प्रस्तुति ✍️हरीश मैखुरी
मोनालिसा विद्यलयी शिक्षा ना होते हुए भी अपनी परम्परागत सनातन धर्म संस्कृति से ओतप्रोत एवं संस्कारवान है जो माला बेचकर सत्यनिष्ठा सौम्यता व सेवाभाव से अपने परिवार का पालन पोषण कर रही है और दूसरा है आईआईटी की पढ़ाई के उपरांत भी असंस्कारी और नाटकबाज है जो न केवल साक्षात भगवान जैसे माता-पिता को छोड़कर अपने दायित्व से भाग गया अपितु उनका अनादर भी करता है। आजकल नशेड़ी यू-ट्यूबरों का आदर्श बना हुआ है। इसकी न देश के प्रति कोई दृष्टि है न इसे सनातन धर्म संस्कृति की समझ है न अध्ययन है। आप लोग बताइए इन दोनों में से कौन सही है और कौन गलत वे उस विरक्त आईआईटियन के पीछे तबतक पड़े रहे, जबतक कि उसका समस्त अर्जित ज्ञान नष्ट न हो गया। आप कितने भी ज्ञानी क्यों न हों, दस फुहड़ लोगों के प्रश्नों का उत्तर देना पड़ जाय तो आप उल्टा पुल्टा बोलने लगेंगे। वह लड़का कोई सिद्ध महात्मा नहीं था, कुछ वर्ष पूर्व दीक्षित हुआ युवा साधु था। सम्भव था कि लम्बे समय तक संतों की संगत में रह कर कुछ ज्ञान अर्जित कर पाता, लेकिन इसी बीच उसके पीछे यह असभ्य भीड़ लग गयी और अपनी ओर से उसका लगभग नाश कर दिया।
वे उस माला बेचने वाली लड़की के पीछे तबतक पड़े रहे जबतक कि वह वापस भाग नहीं गयी। वे उसे दौड़ाते रहे। वह दौड़ दौड़ कर भागने लगी तो पीछे से गालियां देने लगे। “मोनालिसा का असली रूप आया सामने, मीडिया को देख कर क्यों भागी मोनालिसा” जैसे फुहड़ कैप्शन के साथ उसके वीडियो चलाये जाने लगे। उसे उठवा लेने की धमकियां दी गईं। भयभीत होकर उसके पिता ने उसे वापस भेज दिया।
जो साधु इनका उत्तर नहीं दे रहा, उसे ढोंगी बता कर गालियां दे रहे हैं। जो सहज भाव से उत्तर देने लगता है उसपर इतने टूट पड़ते हैं कि वह भी परेशान हो जाता है। हठयोगियों की तस्वीरें ले कर उसपर विमर्श चल रहा है कि इससे फायदा क्या है? इसी में मौका तलाश कर “विदेशी चंदे के बदले अपना विचार बेंच चुके लोग” भी कूद गए हैं। वे वैराग्य को ही ढोंग प्रूफ करने में लगे हैं।
कुम्भ में पहुँचने वाला हर संत शास्त्रों का ज्ञाता नहीं होता। असंख्य तो ऐसे होते हैं जिन्हें अक्षर ज्ञान भी नहीं होता, बल्कि वे अपना सम्पूर्ण जीवन किसी मन्दिर में सेवा करते हुए गुजार देते हैं कुम्भ आस्था का प्रतीक है और कुछ जाहिलों द्वारा उसे फिल्मसिटी बना दिया गया है पहुंच जाते हैं हर जगह हाथ में कैमरा और मोबाइल लेकर इन लपड़झंडुओ को इतना भी नहीं पता की इन्ही सांसारिक क्रियाओ को छोड़कर तो साधु संत वैराग्य लेते हैं कुम्भ एक माध्यम है सनातन के विभिन्न रूपों को समझने का वरना ऐसे संतो का दर्सन शायद ही जीवन में कभी हो पायेगा सरकार को तत्काल इन लीब्रण्डुओं पर रोक लगनी चाहिए क्युकी कुम्भ छेत्र के संतो को जानने के लिए कैमरे की नहीं श्रद्धावान सोच की आवश्यकता है…सरकार को चाहिए भले आईआईटी कम बनाओ लेकिन हर गांव में एक गुरूकुल अवश्य बनाओ।
सुनो युवाओं तुम भारत की संस्कृति के अधिकारी हो ।
तुम्हें सुनिश्चित करना है कल क्या पहचान तुम्हारी हो।
बड़ी स्वर्ग से जन्मभूमि ये सत्य सनातन कहता है।
ऐसा कोई कार्य न हो जो हिन्दू हित पर भारी हो।
जाग्रत रहिए | संगठित रहिए | सुरक्षित रहिए
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💐🌺💐🌺💐🌺💐🌺💐🌺💐🌺💐संस्कृती सबकी एक चिरंतन
संस्कृती सबकी एक चिरंतन खून रगों मे हिंदु हैं
विराट सागर समाज अपना हम सब इसके बिंदू हैं
राम कृष्ण गौतम की धरती, महावीर का ज्ञान यहां
वाणी खंडन मंडन करती, शंकर चारों धाम यहां
जिसने दर्शन राहें उतनी, चिंतान का चैतन्य भरा
पंथ खालसा गुरू पुत्रों की बलिदानी यह पुण्य धरा
अक्षय वट अगणित शखाऐं, जड में जीवन हिंदु हैं……………।१
कोटी हृदय हैं भाव एक हैं, इसी भूमि पर जन्म लिए
मातृभूमि यह कर्मभूमि यह, पुण्यभूमि हित मरे जिये
हारे – जीते संघर्षों में, साथ लढे बलिदान हुए
कालचक्र की मजबूरी में रिश्ते नाते बिखार गये
एक बडा परिवार हमारा, पुरखे सब के हिंदु हैं………………।२
सबकी रक्षा धर्म करेगा, उसकी रक्षा आज करें
वर्ण – भेद मत – भेद मिटा कर नव रचना निर्माण करें
धर्म हमारा जग में अभिनव, अक्षय है अविनाशी हैं
इसी कडी से जुडे हुए, युग युग से भारतवासी हैं
थाय अथाह जहां की महिमा, गहरा जैसे सिंधु हैं……………।।३
हरिजन गिरिजनवासी बन के, नगर ग्राम सब साध चलें
उंच नीच का भाव घटा कर, समता के सद्भाव बढें
ऊपर दिखते भेद भले हों, जैसे वनमें में फूल खिले
रंग बिरंगी मुस्कानों से, जीवन रस पर एक मिले
संजीवनी रस अमृत पीकर, मृत्युंजय हम हिंदु है……………।४