दिल्ली, बच्चे ने शवगृह में लाश पर से चादर खिसकाई करुण आवाज में कहा पापा, पापा उठो और फफक पड़ा, फिर बेसुध होकर गिर गया, शायद उसे अनुमान हो कि उसके पापा अब कभी नहीं उठेगें।
बीते शुक्रवार को दिल्ली के एक सीवर में नंगे हाथों बिना मास्क के सफाई करते हुए उसका पिता शव में बदल गया, उसे हमेशा के लिए अकेला छोड़कर। जो कि घर में अकेला कमाने वाला इंसान था,
अरबों रुपए सफाई अभियान में खर्च करने वाला अपना देश सीवर सफाई हेतु कुछ लाखों की मशीनों से परहेज़ कर रहा है।
हम इस बच्चे के आंसुओं का बोझ उठाएंगे? कल तक तो हमसभी इस बात को भूल भी जाएंगे । दिल को झकझोरने वाली ऐसी घटनाओं में सीवरों में मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है, काश देश के जिम्मेदार लोग गरीबों की हालत समझ पाते, वोटों की खातिर राजनीतिक दल ScSt एक्ट के दलदल तो बन गये, पर इन गरीबों की जान की कीमत कूड़े से भी कम बना कर रखी है।
हमारे संवादाता का ने बताया कि इस परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि शव की अंतिम क्रिया के लिए भी इनके पास पैसे नहीं। आंकड़ों के अनुसार देश में इस वर्ष 3000 लोगों ने सीवरों में अपने प्राण गंवाये, भारत में जंगल में शौच की परम्परा भी जिस पर कई प्राणियों का जीवनचक्र चलता था, सीवर सभ्यता ने नदियों को टट्टी का घोल और गंदगी छोड़ने का स्थान बना दिया, इन सीवरों में लोग अन्य गंदगी के साथ ही पौलीथिन, बच्चों और महिलाओं के नैपकिन भी डाल देते हैं कम पानी और इन पौलीथिन व नैपकिनों आदि से सीवर चोक हो जाते हैं और इनकी सफाई के लिए फिर गरीब फिर अपना स्वास्थ्य और जान गंवाते हैं। इस लिए सीवर की बजाय शौचालय के पिट बनाये जाने पर जोर दिया जाना चाहिए, और सीवर सभ्यता समाप्त होनी चाहिए। इससे एक तो धरती में पानी समायेगा खाद बनेगी और लोग भी यूं मरेंगे नहीं, दूसरा भारत में स्मार्ट सिटी की बजाय स्मार्ट गांव बनाने और कठोर जनसंख्या नियंत्रण नीति पर जोर दिया जाना चाहिए। इससे शहरीकरण की बीमारियां दुश्वरियां और समस्याओं से निजात मिलेगी।