लोकतंत्र का मौजूदा स्वरूप विफल हो गया?

दुनिया में लोकतंत्र का मौजूदा स्वरूप विफल हो गया है? 

माओ ने कहा था सत्ता बन्दूक की नौक से निकलती है। वीर विक्रमादित्य का राज्य टर्की से लेकर इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड तक फैला था उसने सत्ता के लिए लोकतन्त्र की भीख नहीं मांगी! चीन ने भी महाशक्ति बनने के लिए लोकतन्त्र का सहारा नहीं लिया। ब्रिटेन में स्टुअर्ट वंश की समाप्ति के बाद वो राजा के स्थान पर राजा बिठाने के लिए 1712 में जर्मनी के हनोवर वंश के राजकुमार को लाए, जिस वंश की महारानी आज शासन कर रही है। अमेरिका लोकतन्त्र के नाम पर बिखरने के कगार पर है।

यूरोप लोकतन्त्र के नाम पर शरणार्थियों और आतंकियों के निशाने पर है। कथित लोकतन्त्र का लाभ केवल इस्लामिक जेहादियों को मिल रहा है। ये इस्लामिक असुर विश्व सभ्यता को लील रहे हैं। भारत इस्लाम को छोड़ कर सभी पन्थों के केंद्र में रहा है। हमारी अज्ञानता से हम ईसाइयों/ बौद्धों को यह तक समझाने में विफल रहे हैं कि तुम्हारा मूल सनातन धर्म है। धरती के सभी मनुष्य एक ही माता पिता की सन्तान हैं और सबकी उत्तपत्ति इसी बद्रिकाश्रम से हुई है। जीजस और गौतमबुद्ध ने बद्रिकाश्रम में 8 साल तक अध्ययन किया है।
मनुष्य यहां से प्रसारित होकर भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार अफ्रीका में वह काले तो थाइलैंड में पीले हो गये तिब्बत में बोने तो रसिया में लम्बे हो गये।
जो इस ईश्वरीय सत्य को मानता है और जगत को आत्मवत देखता है वह दैवीय प्रकृति वाला है। जो इसको नहीं मानता और इन्द्रिय सुखों को ही सर्वोपरि मानकर चलता है वह असुर है। उसकी वृतीयां राक्षसी होती है। इस्लामी राक्षसों से इसवक्त मानवता त्रस्त है। पहले भी ऐसा होता रहा है। तभी तो पुराणकारों ने मानवता के हित में लिख कर रखा है।
महाभारत के शांतिपर्व में लोकतन्त्र का तातपर्य जिसके पास सारे लोकों का तंत्र है वह भगवान नारायण हैं।
देश में भीमासुर खुद ही नारायण बन बैठे हैं। ये तो आसुरी राज हुआ न कि लोकतंत्र। भारत का लोकतंत्र अंग्रेजी राज की अपठित कार्बन कापी ही है। उल्टे आरक्षण की विसम विधान की आरी ने योग्यता का गला रेत दिया है।