आज का पंचाग आपका राशि फल, संयत वाणी का महात्म्य, जाने वो सूक्ष्म विज्ञान कि श्राद्ध पक्ष में पितरों को दिया गया पिंडदान तर्पण पितृदेवताओं को कैसे पंहुंचता है, जाने कि मृत्यु के उपरान्त मानव का क्या होता है?

🕉श्री हरिहरौ विजयतेतराम🕉  

🌄सुप्रभातम🌄

🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓

🌻सोमवार, १२ सितम्बर २०२२🌻

सूर्योदय: 🌄 ०६:१२

सूर्यास्त: 🌅 ०६:२३

चन्द्रोदय: 🌝 १९:४९

चन्द्रास्त: 🌜०७:४३

अयन 🌖 दक्षिणायने (उत्तरगोलीय)

ऋतु: ❄️ शरद 

शक सम्वत: 👉 १९४४ (शुभकृत)

विक्रम सम्वत: 👉 २०७९ (राक्षस)

मास 👉 आश्विन

पक्ष 👉 कृष्ण

तिथि 👉 द्वितीया (११:३५ से तृतीया)

नक्षत्र 👉 उत्तराभाद्रपद (०६:५९ से रेवती)

योग 👉 गण्ड (०९:३२ से वृद्धि)

प्रथम करण 👉 गर (११:३५ तक)

द्वितीय करण 👉 वणिज (२३:०० तक)

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॥ गोचर ग्रहा: ॥ 

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सूर्य 🌟 सिंह 

चंद्र 🌟 मीन 

मंगल 🌟 वृष (उदित, पश्चिम, मार्गी)

बुध 🌟 कन्या (उदित, पश्चिम, मार्गी)

गुरु 🌟 मीन (उदित, पूर्व, वक्री)

शुक्र 🌟 सिंह (उदित, पूर्व)

शनि 🌟 मकर (उदित, पूर्व, वक्री)

राहु 🌟 मेष 

केतु 🌟 तुला 

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शुभाशुभ मुहूर्त विचार

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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:४८ से १२:३८

अमृत काल 👉 २८:१४ से २९:४९

विजय मुहूर्त 👉 १४:१७ से १५:०७

गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:१४ से १८:३८

सायाह्न सन्ध्या 👉 १८:२६ से १९:३६

निशिता मुहूर्त 👉 २३:५० से २४:३६

राहुकाल 👉 ०७:३३ से ०९:०६

राहुवास 👉 उत्तर-पश्चिम

यमगण्ड 👉 १०:४० से १२:१३

होमाहुति 👉 मंगल

दिशाशूल 👉 पूर्व

अग्निवास 👉 पृथ्वी (११:३५ तक)

भद्रावास 👉 मृत्यु (२३:०० से)

चन्द्र वास 👉 उत्तर

शिववास 👉 सभा में (११:३५ से क्रीड़ा में)

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☄चौघड़िया विचार☄

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॥ दिन का चौघड़िया ॥ 

१ – अमृत २ – काल

३ – शुभ ४ – रोग

५ – उद्वेग ६ – चर

७ – लाभ ८ – अमृत

॥रात्रि का चौघड़िया॥ 

१ – चर २ – रोग

३ – काल ४ – लाभ

५ – उद्वेग ६ – शुभ

७ – अमृत ८ – चर

नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 

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शुभ यात्रा दिशा

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उत्तर-पश्चिम (दर्पण देखकर अथवा खीर का सेवन कर यात्रा करें)

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तिथि विशेष

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तृतीया तिथि का श्राद्ध आदि।

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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण 

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आज ०६:५९ तक जन्मे शिशुओ का नाम 

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के चतुर्थ चरण अनुसार क्रमश (ञ) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम रेवती नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (दे, दो, च, ची) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।

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उदय-लग्न मुहूर्त

सिंह – २८:०६ से ०६:२५

कन्या – ०६:२५ से ०८:४३

तुला – ०८:४३ से ११:०४

वृश्चिक – ११:०४ से १३:२३

धनु – १३:२३ से १५:२७

मकर – १५:२७ से १७:०८

कुम्भ – १७:०८ से १८:३४

मीन – १८:३४ से १९:५७

मेष – १९:५७ से २१:३१

वृषभ – २१:३१ से २३:२६

मिथुन – २३:२६ से २५:४१

कर्क – २५:४१ से २८:०२

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पञ्चक रहित मुहूर्त

शुभ मुहूर्त – ०५:५९ से ०६:२५

चोर पञ्चक – ०६:२५ से ०६:५९

शुभ मुहूर्त – ०६:५९ से ०८:४३

रोग पञ्चक – ०८:४३ से ११:०४

शुभ मुहूर्त – ११:०४ से ११:३५

मृत्यु पञ्चक – ११:३५ से १३:२३

अग्नि पञ्चक – १३:२३ से १५:२७

शुभ मुहूर्त – १५:२७ से १७:०८

रज पञ्चक – १७:०८ से १८:३४

शुभ मुहूर्त – १८:३४ से १९:५७

शुभ मुहूर्त – १९:५७ से २१:३१

रज पञ्चक – २१:३१ से २३:२६

शुभ मुहूर्त – २३:२६ से २५:४१

चोर पञ्चक – २५:४१ से २८:०२

शुभ मुहूर्त – २८:०२ से ३०:००

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आज का राशिफल

🐐🐂💏💮🐅👩

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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)

आज आपका व्यवहार अनाड़ियों जैसा रहेगा बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देंगे जिससे लोगो मे आपकी छवि खराब हो सकती है। घर मे भी महत्त्वपूर्ण कार्यो को अनदेखा कर बेतुकी बातो पर बहस के लिये तैयार रहेंगे। कार्य व्यवसाय में कुछ लाभ के अनुबंध हाथ लगेंगे। आज आपको हानि होते होते किसी अनुभवी का मार्गदर्शन बचा लेगा लेकिन अभिमानी स्वभाव रहने के कारण फिरभी कृतज्ञ नही रहेंगे। धन की आमद किसी ना किसी रूप में अवश्य होगी परन्तु खर्च की तुलना में ना काफी रहेगी। गृहस्थी में शांति बनाए रखने के लिये पूर्व में किये वादों पर कायम रहें टालमटोल करना भारी पड़ेगा। संध्या बाद अकस्मात स्वास्थ्य संबंधित समस्या पनपेगी।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)

आज का दिन लाभदायक होते हुए भी इसका उचित लाभ नही उठा सकेंगे। पूर्व में बनाई योजना के कारण कार्य व्यवसाय की और ज्यादा ध्यान नही दे सकेंगे कार्य क्षेत्र पर आज सहकर्मियों की कमी भी लाभ को सीमित करने का कारण बनेगी फिर भी काम चलाऊ धन किसी ना किसी प्रकार मिल ही जायेगा। मित्र रिश्तेदारी के साथ आज धार्मिक कार्यो के खर्च भी अतिरिक्त करने पड़ेंगे। व्यवहारिकता स्वभाव में दिखावा मात्र ही रहेगी स्वार्थ साधने के लिये मीठा व्यवहार करेंगे अन्यथा किसी से बात करना भी पसंद नही होगा। आवश्यक कार्य संध्या से पहले पूर्ण कर लें इसके बाद व्यर्थ की गतिविधियों में फंसने के कारण अधूरे रह सकते है। सेहत सामान्य रहेगी।

 

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)

आज आपको कुछ अतिरिक्त कार्य सौपे जाएंगे लापरवाह एवं आलसी स्वभाव के चलते आरम्भ में ये झंझट लगेंगे लेकिन कुछ समय बीतने पर इनमे ही मग्न हो जाएंगे कार्य व्यवसाय में मध्यान तक ही रुचि लेंगे इसके बाद का समय एकांत में बिताना पसंद करेंगे। आज आप एकबार लिए निर्णय से पीछे नही हटेंगे चाहे हानि ही क्यो ना हो घर मे मांगलिक आयोजन होंगे वातावरण आत्मबल देने वाला रहेगा। दिन का कुछ समय पूर्व में किये कार्यो की समीक्षा में बीतेगा इससे संतोष की प्राप्ति होगीं। संध्या बाद मन काल्पनिक दुनिया मे खोया रहेगा। परिवार के सदस्य अपनी अनदेखी से उदास रहेंगे। सेहत कुछ समय के लिये नरम बनेगी।

 

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)

आज का दिन आपको धर्म कर्म पूजा पाठ में सम्मिलित होने के सुअवसर प्रदान करेगा। आध्यत्मिक भावना भी बढ़ी रहने से पुण्य और परोपकार के कार्य में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेंगे लेकिन आज घरेलू एवं व्यावसायिक कार्यो में ढील देने के कारण गृहस्थ में कलह के साथ ही व्यवसाय से उचित लाभ नही उठा पाएंगे। सहकर्मियों का सहयोग भी आज ना के बराबर रहेगा अधिकांश कार्य स्वयं के बल पर ही करने पड़ेंगे। घर के किसी सदस्य की जिद कुछ समय के लिये परेशानी में डालेगी पूरी होने पर ही वातावरण सामान्य बन सकेगा। सेहत को लेकर आशंकित रहेंगे।

 

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)

आज भी परिस्थिति प्रतिकूल रहेगी जल्दी से की कार्य कोंकरने का मन नही करेगा इस कार्य को करेंगे उसमे कोई स्वयंजन ही टांग अडायेगा। शारीरिक रूप से भी कुछ ना कुछ कमजोरी बनी रहेगी महिलाये विशेष ध्यान रखें कमजोरी के कारण हाथ पैर में शिथिलता रहेगी। कार्य व्यवसाय में हानि के डर से आज महत्त्वपूर्ण फ़ैसले लेने से डरेंगे। ज्यादा सोच विचारने के चक्कर मे लाभ के सौदे हाथ से निकल सकते है। धन लाभ आज लेदेकर हो ही जायेगा परन्तु पर्याप्त नही होगा। हित शत्रुओं से सावधान रहें पीठ पीछे अहित कर सकते है। परिजनों की सांत्वना मिलने से राहत अनुभव होगी।

 

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)

आज के दिन आपका लक्ष्य घर मे सुख के साधनों की वृद्वि करना रहेगा इसमे काफी हद तक सफल भी रहेंगे व्यवसायी वर्ग खर्च करने से पीछे नही हटेंगे आर्थिक स्थिति ठीक रहने और परिजनों के सुख को देखते हुए अखरेगा भी नही। कार्य व्यवसाय में आकस्मिक उछाल आने से व्यस्तता बढ़ेगी पूर्वनियोजित कार्य मे फेरबदल करना पड़ेगा। नौकरी वाले जातको से मितव्ययी व्यवहार के कारण परिजन नाराज हो सकते है। मध्यान के बाद काम से ऊबन होने लगेगी लेकिन आज अतिरिक्त परिश्रम करते है तो कल इसका आश्चर्जनक लाभ देखने को मिलेगा। परिवार में आनंद का वातावरण रहेगा छोटी बातों को अनदेखा करें। सेहत ठीक रहेगी।

 

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)

आज का दिन आपके लिये थोड़ा उठापटक वाला रहेगा। आज आप बाहर के लोगो को आचरण में रहने का उपदेश देंगे लेकिन घर मे स्वयं के ऊपर लागू नही करेंगे। परिजन आपसे किसी ना किसी बात को लेकर विरोधाभास रखेंगे। आज आप अपने निर्णय पर ज्याददेर नही टिकेंगे इससे आस-पास के लोगो को खासी परेशानी होगी। कार्य क्षेत्र पर भी सहकर्मी अथवा अधीनस्थों पर नाजायज रौब दिखाना अपमानित कराएगा। धन लाभ के लिये किसी की चाटुकारिता करनी पड़ेगी जो आपको पसंद ना होने पर सीमित साधनों से निर्वाह करना पड़ेगा। खर्च आय की तुलना में अधिक रहने से आर्थिक संतुलन गड़बड़ायेगा। परिजनों की नाराजगी शांति से बैठने नही देगी।

 

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)

आज के दिन आप पूर्व नियोजित योजनाओं को ध्यान में रखते हुए व्यवस्थित रूप से कार्य करेंगे परन्तु फिर भी कोई काम अचनाक आने से असुविधा होगी कार्यक्रम में फेरबदल भी करना पड़ेगा। धर का वातावरण आशा से अधिक शांत मिलेगा सभी सदस्य अपने अपने काम मे मस्त रहेंगे लेकिन किसी काम की बोलने पर विपरीत व्यवहार भी कर सकते है। काम-धंधा आज पहले से कुछ मंदा रहेगा धन लाभ के एक दो प्रसंग ही बनेंगे लेकिन खर्च के हिसाब से पर्याप्त नही होंगे। आज आपका मन अनैतिक कार्यो में शीघ्र आकर्षित होगा बचकर रहें वरना बैठे बिठाये नई मुसीबत खड़ी होगी। स्वास्थ्य में पहके से राहत लेकिन पूर्ण ठीक नही रहेगा।

 

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)

आज का दिन भी विपरीत फलदायी बना रहेगा। दिन के आरम्भ में ही घर का मंगलमय वातावरण आपकी लापरवाहि अथवा उद्दंड व्यवहार के कारण अशान्त बनेगा। बात बात पर गर्मी दिखाकर मुख्य समस्या से बचने का प्रयास करेंगे। परिजनों से तालमेल बिठाना आज नामुमकिन ही रहेगा। कार्य क्षेत्र पर भी स्वयं गलती करेंगे और दोषी अन्य को ठहराएंगे सहकर्मियों अथवा देनदारों से धन को लेकर विवाद गहरा सकता है। मित्र मंडली में भी आपका रुखा व्यवहार रंग में भंग डालेगा। विवेक से काम लें आर्थिक लाभ के अवसर हाथ आते आते निकल सकते है। आवश्यक कार्यो को छोड़ व्यसन अथवा अन्य व्यर्थ के कार्यो पर खर्च करेंगे। धर्म के प्रति आस्था अन्य दिनों से कम रहेगी।

 

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)

आज के दिन आप पिछले कुछ दिनों से बेहतर अनुभव करेंगे लेकिन आज धन को लेकर कुछ ना कुछ समस्या बनी रहेगी। स्वयं की तुलना अन्य लोगों से करने पर मन हीन भावना से ग्रस्त रहेगा। आज आप मेहनत करने के पक्ष में बिलकुल नही रहेंगे बैठे बिताये लाभ पाने के चक्कर मे छोटे मोटे लाभ से भी वंचित रहना पड़ेगा। कार्य क्षेत्र पर धन लाभ की संभावनाए बनेंगी लेकिन अंत समय मे निराश ही होना पड़ेगा। लोग मतलब से व्यवहार रखेंगे काम निकलने के बाद भूल जाएंगे। गृहस्थ में भी धन संबंधित अभाव अनुभव होगा मन की इच्छाएं आज कम रखें अन्यथा दुख होगा। स्वास्थ्य में सुधार आएगा फिर भी आलस करेंगे। घर मे मंगल कार्य होंगे।

 

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)

आपके लिये आज की दिनचार्य थोड़ी सुस्त रहेगी लेकिन फिर भी शान्तिप्रद रहेगा। आरंभिक भाग में प्रत्येक कार्य मे आलस्य करेंगे घरेलू कार्यो की टालमटोल से परिजनों को परेशानी होगी बहस भी हो सकती है। काम-धंधे को लेकर आज ज्यादा झंझट में पड़ना पसंद नही करेंगे नौकरी वाले लोग भी आज का दिन शांति से बिताना पसंद करेंगे लेकिन कुछ ना कुछ काम आने से कामना पूर्ति नही हो सकेगी। आज आपको धन की अपेक्षा सम्मान लाभ अधिक मिलेगा। सार्वजनिक कार्यो में रुचि बढ़ेगी। मित्र परिचितों के साथ धार्मिक क्षेत्र की यात्रा होगी। सेहत में संध्या बाद नरमी आने लगेगी सतर्क रहें।

 

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)

आज के दिन आप काम की बातों को छोड़ अनर्गल विषयो में भटकेंगे। दिन के पूर्वार्ध से मध्यान तक आलस्य अधिक रहेगा घरेलू कार्य के साथ पूर्वनियोजित कार्य एक साथ सर पर आने से असुविधा होगी। जबरदस्ती करने पर ही कार्य करने के लिए तैयार होंगे लेकिन एकबार आरम्भ करने के बाद पूर्ण करके ही छोड़ेंगे। परिजन आपके हित के लिये कड़ा व्यवहार करेंगे लेकिन अंदर से हमदर्दी भी रखेंगे। मध्यान के आस-पास किसी से गरमा गरमी हो सकती है यहाँ धर्य और विवेक का परिचय दें अन्यथा मन की इच्छा मन मे ही रह जायेगी। संध्या का समय अपेक्षाकृत शांत रहेगा धार्मिक कार्यो के साथ मनोरंजन के अवसर भी मिलेंगे। स्वास्थ्य स्वयं की गलती से खराब हो सकता है।

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*li.••••●●●☆जय.श्री.राम☆●●●••••.li*
*┈┉═══❀((ॐ))❀═══┉┈*
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*‼️⛳ li.महादेव.li ⛳‼️*
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👴🏼 *_श्राद्ध का दान और भोजन कैसे पहुंचता है पितरों तक?_*

🙏🏼 *_(आचार्य श्री गोपी राम )_*
🌧️ *_भाद्रपद की पूर्णिमा और आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष रहता है। आपके द्वारा किए गए श्राद्ध से क्या आपके पितृ सचमुच तृप्त होते हैं और यदि होते हैं तो कैसे होते हैं। किस तरह पितरों तक पहुंच जाता है श्राद्ध का भोजन पितरों के पास? किया गया दान किस तरह पहुंच जाता है पितरों के पास। आओ जानते हैं इस तरह के सभी प्रश्नों के उत्तर।_*

🌏 *_किस तरह धरती पर आते हैं पितर : सूर्य की सहस्र किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम ‘अमा’ है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से सूर्य त्रैलोक्य को प्रकाशमान करते हैं। उसी अमा में तिथि विशेष को वस्य अर्थात चन्द्र का भ्रमण होता है तब उक्त किरण के माध्यम से चन्द्रमा के उर्ध्वभाग से पितर धरती पर उतर आते हैं। उन्हें पंचाबलि कर्म, गो ग्रास, तर्पण, पिंडदान और धूप-दीप के माध्यम से तृप्त किया जाता है।_*

🍛 *_पितरों का भोजन : अन्न से भौतिक शरीर तृप्त होता है। अग्नि को दान किए गए अन्न से सूक्ष्म शरीर (आत्मा का शरीर) और मन तृप्त होता है। इसी अग्निहोत्र से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं। जल से जो उष्ण निकलती है उससे पितर तृप्त होते हैं। जैसे पशुओं का भोजन तृण और मनुष्यों का भोजन अन्न कहलाता है, वैसे ही देवता और पितरों का भोजन अन्न का ‘सार तत्व’ है। सार तत्व अर्थात गंध, रस और उष्मा। देवता और पितर गंध तथा रस तत्व से तृप्त होते हैं। दोनों के लिए अलग अलग तरह के गंध और रस तत्वों का निर्माण किया जाता है। विशेष वैदिक मंत्रों द्वारा विशेष प्रकार की गंध और रस तत्व ही पितरों तक पहुंच जाती है।_*

🧘🏻‍♀️ *_इस तरह ग्रहण करते हैं भोजन : पितरों के अन्न को ‘सोम’ कहते हैं जिसका एक नाम रेतस भी है। यह चावल, जौ ‍आदि से मिलकर बनता है। एक जलते हुए कंडे पर गुड़ और घी डालकर गंध निर्मित की जाती है। उसी पर विशेष अन्न अर्पित किया जाते हैं। तिल, अक्षत, कुश और जल के साथ तर्पण और पिंडदान किया जाता है। अंगुलियों से देवता और अंगुठे से पितरों को अन्न जल अर्पण किया जाता है। अर्पण किए गए अन्न और जल के सार तत्व को पितृ ग्रहण करते हैं।_*

👉🏼 *_कैसे पहुंचता है पितरों तक भोजन : पुराणों अनुसार पितरों और देवताओं की योनि ही ऐसी होती है कि वे दूर की कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा-अन्न भी ग्रहण कर लेते हैं और दूर की स्तुति से भी संतुष्ट होते हैं।_*

🛌🏻 *_मृत्युलोक में किया हुआ श्राद्ध उन्हीं मानव पितरों को तृप्त करता है, जो पितृलोक की यात्रा पर हैं। वे तृप्त होकर श्राद्धकर्ता के पूर्वजों को जहां कहीं भी उनकी स्थिति हो, जाकर तृप्त करते हैं। ‘नाम गोत्र के आश्रय से विश्वदेव एवं अग्निमुख हवन किए गए पदार्थ आदि दिव्य पितर ग्रास को पितरों को प्राप्त कराते हैं। यदि पूर्वज देव योनि को प्राप्त हो गए हों तो अर्पित किया गया अन्न-जल वहां अमृत कण के रूप में प्राप्त होगा क्योंकि देवता केवल अमृत पान करते हैं।_*

🤴🏻 *_पूर्वज मनुष्य योनि में गए हों तो उन्हें अन्न के रूप में तथा पशु योनि में घास-तृण के रूप में पदार्थ की प्राप्ति होगी। सर्प आदि योनियों में वायु रूप में, यक्ष योनियों में जल आदि पेय पदार्थों के रूप में उन्हें श्राद्ध पर्व पर अर्पित पदार्थों का तत्व प्राप्त होगा। श्राद्ध पर अर्पण किए गए भोजन एवं तर्पण का जल उन्हें उसी रूप में प्राप्त होगा जिस योनि में जो उनके लिए तृप्ति कर वस्तु पदार्थ परमात्मा ने बनाए हैं। साथ ही वेद मंत्रों की इतनी शक्ति होती है कि जिस प्रकार गायों के झुंड में अपनी माता को बछड़ा खोज लेता है उसी प्रकार वेद मंत्रों की शक्ति के प्रभाव से श्रद्धा से अर्पण की गई वस्तु या पदार्थ पितरों को प्राप्त हो जाते हैं।_*

🍱 *_श्राद्ध नहीं करने से क्या होगा : तर्पण, पिंडदान और धूप देने से आत्मा की तृप्ति होती है। तृप्त आत्माएं प्रेत नहीं बनतीं। ये क्रिया कर्म ही आत्मा को पितृलोक तक पहुंचने की शक्ति देते हैं और वहां पहुंचकर आत्मा दूसरे जन्म की प्रक्रिया में शामिल हो पाती है। जो परिजन अपने मृतकों का श्राद्ध कर्म नहीं करते उनके प्रियजन भटकते रहते हैं। यह कर्म एक ऐसी विधि है जिसके माध्यम से आत्मा को सही मुकाम मिल जाता है और वह भटकाव से बचकर मुक्त हो जाता है।_*

🙏🏼 *_जय श्री पितृदेवाय नम:।_* 🪷
*_┈┉═══❀((“ॐ”))❀═══┉┈_*

*🙏आज का विचार 🙏*

               

        *बोलना बड़ी बात नही है और न ही चुप रहना बड़ी बात है मगर कब बोलना और कब चुप रहना इसका विवेक रखना ही बड़ी बात है।*

        *यदि बोलना ही बड़ी बात होती तो संसार का हर वाचाल मनुष्य प्रशंसा का पात्र होता एवं अनावश्यक बोलने वाली द्रौपदी को कभी भी महाभारत के लिए जिम्मेदार न ठहराया जाता।*

       *इसी प्रकार केवल चुप रहना ही बड़ी बात होती तो भरी सभा में अपनी कुलवधू का अपमान होते देखकर भी मौन साधने वाले पितामह भीष्म को कभी मंत्री बिदुर द्वारा, कभी भगवान श्रीकृष्ण द्वारा तो कभी समाज द्वारा न कोसा गया होता।*

        *अतः कब बोला जाए और कितना बोला जाए ? व कब चुप रहा जाए और कब तक चुप रहा जाए तथा कितना चुप रहा जाए ? जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के वचनों को समझने का विवेक आ गया निश्चित ही उसने एक शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण जीवन की नीव भी रख ली।*

             “🌿🌺🌿”🌺🌿”      

     *•🌺कृष्णमय शु-प्रभात🌺•*  

   

# पितरों के प्रति श्रद्धा का अनुष्ठान – 1

मृत्यु के उपरान्त मानव का क्या होता है? यह प्रश्न आदिकाल से अनुत्तरित चला आ रहा है और रहस्य ही बना हुआ है। मानव के भविष्य, पृथ्वी पर अस्तित्व-समाप्ति के उपरान्त उसके स्वरूप के विषय में भांति-भांति के मत निरंतर प्रकाश में आते रहे हैं। सामान्यतः मृत्यु विलक्षण और भयावह समझी जाती है। यद्यपि कुछ दार्शनिक इसे मंगलप्रद और शरीररूपी कारागृह में बंदी आत्मा की मुक्ति के रूप में भी ग्रहण करते रहे हैं, तथापि मानव में मृत्यु का भय सदैव रहा है और यह मृत्यु के समय की सम्भाव्य पीड़ा से नहीं है, बल्कि वह मृत्यूपरांत घटनाक्रम के रहस्य से आक्रांत होता है।

कठोपनिषद (1/1/20) में आया है – ‘जब मनुष्य मरता है, तो एक संदेह उत्पन्न होता है। कुछ लोगों के मत से मृत्यूपरांत जीवात्मा की सत्ता रहती है, कुछ लोग ऐसा नहीं मानते।’ आदिकाल से ही ऐसा विश्वास रहा है कि मृत्यु के समय व्यक्ति जो विचार रखता है, उसी के अनुसार दैनिक जीवन के उपरान्त उसका जीवात्मा आक्रान्त होता है – अन्ते या मतिः सा गतिः। कुछ पुराणों का कथन है कि जब व्यक्ति मर जाता है, तो आत्मा आतिवाहिक (तत्क्षणादेव गृह्याति शरीरमातिवाहिकम – विष्णु धर्मोत्तर 13-14) शरीर धारण कर लेता है, जिसमें पंच तत्वों में से अब केवल तीन – अग्नि, वायु एवं आकाश तत्व बचे रहते हैं, जो शरीर से ऊपर उठ जाते हैं और पृथ्वी एवं जल तत्व नीचे रह जाते हैं। शवदाह के समय से लेकर दस दिन तक जो पिंडदान किए जाते हैं, उनसे आत्मा एक दूसरा शरीर धारण कर लेता है, जिसे भोगदेह (पिंड का भोग करने वाला) कहा जाता है। वर्ष के अंत में जब सपिंडीकरण होता है, आत्मा एक तीसरा शरीर धारण कर लेता है, जिसके द्वारा कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक को जाता है। (वेदांत सूत्र 4/3/4)

ऐसा विश्वास है कि जिस मृतक के लिए पिंडदान नहीं होता अथवा जिसके लिए सोलह श्राद्ध नहीं होते, वह सदा के लिए पिशाच की स्थिति में रहता है – यस्यैतानि न दीन्यत प्रेतश्रद्धानि षोडशः पिशाचत्वं ध्रुवं तस्य दत्तै श्राद्धशतैरपि। (गरुड़ पुराण/प्रेत खंड 34/131) इस स्थिति से बाद में अगणित श्राद्ध करने के उपरान्त भी मुक्ति संभव नहीं है। ब्रह्म पुराण ने इस शरीर की स्थिति को यातनीय (यातना पाने वाला) कहा है, किन्तु अग्नि पुराण ने इसे यातनीय अथवा आतिवाहिक अभिहित किया है और कहा है कि यह शरीर आकाश, वायु एवं तेज से बनता है। पद्मपुराण (2/67/98) का कथन है कि जो व्यक्ति कुछ पाप करते हैं, वे मृत्यु के उपरान्त भौतिक शरीर के समान ही दुःख भोगने के लिए एक शरीर पाते हैं।

इस विषय में अन्तर्निहित धारणा यह रही है कि जब तक मृतात्मा पुनः शरीरी रूप में आविर्भूत नहीं होता, तब तक उसे स्थूल शरीर को दाह, भूमि में गाड़ने अथवा अन्य विधि से नष्ट कर देने के बाद एक सूक्ष्म शरीर धारण करना पड़ता है। इस सूक्ष्म शरीर का निर्माण क्रमशः होता है (मार्कण्डेय पुराण 10/73) और यह मृत्यूपरांत बहुत दिनों के बाद ही मिलता है। (क्रमशः)
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कल विचार करेंगे कि पितर कौन हैं।

# पितरों के प्रति श्रद्धा का अनुष्ठान – 2

* पितर कौन हैं

सामान्यतः पूर्वजों द्वारा सूक्ष्म रूप धारण करने की इसी अवस्था को पितर की श्रेणी दी गई है, तथापि धर्मशास्त्रों में इस विषय में विशद विवेचन है।

पितृ का अर्थ है पिता, किन्तु पितरः शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है – 1. व्यक्ति के मृत तीन पूर्वज एवं 2. मानव जाति के आरम्भिक अथवा प्राचीन पूर्वज, जो एक पृथक लोक के अधिवासी के रूप में परिकल्पित हैं (ऋग्वेद 10/14/2; 70; 10/15/2 एवं 9/97/39)।

ऋग्वेद (10/15/1) में पितृगण निम्न, मध्यम और उच्च, तीन श्रेणियों में व्यक्त हुए हैं तथा प्राचीन, पश्चात्कालीन एवं उच्चतर (10/15/2) कहे गए हैं। वे सभी अग्नि को ज्ञात हैं, यद्यपि सभी पितृगण वंशजों को ज्ञात नहीं हैं (10/15/3)। वे अग्नि एवं इन्द्र के साथ आहुतियां लेने आते हैं (10/15/10 एवं 10/16/12) और अग्नि उनके पास आहुतियां ले जाता है (10/15/12)। जल जाने के उपरान्त अग्नि ही मृतात्मा को पितरों के पास ले जाता है (ऋग्वेद 10/16/1-2-5 एवं अथर्ववेद 18/2/10)।

ऐसा माना गया है कि शरीर के दाह के बाद मृतात्मा को वायव्य शरीर प्राप्त होता है और वह (मृत) मनुष्यों को एकत्र करने वाले यम एवं पितरों के साथ हो लेता है (ऋग्वेद 10/14/1-8; 10/15/14 एवं 10/16/5)। मृतात्मा पितृलोक में चला जाता है एवं अग्नि से प्रार्थना की जाती है कि वह उसे सत्कर्म वाले पितरों एवं विष्णु के पाद न्यास (विक्रम) की ओर ले जाए (ऋग्वेद 10/14/9; 10/15/3 एवं 10/16/4)।

पितरों की अन्य श्रेणियां भी हैं, यथा – पितरः सोमवन्तः, पितरः बर्हिषदः एवं पितरः अग्निष्वात्ताः। शतपथ ब्राह्मण ने इनकी परिभाषा इस तरह की है – “जिन्होंने सोमयज्ञ किया, वे पितर सोमवन्त, जिन्होंने पक्व आहुतियां (चरु एवं पुरोडाश के समान) दीं और एक लोक प्राप्त किया, वे पितर बर्हिषद तथा जिन्होंने इन दोनों में से कोई कृत्य नहीं किया और जिन्हें अग्नि ने (जलाकर) समाप्त कर दिया, वे पितर अग्निष्वात्ता कहलाए।” किन्तु बाद में पितरों की श्रेणियों के नामों में कुछ अंतर आया। नांदीपुराण (हेमाद्रि) में आया है – ‘ब्राह्मणों के पितर अग्निष्वात्त, क्षत्रियों के बर्हिषद, वैश्यों के काव्य, शूद्रों के सुकालिन तथा म्लेच्छों एवं अस्पृश्यों के व्याम हैं।’ (क्रमशः)

# पितरों के प्रति श्रद्धा का अनुष्ठान – 3

मनु स्मृति (3/193-198) ने पितरों की कई कोटियां दी हैं और चारों वर्गों के लिए पितरों के नाम क्रमशः सोमपा, हाविर्भुज, आज्यपा, सुकालिन दिए हैं और आगे चल कर (3/199) कहा है कि ब्राह्मणों के पितर अनाग्निदग्ध, अग्निदग्ध, काव्य, बर्हिषद, अग्निष्वात्त एवं सौम्य नामों से पुकारे गए।

शातातप स्मृति (6/5-6) में पितरों की बारह कोटियों के नाम आए हैं – पिण्डभाजः (3), लेपभाजः (3), नान्दीमुख (3) एवं अश्रुमुख (3)। वायु पुराण (72/1 एवं 37/6), ब्रह्माण्ड पुराण (उपोदधात 9/53), पद्म पुराण (5/9/3-3), विष्णुधर्मोत्तर (1/138/2-3) एवं अन्य पुराणों में पितरों के सात प्रकार आए हैं, जिनमें तीन अमूर्तिमान हैं और चार मूर्तिमान। स्कन्द पुराण (6/216/9-10) ने पितरों की नौ कोटियां दी हैं – अग्निष्वात्ता:, बर्हिषद:, आज्यपा:, सोमपा:, रश्मिपा:, उपहूताः, आयन्तुनः, श्राद्धभुजः एवं नांदीमुखः।

मनु स्मृति (3/201) ने कहा है कि ऋषियों से पितरों की उदभूति हुई, पितरों से देवों एवं मानवों की तथा देवों से स्थावर एवं जंगम के सम्पूर्ण लोक की उदभूति हुई। दृष्टव्य है कि यहां देवगण और मानव पितरों से उदभूत माने गए हैं, अर्थात जीवित रहते मानव संतति उत्पन्न कर, मृत्यूपरांत पितर बन जाता है और पितर रूप में अपने सत्कर्मों के बल पर देवत्व प्राप्त करता है।

वैदिक साहित्य की बहुत सी उक्तियों में ‘पितरः’ शब्द व्यक्ति के समीपवर्ती, मृत पुरुष पूर्वजों के लिए प्रयुक्त हुआ है। तैत्तिरीय ब्राह्मण (1/6/9/5) में उल्लेख है -“अतः तीन पीढ़ियों तक वे (पूर्वजों को) नाम से विशिष्ट रूप से व्यंजित करते हैं, क्योंकि ऐसे बहुत से पितर हैं, जिन्हें आहुति दी जाती है।” किन्तु वैदिक साहित्य के उपरान्त की रचना में, विशेषतः पुराणों में पितरों के मूल एवं प्रकारों के विषय में विशद वर्णन मिलता है।
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अगले स्टेटस में विचार करेंगे ‘श्राद्ध कर्म’ पर।
✍🏻आलोक बृजनाथ