PM मोदी फिर बने दुनिया के नंबर 1 नेता, पीछे छूटे ट्रंप Donald Trump और मैक्रों छूटे बहुत पीछे।
दांपत्य जीवन के प्रेम, समर्पण एवं अखंड सौभाग्य के पावन पर्व हरियाली तीज के शुभ अवसर पर आप सभी मातृशक्ति को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं बाबा श्याम व
भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती आप सबके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करें। ॐ नमः शिवाय।
अमेरिका पिछले 100 वर्षों से महाशक्ति रहा है। उन्होंने हर उस देश को नष्ट कर दिया जिसने उन्हें चुनौती दी।
जब जापान ने उन्हें चुनौती दी, तो उन्होंने उन्हें नष्ट कर दिया। जब यूएसएसआर ने उन्हें चुनौती दी, तो उन्होंने उन्हें 17 टुकड़ों में तोड़ दिया।
आजकल चीन है। लेकिन भारत के अधिक भू-राजनीतिक महत्व प्राप्त करने के साथ, भारत की बारी आ गई है।
पिछले 100 सालों से अमेरिकी उद्योगपतियों ने दुनिया के टॉप टेन उद्योगपतियों पर अपना दबदबा कायम रखा है, टॉप 10 में से 8, 9 तो सिर्फ अमेरिकी उद्योगपति हैं, कोई और दूर-दूर तक नहीं l
जब चीन के “जेक मा” ने तीसरा स्थान हासिल किया तो उनके खिलाफ “लॉबिंग” शुरू हो गई और उन्हें भागना पड़ा, वे अब अडानी और अंबानी जैसे भारतीय कारोबारियों के पीछे पड़े हैं।
अमेरिका की ताकत उसका उद्योग है, वह तकनीक और व्यापार के बल पर पूरी दुनिया को नियंत्रित करता है,
अगर कोई देश या उद्योगपति उनसे मुकाबला करेगा या उन्हें चुनौती देगा तो वे अरबों रुपए खर्च करके उन्हें बर्बाद कर देंगे।
पिछले पांच सालों में भारतीय उद्योगपति “अडानी” ऊंची उड़ान भर रहे थे, पिछले साल वे दुनिया के दूसरे सबसे बड़े उद्योगपति बन गए थे, अगर यही रफ्तार जारी रहती तो वे 2024 में दुनिया के सबसे बड़े उद्योगपति बन जाते, दुनिया भारत की तरफ देखती l
ऊर्जा पर निर्भरता भारत की कमजोरी रही है, जिसके कारण 1991 में भी भारत को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था भारत के तेल आयात बिल में भारी वृद्धि के कारण संकट और गहरा गया है। अडानी भारत की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना- दुनिया की सबसे कम लागत वाली ग्रीन हाइड्रोजन परियोजना स्थापित करके भारत की ऊर्जा को सुरक्षित करने की दिशा में काम कर रहे हैं, जो समय के साथ तेल और गैस की जगह ले लेगी। यह हिंडनबर्ग द्वारा अडानी पर बार-बार किए गए हमलों की व्याख्या करता है। और हाल ही में सीएनबीसी द्वारा अडानी के दुनिया के दूसरे ट्रिलियनेयर बनने के पूर्वानुमान के साथ, समूह पर हमले यहां से और तेज होंगे।
यदि भारत ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ अभियान चला रहा है, तो इसका मतलब है कि भारत एक बहुत बड़ा बाजार है – जिसमें दुनिया की 20% आबादी रहती है, जो किसी भी अन्य अर्थव्यवस्था की तुलना में तेजी से बढ़ रही है। अगर भारत आने वाले 20 सालों में आत्मनिर्भर हो जाता है, तो अमेरिका, यूरोप, चीन के साथ-साथ अरब जगत को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। भारतीय रुपया एक डॉलर के मुकाबले और मजबूत होता रहेगा
भारत में भी लॉबिंग शुरू हो गई है, हर देश में *”पप्पुओं”* की कमी नहीं है, मीडिया को खरीदा जा सकता है, यही समूह एक दशक पहले कृष्णा गोदावरी (केजी) बेसिन में भारत की तेल और गैस परियोजना को समाप्त करने वाली शक्ति का कारण बना था।
यूट्यूब, फेसबुक, गूगल, ट्विटर ये सभी प्लेटफॉर्म अमेरिका के हैं, वो जब चाहे किसी के खिलाफ अभियान चला सकता है।
भारत में मूर्खों, पप्पुओं, जयचंदों, देशद्रोहियों की कोई कमी नहीं है, चीन में ये सब आसान नहीं है, वहां लोकतंत्र नहीं है,
वहां प्रोपेगेंडा, झूठ फैलाना आसान नहीं है, चीन खुद भारत को आगे बढ़ने से रोक रहा है।
आने वाले समय में “भारत” के लिए और भी चुनौतियाँ हैं,
अमेरिका ने अफगानिस्तान में रूस के खिलाफ “तालिबान” जैसे संगठन खड़े करने में अरबों, खरबों डॉलर खर्च किए थे,
भारत को अस्थिर करना और भी आसान है, यहाँ देशद्रोहियों और गद्दारों की कमी नहीं है, यहाँ के कुछ नेताओं के बयानों को देखिए, वे खुलेआम विदेशी एजेंट की तरह काम कर रहे हैं, मीडिया बिक चुकी है, नेता बिकाऊ हैं,
जब तक भारत के लोग समझदार और चतुर नहीं बनेंगे, भारत “महाशक्ति” नहीं बन सकता।
भारत एक बहुत बड़ा बाजार है, कोई भी देश नहीं चाहेगा कि भारत आत्मनिर्भर बने, इसलिए ऐसी बातें कहने वाली सरकारों को हराना/गिराना होगा।
विदेशी ताकतें भारत में “मिश्रित/ कमजोर” सरकार चाहती हैं, जिसके गिरने का हमेशा डर बना रहता है।
भारत में पिछले ग्यारह सालों से स्थिर और मजबूत सरकार है
उन्हें इस बात से परेशानी है कि भारत सरकार अपने ही उद्योगपतियों को मजबूत बना रही है, इनकी सोच है कि इनके पंख काटने हैं, किसी भी देश की ताकत उसके “उद्योगपति” होते हैं जो अपने देश के हुनर और चीजों को विदेशों में बेचते हैं,, उनके हितों की रक्षा करना सरकार का काम है
अगर आज “अडानी, अंबानी, टाटा, महिंद्रा” दुनिया को चुनौती दे रहे हैं तो क्या इनकी बर्बादी का जश्न मनाने वाले हमारे देश के ये गद्दार विदेशी एजेंट नहीं हैं ?
पहचानिए इन्हें, ये वही जयचंद हैं।
ये जयचंद आस्तीन के इतने जहरीले सांप हैं कि इन्हें हर भारत विरोधी बात में खुशी मिलती है। ये देश की तरक्की से जुड़े किसी भी आंकड़े या रिपोर्ट को मानने को तैयार नहीं हैं, लेकिन अगर इन्हें कहीं भी देश के खिलाफ कुछ भी दिख जाए तो ये खुशी से पागल हो जाते हैं।
मीडिया लाचार है, बिकाऊ है, ये इन गद्दार नेताओं से सवाल नहीं पूछेगी,
लेकिन हम लाचार नहीं हैं,
इस पोस्ट को पढ़ने वाला 1 व्यक्ति – 1 सदस्य द्वारा कम से कम 20 लोगों या समूहों को यह संदेश अग्रेषित करके और उन्हें इसे आगे अग्रेषित करने का अनुरोध करके हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से देश को विभाजित करने के अमेरिका के अभियान को भी परास्त कर सकते हैं।
हमें कड़ी मेहनत करनी होगी क्योंकि देश हमारा है, प्रधानमंत्री हमारे हैं, और इस देश से जुड़ा वर्तमान और भविष्य हमारा और हमारी पीढ़ियों का है।
प्रतीकात्मक चित्र
प्रोफेसर डॉ. लोपा मेहता, जो मुंबई के KEM मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर रहीं, एनाटॉमी डिपार्टमेंट की हेड थीं ।
उन्होंने 78 साल की उम्र में Living Will बनाया, जब शरीर जवाब देने लगे और लौटने की कोई गुंजाइश न बचे, तब इलाज नहीं किया जाए। न वेंटिलेटर, न ट्यूब, न अस्पताल में बेवजह की दौड़। वो चाहती हैं कि आख़िरी वक़्त शांति से बीते, जहाँ इलाज की ज़िद नहीं, समझदारी हो।
डॉ. लोपा ने केवल ये दस्तावेज़ नहीं लिखा, एक शोध-पत्र भी प्रकाशित किया है ,जिसमें मृत्यु को एक स्वाभाविक, समय-निर्धारित, जैविक प्रक्रिया के रूप में समझाया। उनका कहना है कि आधुनिक चिकित्सा मृत्यु को कभी स्वतंत्र रूप में देख ही नहीं पाई। वो मानती रही कि मौत हमेशा किसी बीमारी की वजह से होती है, और अगर बीमारी का इलाज हो जाए तो मौत टाली जा सकती है। लेकिन शरीर का विज्ञान इससे कहीं ज़्यादा गहरा है।
उनका तर्क है ,शरीर कोई अनंत चलने वाला यंत्र नहीं है। यह एक सीमित प्रणाली है, जिसमें एक निश्चित जीवन-ऊर्जा होती है। यह ऊर्जा हमें किसी टंकी से नहीं, बल्कि सूक्ष्म शरीर के माध्यम से मिलती है। वही सूक्ष्म शरीर जिसे अनुभव तो हर कोई करता है, पर देखा नहीं जा सकता ,मन, बुद्धि, स्मृति, और चेतना, इन्हीं से मिलकर बना है यह सिस्टम ।
यह सूक्ष्म शरीर एक माध्यम है, जिससे जीवन-शक्ति आती है और पूरे शरीर में फैलती है। यही शक्ति शरीर को जीवित रखती है। यह नाड़ी, धड़कन, पाचन और सोचने की क्षमता ,सब कुछ उसी के भरोसे चलता है। लेकिन यह शक्ति अनंत नहीं है। हर शरीर में इसकी एक निश्चित मात्रा होती है। जैसे किसी मशीन में फिक्स बैटरी हो ,न ज़्यादा हो सकती है, न कम।
जितनी चाभी भरी राम ने उतना चले खिलौना टाइप ।
डॉ. लोपा लिखती हैं कि जब शरीर में मौजूद इस ऊर्जा का अंतिम अंश खर्च हो जाता है, तो सूक्ष्म शरीर अलग हो जाता है। यही वो क्षण होता है, जब देह स्थिर हो जाती है, और हम कहते हैं “प्राण निकल गया।”
यह प्रक्रिया न बीमारी से जुड़ी है, न किसी चूक से। यह शरीर की अपनी आंतरिक गति है, जो गर्भ में ही शुरू हो जाती है, और जब पूरी हो जाती है, तब मृत्यु होती है। इस ऊर्जा का व्यय हर पल होता रहता है एक-एक कोशिका, एक-एक अंग, धीरे-धीरे अपने जीवन की लंबाई पूरी करते हैं। और जब संपूर्ण शरीर का कोटा खत्म होता है, तब शरीर शांत हो जाता है।
मौत का समय कोई घड़ी से नापा गया क्षण नहीं होता। यह एक जैविक समय है ,हर व्यक्ति के लिए अलग। किसी का जीवन 35 साल में पूरा होता है, किसी का 90 में। लेकिन दोनों ही अपनी पूरी इकाई जीते हैं। कोई अधूरा नहीं मरता, अगर हम उसे मजबूरी या हार न कहें।
डॉ. लोपा ने अपने लेख में ये भी कहा है कि आधुनिक चिकित्सा जब मृत्यु को टालने की जिद करती है, तो वो केवल शरीर नहीं, पूरे परिवार को थका देती है। ICU में महीने भर की साँसें कभी कभी वर्षों की कमाई ले जाती हैं। रिश्तेदार कहते रह जाते हैं “अभी उम्मीद है”, पर मरीज की देह कब की कह चुकी होती है “बस अब बहुत हो गया।”
इसीलिए उन्होंने लिखा है कि जब मेरा समय आए, तो बस KEM ले जाना। जहाँ मुझे भरोसा है कि कोई अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं होगा। इलाज के नाम पर खिंचाई नहीं की जाएगी। मेरे शरीर को रोका नहीं जाएगा जाने दिया जाएगा।
अब प्रश्न ये है ,
क्या हम सबने अपने लिए ऐसा कुछ सोचा है?
क्या हमारा परिवार उस इच्छा का सम्मान करेगा?
क्या इच्छा का सम्मान करने वाला व्यक्ति समाज में सम्मान पा सकेगा?
क्या हमारे देश के अस्पतालों में ऐसी इच्छाओं की इज्जत बची है,
या अब भी हर सांस पर बिल बनेगा, और हर मौत पर आरोप?
सब इतना आसान नहीं लगता है, तर्क और इमोशन का मैनेजमेंट शायद सबसे कठिन कामों मेवसेवेक है ।
अगर मौत को एक नियत, शांत और शरीर के भीतर से तय प्रक्रिया की तरह देखना शुरू करें,
तो शायद मौत से डर भी कम हो, और डॉक्टर से उम्मीद भी थोड़ी सच्ची हो।
मुझे लगता है मौत से लड़ना बंद करना चाहिए,
उससे पहले जीने की तैयारी करनी चाहिए ।
और जब वो आए ,तो शांति से, गरिमा से उसे जाने देना चाहिए ।
बुद्ध की भाषा में मौत एक प्रमोशन है ।
लेकिन क्या मेरी ख़ुद की ये सोच 70 के बाद रह पायेगी?
हम खुद ही नहीं जानते
*गुजरात के खंभात की खाड़ी में समुद्र के नीचे 9500 साल पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं, जो हड़प्पा से भी 4000 साल पहले की मानी जा रही है। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी और ASI ने यहाँ से पत्थर की दीवारें, पक्की सड़कें, घर और मंदिर जैसी संरचनाएँ खोजी हैं।*
*यह खोज इतनी चौंकाने वाली है कि अगर पूरी तरह प्रमाणित हो जाए, तो यह दुनिया की सबसे पुरानी ज्ञात सभ्यता बन सकती है — मेसोपोटामिया और मिस्र से भी पहले की।*
*इसका मतलब है कि भारतीय उपमहाद्वीप में सभ्यता की शुरुआत आज से 9500 साल पहले हो चुकी थी!*
*इतिहास की किताबें दोबारा लिखी जा सकती हैं यदि यह साबित हो गया कि खंभात की सभ्यता ही मानव सभ्यता की जननी थी। ये खोज भारत के सांस्कृतिक गौरव और वैज्ञानिक इतिहास के लिए मील का पत्थर बन सकती है।*
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