देश एवं धर्म को जिंदा रखने के लिए जिंदा दीवार में चिने गए 6 बर्षीय फते सिंह व 8 बर्षीय जोरावर सिंह

आज के ही दिन देश धर्म व मजहब को जिंदा रखने के लिए जिंदा दीवार में चिने गए 6 बर्षीय फते सिंह व 8 बर्षीय जोरावर सिंह।

इस्लाम कबूल कर लो…वरना….
वरना क्या ???
मौत की सज़ा मिलेगी……

पूस का 13वां दिन…. नवाब वजीर खां ने फिर पूछा….
बोलो इस्लाम कबूल करते हो ?

6 साल के छोटे साहिबजादे फ़तेह सिंह ने नवाब से पूछा….
अगर मुसलमाँ हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे न ? 

वजीर खां अवाक रह गया….उसके मुँह से जवाब न फूटा

तो साहिबजादे ने जवाब दिया कि जब मुसलमाँ हो के भी मरना ही है , तो अपने धर्म में ही अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें ?

दोनों साहिबजादों को ज़िंदा दीवार में चिनवाने का आदेश हुआ ।

दीवार चिनी जाने लगी ।
जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह की गर्दन तक आ गयी तो 8 वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगा…..
फ़तेह ने पूछा, जोरावर रोता क्यों है ?

जोरावर बोला, रो इसलिए रहा हूँ कि आया मैं पहले था पर कौम के लिए शहीद तू पहले हो रहा है…

गुरु साहब का पूरा परिवार 6 पूस से 13 पूस… इस एक सप्ताह में कौम के लिए धर्म के लिए राष्ट्र के लिए शहीद हो गया ।

दोनों बड़े साहिबजादों, अजीत सिंह और जुझार सिंह जी का शहीदी दिवस !
21 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक इन्हीं 7 दिनों में गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा परिवार शहीद हो गया था। इस्लाम का तब ये चेहरा अब उससे भी अधिक खतरनाक, आक्रामक और समूची दुनियां में आतंकवाद के लिए कुख्यात हुआ है। ये भी देखने को मिलता है कहीं कहीं वह जिहाद और धर्मांतरण के लिए कूटनीतिक तरीके भी अपनाता है। पहले यहाँ पंजाब में इस हफ्ते सब लोग ज़मीन पर सोते थे क्योंकि माता गूजरी ने 25 दिसम्बर की वो रात दोनों छोटे साहिबजादों के साथ नवाब वजीर ख़ाँ की गिरफ्त में सरहिन्द के किले में ठंडी बुर्ज़ में गुजारी थी और 26 दिसम्बर को दोनो बच्चे शहीद हो गये थे । 27 तारीख को माता ने भी अपने प्राण त्याग दिए थे।

यह सप्ताह भारत के इतिहास में ‘शोक सप्ताह’ होता है, शौर्य का सप्ताह होता है ।

इधर भारत Christmas के जश्न में डूबा एक-दूसरे को बधाइयाँ दे रहा है। यहाँ तक कि सनातन संस्कृति की नींव पर खड़े देवभूमि उत्तराखंड के कुछ आश्रम आज क्रिसमस की बधाइयाँ जारी कर रहे हैं। अंग्रेजों की देखा-देखी पगलाए हुए हम भारतीयों ने गुरु गोविंद सिंह जी की कुर्बानियों को सिर्फ 400 साल के भीतर ही भुला दिया ❗ यही मूल कारण है कि पहले हम मुसलमान, उसके बाद ईसाइयों के ग़ुलाम बने। आइए, उन सभी ज्ञात-अज्ञात महावीर-बलिदानियों को याद करें जिनके कारण आज सनातन संस्कृति बची। आज उन सभी ज्ञात-अज्ञात महावीर-बलिदानियों को भी याद करें!