स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी देवभूमि में संस्कृत शिक्षा मुख्य धारा से विमुख सरकार संस्कृत महाविद्यालयों के लिए वित्तीय व्यवस्था करे-डॉ राम भूषण बिजल्वाण

*संस्कृत विद्यालय- महाविद्यालय शिक्षक संघ की प्रांतस्तरीय आकस्मिक बैठक हुई*

*प्रदेश अध्यक्ष*डॉ राम भूषण बिजल्वाण सहित सभी शिक्षकों ने कहा स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी देवभूमि में संस्कृत शिक्षा आज भी मुख्य धारा से विमुख*सरकार संस्कृत महाविद्यालयों के लिए वित्तीय व्यवस्था करे

*द्वितीय राजभाषा का दर्जा मिले डेढ़ दशक बीतने के बाद भी संस्कृत शिक्षा की स्थिति जस की तस*  इस बैठक में बैठक में अनेक पारित हुए कई प्रस्ताव

आज संस्कृत विद्यालय- महाविद्यालय शिक्षक संघ की प्रदेशस्तरीय आकस्मिक बैठक प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामभूषण बिजल्वाण की अध्यक्षता में हुई जिसमें प्रदेश के समस्त जनपदों से पदाधिकारी एवं सैकड़ों अध्यापक पहुंचे । बैठक में सभी शिक्षकों ने प्रदेश में वर्तमान में हो रहे संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों के अवनतिकरण के आदेशों का पुरजोर विरोध इस बात पर किया कि संबंधित आदेशों में वर्गीकृत महाविद्यालयों का कहीं जिक्र नहीं है । इस अवसर पर प्रदेश महामंत्री डॉक्टर कुलदीप पंत ने कहा वर्तमान में शासन के द्वारा किया गया वर्गीकरण एवं विद्यालयों के ऊपर थोपे जा रही प्रशासन योजना तर्क विहीन एवं असंगत है जिसे समस्त प्रदेश में अव्यवस्था उत्पन्न हो गई है। इस हेतु उन्होंने उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की प्रतियोगिता के समापन अवसर पर विभागीय मंत्री से निवेदन भी किया किंतु मंत्री जी ने एक प्रकार से वार्तालाप करने से ही इंकार कर दिया।संस्कृत की पोषक कही जाने वाली भाजपा सरकार में ही यह स्थिति सरकार के मंसूबों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रही है । इस अवसर पर डॉक्टर चंद्र भूषण शुक्ल जी ने कहा कि ऐसी स्थिति में उत्तराखंड में परिषद एवं विश्वविद्यालय से जुड़कर के पठन पाठन करना बहुत जटिल हो गया है ऐसे स्थिति में हमको अन्य प्रदेशों से मान्यता लेकर अध्यापन कराना चाहिए। डॉक्टर बेनी प्रसाद शर्मा जी ने कहा कि वर्तमान में संस्कृत के प्रति कुचक्र चल रहा है जिसमें परिषद के अधिकारी सम्मिलित हैं। प्रदेश संरक्षक डा संतोष मुनि ने कहा कि पूर्व में सरकार एवं शासन के आदेश के आधार पर विधिवत वर्गीकरण हो चुका है उसको नकार कर शासन अपने ही पूर्व आदेशों को गलत साबित कर रही है और उच्च शिक्षित विभागीय मंत्री जी मौन हैं यह घोर अफसोस की बात है। अनुशासन समिति के अध्यक्ष श्री अनुसूया प्रसाद सुंदरियाल ने का जहां प्रदेश के शिक्षक अपने निजी परिश्रम से संस्कृत बचाने का प्रयास कर रहे हैं वहीं शासन एवं निदेशालय सहयोग करने की अपेक्षा अध्यापकों को वेतन बंद करने की धमकी दे रहा है यह अत्यंत खेदजनक है। जिला महामंत्री डॉ प्रकाश जोशी ने कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालय इन सम्बद्ध महाविद्यालयो के भरोसे चल रहा है लेकिन महाविद्यालयों के चार बार हुए यूजीसी स्तरीय पैनल निरीक्षण करने के बाद भी महाविद्यालयों के हित में कार्य करने की बजाय जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है । प्रदेश अध्यक्ष डा भूषण बिजलवाण ने माननीय मुख्यमंत्री जी एवं विभागीय मंत्री तथा विभागीय सचिव से निवेदन करते कहा कि विभाग बताए कि उत्तराखंड में संस्कृत शिक्षा की क्या स्थिति है? ऐसा कहीं अन्य शिक्षा में देखने को मिलता है कि जो व्यक्ति जिस पद पर नियुक्त होगा वह उसी पद पर सेवानिवृत्त होगा लेकिन यह अजूबा संस्कृत में देखने को मिल रहा है पूरे सेवाकाल में एक भी पदोन्नति शिक्षकों को नसीब नहीं डॉ बिजल्वाण ने और आगे कहा कि ऐसा किसी विभाग में है कि नियुक्ति अर्हता और कार्य उच्चशिक्षा का और वेतन सेवालाभ निम्नातिनिम्नस्तर के । जो महाविद्यालय उत्तरप्रदेश के समय से ए ग्रेड के महाविद्यालय के रूप में वर्गीकृत हैं उन महाविद्यालयों को सामान्य शिक्षा के महाविद्यालयों की भांति सेवालाभ देने की बजाय उनसे जबरन माध्यमिक स्तर चलाने को कहा जा रहा है नियुक्ति विज्ञापन अनुज्ञा महाविद्यालय की और वेतनमान माध्यमिक का कितना बड़ा विरोधाभास है और जिन माध्यमिक स्तर के विद्यालयो को विभाग के पिछले आदेशों के क्रम में उनको इंटरमीडिएट स्तर के लाभ अनुमन्य हो रखे हैं आज उनको कहा जा रहा है ये जूनियर हाईस्कूल हैं बड़ी अजीबोगरीब स्थिति है संस्कृत शिक्षा की प्रदेश में । सभी शिक्षकों ने माननीय मुख्यमंत्री जी मंत्री जी और सचिव से आग्रह किया कि शासन के आदेश के अनुक्रम में जो पूर्ण रूप से महाविद्यालय के रूप में संचालित हैं उनके लिए पृथक व्यवस्था का आदेश तत्काल जारी होना अत्यंत आवश्यक है। यह भी विदित हो कि महाविद्यालयों को उच्चशिक्षा के सेवालाभ सम्बन्धी प्रकरण न्यायालय में चल रहा है इस बीच इस तरह के आदेशों का औचित्य क्या है समझ से परे है । इसी क्रम में सभा में उपस्थित सभी अध्यापकों ने संघ के पदाधिकारियों से एकमत से स्पष्ट किया कि यदि शासन से वार्तालाप अथवा पत्राचार के माध्यम से समस्या का एक सप्ताह के भीतर भी समाधान नहीं होता तो संपूर्ण प्रदेश में को उग्र आंदोलन किया जाएगा। इस अवसर पर डॉक्टर बाणी भूषण भट्ट,डॉक्टर प्रकाश चंद्र जोशी, डॉक्टर से नारायण भट्ट डॉक्टर शैलेंद्र डंगवाल डा दीपशिखा डॉक्टर प्रदीप आदि असंख्य सदस्य उपस्थित रहे।

बता दें कि उत्तराखंड में सरकारें मदरसों को फंड देती है लेकिन संस्कृत महाविद्यालयों के लिए कोई समुचित वित्तीय व्यवस्था अभी तक भी नहीं है। इसलिए सरकार को चाहिए कि उत्तराखंड के सभी संस्कृत विद्यालयों और महाविद्यालयों का प्रबंधन सरकार अपने नियंत्रण में ले और पर्याप्त वित्तीय व्यवस्था भी करे। इससे सरकार को भी लाभ होगा और भारतीय संस्कृति की भव्यता दिव्यता और उत्कृष्टता भी बढेगी। 

*माननीय मुख्यमंत्री जी एवं शिक्षामंत्री जी के समक्ष उत्तराखण्ड की द्वितीय राजभाषा व उत्तराखण्ड की संस्कृत शिक्षा के सन्दर्भ में अत्यावश्यक विचारणीय प्रश्न प्रस्तुत हैं।* 

1- उत्तराखण्ड के माध्यमिक विद्यालयों में अन्य भाषाओं जैसे हिन्दी ,अंग्रेजी आदि की तरह संस्कृत एल. टी व प्रवक्ता के पदों का सृजन अभी तक क्यों नही ? अन्य भाषा विषयों की तरह पदों की संख्या में भेदभाव क्यों ?  

2 -प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालयों एवं विद्यालयों में कार्यरत 155 अर्ह शिक्षकों की अभी तक तदर्थ नियुक्ति क्यों नही ? 

3-उत्तराखण्ड के अशासकीय संस्कृत विद्यालय/ महाविद्यालयों में राज्य सरकार द्वारा मानदेय प्राप्त कर रहे 155 प्रबन्धकीय शिक्षकों के अतिरिक्त मानदेय से वंचित 126 शिक्षकों को मानदेय सूची में सम्मिलित करनें का अभी तक शासनादेश जारी क्यों नही ?

4-प्रदेश के संस्कृत विद्यालयों/महाविद्यालय का अभी तक वर्गीकरण क्यों नही ? 

5- उत्तराखण्ड के सभी 13 जनपद मुख्यालयों , सचिवालय राजभवन आदि मे अंग्रेजी व उर्दु के समान संस्कृत अनुवादकों के पद सृजन कर नियुक्ति क्यों नही ? ( यद्यपि गत चुनावी घोषणा पत्र में यह विषय लिखा था । ) स्मरणार्थ 

6- तत्कालीन मुख्य मंत्री खंडूरी जी द्वारा पृथक् संस्कृत विभाग की रचना की गयी थी परन्तु वर्तमान में संस्कृत विश्वविद्यालय को संस्कृत शिक्षा में रखते हुए ही उच्च शिक्षा की सारी सुविधाओं से युक्त करनें का निर्णय क्यों नही ? संस्कत उच्च शिक्षा को अलग ढांचे में रखते हुए संस्कृत विश्व विद्यालय को उच्च शिक्षा में लाने का निर्णय क्यों नही ?( मित्रो आपनें कहीं भी ऐसा नही सुना होगा कि नाम से संस्कृत विश्व विद्यालय हो और माध्यमिक शिक्षा के अन्तर्गत चलता हो ,उसे स्वाभाविक ही उच्च शिक्षा के अन्तर्गत होना चाहिए था परन्तु संस्कृत शिक्षा के साथ ऐसा अन्याय क्यों ? 

7- माननीय मुख्यमंत्री जी जिस संस्था उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी के आप पदेन अध्यक्ष व शिक्षा मंत्री जी उपाध्यक्ष हैं उस अकादमी से 13 जनपदों में संस्कृत ग्राम बनानें की घोषणा हुयी परन्तु अभी तक गॉव के स्वरुप एवं उनमें शिक्षक आदि की व्यवस्था क्यों नही ? ( इस संस्कृत अकादमी में भी उपाध्यक्ष की कुर्सी शिक्षा मंत्री जी के नाम जबकी पहले कोई संस्कृत का विद्वान् ही उपाध्यक्ष बनाया जाता था ।परन्तु आज ऐसा निर्णय क्यों ?

8- संस्कृत विद्यालय/ महाविद्यालयों मे संस्कृत शिक्षकों के अभी तक पद सृजन क्यों नही ?  

9- संस्कृत विद्यालय व महाविद्यालयों में माध्यमिक कक्षाओं से उच्च कक्षाओं तक वही एक शिक्षक पढाने वाले हैं ऐसा क्यों ? ( आधुनिक शिक्षा में तो एल० टी० प्रवक्ता बी . ए एम. ए. आदि कक्षाओं को पढानें वाले शिक्षक अलग अलग श्रेणियों में बंटे हैं संस्कृत शिक्षा में ऐसा क्यों ?  

10- उत्तराखण्ड में संस्कृत विश्व विद्यालय एक मात्र संस्कृत का उच्च शिक्षण संस्थान है जिसमें शिक्षकों की भर्तियां क्यों नही ?  

11- उत्तराखण्ड संस्कृत विश्व विद्यालय , संस्कृत अकादमी ,संस्कृत निदेशालय,संस्कृत बोर्ड आदि संस्कृत की प्रमुख संस्थाओं में पूरे अधिकारी क्यों नही ? तथा संस्कृत इतर क्षेत्र के व्यक्ति को संस्कृत संस्थाओं में संस्कृतज्ञो के लिए बनें पदों पर आसीन क्यों ?   

12- उत्तराखण्ड संस्कृत विश्व विद्यालय से शास्त्री ,आचार्य की डिग्रियॉ प्राप्त कर चुके या कर रहे छात्रों के लिए सेना के धर्म गुरु जैसे पदों में जानें हेतु उपरोक्त डिग्रियॉ अमान्य क्यों ?

महाहिम राज्यपाल जी माननीय मुख्य मंत्री जी माननीय शिक्षा मंत्री जी आप इन विषयों पर आगे आकर इस उत्तराखण्ड की द्वितीय राज भाषा का क्रियान्वयन का आदेश देंगे । उत्तराखण्ड का संस्कृत जगत आपसे ऐसी अपेक्षा करता है । 

 महोदय मंचो से संस्कृत देववाणी है, संस्कृत वेदवाणी है, संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है ऐसा सुनकर अब कानों में अशान्ति जैसी हो गयी है ।संस्कृत को उत्तराखण्ड की द्वितीय राजभाषा बना दिया है, राज्य के सभी विभागों में संस्कृत मे ही नाम पट्टियॉ लगा दी हैं मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसा आपके कहनें से और संस्कृत शिक्षको, छात्रों और अनुरागियों के ऐसे सुननें से कान पक गये हैं । 

अब उत्तराखण्ड का संस्कृत जगत चाहता है कि आप उपरोक्त विषयों को धरातल पर उतारते हुए दिसम्बर 2023 तक क्रियान्वयन भी करेंगे ऐसा सादर निवेदन । अगर दिसम्बर 2023 तक इन कार्यों पर शासनादेश जारी नहीं होता है तो सम्पूर्ण संस्कृत जगत पूरे उत्तराखण्ड से हजारों शिक्षकों, छात्रों ,संस्कृत संस्थाओं, संस्कृत समीतियों, संस्कृत छात्रसंघ शक्ति , संस्कृत छात्र परिषद शक्ति के साथ साथ संस्कृत संगठनों की शक्ति एवं हरिद्वार ऋषिकेश से साधु संतों के सानिध्य में देहरादून की सडकों पर सचिवालय तक विखरता हुआ जनवरी 2024 में दिखेगा । 

 *उत्तराखण्ड संस्कृत जगत चाहता है केवल संस्कृत भाषा का क्रियान्वयन*