
हरीश मैखुरी
शुभ कार्यों में मांगलों और देवकार्यों में जागरों की प्रस्तुति उत्तराखंड की प्राचीन विशेषता रही है। मांगल शब्द ही मांगलिक कार्यों अथवा शुभ कार्यों से बना है, लेकिन मांगल जिस सुर, लय और धुन में गाए जाते हैं उससे संबंधित कार्यक्रम की ओरा और सफलता की स्थिति सुनिश्चित हो जाती है, ठीक उसी प्रकार देवकार्यों में जब जागर प्रस्तुत किए जाते हैं तो जागरों में देवताओं के आवाहन के साथ ही देवताओं का आवेशन और ऊर्जा वातावरण में प्रवाहित होने लगती है इससे देवगण मनुष्यों पर अवतरित होने लगते हैं। जागर व मांगल गायन के विना शुभ व देव कार्य न तो शुरू होते और न ही संपन्न। आयोजकों को मांगल व जागर गायकों का इंतजार रहता खास तौर पर शादी विवाह, मुंडन व अन्नप्राशन के लिए महिलायें ही मांगल गायन करती हैं। मगर राजीव गांधी की सूचना व तकनीकी क्रांति के बाद समाज में तेज़ी से आये बदलावों के कारण गायन का काम टैपरिकार्डर मोबाइल आदि से होने लगा मांगलों की बजाय मेहन्दी रात कॉकटेल पार्टी आगयी, इसी के साथ असंदर्भित गानों पर नशेड़ी भी नागिन डांस करने लगे युवतियों ने भी छोटे और गिनती के कपड़े पहनने शुरू कर दिये डांस पर चांस मिलने लगे। फोटो ग्राफर पोजीशन बनाकर पोज खींचने लगे। फोटोग्राफी और सेल्फी दौर ने विधिविधान और मांगलिक गायन को मांगलिक कार्यों से बाहर कर दिया और यह गजब की विधा सिमटती चली गयी।
