योनि के ऊपरी हिस्से को काटने की प्रथा (सुन्नत) के खिलाफ महिला ने पीएम को लिखा खत

योनि के ऊपरी हिस्से को काटने की प्रथा (सुन्नत) के खिलाफ बोहरा महिला ने पीएम को लिखा खत

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी,
            स्वतंत्रता दिवस पर आपने मुस्लिम महिलाओं के दुखों और कष्टों पर बात की थी. ट्रिपल तलाक को आपने महिला विरोधी कहा था, सुनकर बहुत अच्छा लगा था.

हम औरतों को तब तक पूरी आज़ादी नहीं मिल सकती जब तक हमारा बलात्कार होता रहेगा, हमें संस्कृति, परंपरा और धर्म के नाम पर प्रताड़ित किया जाता रहेगा. हमारा संविधान सभी को समान अधिकार देने की बात करता है, पर असल में जब भी किसी बच्ची को गर्भ में मारा जाता है, जब भी किसी बहु को दहेज के नाम पर जलाया जाता है, जब भी किसी बच्ची की जबरन शादी करवा दी जाती है, जब भी किसी लड़की के साथ छेड़खानी होती है या उसके साथ बलात्कार किया जाता है, हर बार इस समानता के अधिकार का हनन किया जाता है.

ट्रिपल तलाक अन्याय है, पर इस देश की औरतों की सिर्फ़ यही एक समस्या नहीं है. मैं आपको औरतों का सुन्नत/ खतना (Female Genital Mutilation ) के बारे में बताना चाहती हूं, जो छोटी बच्चियों के साथ किया जाता है. जो बच्चियां अपने शरीर से जुड़े निर्णय नहीं ले सकती, उन्हें इस अमानवीय प्रथा का शिकार बनना पड़ता है. इन बच्चियों के शरीर को जो नुकसान पहुंचता है, उसे किसी भी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता. इस प्रथा के खिलाफ़ पूरी दुनिया में आवाज़ उठाई जा रही है.

मैं इस ख़त के द्वारा आपका ध्यान इस भयानक प्रथा की तरफ़ खींचना चाहती हूं. बोहरा समुदाय में सालों से ‘ख़तना’ या’ख़फ्ज़’ प्रथा का पालन किया जा रहा है. बोहरा, शिया मुस्लिम हैं, जिनकी संख्या लगभग 2 मिलियन है और ये महाराष्ट्र,गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बसे हैं.

मैं बताती हूं कि मेरे समुदाय में आज भी छोटी बच्चियों के साथ क्या होता है. जैसे ही कोई बच्ची 7 साल की हो जाती है,उसकी मां या दादी मां उसे एक दाई या लोकल डॉक्टर के पास ले जाती हैं. बच्ची को ये नहीं बताया जाता कि उसे कहां ले जाया जा रहा है या उसके साथ क्या होने वाला है. दाई या आया या वो डॉक्टर उसके योनि (Clitoris) को काट देते हैं. इस प्रथा का दर्द ताउम्र उस बच्ची के साथ रह जाता है.

 

इस प्रथा का एकमात्र उद्देश्य है, बच्ची या महिला की यौन इच्छा को दबाना.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन  के अनुसार, ‘सुन्नत  महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकार का हनन है. महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव का ये सबसे बड़ा उदाहरण है. बच्चों के साथ ये अकसर होता है और ये उनके अधिकारों का भी हनन है. इस प्रथा से व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है.’

सैंकड़ों सालों से इस प्रथा का शांति से पालन किया जा रहा है और बोहरा समुदाय के बाहर बहुत कम लोग ही इस प्रथा के बारे में जानते होंगे. 2015 में बोहरा समुदाय की कुछ महिलाओं ने एकजुट होकर #WeSpeakOut On FGM नाम से एक कैंपेन शुरू किया और यहां हमने आपस में अपनी दुख और कहानियां एक-दूसरे से कही. हमने ख़तना के खिलाफ़ एक जंग का ऐलान करने की ठानी.

हमने अपने पादरी, सैदना मुफ़्फदल को इस प्रथा को रोकने के लिए कई ख़त लिखे, पर हमारी बात किसी ने नहीं सुनी. ये प्रथा न सिर्फ़ आज भी चल रही है, बल्कि पादरी साहब ने एक पब्लिक प्रेस स्टेटमेंट में ये घोषणा भी कर दी कि 1400 साल से जो प्रथा चल रही है उसे किसी भी हालत में नहीं बदला जाएगा. बच्चों के मानवाधिकार हनन की तरफ़ किसी ने भी ध्यान नहीं दिया.