धर्म के आधार पर भारत का विभाजन पिछली शदी की सबसे बड़ी की त्रासदी, धर्म की रक्षा से ही धन वैभव सुख-समृद्धि प्राप्त होती है- जगद्गुरु शङ्कराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज

‘धार्मिक आधार पर भारत का विभाजन पिछली शदी की सबसे बड़ी की त्रासदी रही जिसमें लाखों भारतीयों का नरसंहार हुआ। धर्म की रक्षा से ही धन वैभव सुख-समृद्धि प्राप्त होती है’ यह बात अनंत विभूषित जगद्गुरु शङ्कराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज ने  उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में प्रथम बार आगमन के अवसर पर एक स्वागत समारोह में कही। देहरादून सेवला कलां त्रिवेणी विहार शंकरचार्य पुरम  आगमन पर यहां ज्योतिषशास्त्र के वैज्ञानिक डाॅ रमेश पांडे और अन्य महनीय सहयोगियों के सौजन्य से स्वागत समारोह का आयोजन संपन्न हुआ। इस अवसर पर अनंत विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि यदि मनुष्य अपनी संस्कृति और धर्म के मार्ग पर चलेगा तो सुख शांति और वैभव स्वयं चलकर उसके पास आएगा शंकराचार्य ने कहा कि भारतीय संस्कृति सनातन संस्कृति अनंत काल से चली आ रही है शंकराचार्य ने गुरुकुल परंपरा में संस्कारों के महत्व पर भी परिचर्चा की। उन्होंने कहा कि जागरूकता के अभाव में हमारे सुमंतक मणि को ही किसी ने कोहिनूर नाम दे दिया। शंकराचार्य ने भारत विभाजन की त्रासदी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जब धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ तो अब विधर्मी भारत में क्यों हैं और यदि विधर्मियों को यही रहना है तो भारत के विभाजन का औचित्य क्या है! उन्होंने कहा कि भारत कोपुन: अखंड बनाया जाना चाहिए। आज के इस महत्वपूर्ण स्वागत समारोह के आयोजन मे आयोजन में बाल संरक्षण आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद कपरूवाण, गंगोत्री के पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण, सेवला कलां वार्ड के सदस्य हरिप्रसाद भट्ट, कथावाचक नरेशाननद नौटियाल, देहरादून में मेडिकल व्यवसायी और बदरीनाथ घंटाकरण के उपासक पश्वा कुलवीर सजवाण, होटल उद्योग से जुड़े पारस भट्ट, कविंन्द्र ईष्टवाल, राजपाल सिंह रावत, सुनिता रावत, मदनसिंह परिहार बिष्ट, आयूष आदि सहित बड़ी संख्या में माताएं और बहने सम्मिलित हुई। इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गढ़वाली गायक मंगलेश डंगवाल जी ने सुंदर मागल और देवताओं के आवाह्न जागर प्रस्तुत किए। इस इस अवसर पर ज्ञानी गोलोक धाम के संस्थापक डॉ रमेश पांडे ने सभी आगंतुकों का स्वागत अभिनंदन और धन्यवाद ज्ञापित किया। एक विचित्र विडंबना देखने को मिली उत्तराखंड सरकार ने शंकराचार्य के लिए प्रोटोकॉल का अनुपालन नहीं किया। जबकि शंकराचार्यों स्वयंमेव राज्य अतिथि और धर्मगुरु होते हैं। ✍️हरीश मैखुरी