केवल दोनों सीटों पर नहीं 59 सीटों पर भी हार का दायित्व मेरा : हरीश रावत

✍️हरीश मैखुरी

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की बातों का मर्म बहुत गहरा होता है। वे सवालों के उत्तर भी गहन संकेतों और प्रतीकों से देते हैं। हरीश रावत पिछले काफी समय से पार्टी नेतृत्व से उत्तराखंड में पार्टी का मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने का विषय उठा रहे हैं। इस पर नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का चुटकी लेते हुए एक बयान मीडिया में आया था कि जो व्यक्ति दो दो सीटों पर चुनाव हार गये वे पार्टी नेतृत्व को पार्टी का चेहरा घोषित करने का ज्ञान दे रहे हैं। संभव तया उसी का आज हरीश रावत ने प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि “आज मैंने पुराने रिकॉर्ड तलाशे, विधानसभा_चुनाव 2017 में चुनाव के दौरान मैंने 94 सार्वजनिक सभाएं की, जिनमें #किच्छा में नामांकन के दिन की सार्वजनिक सभा भी सम्मिलित है, #हरिद्वार में तो मैं कोई सार्वजनिक सभा कर ही नहीं पाया। शायद मेरे मन में यह विश्वास रहा कि सारे राज्य में चुनाव प्रचार का दायित्व मेरा है और किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण में #चुनाव_प्रचार का दायित्व मेरे सहयोगी-साथी संभाल लेंगे।

 हरीश रावत यहीं नहीं रूके अपनी बात को और स्पष्ट रूप से रखते हुए उन्होंने हार पर सवाल उठाने वालों को ही आयना दिखाते हुए आगे लिखा है लिखा है कि ” यह भी एक बड़ी विडंबना है कि जो लोग चुनाव के दौरान अपने क्षेत्र से बाहर, किसी भी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार में नहीं गये, वो मुझसे 59 सीटों की हार का हिसाब चाहते हैं, हारें पहली भी हुई, हारें बाद में भी हुई। मैंने न बाद की हारों का #हिसाब मांगा है, क्योंकि मैंने उन हारों को भी सामूहिक समझा है और जो पहले की हारें हैं, मैंने किसी से यह नहीं पूछा कि क्या कारण है जो चुनावी #जीत के विशेषज्ञ हैं, उनके चारों तरफ की सीटों में 2007 से हम लगातार क्यों हारते आ रहे हैं? यह भी एक खोज का विषय है और जो आज अपने को अपराजेय मानकर चलते हैं, चुनावी हारों के कड़वे घूट तो सबको कभी न कभी पीने पड़ते हैं।

 इसके आगे हरीश रावत विरोधियों को निशाने पर लेते हुए लिखते हैं “एक ऐसा चुनाव हुआ था जिसमें एक #राष्ट्रीय दल की आंधी चली थी और उसके ऐसे भी उम्मीदवार थे जो अपनी जमानत नहीं बचा पाये थे, लेकिन समय का फेर है #कांग्रेस की शक्ति जब हाथ में आई तो वो लोग कभी पराजित न होने वाले #योद्धा की तरीके से दिखाई देते हैं तो जीत का श्रेय कभी-कभी हमको, पार्टी के उन साथियों के साथ भी बांटना चाहिये, जिनके परिश्रम के बल पर हमको यह सौभाग्य हासिल होता है और मैंने तो 2017 की चुनावी पराजय का केवल 2 ही सीटों पर क्यों? 59 सीटों पर भी हार का दायित्व अपना माना है और उसके लिये पूरी जिम्मेदारी, अपने कंधों पर ली है”

एक जगह हरीश रावत ने बड़ी बेबाकी से इस आरोप को भी स्वीकार किया कि देवभूमि उत्तराखंड का मुख्यमंत्री रहते हुए शुक्रवार को दो घंटे छुट्टी ने ही उत्तराखंड में उनकी छुट्टी की, वर्ना ढा़ई वर्ष में उनके काम किसी भी रूप में कम नहीं थे। एक जगह वे यह भी कह रहे हैं कि मोदी फैक्टर का उत्तराखंड चुनावों में असर कम करना है तो पार्टी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना चाहिए ताकि चुनाव मोदी वर्सेस ना हो बल्कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुकाबले हो। 

हरीश रावत रैणी तपोवन ग्लेशियर विस्फोट की घटना पर न केवल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पार्टी की चिंताओं से अवगत कराते हैं। बल्कि घटना स्थल पर भी पंहुच जाते हैं। कुछ भी हो हरीश रावत जमीनी राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ियों में शुमार हैं। वे तिवारी सरकार में भी पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को बरकरार रखते हुए सिद्दत से मुद्दे उठाते थे और आज भी, पार्टी संगठन में आगे रह कर बेबाकी से अपनी बात रखते हैं। उम्र के इस दौर में जब लोग बोरिया बिस्तर समेट लेते हैं, हरीश रावत मजबूत चट्टान की भांति खड़े ही नहीं बल्कि बहुत सक्रिय राजनीति कर रहे हैं और पूरी गंभीरता से जन मुद्दे उठा रहे हैं।