पांच जून विदेशी बौद्धिक जुगालों का पर्यावरण दिवस है भारत में तो पंच वृक्षों की पूजा नवग्रह और नक्षत्र वाटिका तुलसी पूजन नित्यक्रम है

पेड़ नहीं बचेंगे तो आक्सीजन नहीं रहेगी और मनुष्य भी नहीं बचेंगे और सभी कंक्रीट के भवन एक घंटे में भरभरा कर गिर जायेंगे। वृक्षों में बड़ पीपल आम पंया नीम और कदंम्ब श्रेष्ठ बताये गये हैं और इन पर हथियार चलाने का अर्थ है अपनी भावी पीढ़ी का जड़ नाश। यदि घरती के आकाश में ओजोन की घनी परत ना हो तो धरती का पानी और आक्सीजन व हवा अन्नंत ब्रह्माण्ड में फैल कर समाप्त हो जायेंगी और धरती पर जल जंगल जीवन समाप्त हो जायेगा। इसी लिए ओजोन परत बचाने के लिए घर घर तुलसी की पौध लगाई और पूजी जाती थी। मुगल आक्रमणकारियों और अंग्रेज लुटेरों ने तुलसी की संस्कृति समाप्त करने का पूरा षड्यंत्र रचा उनके मानसिक वंशज अब नीम तुलसी पीपल लगाने को लेकर भ्रम फैलाते रहते हैं। आज मैने पीपल लगाया हर वर्ष कम से कम दस पीपल की पौध तैयार करता हूँ। और जब पौध रोपंण योग्य हो जाती है तो जहाँ उचित जगह मिली वहां लगा देता हूंँ। अब तक सौ से अधिक पीपल के पेड़ हो गये हैं। क्योंकि पीपल धरती का मौसम रेग्युलेटर है।मैने जिद करके गोपेश्वर चौराहे पर करीब अठारह वर्ष पहले एक पीपल का पेड़ आदरणीय स्व चक्रधर तिवारी स्व दिनेश तिवारी और राज बहादुर के साथ लगाया था। आज पेड़ बन गया है बड़ा शकुन मिलता है। चक्रधर तिवारी ने तो गोपेश्वर शहर को ही फलदाई और पुष्पित पेड़ों से सजा दिया है। आज शहर की सभी सड़कें उनके पुरूषार्थ के कारण जीवंत हैं। विद्यार्थी जीवन में पद्मविभूषण श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी की छत्रछाया में सर्वोदय केन्द्र गोपेश्वर में बीता। उनके वृक्षारोपण शिविरों में बछेर बेमरू स्यूंण डुमक कलगोठ में वृक्षारोपण में सहभागिता का सौभाग्य मिला। पीएचडी के दौरान रैणी की गौरा देवी और बाली देवी की अपने जंगलों के प्रति असीम अनुराग और उन्हें संजोये रखने उर्जा का अनुभव भी मिला। अब उत्तराखंड सरकार भी हरेला पर्व पर पूरे सावन माह वृक्षारोपण अभियान चलाती है। वास्तव में 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस बौद्धिक जुगाली करने के लिए है विशेषकर अरब अमेरिकी और यूरोपीय देशों के लिए जिनके यहां पेड़ लगाने और बचाने का कोई विचार ही नहीं है। अन्यथा वर्षभर मौसमी पेड़ लगते रहने चाहिए। हमारे देश में प्राचीन काल से ही नवग्रह वाटिका नक्षत्र वाटिका घर घर तुलसी रोपण व पूजा। उत्तराखंड में तो वनों में ग्वालपुज्ये, विष पुज्ये, अंयार पुज्ये बहुत पुरानी विधा है। सरकार और वन विभाग को भी यूके लिप्टस का मोह छोड़ कर पंच वृक्ष नवग्रह वाटिका नक्षत्र वाटिका अपनी प्राथमिकता में रखनी चाहिए। ✍️ हरीश मैखुरी