सुप्रीम कोर्ट के चार जजों का सच (अन्दर की बात) 

सुप्रीम कोर्ट के चारों जजों ने आजादी के बाद मिथक तोड़ कर प्रेसवार्ता आयोजित की उसके पीछे का जो राज शोशल मीडिया में बताया जा रहा है हम उसे ज्यों का त्यों साझा कर रहे हैं। हम भारत की न्यायिक व्यवस्था और न्याय प्रणाली का बहुत सम्मान करते हैं और देश को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। परन्तु वृहद्ठ जनहित में शोशल मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। इस लिए नीर क्षीर प्रतिक्रिया अपेक्षित है – 

1- वटसैप पोस्ट

#चीफ_जस्टिस #दीपक_मिश्रा जी के बारे में आपको कुछ बताता हूँ ! 

1- #याकूब मेनन को फाँसी इन्ही ने सुनाई थी।

2- सिनेमा में #राष्ट्रगान इन्हीं ने बजवाया था ।

3- #निर्भया गैंग रेप में तीनोँ आरोपियों को फाँसी इन्हीं ने सुनाई थी !

4- #ऑनलाइन #एफआईआर दिल्ली पुलिस से इन्होंने ही करवाई थी ।

5- अयोध्या #राम_मंदिर मामले में भी यही सुनवाई कर रहे हैं।

6- केरल के #सबरीमाला_मंदिर के द्वार महिला श्रद्धालुओं के लिए खोलने के आदेश भी जस्टिस मिश्र ने ही दिए थे।

2-फेसबुक पोस्ट –
सुप्रीम कोर्ट के चार जजों का सच (अन्दर की बात) 
जस्टिस चमलेश्वर और CJI मिश्रा के बीच की प्रतिद्वंदता हर कोर्ट का जानकार रखता है। 
आज जो टशन बाहर आई उसका आधार वो 46 मेडिकल कॉलेज थे जिनको फर्जी तरीके से मान्यता दी गयी और इस माममें में सुप्रीम कोर्ट के कुछ जस्टिस की दखलंदाजी भी मानी जाती है। बाकायदा उड़ीसा के एक पूर्व जज को भी गिरफ्तार कर दिया गया था।
अब इसके पीछे क्या खेल हो रहा है। वो समझें-
दरअसल जस्टिस चमेलश्वर की हैसियत सुप्रीम कोर्ट में नम्बर 2 है जस्टिस मिश्रा के बाद। अब कॉलेजियम के अनुसार चीफ जस्टिस के नियंत्रण में कुल 5 जस्टिस अगला चीफ जस्टिस नियुक्त करते हैं, तो जस्टिस चमलेश्वर को अपना पत्ता कटता नजर आ रहा है। इसीलिए वो मीडिया में आकर लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं, और जस्टिस मिश्रा पर मनमानी का आरोप लगा रहे हैं। मगर बात इतनी भी नही है।
जिस मेडिकल फर्जीवाड़े का केस जस्टिस मिश्रा ने पलटा, दरअसल उसके पीछे कई षड्यंत्र है। इस केस को प्रशांत भूषण देख रहा है। इस प्रशांत भीषण ने चुपचाप जस्टिस चमलेश्वर के पास जाके इस केस को अपने पसंदीदा जजों की बेंच पे भिजवा दिया। अब चूंकि ये मेंशनिंग का अधिकार सिर्फ चीफ जस्टिस का होता है तो मिश्रा ने इसे पलट दिया। इस पर भूषण चिल्लाता हुआ मिश्र के कोर्ट में जब पहुंचा तो वहां पहले से ही बार कौंसिल मौजूद थी। भूषण ने इतनी बदतमीजी की कि बार काँसिल के सचिव ने भूषण का लाइसेंस रद्द करने की मांग कर दी।
इस पर जस्टिस मिश्र को कहना पड़ा कि यहां पहले तुम जैसे वकील ही केस के जज तय करते थे? इसलिए अब भी करना चाह रहे हो? 
हालांकि बात यहाँ भी खत्म नही होती। जस्टिस मिश्र ही वो हैं जिन्होंने याकूब मेनन पर अंतिम फैसला दे उसे फांसी लगवाई। तब ये भूषण, ग्रोवर, सिब्बल आदि कई NGO के साथ उसकी माफी मांग रहे थे। यहां तक कि कई जज भी। ये लोग तब देर रात को पहुंच गए थे और वहां अपनी बेजत्ती करवा आये। तब से जस्टिस मिश्रा इन्हें खटक रहे हैं।
इसके अलावा अब राम मंदिर का केस भी फाइनल होने वाला है जो जस्टिस मिश्र के अधीन होगा, जिस पर इन लोगों का पूरा जोर है कि ये इस जस्टिस के रहते पूरा ना हो बल्कि इनके किसी चहेते के अधीन आये, ताकि ये उसे पहले तो अपने पक्ष, नहीं तो कम से कम अगले लोकसभा के बाद खींच पाएं। इस मामले में भी धवन और सिब्बल जस्टिस मिश्र को कोर्ट में ही धमकी दे आये थे और बेंच के जज की संख्या भी ज्यादा चाहते थे, जिसे जस्टिस मिश्रा ने मना कर दिया था।
इसके अलावा जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक है, वो केस भी मिश्रा की अदालत में चल रहा है जिस पर पूरी उम्मीद है कि वहां हिन्दू को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा।
इसके अलावा चिंदम्बरम का मैक्सिस केस भी जस्टिस के पास है जिसपर नियमित सुनवाई चलेगी। ट्रिपल तलाक़ पर मुह की खाये ये कांग्रेस पोषित गिरोह जानते है कि उपरोक्त केस में इनका क्या होगा और फिर आगे इनकी राजनीति का क्या होगा।
जस्टिस लोया के नाम पर बहाना भी ये जस्टिस जो बना रहे है, उसका आधार भी अमित शाह को घेरना था, जिसमे कांग्रेसी मीडिया ने इनका साथ दिया और अब भी मीडिया पूरा इनके पक्ष में माहौल बनाएगी ताकि मिश्रा के आगे के जजमेंट को प्रभावित किया जा सके।
ये कांग्रेस द्वारा पहली बार नही है। पिछले कितने जजों के उदाहरण है जिन्होंने कांग्रेस के भले के लिए काम किया और फिर मलाई खाई। उनपर लिखने में ये पहले से बड़ी पोस्ट पूरी किताब बन जाएगी।
बाकी जब हम कहते है इस देश का हर मुद्दा मोदी बनाम कांग्रेस(और उसका गिरोह) है तो यूँही नही कहते। हम पीठ पीछे की बाते जानते हैं। हम तुम्हारी तरह सिर्फ आगबबूला होने वाले फेसबुकिये नही हैं।
अगर यहां तक पूरा पढ़ा तो बहुत बहुत धन्यवाद।

तो ऐसे राष्ट्रवादी चीफ जस्टिस के खिलाफ बामपंथियों की साजिश तो होनी ही थी और #कांग्रेसीओ का नैतिकता के आधार पर इनसे #इस्तीफा मांगना बहुत बड़ी साजिश दिखा रहा है।

3-फेसबुक पोस्ट

यदि कोई यह समझ रहा है कि इन 4 न्यायाधीशों ने सामने आकर भारत की जनता की बहुत भलाई की है और वे सत्यवादी है तो यह बड़ी भूल होगी। यह विद्रोह इस लिये हुआ ताकि सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक शक्ति को कमजोर किया जा सके और जनता में यह भ्रम बनाया जा सके ताकि सर्वोच्च न्यायालय की कलम से , भविष्य में निकलने वाले निर्णयों की नैतिकता समाप्त हो सके। यह सभी चार न्यायाधीश कांग्रेस द्वारा भारत मे पिछले चार दशकों से स्थापित भ्रष्ट इको सिस्टम की पैदाइश है और आज भी इनकी श्रद्धा व निष्ठा, भारत के संविधान या राष्ट्र के प्रति न होकर कांग्रेस के गांधी परिवार प्रति है।

यह प्रेस कॉन्फ्रेंस कितनी बड़ी साजिश का हिस्सा था , इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के तुरंत बाद चारो जजों में से एक जस्टिस चेलमेश्वर ने लाल सलाम , सफेदपोश नक्सली , वामपंथी नेता डी. राजा से मुलाकात की । दूसरा जज वो हैं जिसने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जजों के साथ बुलाई गई बैठक में यह कहकर जाने से इंकार कर दिया था कि प्रधानमंत्री को क्रिसमस के दिन मीटिंग नही रखनी चाहिए थी । चारो में से तीसरा वो हैं जो असम के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री केशव चंद्र गोगोई का पुत्र हैं । वैसे सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी हैं कि 25 न्यायधीशों में से केवल 4 ही क्यो, जस्टिस दीपक मिश्रा को छोड़ दिया जाए तो बाकी 20 कहा हैं ?

आज जिस तरह से भ्रष्ट, दलाल व सोनिया गांधी के परिवार के चरनभाट पत्रकार शेखर गुप्ता, इन चारों न्यायधीशों को लेकर पत्रकारों के बीच लेकर पहुंचा था उससे यह स्पष्ट है कि यह प्रेस कांफ्रेस, भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं व संवैधानिक संस्थाओं को तोड़ने के उद्देश्य से किया गया है। न्यायधीशों ने कांफ्रेंस और अपने लिखे पत्र से यही दिखाने का प्रयत्न किया है कि सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के आने के बाद से ही सर्वोच्च न्यायालय के तन्त्र में खराबी आयी है लेकिन जनता यह जानती है कि यह तन्त्र तो पिछले कई दशकों से दीमक रूपी न्यायाधीशों ने खोखला किया हुआ है।

यहां यह महत्वपूर्ण है कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर आक्रमण तीन कारणों से हुआ है। पहला यह कि जस्टिस मिश्रा ने 1984 के सिख दंगो के केस फिर से खोले जाने का निर्णय लिया है जो कांग्रेस को बिल्कुल पसंद नही आरहा है और दूसरा यह कि वे रामजन्म भूमि के मुकदमे को देख रहे है और तीसरा यह हैं कि पिछले महीने ही जस्टिस दीपक मिश्रा ने इटालियन श्वान कपिल सिब्बल की जमकर क्लास लगाई थी । यह सारी कवायत इसी लिये है ताकि जस्टिस मिश्र दबाव में आकर राम जन्म भूमि के मुकदमे को आगे बढ़ा दे और यदि वह निर्णय देते है, जो कि हिंदुओं के पक्ष में ही आने की संभावना है तो इस तरह के किसी भी निर्णय को संदिग्ध बताया जाये और इस निर्णय को वर्तमान की मोदी सरकार के दबाव में लिया गया निर्णय करार दिया जासके।

भारत का न्यायालय व उसके न्यायाधीश पतित चुके हैं,  वे आज उतने ही बईमान व राष्ट्रद्रोही नज़र आ रहे हैं  जितना भारत की मीडिया का एक वर्ग है। जिस तरह से भारत की मीडिया का एक वर्ग निर्लज्जता से हिंदुत्व व राष्ट्रवाद के विरुद्ध पक्षपात पूर्ण खबरों को बनाता व बिगाड़ता है वैसे ही न्यायाधीश भी निर्लज्जता से न्याय को बना और बिगाड़ रहे है। आज भारत के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश केहर ने जिस तरह भारत के बढ़ने में हिंदुत्व को सबसे बड़ा रोड़ा बोला है वह इन चार न्यायाधीशों के विद्रोह का ही हिस्सा है।

ये लोग न्यायाधीश न होकर कांग्रेस वामी सेक्युलर गिरोह के ही हिस्से है। मैं जानता हूँ कि इस विद्रोह ने एक संवैधानिक संकट खड़ा कर दिया है और मोदी सरकार को मिली अब तक कि सबसे बड़ी चुनौती भी है। लेकिन इस संकट का एक ही इलाज है कि जैसे न्यायाधीश सड़क पर आगये है वैसे ही सभी राष्ट्रवादी शक्तियों को सुचिता व मर्यादा के साथ  इस गिरोहबंदी के विरुद्ध खड़ा होना चाहिये।

जय माँ भारती ।

4-फेसबुक पोस्ट

याद करना अवार्ड वापसी गैंग की और बताना ये मीडिया वाले मीलार्ड वही तो नहीं जो हिन्दू त्योहारों पर ऊँगली , कश्मीरी पंडितों का केस ख़ारिज, रोहिंग्या मुस्लिम आतंकियों को पनाह देते हैं

यह एक वृहद्  चर्चा का विषय बनेगा पोस्टें और भी हैं पर स्थान व समय की सीमाएं भी हैं जारी….