हरीश मैखुरी
उत्तराखंड राज्य आन्दोलन स्वत:स्फूर्त भारी जनआन्दोलन था। छोटे छोटे स्थानों पर भी युवक युवतियाँ नेतृत्व दे रहे थे। आज वे राज्य आन्दोनकारी बूढ़े और तिरस्कृत हो चुके हैं, उन्हें गरियाना आसान हो गया है। राज्य आन्दोलकारियों ने कभी कुछ नहीं मांगा उन्होंने तो राज्य की लड़ाई निस्वार्थ भाव से लडी। पत्रकारों ने कलम से राज्य की लड़ाई लडी़। वकीलों ने अदालतों में लडी़। उत्तराखंड भर में लाखों लोगों ने आन्दोलन में कूद कर अपना अमूल्य योगदान दिया। और उसके बाद से गैरसैंण स्थाई राजधानी के लिए लड़ते रहे। तिवारी सरकार ने आन्दोलनकारियों को कम करने और कमजोर करने की वजह से चिन्हींकरण के लिए कुछ मानक तय किए। जो उत्तराखंड आन्दोलन में जेलों में बंद रहे उन पर मुकदमें दर्ज हुए मुजफ्फरनगर खटीमा मसूरी जैसे कांड या गोपेश्वर रूद्रप्रयाग जैसे कर्फ्यू में गोली से चोटिल हुए अस्पताल भर्ती रहे उन्हें चिन्हींकृत किया गया। अब लोग इन पर्वतीय आजादी के जंग ए परवाने आन्दोलनकारियों के विरोध में कोर्ट भी जाते हैं। जीत भी जाते हैं। चुनावबाज नेताओं की सरकार बनती है। आन्दोनकारी उपेक्षित मरते हैं।