उत्तराखंड में विश्व एड्स दिवस पर काली पट्टी बांध कर जताया विरोध

डाॅ हरीश मैखुरी

आज विश्व एड्स दिवस है। एचआईवी एड्स पर जानकारी और फोबिया के साथ ही लोगों में इसके प्रति काफी सामाजिक भ्रांतियां भी हैं। एचआईवी को हम साइलेंट किलर भी कहते हैं एचआईवी इनफेक्शन होते ही व्यक्ति की जिंदगी बदल जाती है। एचआईवी के संक्रमण होने के बाद एड्स की स्थिति आने तक 8 से 12 साल लग जाते हैं इसे हम इनक्यूबेशन पीरियड कहते हैं। एचआईवी का संक्रमण आने के तुरंत बाद अन्य बीमारियों की तरह इसमें कोई लक्षण नहीं आते यह ह्यूमन वायरस है और एक्वायर्ड है याने जोखिमपूर्ण व्यवहार में संलिप्त रहने पर ही इनफेक्शन हो सकता है। एचआईवी का संक्रमण ना हो इसके लिए जानकारी बचाव ही मुख्य साधन है। अभी तक एचआईवी का टीका विकसित नहीं हो पाया है। 80% मामलों में यह संक्रमण असुरक्षित योन संबन्धों से फैला है और 15 से 49 उम्र की युवा और कमाने वाली पीढ़ी को अपनी चपेट में ले रहा है। एचआईवी संक्रमण होने की स्थिति में मुफ्त जांच, परामर्श और इलाज की सुविधा पर काम चल रहा है। इस बारे सही जानकारी से लोग एचआईवी के प्रति जागरूक होंगे और एचआईवी का संक्रमण नहीं आएगा, क्योंकि यह एक्वायर्ड है जब लेंगे तभी यह संक्रमण आएगा। दूसरा यह केवल एक व्यक्ति से दूसरे तक पंहुचने वाला संक्रमण है इसलिए अगर आदमी जागरूक है तो इस संक्रमण से बचा जा सकता है। एचआईवी फैलने के मुख्य रूप से अभी तक चार मुख्य कारण सामने आए हैं- गर्भवती मां से उसके बच्चे को, एचआईवी संक्रमित रक्त चढ़ाने से, असुरक्षित यौन संबंधों के कारण और एक ही सुई को बहुत लोगों द्वारा प्रयोग किए जाने से अक्सर एचआईवी का संक्रमण होता है। इसीलिए इंजेक्शन लगाने के लिए नई सुई का प्रयोग करना चाहिए असुरक्षित यौन संबंध नहीं बनाने चाहिए गर्भवती माताओं को अस्पताल में जाकर अपना एचआईवी टेस्ट कराना जरूरी है ताकि उसको संक्रमण है तो उसके बच्चे को बचाया जा सके और एक ही सुई का प्रयोग बहुत व्यक्तियों द्वारा कदापि नहीं किया जाना चाहिए, इतनी ही सावधानी रखने से ही हम एचआईवी के संक्रमण से बच सकते हैं। यदि किसी तरह से संक्रमण आने की संभावना लगती है तो सभी बड़े चिकित्सालयों में आईसीटीसी सेंटर बनाए गए हैं जहां पर मुफ्त में एचआईवी परीक्षण और परामर्श की मुफ सुविधा है। साथ ही एआरटी सेंटरों में एचआईवी की दवाई मुफ्त मिलती है। उत्तराखंड में एचआईवी इनफेक्शन के करीब 8000 केस पाए गए हैं जबकि पूरे देश में करीब 26 लाख एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति हैं जिनको a.r.t. सेंटरों पर दवा दी जा रही है। एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी लेने से एचआईवी धनात्मक व्यक्ति भी सामान्य जीवन जी सकते हैं लेकिन वह सदैव एचआईवी पॉजिटिव बने रहेंगे और यदि किसी से भी असुरक्षित यौन संबंध बनाते हैं तो वे दूसरे को भी एचआईवी धनात्मक बना सकते हैं। दुर्भाग्य से एचआईवी एड्स के क्षेत्र में काम करने वाले सभी स्वास्थ्य कर्मी पिछले 15 सालों से अस्थाई व्यवस्था पर उच्च जोखिम पूर्ण कार्य करने के बावजूद साथ मात्र 7 से 8 हजार रुपये महीने के मानदेय पर काम करते हैं। सरकारों ने इन एचआईवी एड्स के क्षेत्र में काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के प्रति पिछले 15 सालों से नकारात्मक रुख अपनाया हुआ है। जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में तो पिछले चार-पांच सालों से उत्तराखंड राज्य एड्स नियंत्रण समिति ने इन स्वास्थ्य कर्मियों का की वार्षिक मानदेय वृद्धि भी नहीं दिया, जिसकी वजह से इन स्वास्थ्य कर्मियों में बहुत ज्यादा आक्रोश है और उन्होंने इस विश्व एड्स दिवस पर काली पट्टी पहन कर अपना विरोध दर्ज किया और इस विरोध से मुख्यमंत्री सहित स्वास्थ्य सचिव स्वास्थ्य महानिदेशक और परियोजना निदेशक को भी अवगत कराया है। एचआईवी एड्स जैसे संवेदनशील उच्च जोखिमपूर्ण और संक्रमण कारी क्षेत्र में काम करने के बावजूद इन स्वास्थ्य कर्मियों को एनजीओ के अधीन रखा गया है और उनके मानदेय पर भी उच्चाधिकारी कुंडली मारे बैठे हैं। स्वास्थ्य सचिव का कहना है कि मानदेय वृद्धि रोके जाने का मामला उनके संज्ञान में नहीं है।