गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर .. अदभुत जानकारी — नई पीढ़ी के लिए
उत्तराखंड का चमोली जिले का गोपेश्वर जिसका पौराणिक नाम गोस्थल है जहाँ प्रसिद्ध पश्वीश्वर महादेव पार्वती संग नित्य विराजमान रहते हैं।
• गोस्थलकं स्मृतम् ।।
तत्राहं सर्वदा देवि निवसामि त्वया सह ।।
नाम्ना पश्वीश्वरः ख्यातो भक्तानां प्रीतिवर्धनः
त्रिशूलं मामकं तत्र चिन्हमाश्चर्यरूपकम् ।।
(स्कंद पुराण, केदारखण्ड, अध्याय-55, श्लोक 07-08)
शिवजी माँ पार्वती को स्कन्दपुराण के अंतर्गत केदारखण्ड अध्याय-55, में कहते हैं कि
यह गोस्थल नाम का क्षेत्र है जहां मैं तुम्हारे साथ नित्य निवास करता हूं वहां मेरा नाम “पश्वीश्वरः” है और इस स्थानों में भक्तों की प्रीति विशेष बढ़ती जाती हैं एवं वहां हमारा चिन्ह स्वरूप जो त्रिशूल है वह बड़ा ही आश्चर्यप्रद है ।
• ओजसा चेच्चाल्यते तन्नहि कंपति कर्हिचित ।
कनिष्ठया तु यत्स्पृष्टं भक्त्या तत्कंपते मुहुः ।।
(स्कंद पुराण, केदारखण्ड, अध्याय-55, श्लोक 09)
“यदि बलपूर्वक इस त्रिशूल को हिलाने का प्रयास किया जाए तो वह बिल्कुल नहीं कम्पित होगा किंतु यदि भक्ति-पूर्वक कनिष्ठ उंगली (हाथ की सबसे छोटी उंगली) से स्पर्श किया जाए तो त्रिशूल में बार-बार कंपन होता है” ।।
▪︎ हमने अपनी आंखों से देखा है कि जब मैंने त्रिशूल को भक्ति-पूर्वक कनिष्ठ उंगली (हाथ की सबसे छोटी उंगली) से स्पर्श किया तो त्रिशूल में जो दो कंकड़ है उन मैं कंपन हुआ लेकिन हाथ से हिलाने पर त्रिशूल बिल्कुल भी नहीं हिला …
• अन्यच्च संप्रवक्ष्यामि चिन्हं तत्र सुरेश्वरि ।
एकस्तत्र पुष्पवृक्षोऽकालेपि पुष्पितः सदा ।।
(स्कंद पुराण, केदारखण्ड, अध्याय-55, श्लोक 10)
मंदिर के ठीक बगल पर एक वृक्ष है जो हर ऋतु में एक जैसा सदा पुष्पों से भरा रहता है..
• तस्मात्पूर्वप्रदेशे वै वसामि झषकेतुहा
मया तत्र पुरा दग्धो झषकेतुर्महेश्वरि ।।
“झषकेतुहरो नाम्ना सर्वतीर्थफलप्रदः
(स्कंद पुराण, केदारखण्ड, अध्याय-55, श्लोक 13)
केदारखण्ड के अनुसार महादेव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को इसी स्थान पर भस्म कर दिया था इसीलिए भगवान शंकर को इस क्षेत्र में झषकेतुहर भी कहा जाता है ।
‘झष’ का अर्थ होता है – मीन, मछली
‘केतु’ का अर्थ होता है – ध्वज
कामदेव के ध्वज पर मीन का चिन्ह होता है
कामदेव का वध करने वाला – “झषकेतुहरो”
• रतीश्वर इति ख्यातो मम संगमदायक ।
रतिकुण्डं च तत्रास्ति नाम्ना मल्लोकदायकम्
(स्कंद पुराण, केदारखण्ड, अध्याय-55, श्लोक 15)
इसी स्थान पर भगवान शंकर का नाम रतीश्वर भी पड़ा क्योंकि कामदेव के भस्म होने के बाद कामदेव की पत्नी रति ने यहां एक कुण्ड के निकट घोर तप किया और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि कामदेव प्रद्युम्न के रूप में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र बनकर जन्म लेंगे और वही तुम्हारी उनसे भेंट होगी..
• जहाँ रति ने तप किया उस कुंड का नाम रतिकुण्ड पड़ा जिसे वैतरणीकुण्ड भी कहा जाता है
• द्वारिका में प्रद्युम्न के रूप में कामदेव का जन्म होता हैं और मायावती के रूप में रति का भी पुनर्जन्म होता है ।
जय गोपीनाथ