हरीश मैखुरी
माननीय मुख्यमंत्री जी जरा अपनी ऐजेन्सी को सक्रिय करो और पता करो महिला ने नवजात को पुल पर किन परिस्थितियों में जन्म दिया। यह हतप्रभ कर देने वाली घटना दिनांक 24-10-2017 को देहरादून जनपद के चकराता तहसील ब्लाक कालसी के त्यूनी की है। बनिता देवी पत्नी दनेश दास उम्र 24 साल थुनारा गांव आराकोट तहसील मोरी को प्रसव पीड़ा के चलते त्यूनी अस्पताल भर्ती करने के लिए लाया गया, लेकिन अस्पताल में चिकित्सक नहीं मिला, वहां मौजूद नर्स ने बिना मरीज को देखे ही “कहीं और ले जाने की सलाह” दी ,दर्द से कराहती प्रसूता ने बहुत मिन्नतें की “मैं चल नहीं सकती मुझे प्रसव का तेज दर्द हो रहा मुझे जल्दी भर्ती कर दो” लेकिन “अस्पताल मे कोई चिकित्सक नहीं है” कह कर उसे वहां से चलता कर दिया गया। मजबूरी में पैदल ही अस्पताल से चल दी और रास्ते में ही एक झूला पुल पर बनीता ने बच्चे को जन्म दे दिया । प्रसव के बाद भी अस्पताल ने प्रसूता को भर्ती नहीं कराया। इस घटना ने अस्पतालों और सरकारी दावों की बखिया उधेड़ कर तो रखी ही मानवता को भी हिला कर रख दिया।
इस सम्बंध मे जब सी एम ओ से फोन पर सम्पर्क किया तो उनका कहना था कि “कोई डाक्टर त्यूनी जाने को तैयार नहीं बेशक वो नौकरी छोड़ने को तैयार है, उन्होने कहा की वहाँ डाक्टरों का सम्मान नहीं होता और हर मामले मे राजनीति होती है । शासन को कई बार लिखा गया है लेकिन त्यूनी जाने को डाक्टर राजी नहीं है” ।एक तरफ इंस्टीट्यूटशनल डिलीवरी सरकार का घोषित राष्ट्रीय कार्यक्रम है। आशा से लेकर स्वस्थ्य मंत्री तक का खर्च उठाने के लिए हर साल करोड़ों रुपये ठिकाने लगाये जाते हैं। मगर दूसरी तरफ अस्पताल नहीं, डाक्टर नहीं, कहीं ये हैं भी तो बैड नहीं, दवा नहीं, लाईट नहीं। आधार कार्ड बीपीएल कार्ड लाओ। अगर ये हैं भी तो डाक्टरों का एक डरावना और लुटेरा डायलॉग “हालत खराब है जच्चा बच्चा में से एक ही बचेगा” कुछ खर्चा लगेगा। खर्च नहीं तो कह देते हैं हमारे पास व्यवस्था नहीं। मीलों पैदल चलकर अस्पताल पहुंचने के बाद स्वास्थ विभाग का ऐसा रवैया जान निकाल कर रख देता है।