। कहा जाता है कि मेहँदी लगाने से परेशानियाँ कम हो जाती है। इसलिए शादी के दौरान दूल्हा और दुल्हन के हाथों और पैरों में मेहँदी लगाई जाती है।
8. जमीन पर बैठ के खाना खाने की प्रथा
खाना खाने की सबसे अच्छी विधि बैठ कर खाना खाना होता है। इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण यह है कि जब बैठ कर खाना खाया जाता है तो शरीर शांत रहता है और भोजन पचाने की क्षमता बढ़ती है। इससे मस्तिष्क को संकेत मिलता है कि भोजन पचने के लिए तैयार है।
9. उत्तर की दिशा में सर रखकर ना सोना
हिन्दू धर्म में उत्तर की तरफ सर रखकर सोना अशुभ माना जाता है। इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण कहा जाता है कि जब हम उत्तर की तरफ सर रखकर सोते हैं तो पृथ्वी की तरह शरीर में चुंबकीय क्षेत्र होने के कारण यह विषम हो जाता है। इसकी वजह से शरीर में ब्लड प्रेशर, सर दर्द, संज्ञानात्मक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
10. कान छिदवाना
भारत में कान छेदने की बहुत पुरानी परम्परा रही है। लड़कियां के ही नहीं अपितु कुछ लड़कों के भी कान छेद होते हैं। इसके पीछे यह वैज्ञानिक कारण दिया गया है कि कान छेदने से बोली भाषा में संयम आता है। ऐसा करने से गंदे विचार मन में नहीं आते है।
11. सूर्य नमस्कार करना
जब भी योग की बात आती है तो सूर्य नमस्कार सबसे पहले ध्यान में आता है। योग के रूप में इसके काफी फायदे हैं। सूर्य नमस्कार करने से हमारी आँखें स्वस्थ रहती है। सूर्य नमस्कार हमारे शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है।
12. पुरुषों का चोटी रखना
पुरुषों में मुंडन करने के बाद चोटी रखने का रिवाज है। इस बारें में महान चिकित्सक और आयुर्वेद के ज्ञाता सुश्रुति ऋषि ने कहा है कि इससे सिर के सभी नसों में गठजोड़ बना रहता है और इस गठजोड़ को अधिपति मरमा कहा जाता है।
13. व्रत रखना
भारत में महिलाओं और पुरुषों द्वारा त्यौहार व अन्य मौकों पर व्रत रखने की बहुत पुरानी परम्परा है। इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण यह दिया जाता है कि मानव शरीर में 70% पानी होने के कारण व्रत रखने पर शरीर में विवेक को बनाए रखने की क्षमता आती है। व्रत रखने का एक कारण यह भी होता है कि पाचन तंत्र को कुछ समय के लिए आराम मिलता है।
14. झुककर चरण स्पर्श करना
भारतीय परम्परा में झुककर पैर छूना बड़ों के प्रति सम्मान व्यक्त करने और आशीर्वाद प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। इस परंपरा के पीछे का वैज्ञानिक कारण है कि शरीर में मस्तिष्क से लेकर पैरों तक नसें होती हैं। जब किसी के पैर छूते हैं तो शरीर की ऊर्जा शक्ति आपस में जुड़ जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप शरीर में ऊर्जा आ जाती है।
15. विवाहित महिलाओं का सिन्दूर लगाना
भारत में महिलाएं शादी के उपरांत माथे के बीच में सिंदूर लगाती हैं, जो उनके श्रंगार का एक हिस्सा होता है। यह विवाह की एक निशानी होती है। सिन्दूर हल्दी-चूने और पारा धातु के मिश्रण से बना होता है इसलिए इसे लगाने से शरीर में ब्लड प्रेशर बना रहता है। सिन्दूर में पारा मिला होने के कारण यह शरीर को दबाव और तनाव से मुक्त रखने में मदद रखता है।
16. पीपल के वृक्ष की पूजा करना
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पीपल के पेड़ में न तो फल लगते है और न ही फूल, फिर भी हिंदू धर्म में इसे पवित्र माना गया है। लोग पीपल के पेड़ की पूजा भी करते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पीपल ही एकमात्र ऐसा पेड़ है जो दिन के 24 घंटे वायुमंडल में आक्सीजन छोड़ता है। इसलिए किवदंती है कि इस पेड़ के महत्व के कारण हिंदू धर्म में इसे बहुत पवित्र माना गया है, जिसकी वजह से लोग इसकी पूजा करते है।
17. तुलसी के वृक्ष की पूजा
पीपल के अलावा भारत में तुलसी के पेड़ को पूजने की बहुत पुरानी परम्परा रही है। यह महिलाओं द्वारा माँ की तरह पूजा जाता है। वैसे तुलसी एक प्रकार की औषधि है, जिससे कई बीमारियों में एक औषधि के तौर पर लिया जाता है। कहा जाता है, जहाँ तुलसी का पेड़ रहता है, वहाँ की वायु शुद्ध रहती है। तुलसी के पेड़ को घर में रखने से घर में मच्छर और कीड़े मकौड़े नहीं आते हैं।
18. मूर्ति पूजन
हिंदू धर्म में जब भी घर में कोई नई मूर्ति आती है तो सबसे पहले उसका मूर्ति पूजन होता है और उसके बाद उसे स्थापित किया जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मूर्ति की पूजा करने से प्रार्थना में एकाग्रता आती है। व्यक्ति मूर्ति को साक्षात मानकर भगवान की कल्पना करता है। इससे उसका दिमाग एक अलग ब्रह्माण्ड के बारें में सोचता है। इससे व्यक्ति की सोच विचार और अदृश्य शक्ति में विश्वास करने की क्षमता बढ़ती है।
19. औरतों का चूड़ी पहनना
भारतीय महिलाओं के हाथों में चूड़ी और कंगन आमतौर पर देखा जाता है। इसके पीछे शोधकर्ताओं का मानना है कि कलाई शरीर का वह हिस्सा है, जिससे व्यक्ति की नाड़ी को चेक किया जाता है। इसके अतिरिक्त शरीर के बाहरी स्किन से गुजरने वाली बिजली को चूड़ियों की वजह से जब रास्ता नहीं मिलता है तो यह वापस शरीर में चली जाती है, जिससे शरीर को फायदा होता है।
20. मंदिरों में जाना
मंदिर का वातावरण एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करता है, जो वांछित उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। लोगों का मानना है कि मंदिरों में भगवान का वास होता है। यही कारण है कि भगवान अपने भक्तों की खातिर मंदिरों में प्रकट होते हैं। मंदिर में जाने से घंटों और मन्त्रों की ध्वनि से शरीर में तरंगे उत्पन्न होती हैं जो हमारी तंत्रिका तंत्र के भावों को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मंदिर जाने से हम सकारात्मक भावों से भर जाते हैं जिसके चलते हम अपने काम को और बेहतर तरीके से कर पाते हैं।
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देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं और वे देवी दुर्गा की तरह दिखती हैं, जो शेर की सवारी करती हैं। एक हाथ में वह एक कमल धारण किए हुए हैं, दूसरे हाथ में संगीत वाद्ययंत्र, तीसरे में शुभ संकेत है और चौथे हाथ में और उनकी गोद में स्कंद यानि कार्तिकेय विराजमान हैं। वह कमल पर विराजमान हैं, जिसके कारण उन्हें देवी पद्मासन कहा जाता है।
देवी स्कंदमाता अपने भक्तों को शक्ति, खजाना, समृद्धि, ज्ञान और मोक्ष का आशीर्वाद देती हैं। उसकी पूजा करते समय, आपको शुद्ध हृदय और पूरी तरह से उसके प्रति समर्पित रहने की आवश्यकता है।
स्कंद पुराण में भगवान स्कंद के जन्म का उल्लेख किया गया है। ऐसा माना जाता है कि तारकासुर का वध करने के लिए ही कार्तिकेय यानी स्कंद का जन्म हुआ था। पुराणों के अनुसार जब तारकासुर के आतंक से तीनों लोक परेशान हो गए, तब देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। देवताओं के आग्रह पर भगवान शिव और माता पार्वती ने घोर तपस्या की, जिससे एक दिव्य शक्ति का संचार हुआ और इसी से भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ। बाद में उन्होंने ही तारकासुर के आतंक से लोगों और देवताओं को मुक्ति दिलाई।।
ऐसा माना जाता है कि स्कंदमाता अपने उपासकों को मोक्ष, नियंत्रण, संपन्नता और धन प्रदान करती है। इसलिए, उपासक शासक स्कंद की सुंदरता के साथ संयोजन के रूप में स्कंदमाता की भव्यता की सराहना करते हैं।
दुर्गा पूजा के दौरान स्कंदमाता देवी की उपासना के लिए मंत्र, जाप और ध्यान करना बहुत महत्वपूर्ण है। नवरात्रि के पांचवें दिन का रंग नीला है। शारदीय नवरात्रि हिंदू कैलेंडर की सबसे अनुकूल अवधियों में से एक है जब मां दुर्गा अपने घर कैलाश से पृथ्वी की तरह आती हैं। इसे महापंचमी के रूप में भी मनाया जाता है। अगले दिन देवी दुर्गा को महा षष्ठी में आमंत्रित किया जाएगा।
संयोग से, आत्मकेंद्रित नहीं होते हुए, देवी स्कंदमाता, एक वास्तविक मां की तरह, नियंत्रण और सफलता के पथ पर अपने भक्तों का साथ देती हैं।
मां स्कंदमाता मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थि आप सभी सज्जनों पर सपरिवार माता जी की असीम कृपा बनी रहे ,माता जी आपके खेत खलिहान और घर परिवार हमेशा हरा भरा रखें ,आज माता के दर्शन खेत्री रूप में इंसान तो करते ही है परंतु देवता भी माता जी के दर्शन करते है *भगवान सिंह चौधरी*
जब कुछ वर्ष पहले ISIS ने जॉर्डन के एक फाइटर पायलट को पिंजरे में बंद करके आग लगाकर जिंदा जला दिया था.. फिर जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला ने खुद f16 से ISIS के तमाम ठिकानों पर बमबारी करके 600 से ज्यादा मुसलमानों को मारा। यदि तब जॉर्डन के राजा सही थे तो आज युद्ध नीतियों का शतप्रतिशत पालन करने वाला इसराइल गलत कैसे हो गया ?