*ꒌ⊰ 卐 ⊱ꒌ* *श्री हरिहरौ* *विजयतेतराम*
*सुप्रभातम* *आज का पञ्चाङ्ग*
*_बुधवार, ११ सितम्बर २०२४_*
*═══════⊰⧱⊱═══════*
सूर्योदय: 🌄 ०६:०८, सूर्यास्त: 🌅 ०६:२७
चन्द्रोदय: 🌝 १३:२०, चन्द्रास्त: 🌜२३:१७
अयन 🌖 दक्षिणायणे(उत्तरगोलीय)
ऋतु: 🎄 शरद, शक सम्वत: 👉 १९४६ (क्रोधी)
विक्रम सम्वत: 👉 २०८१ (काल)
मास 👉 भाद्रपद, पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि 👉 अष्टमी (२३:४६ से नवमी)
नक्षत्र👉ज्येष्ठा(२१:२२ से मूल)
योग 👉 प्रीति (२३:५५ से आयुष्मान्)
प्रथम करण👉विष्टि(११:३५ तक)
द्वितीय करण👉बव(२३:४६ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 सिंह, चंद्र 🌟 धनु (२१:२१ से)
मंगल🌟 मिथुन(उदित,पूर्व,मार्गी)
बुध 🌟 सिंह (उदय, पूर्व, मार्गी)
गुरु 🌟 वृष(उदय,पश्चिम,मार्गी)
शुक्र 🌟 कन्या (उदय, पूर्व, मार्गी)
शनि 🌟 कुम्भ (उदित, पूर्व, वक्री)
राहु 🌟 मीन
केतु 🌟 कन्या
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
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अभिजित मुहूर्त 👉 ❌❌❌
अमृत काल 👉 १२:०५ से १३:४६
रवियोग 👉 २१:२२ से ३०:००
विजय मुहूर्त 👉 १४:१८ से १५:०८
गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:२७ से १८:५०
सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:२७ से १९:३६
निशिता मुहूर्त 👉 २३:५० से २४:३६
राहुकाल 👉 १२:१३ से १३:४७
राहुवास 👉 दक्षिण-पश्चिम
गुलिक काल 👉 १०:४० से १२:१३
यमगण्ड 👉 ०७:३३ से ०९:०६
दुर्मुहूर्त 👉 ११:४८ से १२:३८
होमाहुति 👉 शुक्र
दिशाशूल 👉 उत्तर
नक्षत्र शूल 👉 पूर्व (२१:२२ तक)
अग्निवास 👉 आकाश
भद्रावास 👉 स्वर्ग (११:३५ तक)
चन्द्रवास 👉 उत्तर (पूर्व २१:२२ से)
शिववास 👉 श्मशान में (२३:४६ से गौरी के साथ)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – लाभ २ – अमृत
३ – काल ४ – शुभ
५ – रोग ६ – उद्वेग
७ – चर ८ – लाभ
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – उद्वेग २ – शुभ
३ – अमृत ४ – चर
५ – रोग ६ – काल
७ – लाभ ८ – उद्वेग
नोट👉 दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
🚌🚈🚗⛵🛫
उत्तर-पूर्व (गुड़ अथवा दूध का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
राधाष्टमी, ऋषि दधीच जन्मोत्सव, ज्येष्ठा गौर पूजन, मेला भर्तहरि आरम्भ अलवर (राज०), वृष-सिंह लग्न रात्रि १०:१० से प्रातः ०६:०५ तक, उद्योग (मशीनरी) आरम्भ मुहूर्त प्रातः ०६:१४ से ०९:१७ तक, देवप्रतिष्ठा मुहूर्त प्रातः ०७:४४ से दोपहर १२:२४ तक आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज २१:२२ तक जन्मे शिशुओ का नाम
ज्येष्ठा नक्षत्र के द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (या, यी, यू) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम मूल नक्षत्र के प्रथम एवं द्वितीय चरण अनुसार क्रमशः (ये, यो) नामाक्षर से रखना शास्त्र सम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
सिंह – २८:०८ से ०६:२७
कन्या – ०६:२७ से ०८:४५
तुला – ०८:४५ से ११:०६
वृश्चिक – ११:०६ से १३:२५
धनु – १३:२५ से १५:२९
मकर – १५:२९ से १७:१०
कुम्भ – १७:१० से १८:३६
मीन – १८:३६ से १९:५९
मेष – १९:५९ से २१:३३
वृषभ – २१:३३ से २३:२८
मिथुन – २३:२८ से २५:४३
कर्क – २५:४३+ से २८:०४
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पञ्चक रहित मुहूर्त
रोग पञ्चक – ०५:५९ से ०६:२७
शुभ मुहूर्त – ०६:२७ से ०८:४५
मृत्यु पञ्चक – ०८:४५ से ११:०६
अग्नि पञ्चक – ११:०६ से १३:२५
शुभ मुहूर्त – १३:२५ से १५:२९
रज पञ्चक – १५:२९ से १७:१०
शुभ मुहूर्त – १७:१० से १८:३६
चोर पञ्चक – १८:३६ से १९:५९
रज पञ्चक – १९:५९ से २१:२२
शुभ मुहूर्त – २१:२२ से २१:३३
चोर पञ्चक – २१:३३ से २३:२८
शुभ मुहूर्त – २३:२८ से २३:४६
रोग पञ्चक – २३:४६ से २५:४३
शुभ मुहूर्त – २५:४३+ से २८:०४
मृत्यु पञ्चक – २८:०४+ से ३०:००
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज आप जिस भी कार्य को करना आरंभ करेंगे या करने का विचार करेंगे उसमे कोई ना कोई बिना मांगे अपनी राय देगा जिससे कुछ समय के लिये दुविधा में पड़ेंगे। मध्यान तक आलस्य के कारण कार्यो की गति धीमी रहेगी इसके बाद भी कार्य व्यवसाय में रुचि होने पर भी किसी न किसी के कारण ठीक से ध्यान नही दे पाएंगे धन की आमद आज कार्य समय से करने पर भी विलंब से अथवा आगे के लिये टलेगी ऊपर से खर्च बढ़ने से आर्थिक संतुलन गड़बड़ायेगा। घर मे वातावरण पल पल में बदलेगा सहयोग की कमी के चलते अव्यवस्था बढ़ेगी। पिता अथवा किसी वृद्ध के स्वास्थ्य के ऊपर खर्च भी करना पड़ेगा लेकिन भविष्य के लिये उत्तम मार्गदर्शन भी मिलेगा। लम्बी यात्रा की योजना आज मन मे ही रहने की संभावना है फिर भी छोटी मोटी पर्यटन अथवा धार्मिक यात्रा अवश्य होगी।
वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज का दिन कुछ कार्यो को छोड़ व्यर्थ की भागदौड़ में बीतेगा घरेलू कार्यो को लेकर किसी से बहस होकर दिन का आरंभ होगा मध्यान तक इसका प्रभाव मस्तिष्क पर रहेगा इसके बाद ही स्थिति सामान्य हो पायेगी। आज आपके सामाजिक दायरे में वृद्धि होगी लेकिन दुष्ट प्रकृति के लोगो की संगत से बचे अन्यथा स्वयं के साथ परिजनों का भी अपमान करवाएंगे। महिलाए को आज अन्य दिनों की तुलना में अधिक कार्य करना पड़ेगा आवश्यकता के समय सहयोग ना मिलने पर मन मे झुंझलाहट आएगी जिससे घर मे थोड़ी देर के लिये अशांति होगी। दोपहर से लेकर संध्या बाद तक का समय मनोरंजन में बीतेगा खर्च भी आज आवश्यकता से अधिक करेंगे बाद में ग्लानि होगी। सेहत संध्या बाद अस्थिर बनेगी। धन लाभ अल्प होगा।
मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज के दिन आप कोई नापसंद कार्य करने पर गुस्से में रहेंगे लेकिन कार्य क्षेत्र पर अनुकूल वातावरण भी मिलते रहेंगे। दिन का पूर्वार्ध धीमी गति से कार्य करने पर व्यर्थ जाएगा इसके बाद कई दिनों से लटके कार्यो को पूर्ण करने में परेशानी आएगी फिर भी पारिवारिक सदस्य का सहयोग मिलने से धीरे धीरे पूर्ण कर लेंगे। व्यवसाय से आज आशा के समय लाभ नही होगा जिस समय आराम अथवा अन्य कार्यो में व्यस्त होंगे तभी अकस्मात काम मिलने से दुविधा होगी लेकिन जोड़तोड़ कर इससे कुछ लाभ ही कमाएंगे। पिता को छोड़ घर के अन्य सदस्य आपसे प्रसन्न ही रहेंगे। घरेलू खर्च में आज वृद्धि होने से बजट प्रभावित होगा। मित्र परिचितों से उपहार स्नेह का आदान-प्रदान होगा। सेहत आज ठीक रहेगी वर्जित कार्यो से बचे।
कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज के दिन परिजनों का व्यवहार आपके स्वभाव पर निर्भर रहेगा इसलिये सनकी मिजाज त्याग मिलनसार बने अन्यथा आज सुख चैन से नही बैठ पाएंगे। आज कार्य क्षेत्र के साथ घरेलू कार्य भी सर पर आने से असमंजस में रहेंगे रूखा व्यवहार रहने पर सहयोग की आशा भी ना रखे। घर मे पति पत्नी का स्वभाव पल पल में बदलने से कलह जैसी स्थिति बनेगी। कार्य क्षेत्र से आशा तो काफी रहेगी लेकिन पुर्व में कई गलतियों के कारण आज पश्चाताप होगा धन की आमद कम होने पर खर्च की पूर्ति भी नही कर पाएंगे। दोपहर बाद का समय अत्यंत खर्चीला रहेगा घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति में टालमटोल ना करें अन्यथा झगड़ा हो सकता। माता को छोड़ अन्य किसी से विचार मेल नही खाएंगे। स्वास्थ्य आज सामान्य रहेगा।
सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज के दिन भी आप अपने ही स्वभाव के कारण घर मे अशांति का कारण बनेंगे। घर मे स्त्री वर्ग से सावधान रहें आपकी छोटी-छोटी बातों को भी बक्सने वाली नही। मध्यान तक का समय व्यर्थ बोलने की आदत के चलते अशांत होगा बाद में इसका पछतावा भी होगा। दोपहर के बाद से स्थिति सामान्य होने लगेगी कार्य व्यवसाय में भी प्रतिस्पर्धियों को पछाड़ लाभ के सौदे अपने हक में करेंगे इसके लिये काफी माथा पच्ची भी करनी पड़ेगी। घर के सदस्यों को मनाने के लिये अधिक खर्च करना पड़ेगा यही प्रायश्चित करने का मौका भी रहेगा हाथ से जाने ना दे। संध्या बाद सभी प्रकार से सुखों की प्राप्ती होने पर मन आनंद से भरा रहेगा लेकिन स्वयं अथवा परिजन की सेहत में अकस्मात खराबी आने पर रंग में भंग की स्थिति बनेगी। आज खर्च करने में मितव्ययता बरते अन्यथा बाद में आर्थिक उलझने हो सकती है।
कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज परिस्थिति में थोड़ा सुधार अनुभव करेंगे लेकिन कामना पूर्ति में आज कोई न कोई अड़चन बनी रहेगी। मध्यान से पहले कोई भी महत्तवपूर्ण निर्णय ना ले अन्यथा अधूरा रह सकता है मध्यान बाद मन पर चंचलता हावी रहेगी इसलिये बिना किसी अनुभवी की सलाह धन अथवा पैतृक सम्बंधित कोई कार्य ना करे। व्यावसायिक अथवा सामाजिक क्षेत्र पर लोग आपको नीचा दिखाने का प्रयास करेंगे इनको अनदेखा करना ही बेहतर रहेगा अन्यथा मन मे नकारात्मकता जन्म लेने से आगे के लिये हानिकारक रहेगा। संध्या से पहले का समय राहत भरा रहेगा घर का वातावरण आंनदित रहेगा घर मे पूजा पाठ के आयोजन होंगे। स्वास्थ्य आज ठीक रहेगा फिर भी ठंडी वस्तु के सेवन से परहेज करें।
तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज आप बीते कल की तुलना में कुछ संतोषि रहेंगे लेकिन महिला वर्ग इसके विपरीत अन्य लोगो से स्वयं एवं परिवार की तुलना करने पर कुछ समय के लिये उदास रहेंगी। दिन के पूर्वार्ध से मध्यान तक घरेलू कार्यो की व्यस्तता के चलते अन्य कार्यो में फेरबदल करनी पड़ेगी। कार्य क्षेत्र पर भी आज विलंब होगा लेकिन इसका ज्यादा प्रभाव नही पड़ेगा। व्यवसाय में दोपहर के बाद अकस्मात उछाल आने से कई दिनों से अटकी मनोकामना की पूर्ति कर सकेंगे लेकिन दैनिक खर्चो के अतिरिक्त खर्च आने से बचत संभव नही होगी। घर मे पति पत्नी के बीच भी आर्थिक विषय एवं मन मर्जी कलह का कारण बनेंगे। संध्या बाद का समय पिछले कई दिनों की तुलना में बेहतर रहेगा सुख में वृद्धि होगी। वाहन अथवा अन्य उपकरणों से दुर्घटना के योग है सावधान रहें।
वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज के दिन आपके व्यक्तित्त्व में निखार रहेगा लेकिन स्वभाव का जिद्दीपन अन्यलोगों विशेषकर परिजनों के लिये भारी पड़ेगा। जाने अनजाने में कोई अनैतिक कर्म करेंगे जिसे बाद में परिजनों को भुगतना पड़ेगा जिससे घर का शांत माहौल भी खराब होगा। कार्य व्यवसाय से लाभ की सम्भवना कम ही है आपके हिस्से का लाभ किसी अन्य के पक्ष में जा सकता है सतर्क रहें धन लाभ असमय और अकस्मात होने की सम्भवना है लापरवाही करी तो हाथ नही लगेगा। व्यवसाय में निवेश आज भूल से भी ना करें हानि ही होगी। घर मे कुछ समय को छोड़ उत्सव का वातावरण रहेगा। काम वासना अधिक रहेगी लेकिन ध्यान रहे कोई गलत काम सभी प्रकार से नुकसानदेह होगा। यात्रा अतिआवश्यक होने पर ही करें।
धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज के दिन आपका व्यवहार ढुलमुल रहेगा मध्यान तक आप प्रत्येक कार्य मे आलस्य दिखाएंगे लेकिन बेमन से घरेलू कार्य करने ही पड़ेंगे। घर एव बाहर साहस का परिचय केवल बातो में ही देंगे लेकिन आवश्यकता के समय टालमटोल करेंगे। आज अधिक परिश्रम वाले कार्यो से बचने का प्रयास करेंगे फिर भी दोपहर तक किसी न किसी कारण से मेहनत करनी ही पड़ेगी। दोपहर बाद सेहत में नरमी आने लगेगी इसलिये आवश्यक कार्य पहले ही कर लें। कार्य व्यवसाय से परिश्रम के बाद ही लाभ की प्राप्ती होगी वह भी आज की जरूरत से कम ही। घर मे पति-पत्नी से वादाखिलाफी अथवा अन्य कारणों से कलह हो सकती है। संध्या बाद सेहत ठीक ना होने पर भी मनोरंजन के अवसर हाथ से नही जाने देंगे रात्रि के समय शरिरीक शिथिलता अधिक बनेगी सतर्क रहें।
मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज के दिन आपको बैठे बिठाये आकस्मिक लाभ की प्राप्ति होगी चाहे किसी भी रूप में हो। दिन का पहला भाग धीमी दिनचार्य के कारण खराब होगा लेकिन इसके बाद का अधिकांश समय अपने मन की ही करेंगे जिससे कही ना कही परेशानी भी होगी। आज भूमि भवन के रखरखाव अथवा अन्य प्रकार से अचल संपत्ति के उर खर्च करना पड़ेगा। घर का वातावरण धार्मिक रहेगा मित्र रिश्तेदारों के आगमन से उत्साह बढेगा। कार्य व्यवसाय में आज ज्यादा समय नही दे पाएंगे फिर भी थोड़े समय मे ही खर्च निकाल लेंगे। महत्तवपूर्ण कार्यो को आगे के लिये ना टाले अन्यथा पूर्ण होने में संदेह रहेगा। संध्या के समय उत्तम भोजन वाहन सुख मिलेगा लेकिन किसी न किसी से कलह भी हो सकती है वाणी का प्रयोग संतुलित करें।
कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज का दिन आपके लिये आरामदायक रहेगा लेकिन आज बेतुकी बयानबाजी से बचना होगा अन्यथा बैठे बिठाये अपमानित हो सकते है। दिन का आरंभ में सुस्ती रहेगी लेकिन घर मे आवश्यक कार्य होने के कारण बेमन से काम करना पड़ेगा। मनोरंजन को छोड़ अन्य किसी भी कार्य के लिये तैयार नही होंगे कार्य करते वक्त किसी के टोकने अथवा इच्छा पूर्ति में बाधा पहुचाने पर एक दम से उग्र हो जाएंगे। कार्य व्यवसाय में रुचि कम रहेगी फलस्वरूप सीमित आय से संतोष करना पड़ेगा। नौकरी पेशाओ को आज किसी न किसी की सुननी पड़ेगी। भाई बंधुओ को प्रसन्न देख मन मे ईर्ष्या बनेगी। सेहत सामान्य रहेगी जोखिम से बचें।
मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज आप किसी भी कार्य को लेकर गंभीर नही रहेंगे दिन के आरंभ से ही आलस्य और सुस्ती बनी रहेगी मध्यान बाद किसी आवश्यक कार्य को लेकर पिता अथवा घर के अन्य सदस्य से कहासुनी हो सकती है। मध्यान बाद का अधिकांश समय इधर उधर की करने में खराब करेंगे। कार्य व्यवसाय से आज ज्यादा उम्मीद ना रखे मध्यान तक आलस्य की भेंट चाहेगा इसके बाद जल्दबाजी में कार्य करेंगे फिर भी आवश्यकता अनुसार धन मिल ही जायेगा। संध्या के समय सेहत में दोबारा से नरमी बनेगी लेकिन अनदेखी करेंगे धार्मिक भावो में वृद्धि होगी धार्मिक क्षेत्र की यात्रा करेंगे। रात्रि का समय आनंद मनोरंजन में बीतेगा खर्च आज अनियंत्रित रहेंगे।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि उत्तराखंड के शांतिपूर्ण माहौल को बिगाड़ने वाले आपराधिक तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। देवभूमि उत्तराखंड के लोग शान्तिप्रिय हैं। यदि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग यहाँ आकर यहाँ की शांत वादियों में अशांति फैलायेंगे और क़ानून व्यवस्था बिगाड़ने का प्रयास करेंगे तो देवभूमि में इसको बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। *ऐसे आपराधिक तत्वों को चिन्हित करने के लिए वृहद् सत्यापन अभियान चलाया जा रहा है।* क़ानून अपना काम करेगा। अपराधियों के साथ हम सख़्ती सी निपटेंगे।
पितृ पक्ष [ श्राद्ध करने की विधि ]
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पितृलोक से पृथ्वी लोक पर पितरो के आने का मुख्य कारण उनकी पुत्र-पौत्रादि से आशा होती है की वे उन्हें अपनी यथासंभव शक्ति के अनुसार पिंडदान प्रदान करे अतएवं प्रत्येक सद्गृहस्थ का धर्म है कि स्पष्ट तिथि के अनुसार श्राद्ध अवस्य करे यदि पित्र पक्ष मे परिजनों का श्राद्ध नहीं किया गया तो वे श्राप दे देते हैं और ये परिवार के सदस्यों पर अपना प्रभाव छोड़ सकता है जिससे हानि होनी ही होनी है। अतः इस पक्ष में श्राद्ध अवश्य किया जाना चाहिये।
श्राद्ध में पंचबली की महता:
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पित्र पक्ष में ब्राह्मण भोजन और जलमिश्रित तिल से तर्पण करने जितना ही अनिवार्य पञ्चबलि भी है पञ्चबलि का नियम कुछ इस प्रकार है।
एक थाली के पांच भिन्न भिन्न भाग करके थोड़े थोड़े सभी प्रकार के भोजन को परोसकर हाथ मे तिल, अक्षत और पुष्प लेकर संकल्प करते समय निम्न का उचारण करे: अद्यामुक गोत्र अमुक शर्माहं/बर्माहं/गुप्तोहं/दासोहं अमुकगोत्रस्य मम पितुः/मातु आदि वार्षिकश्राद्धे (महालयश्राद्धे) कृतस्य पाकस्य शुद्ध्यर्थं पंचसूनाजनितदोषपरिहारार्थं च पंचबलिदानं करिष्ये।
पंचबलि-विधि इस प्रकार है:
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1] गोबलि [ पत्ते पर ]
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ऊँ सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः।
प्रतिगृह्वन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातरः।।
इदं गोभ्यो न मम।
इस श्लोक का उचारण पश्चिम दिशा की और पुष्प और पते को दिखाकर करे। पंचबली का एक निहित भाग गाय को खिलायें।
2] श्वानबलि [ पत्ते पर ]
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द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवस्वतकुलोöवौ।
ताभ्यामन्नं प्रयच्छामि स्यातामेतावहिंसकौ।।
इदं श्वभ्यां न मम।
इस श्लोक का उचारण कुत्तों को बलि देने के लिए करे। इस पंचबलि के समय कान मे जनेऊ डालना अनिवार्य है।
3] काकबलि [ पृथ्वी पर ]
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ऊँ ऐन्द्रवारूणवायव्या याम्या वै नैर्ऋतास्तथा। वायसाः प्रतिगृह्वन्तु भूमौ पिण्डं मयोज्झितम्।। इदमन्नं वायसेभ्यो न मम।
इस श्लोक का उचारण कौओं को भूमि पर अन्न देने के लिए करे। पंचबली का एक निहित भाग कौओं के लिये छत पर रख दें।
4] देवादिबलि [ पत्ते पर ]
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ऊँ देवा मनुष्याः पशवो वयांसि सिद्धाः सयक्षोरगदैत्यसंघाः।
प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम्।।
इदमन्नं देवादिभ्यो न मम।
इस श्लोक का उचारण देवता आदि के लिय अन्न देने के लिए होता है। पंचबली का एक निहित भाग अग्नि के सपुर्द कर दें।
5] पिपीलिकादिबलि [ पत्ते पर ]
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पिलीलिकाः कीटपतंगकाद्या बुभुक्षिताः कर्मनिबन्धबद्धाः। तेषां हि तृप्त्यर्थमिदं मयान्नं तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु।। इदमन्नं पिपीलिकादिभ्यो न मम।
इस श्लोक का उचारण चींटी आदि को बलि देने के लिए होता है। पंचबली का एक निहित भाग चींटीयों के लिये रख दें पंचबलि देने के बाद एक थाल मे खाना परोसक निम्न मंत्र का उचारण कर ब्राह्मणों के पैर धोकर सभी व्यंजनों का भोजन करायें।
यत् फलं कपिलादाने कार्तिक्यां ज्येष्ठपुष्करे।
तत्फलं पाण्डवश्रेष्ठ विप्राणां पादसेचने।।
इसे बाद उन्हें अन्न, वस्त्र और द्रव्य-दक्षिणा देकर तिलक करके नमस्कार करें। तत्पश्चात् नीचे लिखे वाक्य यजमान और ब्राह्मण दोनों बोलें
यजमान :– शेषान्नेन किं कर्तव्यम्। (श्राद्ध में बचे अन्न का क्या करूँ?)
ब्राह्मण :– इष्टैः सह भोक्तव्यम्। (अपने इष्ट-मित्रों के साथ भोजन करें।) इसके बाद अपने परिवार वालों के साथ स्वयं भी भोजन करें तथा निम्न मंत्र द्वारा भगवान् को नमस्कार करें।
प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्। स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं स्यादिति श्रुतिः।
श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है, क्योंकि कई बार विधि पूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं।
श्राद्धकर्म के नियम
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1] श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।
2] श्राद्ध में चांदी के बर्तन का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।
3] श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए गए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।
4] ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं, जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें।
5] जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पडने से वह पितरों को नहीं पहुंचता।
6] श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।
7] श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।
8] दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।
9] चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।
10] जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।
11] श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।
12] शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग)में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।
13] श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।
14] रात्रि को राक्षसी समय माना गया है। अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।
15] श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोना, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।
16] तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।
17] रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।
18] चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।
19] भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ।
20] श्राद्ध के प्रमुख अंग
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तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।
भोजन व पिण्ड दान:– पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।
वस्त्रदान:– वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।
दक्षिणा दान:– यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।
21] श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।
22] पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।
23] तैयार भोजन में से गाय, कुत्ता कौआ, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।
24] कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।
25] ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।
26] पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए । एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करें या सबसे छोटा।
भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि, पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं, और 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि, पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं, इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें, जिससे पितृगण नाराज हों। पितरों को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, गुरु या नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं। ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए, अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं, जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं। पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए। हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए। मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है। शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए।
सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए। इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं, तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा:– इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।
पंचमी:– जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।
नवमी:– सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि, इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
एकादशी और द्वादशी:– एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।
चतुर्दशी:– इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध किया जाता है, जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।
सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या:– किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं, या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए, यही उचित भी है।
पिंडदान करने के लिए:– सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें। जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं।
विशेष: श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र है।
देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च। नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ।। (वायु पुराण)
श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। हमारे धर्म-ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है। सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा की ऊधर्व कक्षा में पितृलोक है, जहां पितृ रहते हैं। पितृ लोक को मनुष्य लोक से आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता। जीवात्मा जब इस स्थूल देह से पृथक होती है, उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं। यह भौतिक शरीर 27 तत्वों के संधान से बना है। स्थूल पंच महाभूतों एवं स्थूल कर्मेन्द्रियों को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है।
सनातन मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता। मोहवश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों व घर के आसपास भ्रमण करता रहता है। श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है, इसीलिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। अगर किसी के कुंडली में पितृदोष है, और वह इस श्राद्ध पक्ष में अपनी कुंडली के अनुसार उचित निवारण करते हैं तो, जीवन की बहुत सी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। योग्य ब्राह्मण द्वारा ही श्राद्ध कर्म पूर्ण करवाये जाने चाहिएं।
ऐसा कुछ भी नहीं है कि, इस अनुष्ठान में ब्राह्मणों को जो भोजन खिलाया जाता है, वही पदार्थ ज्यों का त्यों उसी आकार, वजन और परिमाण में मृतक पितरों को मिलता है। वास्तव में श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर, उसी अनुपात व मात्रा में प्राणी को मिलता है, जिस योनि में वह प्राणी इस समय है।
पितृ लोक में गया हुआ प्राणी श्राद्ध में दिए हुए अन्न का स्वधा रूप में परिणत भाग को प्राप्त करता है। यदि शुभ कर्म के कारण मर कर पिता देवता बन गया हो तो, श्राद्ध में दिया हुआ अन्न उसे अमृत में परिणत होकर देवयोनि में प्राप्त होगा। गंधर्व बन गया हो तो, वह अन्न अनेक भोगों के रूप में प्राप्त होता है। पशु बन जाने पर घास के रूप में परिवर्तित होकर उसे तृप्त करता है। यदि नाग योनि में है तो, श्राद्ध का अन्न वायु के रूप में तृप्ति देता है। दानव, प्रेत व यक्ष योनि मिलने पर श्राद्ध का अन्न नाना प्रकार के अन्न पान और भोग्य रसादि के रूप में परिणत होकर प्राणी को तृप्त करता है। यदि किसी की जन्मकुंडली में पितृदोष है तो, जन्म कुंडली के अनुसार उचित उपाय करें।
