भारत का इतिहास : धरती के आधे भूभाग पर राज्य हुआ करता था महाराजा ललितादित्य का, उत्तरापथ (जीटी रोड़) 2430 वर्ष पहले चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा बनाया गया है

राजा ललितादित्य का साम्राज्य मुग़लो से तिगुना बड़ा था,
जिसे इतिहासकार भारत का सिकंदर के नाम से बुलाते हों !

राजा ललितादित्य से मुगलों और सिकंदर की तुलना न करें। तुलना करने वालों का ज्ञान वर्धन की आवश्यकता है।
पिछले ढाई हजार वर्षों में धरती पर सबसे बड़े भूभाग पर राज्य हुआ करता था राजा ललितादित्य का। चीन का करीब आधा, रूस का दक्षिणी हिस्सा, ईरान तुर्की और मिस्र तक फैला हुआ था उनका साम्राज्य ।।

जिनका साम्राज्य असाम बांग्लादेश से लेकर पूरा तिब्बत , पूर्वी ईरान अफ़ग़ानिस्तान उत्तरी पाकिस्तान का हिस्सा , मध्य चीन, मध्य एशिया के उज़्बेकिस्तान , ताजीकिस्तान, दक्षिण कयरञ्ज़स्तान , दक्षिण पश्चिमी कजाखस्तान और तुर्केस्तान को भी जीतत लिया था, जिनका साम्राज्य मध्य भारत तक फैला हुआ था!

जिस राजा ने मोहम्मद बिन कासिम के पंजाब और जम्मू कश्मीर को जितने के सपने को मिट्टी में मिलाया, जिसने उसे मार मार कर भागने पर मजबूर कर दिया उसे आज कोई नही जानता !
पूरे भारत के लिए ये लानत की बात है की जिस वीर योद्धा ने अरबो को कश्मीर और पंजाब से मार्कर खदेड़ा, जिसके कारन इस्लामिक आक्रांता कश्मीर और पंजाब में 250+ वर्ष तक आने की दोबारा हिम्मत तक न कर सके उसे कोई नही जानता !

ये भारत का ऐसा सूरमा वीर योद्धा है जिसने उज़्बेकिस्तान को चार बार जीता, उज़्बेकिस्तान के सुल्तान ने चार बार बगावत की और राजा ललितादित्य ने चारो बार उसकी बगावत को कुचल डाला और सुल्तान को चारो बार भारी कर देना पड़ा,

ये वही उज़्बेकिस्तान है जहाँ से मुग़ल और तैमूर मुस्लिम आक्रांता आये थे !
ऐसे वीर योद्धा को भारतीय इतिहास की पुस्तकों में  जगह क्यों नहीं मिली !

भारत सरकार से उम्मीद करता हूँ कि सही इतिहास क़िताबों में आना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ी को सही जानकारी मिले और अपने इतिहास पर गौरवान्वित हो सके…..(साभार) 

इसी प्रकार भारत के धूर्त व मक्कार इतिहासकारों इरफान हबीब और रोमिला थापर जैसों की करतूत तो देखो।

#ग्रैंड_ट्रंक_रोड(Grand Trunk Road) को भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे पुरानी, लंबी एवं प्रमुख सड़क के रुप में जाना जाता है।

यह सड़क “बांग्लादेश के चटगांव से शुरू होकर भारत,पाकिस्तान से होते हुए अफगानिस्तान के काबुल में जाकर समाप्त होती है।” 

वर्तमान के इन 4 देशों को मिलाकर इसकी कुल लंबाई 3670 कि.मी. है।

लेकिन, अगर अपने आसपास के 10 लोगों से पूछेंगे तो उनमें से 9 लोग बताएंगे कि ग्रैंड ट्रैंक रोड को “शेरशाह सूरी” ने बनवाया था।

क्योंकि, उन्होंने अपनी इतिहास की किताब में यही पढ़ा हुआ है।

जबकि, यह बिल्कुल एक गलत एवं भ्रामक तथ्य है।

वास्तविकता यह है कि…. भारत की इस सबसे लंबी एवं प्रसिद्ध सड़क को शेरशाह ने नहीं बल्कि शेरशाह से 1850 साल पहले “#चंद्रगुप्त_मौर्य” ने बनवाया था।

हमारे भारतीय इतिहासकारों ने शेरशाह के महिमामंडन हेतु उसे GT ROAD का निर्माता घोषित कर दिया।

जबकि, ऐतिहासिक तथ्य और प्रमाणों के अनुसार GT ROAD शेरशाह (1540-1545) से 1850 साल पहले 329 ईसा पूर्व से ही भारत में विद्यमान है।

चंद्रगुप्त मौर्य के समय यह सड़क “उत्तरा पथ” के नाम से जाना जाता था।

वास्तव में मुस्लिमों ने हमारी अधिकांश प्राचीन धरोहरों को अपने नाम से बनवाया हुआ प्रचारित करने का धूर्ततापूर्ण कृत्य करते हुये झूठा इतिहास गढ़ने का ही काम किया है और जहां वे ऐसा करने में असफल हुये उन मंदिरों और धरोहरों को तोड़कर उनपर अपना घटिया निर्माण थोपने का काम किया है। बात चाहे मथुरा की हो या काशी विश्वनाथ की या फिर अढ़ाई दिन का झोपड़ा हो, ये सभी ऐसे ही उदाहरण हैं।

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा निर्मित उत्तरापथ की भी यही कहानी है। शेरशाह सूरी ने भी इसका नाम बदल कर “सड़क-ए-आजम” कर दिया और इतिहासकारों ने इसे “सड़क-ए-शेरशाह” कह कर पुकारना शुरू कर दिया।

और, इसका वर्तमान नाम “ग्रैंड ट्रैंक रोड” अंग्रेजों का दिया हुआ है।

और हाँ…. जिस शेरशाह सूरी के बारे में इतिहास की किताब में कसीदे पढ़े गए हैं…

वो महज 4 साल (1540-1545) तक ही सत्ता में रहा था लेकिन उतने छोटे अंतराल में भी वो उत्तरा पथ का नाम बदलना नहीं भूला।

तथा… हिन्दुओं पर “”जजिया कर”” लगाना नहीं भूला।

शेरशाह सूरी एक पश्तून अफगानी था शायद इसीलिए इरफान हबीब और रोमिला थापर सरीखे कुंठित वामपंथी इतिहासकारों ने शेरशाह जैसे जे हादी मानसिकता के लोगों को भारत का निर्माणकर्ता बता कर महिमामंडित कर दिया।

अब समय आ गया है कि कुत्सित मानसिकता से ग्रस्त हबीब और थापर जैसे इस्लामी और वामपंथी धूर्तों द्वारा लिखे झूठे इतिहास को अपने शिक्षा पाठ्यक्रम से बाहर कर कूड़ेदान में डाला जाये और ऐतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर वास्तविक गौरवशाली इतिहास को पढ़ाया जाये। (साभार)