300 करोड़ रुपये के NH 74 घोटाले में SIT ने 2 रसूखदार आईएएस अधिकारी पंकज पांडे और चंद्रेस यादव सस्पेंड किये हैं, इस घोटाले में अब तक 20 लोग जेल जा चुके, जिनमें 5 पीसीएस भी हैं, लेकिन जब तक इन दोनों पर एफआईआर दर्ज नहीं होती और मामले के सफेदपोशों के चेहरों से शराफत का नकाब नहीं हटाया जाता तब तक ये कवायद समाधान नहीं, समस्या ही है।
दो आईएएस अधिकारियों का निलम्बन सिर्फ सरकार की गिरती टीआरपी को बचाने की कवायद है और कुछ नहीं ……
अगर इन दोनों अधिकारियों पर आरोप साबित है तो फिर निलम्बन बाद में होना था, पहले ऍफ़आईआर दर्ज होनी थी ताकि निलम्बन को पुख्ता किया जा सकता था लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई सारे जजमेंट सहित सर्विस रूल्स कहते हैं कि किसी भी कार्मिक का निलम्बन तब तक ना किया जाय जब तक कि लगाये जाने वाले आरोप से सेवा समाप्त ना हो जाये
तो क्या सरकार इन दोनों अधिकारीयों की सेवा समाप्त कर सकती है ? अगर नहीं तो फिर दोनों अधिकारीयों के निलम्बन के मायने क्या ? अगर दोनों अधिकारीयों का अपराध निलम्बन के क्रम में बखूबी साबित हो गया है तो फिर दुसरे अधिकारियों की तरह इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ समुचित धाराओं में ऍफ़आईआर करने में देर का कोई औचित्य है ?