अंटार्कटिका में एक अद्भुत प्राकृतिक घटना देखने को मिलती है, जिसे ब्लड फॉल्स (Blood Falls) कहा जाता है। यह टेलर ग्लेशियर से निकलती है। पहली बार इसका ज़िक्र 1911 में ऑस्ट्रेलियाई भूवैज्ञानिक ग्रिफ़िथ टेलर ने किया था। इस जगह पर बर्फ के बीच से ऐसा लगता है मानो लाल रंग का खून बह रहा हो। यह दृश्य अद्वितीय और रहस्यमय दिखाई देता है।
इस लाल रंग का कारण है – बर्फ के नीचे फंसा हुआ पानी, जिसमें लोहे (Iron) की मात्रा बहुत अधिक है। यह पानी करीब 15 लाख सालों से ग्लेशियर के नीचे दबा हुआ था। जब यह सतह पर आता है और हवा में मौजूद ऑक्सीजन से मिलता है, तो उसमें मौजूद लोहा जंग की तरह लाल हो जाता है। यही वजह है कि पानी खून जैसा लाल दिखता है।
दिखने में बर्फ के मध्य भयानक और विष्मयकारी लगने वाली रक्तिम धारा पूरी तरह प्राकृतिक है। वैज्ञानिकों के लिए यह जगह बेहद खास है, क्योंकि यह उन्हें यह समझने में मदद करती है कि बेहद कठिन और ठंडी जगहों पर भी किस तरह जीवन और रासायनिक प्रक्रियाएँ हो सकती हैं।
ब्लड फॉल्स सिर्फ़ सुंदर ही नहीं है, बल्कि अंटार्कटिका की सबसे दिलचस्प और प्रसिद्ध प्राकृतिक आश्चर्यों में से एक है।
*हिमालय संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध होकर कार्य कर रही है सरकार – मुख्यमंत्री*
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि राज्य सरकार हिमालय संरक्षण को लेकर पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है, इस महत्वपूर्ण काम में हम सभी को अपनी भूमिका निभानी होगी।
मंगलवार को आईआरडीटी सभागार में आयोजित हिमालय दिवस समारोह में मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने सभी को हिमालय दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हिमालय मात्र बर्फीली चोटियों और विस्तृत पर्वतमालाओं का समूह नहीं है बल्कि ये सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप का जीवन स्त्रोत भी है। हिमालय न केवल भारत के उत्तर में अटल प्रहरी का काम करता है, बल्कि इसकी पर्वतीय नदियाँ पूरे देश की जीवनधारा हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालय की ऊंची चोटियां, विस्तृत ग्लेशियर, नदियां और जैव विविधता से भरपूर वन हमें न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव कराते हैं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि एक ओर जहां हिमालय से निकलने वाली नदियां देश के करोड़ों लोगों की प्यास बुझाती हैं वहीं इस पर पाए जानी वाली दुर्लभ जड़ी बूटियां आयुर्वेद का आधार हैं।
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि आज हमारी इस अमूल्य धरोहर को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है। जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित विकास, और प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हिमालय के संतुलन को बिगाड़ रहे हैं। इसके ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जो आने वाले समय में गंभीर जल संकट और पारिस्थितिकीय असंतुलन की बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अब हिमालयी क्षेत्र में वर्षा की तीव्रता लगातार बढ़ रही है और अप्रत्याशित क्लाउड बर्स्ट तथा उनके परिणामस्वरूप भूस्खलन जैसी आपदाएँ बार-बार घटित हो रही हैं। इन घटनाओं की आवृत्ति और उनके प्रभाव दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि हाल ही में हमारे राज्य को कई भीषण प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा है। इन गंभीर चुनौतियों से प्रभावी रूप से निपटने के लिए वैज्ञानिक संस्थानों और विशेषज्ञों के बीच समन्वय स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी को ध्यान में रखते हुए, गत वर्ष सरकार ने उच्च स्तरीय समिति के गठन के लिए निर्देश जारी किए थे। अब इस वर्ष नवंबर में राज्य में जलवायु परिवर्तन पर ‘विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन’ का भी आयोजन किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री श्री धामी ने कहा कि हिमालय की सुरक्षा केवल सरकार का ही कार्य नहीं है, बल्कि ये देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। इसलिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के सहयोग एवं मार्गदर्शन में राज्य सरकार हिमालय संरक्षण को लेकर पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है। इसी क्रम में सरकार डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम, ग्लेशियर रिसर्च सेंटर, जल स्रोत संरक्षण अभियान और जनभागीदारी कार्यक्रमों के माध्यम से हिमालय के दीर्घकालिक संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही है।
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य में प्लास्टिक वेस्ट के प्रबंधन के लिए “डिजिटल डिपॉजिट रिफंड सिस्टम” प्रारम्भ किया गया है। इस एक छोटी सी पहल से हिमालयी क्षेत्र में 72 टन कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सफलता मिली है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें पर्यटन क्षेत्र में भी पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में ध्यान देना होगा क्योंकि अनियंत्रित और असंवेदनशील पर्यटन हिमालय के पर्यावरण के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। इसके लिए हमें ‘’सस्टेनेबल टूरिज्म’’ को बढ़ावा देना होगा, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना पर्यटन का विकास किया जा सके।
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका है। उनका ज्ञान, परंपराएं और जीवनशैली हमें सिखाती हैं कि किस प्रकार हम प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर जीवन जी सकते हैं। हमें उनके अनुभवों और पारंपरिक ज्ञान का सम्मान करते हुए उसे भी अपनी पर्यावरण संरक्षण नीति में सम्मिलित करना चाहिए। छोटे-छोटे प्रयास, जैसे पानी की बचत, पेड़ों को लगाना और प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करना, हिमालय की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी क्रम में सरकार ने दो से नौ सितंबर तक प्रतिवर्ष हिमालय जनजागरुकता सप्ताह मनाने का निर्णय लिया है।
इस मौके पर पद्मभूषण डॉ अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि इस साल समूचे हिमालयी क्षेत्र में आपदाएं आई हैं, अब साल दर साल इस तरह की घटनाओं से मानूसन काल डराने लगा है। हमें हिमालय के पर्यावरण को बचाने के लिए नए सिरे से सोचना होगा।
इस अवसर पर विधायक श्री किशोर उपाध्याय, मेयर श्री सौरभ थपलियाल, दर्जाधारी श्रीमती मधु भट्ट, महानिदेशक यूकॉस्ट प्रो. दुर्गेश पंत, श्री सूर्यकांत धस्माना सहित प्रमुख लोग शामिल हुए।
स्वच्छ वायु सर्वेक्षण 2025 में उत्तराखंड के शहरों की सुन्दरतम उपलब्धि
देहरादून, ऋषिकेश और काशीपुर ने राष्ट्रीय रैंकिंग में दर्ज की उल्लेखनीय प्रगति
देहरादून, 9 सितम्बर 2025
उत्तराखंड ने स्वच्छ वायु सर्वेक्षण 2025 में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। यह सर्वेक्षण पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के अंतर्गत आयोजित किया गया था। राज्य के तीन प्रमुख शहर — देहरादून, ऋषिकेश और काशीपुर — ने अपनी रैंकिंग में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज किया है, जो राज्य में वायु गुणवत्ता प्रबंधन की बढ़ती सफलताओं को दर्शाता है।
इस वर्ष के सर्वेक्षण में, देहरादून ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 2024 में 37वें स्थान से 2025 में 19वें स्थान पर छलांग लगाई है। ऋषिकेश ने भी बेहतरीन प्रगति करते हुए पिछले वर्ष के 31वें स्थान से बढ़कर 2025 में 14वां स्थान हासिल किया है। वहीं, काशीपुर ने भी स्थिर प्रदर्शन दिखाते हुए 2024 के 19वें स्थान से 2025 में 18वें स्थान पर अपनी स्थिति मजबूत की है।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष रमेश कुमार सुधांशु ने इस उपलब्धि का श्रेय शहरी स्थानीय निकायों, उद्योगों और आम नागरिकों के सामूहिक प्रयासों को दिया। इस सफलता में योगदान देने वाले प्रमुख कदमों में शामिल हैं —
• यांत्रिक सड़क सफाई के माध्यम से धूल नियंत्रण
• ठोस अपशिष्ट एवं निर्माण मलबा प्रबंधन
• हरित पट्टी विकास
• उद्योगों में स्वच्छ ईंधन का उपयोग
• स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन प्रणाली
• जनजागरूकता अभियानों के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि ये परिणाम राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के लक्ष्य “सभी के लिए स्वच्छ वायु” के प्रति उत्तराखंड की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में हरीतिमा बढ़ाने, रीयल-टाइम निगरानी प्रणालियों को सुदृढ़ करने, जनसहभागिता को प्रोत्साहित करने और नवाचार तकनीकों को अपनाने के माध्यम से वायु गुणवत्ता में और अधिक सुधार लाया जाए।