*᯾ 卐 ᯾**श्री हरिहरौ**विजयतेतराम*
*सुप्रभातम**आज का पञ्चाङ्ग*
*_सोमवार, १६ दिसम्बर २०२४_*
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सूर्योदय: 🌄 ०:१०, सूर्यास्त: 🌅 ०५:२२
चन्द्रोदय: 🌝 १८:०८, चन्द्रास्त: 🌜०८:०८
अयन 🌖 दक्षिणायणे(दक्षिणगोलीय)
ऋतु: 🌳 हेमन्त
शक सम्वत: 👉 १९४६ (क्रोधी)
विक्रम सम्वत: 👉 २०८१(काल)
मास 👉 पौष, पक्ष 👉 कृष्ण
तिथि 👉 प्रतिपदा (१२:२७से द्वितीया)
नक्षत्र 👉 आर्द्रा (२५:१३ सेपुनर्वसु)
योग 👉शुक्ल(२३:२३ से ब्रह्म)
प्रथम करण👉कौलव(१२:२७तक
द्वितीय करण 👉 तैतिल(२३:३७ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 धनु, चंद्र 🌟 मिथुन
मंगल 🌟कर्क(उदित,पूर्व,वक्री)
बुध🌟वृश्चिक(उदित,पश्चिम,मार्गी)
गुरु 🌟 वृष
(उदित, पश्चिम, वक्री)
शुक्र 🌟 मकर (उदित, पूर्व, मार्गी)
शनि 🌟 कुम्भ (उदित, पूर्व, मार्गी)
राहु 🌟 मीन, केतु 🌟 कन्या
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार⏳⏲⏳⏲⏳⏲⏳
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:५२ से १२:३३
अमृत काल 👉 १५:४१ से १७:१३
विजय मुहूर्त 👉 १३:५५ से १४:३६
गोधूलि मुहूर्त 👉 १७:१६ से १७:४४
सायाह्न सन्ध्या 👉 १७:१९ से १८:४२
निशिता मुहूर्त 👉 २३:४५ से २४:४१
राहुकाल 👉 ०८:२३ से ०९:३९
राहुवास 👉 उत्तर-पश्चिम
यमगण्ड 👉 १०:५६ से १२:१३
दुर्मुहूर्त 👉 १२:३३ से १३:१४
होमाहुति 👉 चन्द्र (२५:१३ से मंगल)
दिशाशूल 👉 पूर्व
अग्निवास 👉 पृथ्वी
चन्द्र वास 👉 पश्चिम
शिववास 👉 गौरी के साथ (१२:२७ से सभा में)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – अमृत २ – काल, ३ – शुभ ४ – रोग
५ – उद्वेग ६ – चर, ७ – लाभ ८ – अमृत
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – चर २ – रोग, ३ – काल ४ – लाभ
५ – उद्वेग ६ – शुभ, ७ – अमृत ८ – चर
नोट👉 दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा🚌🚈🚗⛵🛫
पश्चिम-दक्षिण (दर्पण देखकर अथवा खीर का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष〰️〰️〰️〰️
रसिक माधुरी जयन्ती, पौष कृष्ण पक्ष आरम्भ आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज २५:१३ तक जन्मे शिशुओ का नाम
आर्द्रा नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (कु, घ, ड़, छ) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम पूनर्वसु नक्षत्र के प्रथम चरण अनुसार क्रमशः (के) नामाक्षर से रखना शास्त्र सम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
वृश्चिक – २८:४९ से ०७:०८
धनु – ०७:०८ से ०९:११
मकर – ०९:११ से १०:५३
कुम्भ – १०:५३ से १२:१८
मीन – १२:१८ से १३:४२
मेष – १३:४२ से १५:१६
वृषभ – १५:१६ से १७:१०
मिथुन – १७:१० से १९:२५
कर्क – १९:२५ से २१:४७
सिंह – २१:४७ से २४:०६+
कन्या – २४:०६+ से २६:२४+
तुला – २६:२४+ से २८:४५+
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पञ्चक रहित मुहूर्त
शुभ मुहूर्त – ०७:०६ से ०७:०८
चोर पञ्चक – ०७:०८ से ०९:११
शुभ मुहूर्त – ०९:११ से १०:५३
रोग पञ्चक – १०:५३ से १२:१८
शुभ मुहूर्त – १२:१८ से १२:२७
मृत्यु पञ्चक – १२:२७ से १३:४२
रोग पञ्चक – १३:४२ से १५:१६
शुभ मुहूर्त – १५:१६ से १७:१०
मृत्यु पञ्चक – १७:१० से १९:२५
अग्नि पञ्चक – १९:२५ से २१:४७
शुभ मुहूर्त – २१:४७ से २४:०६+
रज पञ्चक – २४:०६+ से २५:१३+
शुभ मुहूर्त – २५:१३+ से २६:२४+
चोर पञ्चक – २६:२४+ से २८:४५+
शुभ मुहूर्त – २८:४५+ से ३१:०७+
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज आपका व्यवहार अनाड़ियों जैसा रहेगा बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देंगे जिससे लोगो मे आपकी छवि खराब हो सकती है। घर मे भी महत्त्वपूर्ण कार्यो को अनदेखा कर बेतुकी बातो पर बहस के लिये तैयार रहेंगे। कार्य व्यवसाय में कुछ लाभ के अनुबंध हाथ लगेंगे। आज आपको हानि होते होते किसी अनुभवी का मार्गदर्शन बचा लेगा लेकिन अभिमानी स्वभाव रहने के कारण फिर भी कृतज्ञ नही रहेंगे। धन की आमद किसी ना किसी रूप में अवश्य होगी परन्तु खर्च की तुलना में ना काफी रहेगी। गृहस्थी में शांति बनाए रखने के लिये पूर्व में किये वादों पर कायम रहें टालमटोल करना भारी पड़ेगा। संध्या बाद अकस्मात स्वास्थ्य संबंधित समस्या पनपेगी।
वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आपके लिये आज की दिनचार्य थोड़ी सुस्त रहेगी लेकिन फिर भी शान्तिप्रद रहेगा। आरंभिक भाग में प्रत्येक कार्य मे आलस्य करेंगे घरेलू कार्यो की टालमटोल से परिजनों को परेशानी होगी बहस भी हो सकती है। काम-धंधे को लेकर आज ज्यादा झंझट में पड़ना पसंद नही करेंगे नौकरी वाले लोग भी आज का दिन शांति से बिताना पसंद करेंगे लेकिन कुछ ना कुछ काम आने से कामना पूर्ति नही हो सकेगी। आज आपको धन की अपेक्षा सम्मान लाभ अधिक मिलेगा। सार्वजनिक कार्यो में रुचि बढ़ेगी। मित्र परिचितों के साथ धार्मिक क्षेत्र की यात्रा होगी। सेहत में संध्या बाद नरमी आने लगेगी सतर्क रहें।
मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज के दिन आपका लक्ष्य घर मे सुख के साधनों की वृद्वि करना रहेगा इसमे काफी हद तक सफल भी रहेंगे व्यवसायी वर्ग खर्च करने से पीछे नही हटेंगे आर्थिक स्थिति ठीक रहने और परिजनों के सुख को देखते हुए अखरेगा भी नही। कार्य व्यवसाय में आकस्मिक उछाल आने से व्यस्तता बढ़ेगी पूर्वनियोजित कार्य मे फेरबदल करना पड़ेगा। नौकरी वाले जातको से मितव्ययी व्यवहार के कारण परिजन नाराज हो सकते है। मध्यान के बाद काम से ऊबन होने लगेगी लेकिन आज अतिरिक्त परिश्रम करते है तो कल इसका आश्चर्जनक लाभ देखने को मिलेगा। परिवार में आनंद का वातावरण रहेगा छोटी बातों को अनदेखा करें। सेहत ठीक रहेगी।
कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज के दिन आप काम की बातों को छोड़ अनर्गल विषयो में भटकेंगे। दिन के पूर्वार्ध से मध्यान तक आलस्य अधिक रहेगा घरेलू कार्य के साथ पूर्वनियोजित कार्य एक साथ सर पर आने से असुविधा होगी। जबरदस्ती करने पर ही कार्य करने के लिए तैयार होंगे लेकिन एकबार आरम्भ करने के बाद पूर्ण करके ही छोड़ेंगे। परिजन आपके हित के लिये कड़ा व्यवहार करेंगे लेकिन अंदर से हमदर्दी भी रखेंगे। मध्यान के आस-पास किसी से गरमा गरमी हो सकती है यहाँ धैर्य और विवेक का परिचय दें अन्यथा मन की इच्छा मन मे ही रह जायेगी। संध्या का समय अपेक्षाकृत शांत रहेगा धार्मिक कार्यो के साथ मनोरंजन के अवसर भी मिलेंगे। स्वास्थ्य स्वयं की गलती से खराब हो सकता है।
सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज का दिन लाभदायक होते हुए भी इसका उचित लाभ नही उठा सकेंगे। पूर्व में बनाई योजना के कारण कार्य व्यवसाय की और ज्यादा ध्यान नही दे सकेंगे कार्य क्षेत्र पर आज सहकर्मियों की कमी भी लाभ को सीमित करने का कारण बनेगी फिर भी काम चलाऊ धन किसी ना किसी प्रकार मिल ही जायेगा। मित्र रिश्तेदारी के साथ आज धार्मिक कार्यो के खर्च भी अतिरिक्त करने पड़ेंगे। व्यवहारिकता स्वभाव में दिखावा मात्र ही रहेगी स्वार्थ साधने के लिये मीठा व्यवहार करेंगे अन्यथा किसी से बात करना भी पसंद नही होगा। आवश्यक कार्य संध्या से पहले पूर्ण कर लें इसके बाद व्यर्थ की गतिविधियों में फंसने के कारण अधूरे रह सकते है। सेहत सामान्य रहेगी।
कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज आपको कुछ अतिरिक्त कार्य सौपे जाएंगे लापरवाह एवं आलसी स्वभाव के चलते आरम्भ में ये झंझट लगेंगे लेकिन कुछ समय बीतने पर इनमे ही मग्न हो जाएंगे कार्य व्यवसाय में मध्यान तक ही रुचि लेंगे इसके बाद का समय एकांत में बिताना पसंद करेंगे। आज आप एकबार लिए निर्णय से पीछे नही हटेंगे चाहे हानि ही क्यो ना हो घर मे मांगलिक आयोजन होंगे वातावरण आत्मबल देने वाला रहेगा। दिन का कुछ समय पूर्व में किये कार्यो की समीक्षा में बीतेगा इससे संतोष की प्राप्ति होगीं। संध्या बाद मन काल्पनिक दुनिया मे खोया रहेगा। परिवार के सदस्य अपनी अनदेखी से उदास रहेंगे। सेहत कुछ समय के लिये नरम बनेगी।
तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज का दिन आपको धर्म कर्म पूजा पाठ में सम्मिलित होने के सुअवसर प्रदान करेगा। आध्यत्मिक भावना भी बढ़ी रहने से पुण्य और परोपकार के कार्य में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेंगे लेकिन आज घरेलू एवं व्यावसायिक कार्यो में ढील देने के कारण गृहस्थ में कलह के साथ ही व्यवसाय से उचित लाभ नही उठा पाएंगे। सहकर्मियों का सहयोग भी आज ना के बराबर रहेगा अधिकांश कार्य स्वयं के बल पर ही करने पड़ेंगे। घर के किसी सदस्य की जिद कुछ समय के लिये परेशानी में डालेगी पूरी होने पर ही वातावरण सामान्य बन सकेगा। सेहत को लेकर आशंकित रहेंगे।
वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज परिस्थिति प्रतिकूल रहेगी जल्दी से की कार्य को करने का मन नही करेगा इस कार्य को करेंगे उसमे कोई स्वयंजन ही टांग अडायेगा। शारीरिक रूप से भी कुछ ना कुछ कमजोरी बनी रहेगी महिलाये विशेष ध्यान रखें कमजोरी के कारण हाथ पैर में शिथिलता रहेगी। कार्य व्यवसाय में हानि के डर से आज महत्त्वपूर्ण फ़ैसले लेने से डरेंगे। ज्यादा सोच विचारने के चक्कर मे लाभ के सौदे हाथ से निकल सकते है। धन लाभ आज ले देकर हो ही जायेगा परन्तु पर्याप्त नही होगा। हित शत्रुओं से सावधान रहें पीठ पीछे अहित कर सकते है। परिजनों की सांत्वना मिलने से राहत अनुभव होगी।
धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज के दिन आप पूर्व नियोजित योजनाओं को ध्यान में रखते हुए व्यवस्थित रूप से कार्य करेंगे परन्तु फिर भी कोई काम अचनाक आने से असुविधा होगी कार्यक्रम में फेरबदल भी करना पड़ेगा। धर का वातावरण आशा से अधिक शांत मिलेगा सभी सदस्य अपने अपने काम मे मस्त रहेंगे लेकिन किसी काम की बोलने पर विपरीत व्यवहार भी कर सकते है। काम-धंधा आज पहले से कुछ मंदा रहेगा धन लाभ के एक दो प्रसंग ही बनेंगे लेकिन खर्च के हिसाब से पर्याप्त नही होंगे। आज आपका मन अनैतिक कार्यो में शीघ्र आकर्षित होगा बचकर रहें वरना बैठे बिठाये नई मुसीबत खड़ी होगी। स्वास्थ्य में पहके से राहत लेकिन पूर्ण ठीक नही रहेगा।
मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज का दिन आपके लिये थोड़ा उठापटक वाला रहेगा। आज आप बाहर के लोगो को आचरण में रहने का उपदेश देंगे लेकिन घर मे स्वयं के ऊपर लागू नही करेंगे। परिजन आपसे किसी ना किसी बात को लेकर विरोधाभास रखेंगे। आज आप अपने निर्णय पर ज्याददेर नही टिकेंगे इससे आस-पास के लोगो को खासी परेशानी होगी। कार्य क्षेत्र पर भी सहकर्मी अथवा अधीनस्थों पर नाजायज रौब दिखाना अपमानित कराएगा। धन लाभ के लिये किसी की चाटुकारिता करनी पड़ेगी जो आपको पसंद ना होने पर सीमित साधनों से निर्वाह करना पड़ेगा। खर्च आय की तुलना में अधिक रहने से आर्थिक संतुलन गड़बड़ायेगा। परिजनों की नाराजगी शांति से बैठने नही देगी।
कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज के दिन आप पिछले कुछ दिनों से बेहतर अनुभव करेंगे लेकिन आज धन को लेकर कुछ ना कुछ समस्या बनी रहेगी। स्वयं की तुलना अन्य लोगों से करने पर मन हीन भावना से ग्रस्त रहेगा। आज आप मेहनत करने के पक्ष में बिलकुल नही रहेंगे बैठे बिताये लाभ पाने के चक्कर मे छोटे मोटे लाभ से भी वंचित रहना पड़ेगा। कार्य क्षेत्र पर धन लाभ की संभावनाए बनेंगी लेकिन अंत समय मे निराश ही होना पड़ेगा। लोग मतलब से व्यवहार रखेंगे काम निकलने के बाद भूल जाएंगे। गृहस्थ में भी धन संबंधित अभाव अनुभव होगा मन की इच्छाएं आज कम रखें अन्यथा दुख होगा। स्वास्थ्य में सुधार आएगा फिर भी आलस करेंगे। घर मे मंगल कार्य होंगे।
मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज का दिन विपरीत फलदायी बना रहेगा। दिन के आरम्भ में ही घर का मंगलमय वातावरण आपकी लापरवाहि अथवा उद्दंड व्यवहार के कारण अशान्त बनेगा। बात बात पर गर्मी दिखाकर मुख्य समस्या से बचने का प्रयास करेंगे। परिजनों से तालमेल बिठाना आज नामुमकिन ही रहेगा। कार्य क्षेत्र पर भी स्वयं गलती करेंगे और दोषी अन्य को ठहराएंगे सहकर्मियों अथवा देनदारों से धन को लेकर विवाद गहरा सकता है। मित्र मंडली में भी आपका रुखा व्यवहार रंग में भंग डालेगा। विवेक से काम लें आर्थिक लाभ के अवसर हाथ आते आते निकल सकते है। आवश्यक कार्यो को छोड़ व्यसन अथवा अन्य व्यर्थ के कार्यो पर खर्च करेंगे। धर्म के प्रति आस्था अन्य दिनों से कम रहेगी।
. अधिक_मास_एवं_क्षय_मास_क्या_है :
अधिक मास एवं क्षय मास की गणना :
प्रश्न : अधिक मास एवं क्षय मास की गणना कैसे होती है ? यह कब-कब आते हैं और इसमें कौन से कर्म त्याज्य होते हैं और कौन से कर्म किए जा सकते हैं ? मास, माह, महीना क्या है ?
. चन्द्र, सौर, सावन, नाक्षत्र यह 4 प्रकार के मास होते हैं ! वैसे 9 प्रकार के मासों व वर्ष का वर्णन प्रायः ज्योतिष के सिद्धांत ग्रंथों में मिलता है !
“चतुर्भिर्व्यवहारोऽत्र” सूर्य सिद्धांत वचन के आधार पर चांद्र, सौर, सावन और नाक्षत्र मास का व्यवहार होता है ! एक राशि का जब सूर्य भोग कर लेता है, तब एक सौर मास होता है, अर्थात सूर्य की संक्रांति के बाद के संक्रमण के पूर्व संचरण समय तक सूर्य का मास सौर मास कहलाता है !
“इसी प्रकार दो अमावस्याओं के मध्य का काल, अर्थात शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या की समाप्ति काल तक एक चांद्र मास होता है, अर्थात 30 तिथियों के भोग काल को चांद्र मास कहते हैं !”
. “एक नक्षत्र में चंद्रमा के योग की आवृत्ति से जब 27 नक्षत्रों का भोग चंद्रमा कर लेता है, तब चांद्र मास होता है ! अर्थात अश्वनी के प्रारम्भ से रेवती के अन्त तक चन्द्रमा के विचरण काल को नाक्षत्र मास कहते हैं !
. “एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के पूर्व तक के समय को सावन दिन कहते हैं ! इस प्रकार 30 सूर्य उदयों का सावन मास होता है !
चांद्र_मास —
“चैत्रादिसंज्ञाश्चांद्राणां मासानां संप्रकीर्तिताः !
श्रौतस्मार्तक्रियाः सर्वाः कुर्याश्चांद्रमसर्तषु !!
चांद्रस्तु द्विविधो मासो दर्शातः पौर्णीमंतिमः !
देवार्थे पौर्णमास्यंतो दर्शातः पितृकर्मणि !!”
एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा तक, या फिर एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक चांद्र मास होता है ! एक वर्ष में 12 चांद्र मास होते हैं ! उनके नाम इस प्रकार हैं —
1. चैत्र, 2. वैशाख, 3. ज्येष्ठ, 4. आषाढ़, 5. श्रावण, 6. भाद्रपद, 7. आश्विन, 8. कार्तिक, 9. मार्गशीर्ष, 10. पौष, 11. माघ और 12. फाल्गुन !
. “चांद्र मास 29 दिवस, 31 घटिका और 50.124 पलों का अर्थात 30 तिथियों का होता है ! इस हिसाब से एक चांद्र वर्ष से 30×12=360 तिथियां होती हैं !
सौर_मास —
” मेषादि सौरमासांस्ते भवंति रविसंक्रमात् !
मधुश्च माध्वश्चैव शुक्र शुचिरथो नभः !!
नभस्यश्चेष उर्जश्च सहश्चाथ सहस्यकः !
तपस्तपस्यः क्रमतः सौरमासाः प्रकीर्तिता !!
. रवि मेषादि 12 राशियों से होकर भ्रमण करता है ! इन राशियों में जिस मास रवि की संक्रान्ति होती हैं उसी को सौर मास कहते हैं ! एक वर्ष में 12 सौर मास होते हैं ! उनके नाम इस प्रकार हैं —
1. मधु, 2. माधव, 3. शुक्र, 4. शुचि,5. नभ, 6. नभस्य, 7. ईष, 8. ऊर्ज, 9. सह, 10. सहस्य, 11. तप, 12. तपस्या !
. एक सौर वर्ष 365 दिन, 15 घटिका और 23 पलों का होता है ! एक सौर वर्ष में कुल 371 तिथियां होती हैं ! इस प्रकार चांद्र वर्ष और सौर वर्ष में हर वर्ष 11 तिथियों का अंतर हो जाता है ! यह अंतर जब 30 तिथियों तक पहुंच जाए, तब एक चांद्र मास अधिक हो जाता है, अर्थात उस साल 13 चांद्र मास हो जाते हैं !
मलमास_अधिकमास :—
“असंक्रांतिरमांतो यो मासश्चेत्सो अधिमासकः!
मलमासाहृयो श्रेयः प्रायश्चैदिसप्तसु !!
द्वांत्रिशर्गितैर्मासैर्दिनैः षोडशभिस्तथा !
धटिकानां चतुष्कोण पतत्याधिकमासकः !!
. चांद्र मास और सौर मास दोनो का मेल बनाये रखने के लिए जिस किसी अमांत मास में रवि संक्रान्ति नहीं पड़ती, उस मास को अधिक मास या मलमास माना जाता है ! चैत्र से आश्विन तक जो 7 मास होते हैं, उन्हीं में से कोई मास अधिक मास का होता है ! कभी-कभी फाल्गुन भी अधिक मास हो सकता है ! लेकिन पौष और माघ कभी अधिक मास नहीं हो सकते हैं !
लगभग 32 मास और 16 दिन की कालावधि के बाद, अर्थात हर तीसरे साल अधिक मास पड़ता है ! एक बार आया हुआ अधिक मास 19 साल के बाद फिर से आता है !
मलमास_ज्ञात_करने_की_विधि :
शालिवाहन शक को 12 से गुणा कर गुणनफल को 19 से भाग दिया जाता है ! जो संख्या शेष बचे वह यदि 9 या 9 से कम हो, तब उस साल मलमास पड़ता है ! इसी प्रकार से कौन सा मास मलमास होगा, यह पता लगाने के लिए यह देखना चाहिए कि शेष बची हुई संख्या 5 या 5 से अधिक है या नहीं ! यदि हो, तब उस संख्या में से एक घटा दिया जाता है ! जो संख्या बचती है उसे चैत्र से गिन कर अधिक मास का पता लगाया जाता है ! यह नियम स्थूल है ! सूक्ष्म गणित करने के बाद ही पूर्णरूप से सही निर्णय लिया जा सकता है !
क्षय_मास —
द्विसंक्रान्तिः क्षयाख्यःस्यात् कदाचित् कार्तिकत्रये!
युग्माख्ये स तु तत्राब्दे ह्यधिमासद्वयं भवेत !!
जिस किसी अमांत मास में 2 रवि संक्रान्तियां होती हैं उस मास को क्षय मास कहते हैं ! परन्तु कार्तिक, मार्गशीर्ष और पौष मास में से ही कोई मास क्षय मास हो सकता है ! इन तीनों मासों में रवि की गति तेज होती है !
. वृश्चिक, धनु और मकर राशियों को पार करने में रवि को चांद्र मास से भी कम समय लगता है ! ऐसी स्थिति में एक चांद्र मास में 2 रवि संक्रान्तियां हो सकती हैं ! इसलिए वहां क्षय मास होता है ! क्षय मास से पहले और बाद में एक एक मल-मास अवश्य पड़ता है !
. क्षय मास 141 साल के अंतराल पर आता है, किंतु कभी कभी 19 साल के बाद भी आ सकता है ! हिंदू मासों के नामकरण पूर्णिमा के चांद्र नक्षत्र के आधार पर सम्बंधित चांद्र मास का नामकरण किया गया है ! जैसे जिस मास की पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र आता है, उसका नाम चैत्र पड़ जाता है ! इसी प्रकार विशाखा से बैशाख तथा ज्येष्ठा से जेठ आदि…!
सौर_मास_की_प्रवृत्ति —
सूर्य जिस समय किसी राशि में प्रवेश करता है, उस समय से सूर्य मास प्रारम्भ होता है, और जिस अमांत चांद्र मास में संक्रान्ति होती है, उसी चांद्र मास के आधार पर सम्बंधित संक्रान्तिजन्य सौर मास का नामकरण होता है ! अतः मेष संक्रान्तिजन्य सौर मास का नाम वैशाख हुआ ! इसी प्रकार वृष का ज्येष्ठ (जेठ), मिथुन का आषाढ़, कर्क का श्रावण, सिंह का भाद्रपद, कन्या का आश्विन (क्वार) तुला का कार्तिक, वृश्चिक का मार्गशीर्ष (अगहन), धनु का पौष, मकर का माघ, कुंभ का फाल्गुन और मीन का चैत्र हुआ !
ज्योतिष में नक्षत्र सौर वर्ष का प्रारम्भ मेष की संक्रान्ति से तथा क्रांति पातिक सौर वर्ष का बासंत क्रांतिपात (21 मार्च) से होता है ! इसी प्रकार चांद्र वर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है ! सूर्य की स्पष्ट कहें अथवा पृथ्वी की गति की विचित्रता के कारण ऐसा सम्भव हो जाता है ! सूर्य कभी एक राशि पार करने में 29 दिनों से थोड़ा अधिक समय लेता है, कभी यह सीमा 31 दिनों से भी अधिक हो जाती है ! धनु के आधे भाग पर रहते समय सूर्य की गति तीव्रतम अर्थात 61′:10’’ विकला प्रति दिन रहती है ! धीरे-धीरे घटते हुए यही गति मिथुन के मध्य में न्यूनतम 57′:12’’ विकला हो जाती है ! अधिकतम गति से सूर्य एक राशि को 29:22 सावन दिनों में ही पार कर लेता है, जबकि चांद्रमास का मध्यमान 29:53 दिन है ! वास्तव में ग्रह तीव्रतम गति के समय अपनी कक्षा में पृथ्वी के निकटतम बिंदु (सर्वोच्च) पर होता है ! और न्यूनतम गति के समय मंदोच्च पर, (चवहमम) पृथ्वी से अपनी कक्षा के दूरतम बिंदु पर होता है ! सूर्य की बारह संक्रान्तियां प्रायः 29.25 दिन से लेकर 31.5 दिनो की होती हैं, जबकि चांद्र मास 29:53 माध्य सावन दिन का होता है ! अधिक व क्षय मासों की गणना सदैव स्पष्ट अर्थात सही मानों से की जाती है ! अतः अधिक मास तो क्रमशः 32.5 चांद्र मासों के बाद आता रहता है, लेकिन क्षय मास कभी कभी ही आता है ! सूर्य की गति वृश्चिक, धनु व मकर राशियों में क्रमशः तीव्रतर से तीव्रतम होने के कारण क्षय मास जब भी होगा इनसे सम्बंधित मासों में अर्थात कार्तिक, मार्गशीर्ष या पौष में ही होगा !
कब-कब आते हैं मल (अधि) मास एवं क्षय मास
. वास्तविक अधिक मास का निश्चय मूलतः दिनों या सूर्य के अंशों को ही गिनकर किया जाता है ! कुछ ग्रंथों में एक सरल विधि दी गई है, जिसके आधार पर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन से वर्ष में, किस मास में अधिक मास पड़ने की सम्भावना है ! इसके लिए माघी अमावस्या व अंग्रेजी (सायन) तारीख देखी जाती है ! यदि अमावस्या 14 से 24 तारीख के बीच पड़ती है, तब अगले वर्ष में अधिक मास होता है ! जैसे संवत 2076 में माघी अमावस्या 24 जनवरी को पड़ी, अतः वर्ष संवत 2077 में अधिक मास पड़ा !
. किस मास को अधिक मास माना जाएगा इसका भी विद्वानों ने निर्धारण कर दिया है ! जब कभी कृष्ण पक्ष की पंचमी को सूर्य राशि बदलता है, उसके अगले वर्ष में जिस मास में सूर्य पंचमी (कृष्ण पक्ष की) बदले उसके पहले का मास अधिक मास होगा !
. उदाहरणस्वरूप दिनांक 15 जून 2006, विक्रम संवत 2063, आषाढ़ चतुर्थी को 9:45 पर सूर्य मिथुन राशि में प्रविष्ट हुआ था ! अतः सन् 2007, विक्रम संवत 2064 में ज्येष्ठ मास अधिक मास पड़ा था !
अधिमास नाक्षात्रिक सौर वर्ष का मान दिनादि और चांद्र वर्ष का मान दिनादि 365, 22:1:24 होता है ! अतः चांद्र वर्ष की वार्षिक कमी इन दोनों का अंतर दिनादि 10, 53:30:6 या 11 दिन है ! अब त्रैराशिक क्रिया करने पर कि 1 वर्ष में तो इतने दिनादि की कमी आई तो कितने वर्षों में पूरे 1 चांद्र मास की अर्थात दिनादि 29:31:50:7 की कमी आएगी, इस प्रकार वर्षादि 2वर्ष 8मास 16दिन, 4घण्टे के अंतराल में एक अधि मास पड़ेगा ! यह गणना मध्यम मान के अनुसार है ! स्पष्ट मान से उक्त काल में कुछ कमी-वेशी भी हो सकती है ! अब उन परिस्थितियों का अवलोकन करें, जिसके कारण अधिमास होता है, सौर मासों में कुछ मास चांद्र मास से बड़े और कुछ चांद्र मास से छोटे भी होते हैं ! जो सौर मास चांद्र मास से बड़े होते हैं, उनमें कभी-कभी 2 अमावस्यांत पड़ जाते हैं ! एक सौर मास के आरम्भ के साथ-साथ या उनके कुछ ही काल पीछे और दूसरा उस सौर मास की समाप्ति के पूर्व, अर्थात पहले अमावस्यांत तक पहली संक्रान्ति नहीं होती है ! इस दशा में एक ओर चांद्र मास जोड़ा जाता है, जो अधिमास कहलाता है, तथा उसका भी नाम पहली अमावस्या वाले चांद्र मास के समान ही रखा जाता है ! कहने का तात्पर्य यह है कि एक नाम के 2 चांद्र मास होते हैं ! अधिमास हमेशा चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद अथवा आश्विन इन 7 माहों में से ही किसी मास में हुआ करते हैं ! जैसे विक्रम संवत 1991 में सौर वैशाख (मेष) मास में 2 अमावस्यांत पड़े, एक उसके प्रारम्भ के कुछ घटियों के पश्चात और दूसरा उसकी समाप्ति के एक दिन पूर्व, अर्थात पहली अमावस्या तक तो पहली (मेष) की संक्रांति हो गई, किंतु दूसरी अमावस्या तक दूसरी वृष संक्रान्ति नहीं पड़ी ! अतः एक और चांद्र मास आया, जो अधिमास कहलाया तथा उसका नाम पहली अमावस्या वाले चांद्र मास के समान ही वैशाख मास पड़ा !
अधिमास_मलमास_जानने_की_विधि :
किस वर्ष में अधिमास होगा, यह जानने के लिए मकरंद ग्रंथ में यह विधियां दी गई हैं :—
शाकषडरसभूपकैर्विरहितो नंदेंदुभिर्विभाजितः!
शेषेsग्नौ च मधुः शिवे तदपरो ज्येष्ठेम्बरे !!
चाष्टके आषाढ़ो नृपतेर्नभश्च शरकै विश्वे
नभस्यस्तया बाहूः !
चाश्निसंज्ञको मुनिवरै प्रोक्तोsधिमासः क्रमात् !!
शाक षडरसभूपकैः (1666) र्विरहितो नंदेंदु (19) भिर्विर्भाजितः शेषेऽग्नौ (3) च मधुः शिवे (11) तदपरो ज्येष्ठेऽम्बरे (10) चाष्टके (8) आषाढ़ो नृपतेर्नभश्च (16) शरकै (5) विश्वे (13) नभस्यस्तया बाहू (2) चाश्निसंज्ञको मुनिवरै प्रोक्तोऽधिमासः क्रमात् !
अर्थात – शक संख्या में से 1666 घटा कर 19 से भाग देने पर यदि 3 शेष हो, तब चैत्र, 11 शेष पर वैशाख, 10 शेष से जेष्ठ, 8 शेष पर आषाढ़, 16 शेष सावन, 13 व 5 शेष होने पर भाद्रपद और 2 शेष होने पर आश्विन मास होता है !
एक विधि यह भी बताई गई है :—
अष्टाविश्वनंदैर्वियुत च(928), शाकेनवेंदु (19) विभाजितः !
शेषभङ्कम् , खं (0), रुद्र (11), अष्टा(8), विषु(5), विश्व(13), युग्म(2), चैत्रादि सप्त सदाधिमासः !!
अर्थात — शक संख्या में 928 घटा कर शेष में 19 का भाग देने पर यदि शेष 9 हो, तब चैत्र, 0 होने पर वैशाख, 11 पर जेठ, 8 होने पर आषाढ़, 5 पर सावन, 13 होने पर भाद्रपद, 2 बचने पर आश्विन, यह 7 मास मल मास के हो सकते हैं !
एक मत यह भी है —
“शाशिमुनिविधुवह्निर्मिश्रिता (3171),
शककाले, द्विगुणमनु (1432) विहाना नवेदुंचदैं (19) विभक्तः !
यदि भवति शेषः सध्रुवोऽङकों विलोक्य गण कमुनिर्भिरुक्तं चात्र चैत्रादिमासः !!
यदा षोडशकेशेषे मासं च द्वितीयकम् !
आषाढ़ मासकं कार्य ब्रह्मसिद्धांतभाषितम् !!
अर्थात —शक संख्या में 3171 जोड़कर फिर 1432 घटाकर, 19 का भाग देने पर यदि शेष संख्या 16 हो तो उसे देखकर अधिक मास आषाढ़ का आदेश करना चाहिए ! यहां ब्रह्म सिद्धांत के मत से 16 शेष में आषाढ़ मास ग्रहण करना चाहिए !
एक अन्य विधि यह भी है :—
मेघोभू (1517) हीनशकोड्कऽचंद्ररैः, (19) शेषोऽधिमासा मधुतश्च यप्त !
रामो (3), महेशौ (11), वसुः (8), खं (0), षोडशो(16), नृपोडर्थो (5), विश्वे (13),
भुजः (2), कात्रिकंपंचनष्टा !!
शक संख्या में 1517 को घटाकर 19 से भाग देने पर 3 शेष बचने पर चैत्र, 19 में वैशाख, 8 में जेठ, 10 में आषाढ़, 16 में सावन, 13 व 5 में भादो, 2 बचने पर आश्विन मास अधिक मास होते हैं ! कार्तिक मास से अगले 5 मास अधि मास नहीं होते हैं !
यहां संवत् 2061 से आगे के अधिमास दिए जा रहे हैं :—
संवत् अधिमास संवत् अधिमास
2061 श्रावण 2064 ज्येष्ठ
2067 वैशाख 2069 भाद्रपद
2072 आषाढ़ 2075 ज्येष्ठ 2077 आश्विन 2080 श्रावण
2083 ज्येष्ठ 2085 कार्तिक
2086 चैत्र 2088 भाद्रपद
2091 आषाढ़ 2094 ज्येष्ठ
2096 आश्विन 2099 भाद्रपद
2102 ज्येष्ठ 2104 फाल्गुन
2107 श्रावण 2110 आषाढ़
2113 वैशाख 2115 भाद्रपद
2118 आषाढ़ 2121 ज्येष्ठ
2123 श्रावण 2126 श्रावण
2129 आषाढ़ !
. वैशाख से अगले 5 मास अधिक मास 8 या 11 या 19 वर्ष बाद होते हैं ! इसी प्रकार फाल्गुन, चैत्र, आश्विन और कार्तिक मास भी अधिक मास 141 वर्ष या 65 वर्ष या 19 वर्ष बाद में हो सकता है !
अधिक_मास_की_गणना —
अभीष्ट विक्रम संवत् में 24 जोड़ें तथा 160 का भाग दें !
1. यदि 49, 68, 87, 106, 125 या 30 शेष बचे तो चैत्र !
2. 76, 95, 114, 133, 152, 11 शेष बचे तब वैशाख !
3. 46, 57, 65, 84, 103, 122, 141, 149, 0, 8, 19, 27, 38, शेष रहने पर ज्येष्ठ !
4. 54, 73, 92, 111, 130, 157, 16, 35 शेष रहने पर आषाढ़ !
5. 46, 62, 70, 81, 82, 89, 100, 108, 119, 127, 138, 146, 5, 24 शेष बचने पर श्रावण !
6. 51, 13, 32 शेष बचने पर भाद्रपद !
7. 40, 59, 78, 97, 166, 135, 143, 145, 2, 21 शेष बचने पर आश्विन मास का अधिमास जानना चाहिए ! यदि इन अंकों के अतिरिक्त कोई अंक शेष बचता है तब उस वर्ष अधिक मास नहीं होता है !
उदाहरण :—
1 – वर्ष 2023 में 18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा अधिकमास !
. वर्ष 2023, विक्रम संवत 2080 में मलमास के कारण 19 वर्ष बाद इस वर्ष मलमास श्रावण मास में पड़ेगा, फलस्वरूप श्रावण मास 2 महीने का होगा !
इसकी गणना इस प्रकार करते हैं –
संवत 2080 में 24 जोड़ने पर 2104 आया इसे 160 से भाग देने पर 13 लब्धि व 24 शेष आया उपरोक्त सूची में क्रमांक (5) के आगे 24 श्रावण मास के लिए अंकित है ! अतः संवत 2080 में श्रावण मास में अधिक मास पड़ेगा, यह अधिकमास 18 जुलाई से आरम्भ होकर 16 अगस्त 2023 तक रहेगा ! मलमास के महीने को भगवान विष्णु की भक्ति का मास माना जाता है !
भगवान_विष्णु_व_भोलेनाथ_की_बरसेगी_कृपा :
कहा जाता है कि ऐसे महीने में तीर्थ यात्रा, दानपुण्य और विष्णु के मंत्रों का जाप करने से मलमास के अशुभ फल खत्म हो जाते हैं और परिवार को शुभ फलों की प्राप्ति होती है ! चूंकि अगले साल श्रावण मास के दौरान अधिकमास पड़ रहा है, इसलिए उस दौरान पूजा-अर्चना करने से भगवान हरि के साथ ही भोलेनाथ की भी जमकर कृपा बरसेगी !
2 – इसके पहले विक्रम संवत 2077 में अधिक मास पड़ा था इसकी गणना करने हेतु — 2077 में 24 जोड़ने पर 2101 आया इसे 160 से भाग देने पर 13 लब्धि और 21 शेष बचा, उपरोक्त सूची में 21 अश्विन (क्वार) मास के लिए बताया गया है अतः विक्रम संवत 2077 के वर्ष अश्विन मास में अधिमास होगा !
3 – विक्रम संवत् 2061 में श्रावण अधिक मास था ! उक्त सिद्धांत पर जायें, तब 2061 + 24 = 2085 को 160 से भाग देने पर—13 लब्धि तथा 5 शेष बचता है ! पूर्वोक्त पद्धति में 5 शेष रहने पर श्रावण मास का ही अधिक मास दर्शाया भी गया है !
क्षय_मास :
सिद्धांतानुसार जिस चांद्र मास में सूर्य की दो संक्रान्तियां पड़ जाएं, उसे क्षय मास कहते हैं !” क्षय मास वाले वर्ष में 2 अधिक मासों का आना अवश्यंभावी है ! जैसे कुछ सौर मास चांद्र मासों से बड़े होते हैं, वैसे ही कुछ सौर मास चांद्र मासों से छोटे भी होते हैं ! ऐसी दशा में कभी-कभी एक ही चांद्र मास में सूर्य की 2 संक्रांतियां हो जाती हैं — प्रथम चांद्र मास के आरंभ में और द्वितीय उसके अंत में ! इसका कारण सूर्य की गति का तेज या कम हो जाना होता है !
. सूर्य का मंदोच्च सिद्धांत दर्शाता है कि कार्तिक, मार्गशीर्ष तथा पौष, इन 3 मासों में ही 2 संक्रांतियों के पड़ने की सम्भावना बनती है ! अतः यही 3 मास क्षय मास हो सकते हैं, अन्य कोई नहीं ! प्रथम क्षय मास या द्वितीय क्षय मास 19 अथवा 141 वर्षाें के अंतराल पर सम्भव होता है !
सौर मास मान चक्र दिनादि मान मास 30, 54, 51, 3 वैशाख ! 31, 27, 41, 2 ज्येष्ठ ! अग्रहायण और पौष मास प्रायः क्षय मास होते हैं तथा कभी-कभी कार्तिक मास भी क्षय मास हो जाता है ! जब अग्रहायण और पौष क्षय मास होते हैं, तब ज्येष्ठ मास अधिमास होता है ! क्षय मास के पूर्व भादो से 3 मास अधिक होते हैं ! आश्विन-कार्तिक ही अधिकतर अधिमास होते हैं, किंतु कभी-कभी भादो मास भी अधिक होता है ! जिस वर्ष कार्तिक का क्षय होता है, उस वर्ष ज्येष्ठ मास अधिक होता है ! यहां ज्येष्ठ शब्द से भादो को ग्रहण करना चाहिए ? संसर्प मास एवं अहंस्पति मास जिस वर्ष क्षय मास हो, उस वर्ष 2 अधिमास अवश्य होते हैं – प्रथम क्षय मास से पूर्व तथा द्वितीय क्षय मासोपरांत !
क्षय मास के पूर्व आने वाले अधिक मास को संसर्प मास कहते हैं ! संसर्प मास में मुण्डन, व्रतबंध (जनेऊ), विवाह, अग्न्याधान, यज्ञोत्सव एवं राज्याभिषेक अादि वर्जित रहते हैं ! अन्य पूजा आदि कार्यों के लिए यह स्वीकार्य है ! क्षय मास के अनंतर पड़ने वाले अधिक मास को अहंस्पति मास कहते हैं ! इस मास में भी उक्त सभी कार्य वर्जित ही रहते हैं !
. क्षय मास में क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए आचार्य महेश्वर का कहना है कि किसी चांद्र मास में यदि सूर्य की 2 संक्रान्तियां होती हैं तब एक मास का क्षय हो जाता है ! क्योंकि संक्रमण युक्त मास ही मास होता है, अतः 2 संक्रान्तियां होने के कारण एक का लोप हो जाता है ! यह दो संक्रमणयुक्त मास 30 दिन का होता है ! इसमें शुभ यज्ञादि कार्य नहीं करना चाहिए ! “स्मृति रत्नावली” में कहा गया है कि एक ही चांद्र मास यदि 2 संक्रान्तियों से युक्त हो, तो दोनों मासों के श्राद्ध उसी में करने चाहिए, क्योंकि एक का क्षय इसमें वर्णित है !
. जिस वर्ष क्षय मास होता है, उस वर्ष अधिक लड़ाई, उत्पात, दुर्भिक्ष अथवा पीड़ा या छत्र भंग (सत्ता परिवर्तन) होता है ! जिस पक्ष में दो तिथियों का क्षय होता है, उस पक्ष में लड़ाई, विद्वेष और पक्ष नष्ट होने पर राजा का विनाश होने का प्रबल योग बनता है तथा – मास_क्षय_होने_पर_पूरा_भूमण्डल_संकटग्रस्त_हो_जाता_है !
अधिमास (मलमास) में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए :—
गंगाचार्य जी का कहना है कि अग्न्याधान, प्रतिष्ठा, यज्ञ, दान, व्रतादि, वेदव्रत, वृषोत्सर्ग, चूड़ा कर्म, व्रत बंध, देव तीर्थों में गमन विवाह, अभिषेक यान और घर के काम अर्थात गृहारंभादि कार्य अधिमास में नहीं करना चाहिए ! सूर्योदय नामक ग्रंथ में कहा गया है कि मास में विहित आवश्यक कार्य, मलमास में वार्षिक श्राद्ध, तीर्थ और गजच्छाया श्राद्ध, आधानाङगीभूत पितरों की क्रिया करनी चाहिए ! यदि किसी के मध्य में मल मास हो, तब एक मास का अधिक ही श्राद्ध होगा अर्थात जिस मास में यह होता है, उसकी द्विरावृत्ति होती है ! यदि मल मास में ही किसी की मृत्यु हो, उससे जो बारहवां मास हो, उसमें प्रेत क्रिया पूरी करनी चाहिए और आभ्युदायिक तथा कृच्छ के साथ करना चाहिए ! काम्य कार्य का आरंभ वृषोत्सर्ग, पर्वोत्सव, उपाकृति, मेखला, चैल, माङगल्य, अग्न्याघान, उद्यापन कर्म, वेदव्रत, महायान, अभिषेक वर्द्धमानक, इष्ट कर्म नहीं करना चाहिए ! ऋषि वशिष्ठ जी का कहना है कि वापी, कुआं, तालाब आदि की खुदाई, यज्ञादि कार्य मल मास और संसर्प, अहंस्पति (क्षय) में नहीं करना चाहिए ! मनु स्मृति में कहा गया है कि तीर्थ श्राद्ध, द्राष श्राद्ध, प्रेता श्राद्ध, सपिंडीकरण, चंद्र-सूर्य ग्रहण स्नान अधिक मास में करना चाहिए !
अधिमास (मल मास) फल :—
चैत्र महीना अधिक होने पर कल्याण, आरोग्य और कामनाओं की पूर्ति होती है ! वैशाख मास अधिक होने पर सुभिक्ष, सुंदर वर्ष होता है लेकिन ज्वर और अतिसार की संभावना होती है ! ज्येष्ठ मास अधिक होने पर लोगों को कष्ट होता है लेकिन यज्ञ और अधिक दानादि होते हैं ! जब आषाढ़ मास 2 होते हैं तब पुण्य, यश, सुभिक्ष होता है तथा वर्ष अधिक सुखमय होता है ! जिस वर्ष श्रावण मास मल मास हेाता है उस वर्ष समृद्धि और शूद्रों की वृद्धि होती है ! भाद्रपद मास अधिक मास होने पर विद्रोह और युद्ध होता है ! आश्विन मास अधिक मास होता है तब दूसरे के शासन और चोरों से जनता दुखी, सुभिक्ष, कल्याण, आरोग्य, दक्षिण में दुर्भिक्ष, राजाओं का नाश और ब्राह्मणों की वृद्धि होती है ! जब कार्तिक मास 2 होते हैं तब यह शुभ होता है ! जनता में खुशहाली रहती है, जगह-जगह यज्ञ होते हैं और ब्राह्मणों की वृद्धि होती है ! अग्रहायण मास मलमास होता है तब सुभिक्ष आता है और समस्त जनता स्वस्थ रहती है ! फाल्गुन मास अधिक होने पर समय परिवर्तन होता है तथा सुभिक्ष और खुशहाली आती है ! हिंदू गणना में 12 चांद्र मासों का एक चांद्र वर्ष होता है ! इसके मान दिनादि 354, 22, 124 होते हैं ! यही मुसलमानों का स्वीकृत वर्ष है ! यह सौर वर्ष से 11 दिन कम होता है, अतः उनका प्रत्येक त्योहार प्रति सौर वर्ष 11 दिन पहले ही आ जाता है, जिसका परिणाम यह होता है कि लगभग 32 1/2 महीनों में उनके सभी पर्व एक महीने पूर्व पड़ने लगते हैं और लगभग 321/2 वर्षों में वे सभी ऋतुओं में घूम आते हैं ! पर हिंदू शास्त्रकारों ने अपने चांद्र पर्व दिनों को उक्त ऋतु व्यतिक्रम से बचाने के लिए अधिमास की युक्ति सोच निकाली है ! इसमें पर्वों की ऋतु विषयक रक्षा हो जाती है !
अधिक मास (मलमास) के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी व हिजरी संवतों का तुलनात्मक विवेचन :—
चैत्रादि द्वादश मास युक्त भारतीय हिन्दी वर्ष चांद्रमास से बना है ! वहीं दूसरी ओर हिजरी संवत में भी मुहर्रम आदि बारह मुस्लिम मास होते हैं ! चंद्र दर्शन से माह आरंभ होता है ! हिजरी संवत या मुस्लिम वर्ष में अधिक मास नहीं होता है ! मुहर्रम की पहली तारीख से हिजरी संवत का आरंभ होता है तथा चांद दिखने के दूसरे दिन से (शुक्ल तृतीया से) माह की पहली तारीख मानी जाती है ! चांद्र तिथि की घट-बढ़ से कभी माह उन्तीस दिनों का तो कभी तीस दिनों का होता है ! अधिक मास न होने की वजह से हिजरी संवत में प्रत्येक तृतीय वर्ष में फर्क आ जाता है ! हिजरी संवत में अधिक मास न होने की वजह से ऋतुओं में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता ! अतएव मुहर्रम कभी शरद ऋतु में तो कभी पावस के समय अथवा कभी ग्रीष्म ऋतु में ही पड़ जाता है ! प्रत्येक तैंतीस मुस्लिम महीनों के उपरांत मुस्लिम वर्ष सौर वर्ष से एक माह आगे चला जाता है ! मुस्लिम वर्ष का आधार चांद्र मास ही होता है !*🕉🔱 ज्योतिष आचार्य पांडुरंगराव शास्त्री
