उत्तराखंड नीती पास से एक दिन में ही लौटफेर की दूरी पर है कैलाश मानसरोवर, कैलाश मानसरोवर को भारत का हिस्सा बनाना हो हर भारतीय का उद्देश्य

✍️हरीश मैखुरी

देश में यदि 1962 से पहले की भांति स्थिति रहती तो तीर्थयात्री कैलास मानसरोवर के दर्शन से अपनी उत्तराखण्ड यात्रा पूर्ण करते। परन्तु भारत को हिन्दी चीनी भाई भाई के धोखे में रखा गया इसलिए बद्रीनारायण के लोग भी नाथुला होते हुए मानसरोवर की 2982 किलोमीटर की यात्रा के लिए विवश हैं। जबकि नीति में लाइन ऑफ कंट्रोल से मानसरोवर का मार्ग मात्र 127 किलोमीटर दूर है। 1962 तक तिब्बत व्यापार करने वाले घिंघरांण के जीतसिंह रावत बताते हैं कि नीति पास से सुबह जाकर यात्री शाम को वापस भारत आ सकता है। शीजिपिंग ने बड़ी चालाकी से नाथुला मार्ग खोला ताकि भारत के यात्री ज्यादा समय चीन में बिताएं और चीन की आय बढ़े, इससे सरल तो काठमांडू से है जिसका हजारों तीर्थयात्री उपयोग कर रहे हैं। बिना कैलास मानसरोवर के उत्तराखण्ड की यात्रा अधूरी है। कैलाश उत्तराखण्ड का अभिन्न भू भाग है जिसकी यहां के राजनीतिक दलों को भले भान नहो लेकिन सनातन धर्मावलंबियों को तिब्बत के चुक जाने की बात सदैव चुभती है। पहले सीमान्त वासी चीन के साथ व्य्यपार करते थे उनकी आज भी यही इच्छा है कि कैलाश मानसरोवर को भारत का हिस्सा बनाना हर भारतीय का उद्देश्य भारत होना चाहिए। भारत सरकार को हर संभव कोशिश करनी चाहिए कि कैलाश वापस भारत वर्ष में समाहित हो सके। तथा कैलाश मानसरोवर का मार्ग माणा या मलारी नीति हो कर सुचारू होना चाहिए।