इस महांतीर्थ में रहते हैं दु:ख विनष्ट करने वाले बिनसर महादेव

रिपोर्ट – उम्मेदसिंह पुंडीर 

       उत्तराखंड देव भूमि में टिहरी जनपद के कीर्ति नगर तहसील के अंतर्गत बडियार गढ़ न्याय पंचायत पंचायत चिलेड़ी गांव मैं श्री बिनसर देवता सदियों से स्थापित हैं यहां पर समय समय पर देवता की पूजा अर्चना हवन पूजन आदि कार्यक्रम सदियों से आयोजित किए जाते हैं। उत्तराखंड के लोक साहित्य के अनुसार बिनसर शब्द का अर्थ जहां दुख नहीं रहता अथवा जिन परमेश्वर के दर्शन से समस्त दुखों का निवारण हो जाता है वह बिनसर देवता है हमारे क्षेत्र में ब्रह्म मुहूर्त को बिनसर या बिन्सरी बेला भी कहा जाता है। बिनसर के नाम समय-समय पर परिवर्तन होते रहे हैं । विरणेश्वर विणेश्वर विनेश्वर विंदेश्वर तथा विन्सर ।

एक धारणा यह भी प्रचलित है कि बिनसर का मतलब बिना सर वाला देवता अर्थात ऐसा देवता जिसका सर नहीं है इस बारे में यह मान्यता है कि एक बार भगवान विष्णु जालंधर की पत्नी वृंदा को अपनाने के लिए गए यहां जालंधर से उनका युद्ध हुआ जालंधर मारा गया साथ में उनकी पत्नी वृंदा भी सती हो गई दूसरे जन्म में विष्णु श्री कृष्ण के रूप में पैदा हुए पिछले जन्म में वृंदा के श्राप से कृष्ण की गर्दन स्वतः सुदर्शन चक्र से कट गई एवं कृष्ण बिना सर के देवता के रूप में विचरण करने लगे वह उन्हें बिनसर नाम से पुकारा जाना लगा था बिनसर भगवान विष्णु का ही रूप है कुछ ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार छठी शताब्दी में दो राजा हुए द्धिजवर्मन व विष्णुवधर्न इन राजाओ ने विन्सर को अपना इष्ट देवता माना है और बिनसर का स्वरूप भुजंग राज शेषनाग को माना गया है इस तथ्य के आधार पर बिनसर शेषनाग का रूप है बिनसर देवता को हित व घंडियाल देवता के बड़े भाई के रूप में पूजे जाते हैं मां नंदा देवी के जागरण में बिनसर देवता को मां नंदा ने अपने भाई के रूप में संबोधित किया है ऐसी मान्यता है कि एक बार क्रोधवश शिव जी ने कामदेव को श्राप दे दिया था। कामदेव की पत्नी रति शिव जी के पास प्रार्थना के लिए जाने लगी परंतु शिव भगवान बिनसर में समा गए रती ने रो-रो कर अपनी आंसुओं की बूंदों से विनसर को ढक दिया था। इसलिए बिनसर देवता को विनंदेश्वर भी कहा जाता है।

चिलेड़ी में बिनसर देवता की स्थापना
वृषभ राशि में जन्मे पीत वस्त्र धारी बिनसर देवता की स्थापना चिलेड़ी गांव में 18 वीं सदी में मानी जाती है जनश्रुति है कि बिनसर देवता ग्राम रौठिया भरदार से धियाणी (बहू )के साथ देजा (दहेज)में आए ।। कुछ का मत है कि बिनसर देवता बालक के रूप में ग्राम चिलेड़ी के पुण्डीर वंश में एक वृद्ध व्यक्ति के सपने में आए थे कि मैं सैणी चिलेडी में रहना चाहता हूं यहां पर मेरा मंडुला ( मंदिर का छोटा स्वरूप) स्थापित करो उस वृद्ध व्यक्ति ने अपने स्वप्न भी बात गांव वालों को बताई गांव वालों ने वृद्ध की बात पर देवता के प्रति अपनी श्रद्धा एवं आस्था को व्यक्त करते हुए व्यक्ति विशेष पर अवतरित होने की प्रार्थना की जिसके फलस्वरुप बिनसर देवता श्री कुमदु पुंडीर के परिवार के व्यक्ति पर ही अवतरित हुए थे गांव वासियों ने गांव के किनारे उत्तर पूर्व में बिनसर देवता का मंडुला (मंदिर ) बनाया और 80 चिलेड़ी (80 परिवारों का चिलेड़ी ) द्वारा श्री बिनसर देवता को अपने इष्ट देवता के रूप में पूजने लगे आज 80 परिवारों का चिलेडी जनसंख्या की वृद्धि से 4 ग्राम पंचायत चिलेड़ी पाब सिरवाड़ी तथा मंजुली में तब्दील हो गया लेकिन देवताओं की पूजा आज भी असी चिलेड़ी से प्रचलित है स्थानीय स्तर पर यह भी मानना है कि पूर्व में मालवाण जाति के लोग भी बिनसर देवता की पूजा अर्चना करते थे मालवण जाति के लोग चिलेड़ी के नजदीक खल्यासैंण नामक स्थान पर निवास करते थे आज भी उनकी खेती तथा मकान के अवशेष यहां पर मौजूद हैं कुछ लोगों का मत है कि मालवण जाति के लोग गोरख्याणी के समय पर यहां से पलायन हो गए थे तब कुछ लोगों का मत है कि हैजा महामारी के कारण मालवण जाति के सभी परिवार खत्म हो गए थे तब बिनसर देवता चिलेड़ी गांव के किसी व्यक्ति के सपने में प्रकट हुए और कहा जब यहां मेरे भक्त ही नहीं रहे तो मैं यहां नहीं रहूंगा यह बात उस व्यक्ति ने ग्रामवासियों को बताई तब गांव के सारे पंच व ग्रामीण इकट्ठा हुए वह सामूहिक रूप से देवता का आह्वान किया तब देता एक व्यक्ति पश्वा पर अवतरित हुए सभी लोगों ने देवता से प्रार्थना कि कि जब खेत मवासी खाली होंगे तब तेरी जात करेंगे देवता ने गांव वालों के आग्रह पर स्वीकार किया तब से खेत खाली होने पर (मवासी सार ) हर तीसरे वर्ष बिनसर देवता की जात का आयोजन किया जाता है जात के अतिरिक्त स्थानीय जनता द्वारा देवता की पूजा अर्चना हवन गंगा स्नान यात्रा केदार यात्रा आदि विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
गंगा स्नान यात्रा
स्थानीय स्तर पर बिनसर देवता की गंगा स्नान यात्रा का आयोजन भक्तों द्वारा किया जाता है मकरैण (मकर संक्रांति )के पावन दिवस पर बिनसर देवता पश्वाओ निजोला निशाण भक्तों के साथ सुपणा में गंगा तट (अलकनंदा) पर गंगा स्नान के लिए जाते हैं मकर संक्रांति की भोर में देवता के निशानों को गंगा स्नान कराया जाता है तत्पश्चात पष्वाओं व श्रद्धालु असनान करते हैं हवन व गोदान के पश्चात देवताओं सभी श्रदालुओं के साथ थान के लिए प्रस्थान करते हैं।
केदार यात्रा–
पूर्व में भक्तों द्वारा बिनसर देवता की भगवान केदारनाथ दर्शन यात्रा आयोजित की जाती गई थी बिनसर देवता की प्रथम केदार दर्शन यात्रा 31 मई सन 1881 से 11 जून सन 1881 को आयोजित की गई थी त्रिगुणी नारायण के तत्कालीन पांडा श्री पंचम राम जी द्वारा लिखित बही इस बात का विवरण है कि 7 जून सन 1881 को चिलेड़ी का देवता त्रिगुणी नारायण पहुंचा था मंदिर में पूजा अर्चना के पश्चात 8 जून को देवता पष्वाओ व भक्तों ने अगले पड़ाव के लिए प्रस्थान किया यात्रा के दौरान माघु चट्टी व पंवाली कांडा के मध्य देवता के तत्कालीन पश्वा स्वर्गीय सोनू पुंडीर जी का देहांत हो गया था तब से आज तक केदार यात्रा का आयोजन नहीं किया गया था सन 1998 में चार दिवसीय 12/4/1998से 15/4/1998 प्रयाग यात्रा रुद्रप्रयाग स्थानीय भक्तों द्वारा आयोजित की गई थी।
विन्सर देवता की जात
बिनसर देवता की जात ( तिसाली) प्रत्येक तीसरे वर्ष बड़े ही श्रद्धा और भक्ति एवं हर्षोल्लास के साथ आयोजित की जाती है मकर संक्रांति के पावन पर्व पर जात का आयोजन किया जाता है कमेटी द्वारा नियुक्त (पन्दारी) पानी लाने वाला मकरैण की सुबह अलकनंदा के तट पर पवित्र गंगा जल देवताओं के थान पर लाते हैं तब गंगाजल से देवताओं को स्नान कराया जाता है वह हवन पूजन के साथ जात का शुभारंभ होता है जात के समय प्रत्येक दिन प्रात: व सायं काल में धुंयाल (ढोल दमाऊ का बाधक ) एक विशेष विधि बजाकर श्री गणेश जी विष्णु जी लक्ष्मी जीव सभी स्थानीय देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है दिन में प्रत्येक दिन चारों पहर हवन यज्ञ सुरता के रात आठोपहर हवन यज्ञ होता है स्युर्ता के बाद अंतिम दिन पूर्णाहुति के साथ यज्ञ समाप्त समापन होता है।
भत्युड़ ( भोग )
चावल की व गुड़ से बिनसर देवता का प्रसाद बनाया जाता है जिसे स्थानीय बोली में भत्युड़ (भोग )कहा जाता है भत्युड़ शब्द का शाब्दिक रूप से भात मीठा भात होने का भी आभास होता है ग्राम पंचायत चिलेड़ी गांव तथा ग्राम पंचायत सिरवाड़ी के प्रत्येक परिवार से एक एक शेर चावल मिलाख एकत्रित किया जाता था कुल मिलाकर प्रत्येक ग्राम पंचायत से 16 पाथा मिलाख इकट्ठा किया जाता है 16 के अंक को भारतीय संस्कृति में शुभ माना जाता है इस प्रकार कुल 3 ग्राम पंचायतों से 48 पाथा (3दोण) सामग्री से प्रसाद भोग बनाया जाता था लेकिन यह प्रथा बंद हो चुकी थी अभी इस जात से भत्युड़ की प्रथा शुरू की गई ग्राम पंचायतों तथा सिरवाड़ी के परिवारों से चौथी ग्राम पंचायत मंजूली का गठन भी अब हो गया है स्युर्ता सुबह चौथे पहर में विन्सर देवता का निशाण (प्रतीक) उत्तर पूर्व में भत्युड़ लगाने वाली जगह पर गाड़ दिया जाता है तथा भोग से निशान को पूरी तरह से ढक कर भोग का लिंग बनाया जाता है पूर्णाहुति यज्ञ के पष्वाओ पर देवता अवतरित होकर अपने भक्तों धियाणीयो को जुदाल-चावल आशीर्वाद के रूप में देते हैं व कहते हैं…..
रैत मैत कु लोभी छौ मी ।।
अन्न धन कु लोभी नि छौ
अपणी रैत मैत तै जस दी जैलु
तुमारी जात्रा सुफल फलौलु
तप्तश्चात भत्युड़ (भोग) को सभी भक्तों में वितरित किया जाता है ।

डाल बंधन पूजा
डाल बंधन पूजा (आपदा प्रबंधन पूजा ) वैशाख महीने में रवि की फसल पकने के समय यह पूजा निर्धारित की जाती है इस तंत्र मंत्र पूजा उपरांत किसी भी तरह से खड़ी फसल को दैविक आपदा के प्रकोप से बचाया जाता है। जैसा ओलावृष्टि( दांडु )हवा तूफान (औडालू) पक्षियों -चूहा ( कलड़ा मूसा ) आदि। यह पूजा थाला गांव के ऊपर उत्तर पूर्व की दिशा में श्री बिनसर देवता के पश्वा के सानिध्य में संपन्न होती है इस पूजा के पुजारी को डल्या के प्रचलित नाम से जाना जाता है अभी तक जो विदित हो पाया की डल्या ग्राम गूगली चौरास के थे स्वर्गीय कुंठु डल्या ग्राम गूगली से पहले का विवरण प्राप्त नहीं हो पाया है स्वर्गीय कुंठु के बाद ग्राम खोला लोस्तु के स्वर्गीय दिलबरी डडवाल डल्या पुत्र स्वर्गीय रिणकी दण्डवाल डाल बंधन तंत्र मंत्र पूजा करते थे परंतु इनकी मृत्यु के बाद डाल्यो के द्वारा जो पूजा की जाती थी अब बंद कर दी गई है। रवि की खड़ी फसल को जो डाल बंधन पूजा की जाती थी बिनसर देवता के पश्वा उस फसल का नया अनाज 6 महीने तक ग्रहण नहीं करते थे नए अनाज के बदले पुराने अनाज दलचु (एक पाथा कोदा हर देव पुजारी के परिवार से इकट्ठा किया जाता था लेकिन अब यह पूजा स्थगित है।
पशु बलि प्रथा व उसका अंत
चिलेड़ी क्षेत्र के सभी देवी देवताओं के मंदिरों में पशु बलि दी जाती थी या पशु बलि भक्तों की मनोकामना फलीभूत होने पर दी जाती थी मां कालिका मंदिर में भैंसा ( बागी ) बकरे की बलि दी जाती थी शनै-शनै समाज में बलि प्रथा का विरोध होने लगा आखिर में सन 1983 में चिलेड़ी क्षेत्र के सभी सार्वजनिक मंदिरों में बलि प्रथा बंद हो गई और उसके एवज में भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होने पर अब मंदिरों में घंटा श्रीफल व चांदी के छत्र चढ़ाए जाते हैं।
बिनसर देवता के चमत्कार
जनश्रुतियों के अनुसार बिनसर देवता ने अपने चमत्कार समय-समय पर प्रकट किए हैं उनमें से देवता द्वारा कुछ दशक पूर्व किया गया चमत्कार स्थानीय स्तर पर काफी प्रचलित है घटना इस प्रकार है बिनसर देवता के चांदी का धागुला (कड़ा ) में कुछ चांदी पंचों द्वारा धागुला बड़ा करने के लिए श्री सरकार लोहार अब स्वर्गीय सुनार को दी सुनार ने धागुला और पंचों द्वारा दी गई चांदी को कोठयालू (चांदी पिलाने वाला) बर्तन  पर डाला कोठयालू टूटा हुआ था चांदी पिघलते समय कुछ चांदी आगेठी में गिर गई चांदी को रेचा (धागुले का सांचा) में डालकर धागुला तैयार किया गया अगले दिन धागुले को पश्वा पर लगाया जाना था किंतु उस रात देवी के पुजारी श्री फतेह सिंह पुंडीर पुत्र स्वर्गीय शिशु सिंह पुंडीर के स्वप्न में बिनसर देवता आए कि मेरे घागरे कि 9 तोला चांदी सुनार की अगेठी में रह गई है यह बात उन्होंने बिनसर देवता के पुजारी घनश्याम सिंह पुंडीर चिलेड़ी को बताई थी यही बात सुनार को बताने पर अगेती में ढूंढा गया तो चांदी मिली पर वह ठीक 9 तोला ही थी इस आश्चर्य आश्चर्यजनक दैविक चमत्कार को लोग आज भी यदा कदा वर्णन करते हैं।
विन्सर देवता प्राचीन मंदिर का नव निर्माण
बिनसर देवता के मंडोला (कच्चा मंदिर ) की स्थापना 18वीं सदी बताई जाती है जनवरी सन 1930 तदानुसार माघ विक्रमी संवत 1960 में मंडला तोड़कर पठाली वाला मंदिर तथा खोली द्वार का निर्माण कराया गया यह कार्य तत्कालीन बिनसर देवता के पश्वा श्री बलभद्र सिंह पुंडीर पुत्र श्री रूप सिंह पुंडीर ग्राम बड़ा पाव के समय में हुआ मंदिर बनाने वाले मिस्त्री श्री अशाडू लिंगवाल तथा पूरणु रावते थे तथा खोली के पत्थर तराशने का कार्य भी श्री जिताडू मिस्त्री चिलेड़ी के द्वारा किया गया 1952 में मंदिर की छवाई भी की गई यह कार्य बिनसर देवता के बसवा श्री बख्शी बागड़ी पुत्र भजनों बागड़ी ग्राम पाप के कार्यकाल में किया गया था सन 1994 में पठाली की जगह लेंटर डाला गया उस समय विन्सर के पश्वा श्री कुंदन सिंह पुंडीर पुत्र श्री मोहन सिंह पुंडीर ग्राम मंजूली के थे 23 मार्च 2015 को बिनसर देवता के मंदिर में पंचों द्वारा बिनसर देवता को आह्वान किया गया बिनसर देवता पश्वा पर अवतरित हुए उन्होंने पुराना मंदिर तोड़े तथा नए मंदिर बनाने की अनुमति मांगी बिनसर देवता ने खुशी से नए मंदिर बनाने की सहमति दी 24 दिसंबर 2016 को मंदिर की नींव भूमि पूजन श्री दिवाकर भट्ट जी पूर्व मंत्री के द्वारा किया गया संपूर्ण मंदिर बनाने का कार्य श्री महेंद्र प्रसाद गौड़ पुत्र स्वर्गीय नरसिंह प्रसाद गौड़ कुशीनगर उत्तर प्रदेश के द्वारा किया गया 3 जून 2017 को मंदिर का कार्य संपन्न हुआ यह मंदिर चिलेड़ी गांव के ऊपर किनारे उत्तर पूर्व दिशा में 3905 फीट की ऊंचाई पर केदारनाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है मंदिर की लंबाई 31 फीट चौड़ाई 13 फीट तथा गुंबद की ऊंचाई 36 फीट है मंदिर पर 3 दरवाजे हैं प्रवेश द्वार दक्षिण-पश्चिम से जो दरवाजे दक्षिण पूर्व और उत्तर पूर्व से हैं प्रवेश द्वार पर दो द्वार पाल विराजमान है भीतर मंदिर में दो खंड है भीतरी खंड में विन्सर देवता का सिंहासन है उस पर बिनसर देवता विराजमान है सिंहासन के बाएं और दाएं तरफ शिवजी पार्वती जी गणेश जी कार्तिकेय जी दुर्गा जी तथा काली मां की मूर्तियां लगाई गई है भारी ठंड में हवन कुंड है हवन कुंड के उत्तर दिशा में ब्रह्मा जी की चार मूर्ति पत्थर की मूर्ति विराजमान है बाहरी खंड की भीतों पर सुनहरे रंग के स्तंभों के ऊपर शिव जी पार्वती लक्ष्मी कार्तिकेय गणेश नागराजा हनुमान जी की पत्थर की मूर्तियां लगाई गई है मंदिर के बाएं परिक्रमा करने वाले स्थान पर देवी देवताओं के निशान रखने वाली जगह पर है यहां पर जात के समय देवताओ के निशाण (प्रतीक) रखे जाते है । मंदिर की पिछवाड़े नागराजा का मंडुला है विन्सर देवता के वर्तमान पश्वा श्री युद्धवीर सिंह पुंडीर पुत्र स्वर्गीय कुंदन सिंह पुंडीर जी के कार्यकाल में यह मंदिर बनाया गया ।। मंदिर का डिज़ाइन श्री उम्मेद सिंह पुण्डीर ग्राम मंजुली पुत्र स्व श्री पृथ्वी सिंह पुण्डीर द्वारा किया गया.
नया प्रवेश द्वार
नया प्रवेश द्वार बद्रीनाथ के तर्ज पर बनाया गया है जिसकी की चिनाई पत्थरों से की गई है पत्थर की चिनाई का काम श्री कुलबीर नेपाली तथा ज्ञान बहादुर चंद्र रापटी अचल मध्य नेपाल के द्वारा की गई प्रवेशद्वार की लंबाई 14 फीट है चौड़ाई 4 फीट तथा ऊंचाई 12 फीट है द्वार के ऊपर दाएं और बाएं दो पत्थर के बाघ विराजमान है द्वार के भीतर 151 किलो का पीतल का घाण्ड लगा हुआ है प्रवेश द्वार का कार्य 12 जनवरी 2017 को शुरू हुआ था 3 जून 2017 को पूर्ण हुआ

देव पूजन कमेटी 
कई दशक पूर्व देवता की पूजा एवं जात संबंधित कार्यों के संपादन के लिए एक कमेटी बनाई गई थी।  देव पूजन समिति में 18 कारबारी दायित्वधारी होते हैं राजशाही के समय जो स्थानीय शासन व्यवस्था होती थी उसी के अनुरूप के अनुसार देव पूजन कमेटी आज भी विद्यमान है इस व्यवस्था के अनुसार देवता पूजन समिति का मुख्य पद कमीण का होता है कमीण के निर्देश या नेतृत्व में सयाना लेखाकार कारदार पांच आदि होते हैं ये सभी लोग मिल जुल कर देव कार्य से संबंधित व्यवस्थाएं जैसे पूजा की फांटा पुत्रकर आदि का संपादन करते हैआज भी चिलेड़ी गांव में कमीण खोला बड़ा पाब को सयाणो का पाब के नाम से जाना जाता है देवता के पश्वा लिंग पुजारी पुण्डीर रावत बागड़ी भंडारी दुमागा जाति के लोग होते हैं, जबकि यहां के ब्राह्मण पुजारी मुश्मोला गांव के जोशी ब्राह्मण होते हैं।