आज का पंचाग आपका राशि फल, ईराक भी भारत वर्ष का ही भाग था!

।। 🕉 ।।
🌞 *सुप्रभातम्* 🌞
««« *आज का पञ्चांग* »»»
कलियुगाब्द………………………5123
विक्रम संवत्……………………..2078
शक संवत्………………………..1943
मास……………………………….श्रावण
पक्ष…………………………………कृष्ण
तिथी…………………………….चतुर्दशी
संध्या 07.07 पर्यंत पश्चात अमावस्या
रवि…………………………..दक्षिणायन
सूर्योदय………..प्रातः 06.01.06 पर
सूर्यास्त………..संध्या 07.04.31 पर
सूर्य राशि…………………………..कर्क
चन्द्र राशि………………………….कर्क
गुरु राशी…………………………..कुम्भ
नक्षत्र……………………………..पुनर्वसु
प्रातः 08.11 पर्यंत पश्चात पुष्य
योग…………………………………सिद्धि
रात्रि 12.28 पर्यंत पश्चात व्यतिपात
करण………………………………..विष्टि
प्रातः 06.54 पर्यंत पश्चात शकुन
ऋतु……………………………………वर्षा
दिन……………………………….शनिवार

🇬🇧 *आंग्ल मतानुसार :-*
07 अगस्त सन 2021 ईस्वी ।

☸ शुभ अंक…………………….7
🔯 शुभ रंग………………………हरा

*अभिजीत मुहूर्त :-*
दोप 12.06 से 12.58 तक ।

👁‍🗨 *राहुकाल :-*
प्रात: 09.18 से 10.55 तक ।

*उदय लग्न मुहूर्त -*
*कर्क*
04:12:11 06:32:54
*सिंह*
06:32:54 08:50:34
*कन्या*
08:50:34 11:07:14
*तुला*
11:07:14 13:27:07
*वृश्चिक*
13:27:07 15:46:04
*धनु*
15:46:04 17:50:25
*मकर*
17:50:25 19:33:01
*कुम्भ*
19:33:01 21:00:43
*मीन*
21:00:43 22:25:54
*मेष*
22:25:54 24:01:22
*वृषभ*
24:01:22 25:57:13
*मिथुन*
25:57:13 28:12:11

🚦 *दिशाशूल :-*
पूर्व दिशा – यदि आवश्यक हो तो अदरक या उड़द का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें ।

✡ *चौघडिया :-*
प्रात: 07.40 से 09.17 तक शुभ
दोप. 12.31 से 02.08 तक चर
दोप. 02.08 से 03.45 तक लाभ
दोप. 03.45 से 05.22 तक अमृत
संध्या 06.59 से 08.22 तक लाभ
रात्रि 09.45 से 11.08 तक शुभ ।

💮 *आज का मंत्र :-*
॥ ॐ सुतीर्थाय नमः ॥

📢 *संस्कृत सुभाषितानि -*
ॐमे बंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः ।
कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥
अर्थात :-
समग्र विश्व ॐ में समा जाता है । इच्छा, सिद्धि और मोक्षप्राप्ति सभी जिसमें समाविष्ट है, योगी जिसका ध्यान करते हैं, उस ॐकार को नमस्कार ।

🍃 *आरोग्यं सलाह :-*
*बाल बढ़ाने घरेलू उपाय -*

*2. मेंथी -*
यह जड़ी बूटी भी बालों के विकास की समस्याओं के लिए एक सदियों पुराना उपाय है। इसमें प्रोटीन और निकोटिनिक एसिड शामिल हैं। आपको बता दें कि प्रोटीन-समृद्ध आहार बालों के विकास के लिए जाना जाता है। इसके लिए आप एक चम्मच मेथी लीजिए और ग्राइंडर में पानी के साथ मिलाकर एक अच्छा पेस्ट बना लीजिए।
इसमें थोड़ा सा नारियल का तेल (या दूध) मिलाएं और अपने बालों और स्कैल्प पर आधे घंटे के लिए लगाएं और इसे हल्के शैम्पू से धो लें। यह निश्चित रूप से बालों की ग्रोथ के लिए सबसे अच्छे टिप्स में से एक है।

⚜ *आज का राशिफल :-*

*राशि फलादेश मेष :-*
*(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ)*
विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। स्वादिष्ट भोजन का आनंद मिलेगा। थकान रहेगी। धन प्राप्ति सुगम होगी। पराक्रम बढ़ेगा। जीवनसाथी से आर्थिक मतभेद हो सकते हैं। कामकाज में आशानुरूप स्थिति बनेगी। संतान के व्यवहार पर नजर रखें।

🐂 *राशि फलादेश वृष :-*
*(ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)*
आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी। आपके व्यवहार एवं कार्यकुशलता से अधिकारी वर्ग से लाभ होगा। आपसी विचार-विमर्श लाभप्रद रहेगा। बुरी खबर मिल सकती है। वाणी पर नियंत्रण रखें। स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। लेन-देन में सावधानी रखें।

*राशि फलादेश मिथुन :-*
*(का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह)*
मेहनत का फल मिलेगा। प्रतिष्ठा बढ़ेगी। यात्रा सफल रहेगी। धनलाभ होगा। प्रसन्नता बनी रहेगी। वाहन सुख मिलेगा। संपत्ति के लेन-देन में सावधानी बरतें। परिवार में सहयोग का वातावरण रहेगा। व्यापार-व्यवसाय अच्छा चलेगा। संतान पर ध्यान दें।

🦀 *राशि फलादेश कर्क :-*
*(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)*
उत्साहवर्द्धक सूचना मिलेगी। स्वाभिमान बढ़ेगा। पुराने मित्र-संबंधी मिलेंगे। व्यवसाय ठीक चलेगा। कार्य एवं व्यवसाय के क्षेत्र में विभिन्न बाधाओं से मन अशांत रहेगा। विवादों से दूर रहना चाहिए। आर्थिक तंगी रहेगी। पिछले कार्यों को टालें। पारिवारिक तनाव से मन परेशान रहेगा। व्यापार में हानि हो सकती है। जल्दबाजी व भागदौड़ से कार्य करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाएँ।

🦁 *राशि फलादेश सिंह :-*
*(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)*
राजकीय सहयोग मिलेगा। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। अप्रत्याशित लाभ होगा। जोखिम बिलकुल न लें। धर्म-कर्म में रुचि बढ़ेगी। व्यापार व नौकरी में हितकारकों की पूर्ण कृपा रहेगी। गृह उपयोगी वस्तुएँ क्रय करेंगे। नए संबंधों के प्रति सतर्क रहें।

🏻 *राशि फलादेश कन्या :-*
*(ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)*
धैर्य रखें। पारिवारिक जीवन अच्छा रहेगा। रुका पैसा मिलेगा। शत्रु आपकी छवि को धूमिल करने का प्रयास करेंगे। अतः सावधान रहें। व्यापार में सफलता मिलेगी। फालतू खर्च होगा। स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। कुसंगति से बचें। दूसरों पर भरोसा न करें।

⚖ *राशि फलादेश तुला :-*
*(रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)*
रुका हुआ धन प्राप्त होगा। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। विवाद न करें। व्यवसाय ठीक चलेगा। दांपत्य जीवन सुखद रहेगा। पूँजी निवेश बढ़ेगा। साहित्यिक रुचि बढ़ेगी। आर्थिक योग शुभ हैं। यात्रा से व्यापारिक लाभ हो सकता है। सुसंगति से लाभ होगा।

🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक :-*
*(तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)*
योजना फलीभूत होगी। नए अनुबंध होंगे। प्रतिष्ठा बढ़ेगी। व्यवसाय ठीक चलेगा। निवेश शुभ रहेगा। जल्दबाजी व भागदौड़ से काम करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाएँ। अच्छे मित्र से भेंट होगी। पराक्रम की वृद्धि होगी। समाज-परिवार में आदर मिलेगा।

🏹 *राशि फलादेश धनु :-*
*(ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे)*
धर्म-कर्म में रुचि रहेगी। वरिष्ठजनों का सहयोग मिलेगा। कोर्ट व कचहरी के काम बनेंगे। कार्यसिद्धि होगी। आय-व्यय में संतुलन रहेगा। क्रोध पर संयम आवश्यक है। व्यापार में नए अनुबंध लाभकारी रहेंगे। धर्म में रुचि बढ़ेगी। नई योजना से लाभ होगा।

🐊 *राशि फलादेश मकर :-*
*(भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी)*
वाहन व मशीनरी के प्रयोग में सावधानी रखें। पुराना रोग उभर सकता है। वाणी पर नियंत्रण रखें। व्यापार के विस्तार हेतु किए गए प्रयास सफल होंगे। संतान की ओर से अच्छे समाचार मिलेंगे। दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करें। परिवार की चिंता रहेगी।

🏺 *राशि फलादेश कुंभ :-*
*(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)*
संपत्ति के कार्य लाभ देंगे। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। व्यवसाय ठीक चलेगा। प्रसन्नता रहेगी। खर्चों में वृद्धि से चिंता होगी। संतान के रोजगार की समस्या का समाधान संभव है। व्यापार-व्यवसाय लाभप्रद रहेगा। कश्मकश दूर होगी। स्वजनों से भेंट होगी।

*राशि फलादेश मीन :-*
*(दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)*
प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी। राजकीय बाधा दूर होगी। व्यवसाय ठीक चलेगा। शत्रुभय रहेगा। लाभ होगा। पिछले कार्यों को टालना चाहिए क्योंकि उसमें असफलता का योग है। अनावश्यक विवाद होगा। व्यावसायिक योजनाएँ क्रियान्वित नहीं हो पाएँगी।

☯ *आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो |*

*।। शुभम भवतु ।।*

🇮🇳🇮🇳 *भारत माता की जय* 🚩🚩

प्राचीन इराक और भारत
१. प्राचीन भारत-इराक भारतवर्ष का भाग था। भारत वर्ष का ३ अर्थों में प्रयोग हुआ है-
(१) लोक पद्म- उत्तरी गोलार्द्ध के नकशे के ४ भागों में एक। इनको भू-पद्म के ४ दल कहा गया है-
(विष्णु पुराण २/२)-भद्राश्वं पूर्वतो मेरोः केतुमालं च पश्चिमे। वर्षे द्वे तु मुनिश्रेष्ठ तयोर्मध्यमिलावृतः।२४।
भारताः केतुमालाश्च भद्राश्वाः कुरवस्तथा। पत्राणि लोकपद्मस्य मर्यादाशैलबाह्यतः।४०।
यहां भारत-दल का अर्थ है विषुवत रेखा से उत्तरी ध्रुव तक, उज्जैन (७५०४३’ पूर्व) के दोनों तरफ ४५-४५ अंश पूर्व-पश्चिम। इसके पश्चिम में इसी प्रकार केतुमाल, पूर्व में भद्राश्व तथा विपरीत दिशा में (उत्तर) कुरु, ९०-९० अंश देशान्तर में हैं। महाभारत, भीष्मपर्व (९/५-९) के अनुसार यह इन्द्र (१७५०० ईपू), पृथु (१७,१०० ईपू), वैवस्वत मनु (१३९०२ ईपू), इक्ष्वाकु तथा उनके वंशजों का क्षेत्र रहा है।
विषुव से उत्तर ध्रुव तक इन्द्र के ३ लोक थे-भूलोक हिमालय तक, भुवः मंगोलिया तक, उसके बाद ध्रुव तक स्वः लोक।
३ कुरु थे। विषुव रेखा पर शून्य देशान्तर पर लंका था (लक्कादीव का दक्षिन भाग) इसके डूबने पर उज्जैन को शूण्य देशान्तर कहा गया था। कुरुक्षेत्र प्रायः इस रेखा पर था। इस रेखा पर सबसे उत्तर का नगर उत्तर कुरु था। यहां से देशान्तर अंश गिनती आरम्भ होती है अतः इसे ॐ नगर कहा गया (सिबिर या साइबेरिया की राजधानी ओम्स्क)। कुरुक्षेत्र की विपरीत दिशा में कुरु देश था (मेक्सिको, अमेरिका का पश्चिम भाग)।
मान्धाता (७५०० ईपू) का प्रभुत्व पूरी पृथ्वी पर था, अतः उनके राज्य में सदा किसी स्थान पर सूर्य का उदय और अन्य किसी स्थान पर अस्त होता रहता था। विष्णु पुराण, अंश ४, अध्याय, २-
तदस्तु मान्धाता चक्रवर्ती सप्तद्वीपां महीं बुभुजे॥६३॥तत्रायं श्लोकः॥६५॥
यावत् सूर्य उदेत्यस्तं यावच्च प्रतितिष्ठति। सर्वं तद्यौवनाश्वस्य मान्धातुः क्षेत्रमुच्यते॥६५॥
इसकी नकल कर अंग्रेजों ने कहा कि ब्रिटिश राज्य में सूर्य का अस्त नहीं होता।
(२) भारत वर्ष- हिमालय को पूर्व पश्चिम में समुद्र तक फैलाया जाय तो उसके दक्षिण समुद्र तक भारतवर्ष था जिसके ९ खण्ड थे। यहां द्वीप या महाद्वीप का अर्थ केवल समुद्र से घिरा क्षेत्र नहीं है, यह पर्वत, नदी या मरुस्थल द्वारा प्राकृतिक विभाजन भी है। मत्स्य पुराण, अध्याय ११४-
अथाहं वर्णयिष्यामि वर्षेऽस्मिन् भारते प्रजाः। भरणच्च प्रजानां वै मनुर्भरत उच्यते।५।
निरुक्तवचनाच्चैव वर्षं तद् भारतं स्मृतम्। यतः स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यमश्चापि हि स्मृतः।६।
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां भूमौकर्मविधिः स्मृतः। भारतस्यास्य वर्षस्य नव भेदान् निबोधत।७।
इन्द्रद्वीपः कशेरुश्च ताम्रपर्णो गभस्तिमान्। नागद्वीपस्तथा सौम्यो गन्धर्वस्त्वथ वारुणः।८।
अयं तु नवमस्तेषं द्वीपः सागरसंवृतः। योजनानां सहस्रं तु द्वीपोऽयं दक्षिणोत्तरः।९।
आयतस्तुकुमारीतो गङायाः प्रवहावधिः।तिर्यगूर्ध्वं तु विस्तीर्णः सहस्राणि दशैव तु।१०।
यस्त्वयं मानवो द्वीपस्तिर्यग् यामः प्रकीर्तितः। य एनं जयते कृत्स्नं स सम्राडिति कीर्तितः।१५।
इनमें इन्द्रद्वीप इरावती नदी क्षेत्र है, जहां का ऐरावत इन्द्र का हाथी था( वायु पुराण, ३७/२५)। नागद्वीप अण्डमान निकोबार से सुमात्रा तक था। पश्चिम इण्डोनेसिया सेलेबीज तथा पूर्व भाग गभस्तिमान था। गभस्तिमान की एक नदी गभस्ति (न्यूगिनी में) को शक द्वीप ) आस्ट्रेलिया में भी कहा गया है। ताम्रपर्ण तमिलनाडु की ताम्रपर्णी नदी के निकट का सिंहल-लंका द्वीप थे। सौम्य तिब्बत भाग था। गान्धर्व द्वीप अफगानिस्तान, किर्गिज आदि थे। ईरान-ईराक को मैत्रावरुण कहा गया है। मित्र भाग ईरान तथा उसके उत्तर पश्चिम का कामभोज भाग भी था। वारुण द्वीप इराक-अरब था। इसकी पश्चिमी सीमा पर यम थे (यमन, अम्मान, मृत सागर)।
(३) कुमारिका खण्ड-वर्तमान भारत (नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान सहित) कुमारिका खण्ड था जो अधोमुख त्रिकोण है, गंगा स्रोत तक उत्तर में चौड़ा होता गया है। अधोमुख त्रिकोण को शक्ति त्रिकोण कहते हैं। शक्ति का मूल स्वरूप कुमारी होने से यह कुमारिका खण्ड था। इसके दक्षिण अण्टार्कटिक (अनन्त द्वीप) तक का समुद्र भी कुमारिका खण्ड था जिसका वर्णन तमिल महाकाव्य शिलप्पाधिकारम् में है।
उत्तर से देखने पर हिमालय अर्ध चन्द्राकार दीखता है जिसके केन्द्र में कैलास शिव का स्थान हैं। अतः शिव के सिर पर अर्ध चन्द्र रहता है जो अरब में भी आजकल पूजा जाता है। अतः ३ कारणों से चीन के लोग इसे इन्दु कहते थे (आज भी कहते हैं)। अर्ध चन्द्र (इन्दु) रूप हिमालय, चन्द्र की तरह शीतल, चन्द्र की तरह ज्ञान प्रकाश विश्व को देने वाला। हुएन्सांग की भारत यात्रा वर्णन में कहा है कि ग्रीक लोग इन्दु का उच्चारण इण्डे करते हैं, जिससे इण्डिया हुआ है।
विश्व का भरण पोषण करने के कारण यहां के मनु (अग्नि, अग्रि = अग्रवाल) या शासक को भरत तथा इस देश को भारत कहते थे (मत्स्य पुराण, ११४/५-६)।
हिमालय द्वारा यह विभाजित होने से हिमवत् वर्ष या अरबी में हिमयार (अल बिरूनि-प्राचीन देशों की काल गणना) कहते थे।
विश्व सभ्यता की नाभि या केन्द्र होने से यह अजनाभ वर्ष था। जम्बूद्वीप के राजा आग्नीध्र के पुत्र को नाभि कहा गया है जिनको भारत का राज्य मिला। विष्णु पुराण, खण्ड २, अध्याय १-
जम्बूद्वीपेश्वरो यस्तु आग्नीध्रो मुनिसत्तम॥१५॥
पित्रा दत्तं हिमाह्वं तु वर्षं नाभेस्तु दक्षिणम्॥१८॥
हिमाह्वयं तु वै वर्षं नाभेरासीन्महात्मनः। तस्यर्षभॊऽभवत् पुत्रो मेरुदेव्यां महाद्युतिः॥२७॥
ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषु गीयते। भरताय यतः पित्रा दत्तं प्रातिष्ठिता वनम्॥३२॥
भारत मुख्यतः २ भागों में विभाजित था-सिन्धु से पूर्व वियतनाम, इण्डोनेसिया तक इन्द्र प्रभुत्व तथा सिन्धु से पश्चिम वरुण प्रभुत्व। विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद उसका राज्य १८ खण्डों में बंट गया और चीन, कामरूप, शक, बाह्लीक, तातार, रोमन, खुरज (कुर्द्द) ने आक्रमण किया। विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने उनको सिन्धु के पश्चिम खदेड़ कर उसे भारत की सीमा माना। शालिवाहन राज्य सिन्धुस्थान कहा गया। विक्रमादित्य का प्रभुत्व अरब तक था। भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड ३, अध्याय २-
विक्रमादित्य पौत्रश्च पितृराज्यं गृहीतवान्। जित्वा शकान् दुराधर्षान् चीन तैत्तिरि देशजान्॥१८॥
बाह्लीकान् कामरूपांश्च रोमजान् खुरजान् शठान्। तेषां कोषान् गृहीत्वा च दण्डयोग्यानकारयत्॥१९॥
स्थापिता तेन मर्य्यादा म्लेच्छार्य्याणां पृथक् पृथक्। सिन्धुस्थानमिति ज्ञेयं राष्ट्रमार्यस्य चोत्तमम्॥२०॥
म्लेच्छानां परं सिन्धोः कृतं तेन महात्मना।
२. इराक का वैदिक उल्लेख-
वरुण की प्रजा को यादस (एक असुर जाति) कहते थे-यादसांपतिः अप्-पतिः (अमरकोष, १/१/५६)। यादस का ताज हुआ, ये अभी ताजिकिस्तान में बसे हैं। यहां प्रचलित ज्योतिष शास्त्र ताजिक था जो अभी केवल भारत में प्रचलित है। पश्चिम भाग में अप्-पति के नाम पर सम्मान के लिए अप्पा साहब या आप कहते हैं।
शिल्प शास्त्र के अनुसार विष्णु ने नगरों का निर्माण किया जिनको उरु कहते थे। बाद में वरुण ने इराक में भी वैसा ही उरु नगर बनाया। ऊर नगर इराक का सबसे पुराना नगर कहा जाता है, जहां के अब्राहम थे (बाइबिल जेनेसिस. अध्याय ११, १५, १६, १७, २१, २५)।
शं नो विष्णुरुरुक्रमः (ऋग्वेद, १/९०/१)
उरुं हि राजा वरुण श्चकार (ऋग्वेद, १/२४/८)।
उरु नगर की गोल रचना है जिसका केन्द्र भाग सबसे ऊंचा होगा तथा परिधि की तरफ जल का निकास होगा। उरु नगर दक्षिण भारत के पर्वतीय भागों में हैं-चित्तूर, नेल्लोर, बंगलूरु, मंगलूरु, तंजाउर आदि। ऊरु का विशिष्ट श्रीनगर है जो श्रीयन्त्र के ९ चक्रों जैसा होगा। अष्टा चक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या (अथर्व, १०/२/३१)। यह मनुष्य शरीर, आकाश के विश्व तथा नगर के लिए भी है। श्रीयन्त्र के केन्द्रीय विन्दु के बाहर ८ चक्रों में नगर का निर्माण होता था, जो अयोध्या का स्वरूप थे। भारत मे ३ प्रसिद्ध नगर इस प्रकार के बने-कश्मीर, गढ़वाल के श्रीनगर, विजयनगर की राजधानी श्रीविद्यानगर। श्रीविद्यानगर का प्रारूप विद्यारण्य स्वामी ने बनाया था। इसका विजयनगर नाम बदलने पर कहा कि यह नगर ५०० वर्षों में नष्ट हो जायेगा। समतल भाग के लिये इन्द्र चौकोर पुर बनवाये जिनमें परस्पर लम्ब सड़कें थीं। चीन की राजधानी बीजिंग इसी प्रकार की थी। पर्वतीय भागों में मेरु नगर भी बने जो चौकोर पिरामिड की तरह थे, जैसे अजयमेरु। नदी के दोनों तरफ नगर बनाने पर वह वर्गाकार होता था जिसका कर्ण नदी थी और उसकी दिशा में जल निष्कासन होता था। इसे वज्र-नगर (ताश के डायमण्ड चिह्न की तरह) कहते थे।
वरुण की पूजा कर राजा हरिश्चन्द्र ने यशस्वी तथा दीर्घजीवी पुत्र का वरदान पाया। पुनः उसके बलिदान के लिए वरुण ने कहा। मार कर बलि देना दीर्घजीवी पुत्र के वर के विपरीत था। अतः यहां बलिदान का अर्थ था कि पहले स्वयं की उन्नति और उसके बाद देश की उन्नति के लिए अपना बलिदान करना। यहां बलिदान आत्महत्या नहीं है, अपनी पूरी शक्ति तथा साधन लगाना है। ऋक्, १/२४ सूक्त में शुनःशेप की कथा है, उसी में वरूण के ऊर नगर का भी उल्लेख है। उर के अब्राहम को भी वरदान में दीर्घजीवी इस्माइल पुत्र मिला था जिसका पुनर्जन्म पैगम्बर मुहम्मद को कहा जाता है। इस्माइल की बलि के बदले भेड़ या बकरे की बलि देना मूल कथा के विपरीत है। बकरीद का मूल अर्थ है गौ की पूजा। बकर = गौ, ईद = पूजा (ऋक्, १/१/१ में ईळे)।
३. महाभारत युग-
हरिवंश पुराण, विष्णु पर्व अध्याय ९१-९७ में इसकी विस्तृत कथा है। वहां वज्र-नगर का राजा वज्रनाभ असुर था। वज्र नगर अभी बसरा है, जो दजला नदी के किनारे है (प्राचीन सप्त गंगा में एक)।
ब्रह्माण्ड पुराण (१/२/१८)-ततो विसृज्यमानायाः स्रोतस्तत् सप्तधा गतम्। तिस्रः प्राचीमभिमुखं प्रतीचीं तिस्र एव तु॥३९॥
नद्याः स्रोतस्तु गंगायाः प्रत्यपद्यत सप्तधा। नलिनी ह्लादिनी चैव पावनी चैव प्राच्यगाः॥४०॥
सीता चक्षुश्च सिन्धुश्च प्रतीचीं दिशमास्थिताः। सप्तमी त्वन्वगात्तासां दक्षिणेन भगीरथम्॥४१॥
पश्चिम की सीता-चक्षु के बीच ईराक था अतः अंग्रेजों ने इसे मेसोपोटामिया (दो नदियों के बीच का क्षेत्र) कहा।
वज्रनाभ की पुत्री प्रभावती से भगवान् कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने विवाह कर असुरों को पराजित किया। प्रद्युम्न, उनके भाई गद, साम्ब तथा इन्द्र पुत्र जयन्त के पुत्रों के बीच ४ भागों में विभाजित हुआ। पराजित हो कर असुर लोग षट्-नगर चले गये। यह षट्-कोण रहा होगा। अभी इसका नाम शट-अल-अरब है।
४. मध्य युग-अरब में इस्लाम का प्रभुत्व होने पर उनके प्रमुख खलीफा की राजधानी बगदाद बनी जिसे पश्चिमी भगदत्त का नगर कहा गया। पूर्वी भगदत्त चीन तथा असम का राजा था। दोनों का उल्लेख महाभारत, सभा पर्व में है। अध्याय १४ में उनको पश्चिम दिशा में यवनाधिपति तथा मुर और नरकदेश का शासन करने वाला कहा है-
मुरं च नरकं चैव शास्ति यो यवनाधिपः। अपर्यन्त बलो राजा प्रतीच्यां वरुणो यथा॥१४॥
भगदत्तो महाराज वृद्धस्तव पितुः सखा। स वाचा प्रणतस्तस्य कर्मणा च विशेषतः॥१५॥
सभा पर्व, अध्याय २६ में भारत के पूर्वी भाग के राजा तथा चीन और समीपवर्ती द्वीपों का भी अधिपति और इन्द्र का मित्र कहा गया है-
शाकलद्वीपवासाश्च सप्तद्वीपेषु ये नृपाः। अर्जुनस्य च सैन्यैस्तैर्विग्रहस्तुमुलोऽभवत्॥६॥
स तानपि महेष्वासान् विजिग्ये भरतर्षभ। तैरेव सहितः सर्वैः प्राग्ज्योतिषमुपाद्रवत्॥७॥
तत्र राजा महानासीद् भगदत्तो विशाम्पते। तेनासीत् सुमहद् युद्धं पाण्डवस्य महात्मनः॥८॥
स किरातैश्च चीनैश्च वृतः प्राग्ज्योतिषोऽभवत्। अन्यैश्च बहुभिर्योधैः सागरानूपवासिभिः॥९॥
खलीफा का भगदत्त (बगदाद) पर शासन होने के बाद भी बगदाद विश्वविद्यालय में संस्कृत की पढ़ाई जारी रही। ६२२ ई. में हिजरी सन् आरम्भ होने पर उसकी गणना का आधार ईपू का ब्राह्म-स्फुट-सिद्धान्त (६२ ईपू, चाप शक ५५०, जो ६१२ ईपू से आरम्भ था) था। शालिवाहन शक ७८ से गणना करने पर इसका समय ६२८ ई होगा जो हिजरी आरम्भ होने के ६ वर्ष बाद का होगा। ब्राह्म-स्फुट-सिद्धान्त का प्रयोग होने के कारण खलीफा अल मन्सूर ने इसका अरबी में अनुवाद कराया। नाम का अनुवाद हुआ अल-जबर (ब्रह्म) उल मुकाबला (स्फुट सिद्धान्त) इससे अलजबरा शब्द बना, जो इस पुस्तक का गणित भाग है।
ईराक के राजाओं के मन्त्री अग्निहोत्री ब्राह्मण ही होते थे जिनका अरबी में बरमक नाम हो गया। यह उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा प्रकाशित मुस्तफा खान मद्दाह के उर्दू-हिन्दी कोष में बरमक शब्द के अर्थ में दिया है। बगदाद में अभी तक संस्कृत शिक्षा चल रही है। सद्दाम हुसेन की मृत्यु के बाद यह बन्द हुआ था।
✍🏻अरुण उपाध्याय