बिजेंद्र रावत
उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में इन दिनों गेहूं की फसल तैयार हो गई है लेकिन गेहूं की फसल को काटने और उगाने का तरीका बहुत ही पुराना है इससे एक गेहूं की फसल पर जो उत्पादन लागत है उसका आधा भी पैदा नहीं हो पाता एक तरह से पहाड़ों में फसल उगाना घाटे का सौदा है पिछले 70 सालों में उत्तराखंड की कृषि तकनीक में न तो कोई ज्यादा परिवर्तन हुआ और अब लोगों में पुरानी जैसी ताकत और जिजीविषा बाकी रही ऊपर से जंगली जानवरों के द्वारा फसलों को नष्ट किए जाने से लोगों का अपनी खेती किसानी के प्रति बचा-खुचा मोह अभी समाप्त होता नजर आ रहा है। पहाड़ खेती ताेड़ने लग गई है दम…बस हाईटेक खेती से ही बचेंगे पहाड़…..हिमाचल की तरह नकदी फसलाें पर दिया जाए जाेर, अब मडुंवे और झंगाेरे की बात करना बेमानी सा लगने लगा है। इसलिए उत्तराखंड में नगदी फसलों की खेती की जन्म शुरू करना चाहिए जिससे किसानों की आमदनी भी बढ़े और लोगों को खेती से कमाई भी होने लगे