तेजी हो रहा है पंजाब का ईसाईकरण इंडिया टुडे ने किया अनावरण, संभल में विधर्मियों की दुर्दांतता का पूरा सच *संभल फाईल*, मनुस्मृति के विरूद्ध कथित भीमवादी नव बौद्धौं के झूठ का अनावरण

*द संभल फाइल्स*

*हिंदू शिक्षक की बेटी और पत्नी को अगवा कर किया था बलात्कार इसलिए भड़का था 1976 में संभल का दंगा, 1978 के दंगे में मुस्लिमों के आपसी झगड़े में मरा था मौलवी, अफवाह उड़ाकर हिंदुओं का कर दिया था नरसंहार । मुस्लिम डीएम के राज में जलाकर मारे गए थे 180 हिंदू । बनवारी लाल गोयल ने तड़पकर कहा था, गोली मार दो हाथ ना काटो ।*

*अब योगी जी का बुलडोजडर ढूंढ रहा है पद्म  पुराण में वर्णित 22 कुएं, 58 तीर्थ और 68 सराय, जिहादियों में हड़कंप का माहौल, संभल की पूरी कहानी*

*(ये लेख 17 दिसंबर को इंडिया टीवी की दंगों के चश्मदीदों की रिपोर्ट, दैनिक जागरण, अमर उजाला, टाइम्स ऑफ इंडिया, ऑप इंडिया अखबारों की रिपोर्ट और 16 दिसंबर को यूपी विधानसभा में दिए योगी आदित्यनाथ के भाषण के तथ्यों पर तैयार किया गया है )*

– *संभल में कथित जामा मस्जिद और पूर्व के प्राचीन हरिहर मंदिर के आसपास अतिक्रमण हटाया जा रहा है जिसमें 2 कुएं और 2 मंदिर मिल गए हैं । खग्गू सराय के अलावा पद्म पुराण में वर्णित बाकी 68 सरायों की तलाश जारी है* 

-*मुख्यमंत्री योगी के विधानसभा में दिए बयान के मुताबिक संभल मे 209 हिंदुओं की हत्या की गई । इन दंगों में हिंदुओं की मौत के इस आँकड़े की पुष्टि संभल जिला प्रशासन की इंटरनल रिपोर्ट भी करती है। ऑपइंडिया के पास ये पूरी रिपोर्ट उपलब्ध है* 

– *रिपोर्ट के अनुसार 29 फरवरी 1976 को मुस्लिमों ने अफवाह उड़ाई कि पेतिया गाँव के अर्धविक्षिप्त राजकुमार सैनी ने मौलवी को मार दिया है, जबकि असलियत ये थी कि मस्जिद कमेटी के झगड़े में शिया सुन्नी विवाद एक मुस्लिम ने ही मौलवी को मारा था। संभल जिले की इंटरनल रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद मुस्लिम दंगाइयों की भीड़ ने मंजर शफी और अताउल्ला ततारी की अगुवाई में सूरजकुंड और मानस मंदिर को तोड़ दिया था । इसके बाद सरथल चौकी पर मुस्लिम दंगाइयों की भीड़ ने किशनलाल का घर जलाने की कोशिश की। हिंदुओं के प्रतिरोध के बाद वे पत्थरबाजी कर भाग खड़े हुए। इसी दौरान सोतीपुरा के हरि सिंह और कोटीपूर्वी मोहल्ले के राकेश वैश्य की हत्या की गई थी ।*

– *करीब दो महीने बाद 24 अप्रैल 1976 को कोटपूर्वी मोहल्ले में कल्लू के घर भयानक विस्फोट हुआ। इलाज के दौरान उसके बेटे सलाम की मौत हो गई। इसकी प्रतिक्रिया में सिर्फ गुस्सा निकालने के लिए ही सरायतरीन के मोहल्ला लाल मस्जिद के पास बुजुर्ग कामता प्रसाद की बिना किसी वजह ही चाकू मारकर हत्या कर दी गई। इसके अलावा जयचंद रस्तोगी की गोली मारकर हत्या की गई।* *इसके अलावा एक अन्य हिंदू की हत्या की गई थी, जिसके नाम का उल्लेख इस रिपोर्ट में नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि इन मामलों में जब दोषी 20-22 मुस्लिमों को गिरफ्तार किया गया तो संतुलन बनाने के लिए इतने ही ‘निर्दोष’ हिंदुओं को भी प्रशासन ने गिरफ्तार किया था।*

– *1976 के ये दंगे जब हुए थे उसी समय शफीकुर्रहमान बर्क भी उभर रहा था । बाद में 1978 के भीषण दंगे में बर्क की खासी भूमिका थी । 1978 का यह दंगा होली के बाद 29 मार्च से शुरू हुआ था। इस दंगे में करीब 184 लोगों की हत्या की गई थी। करीब 30 दिनों तक कर्फ्यू लगा रहा था। इसी दंगे के दौरान संभल के जाने माने कारोबारी बनवारी लाल गोयल की तड़पा-तड़पाकर हत्या की गई थी। इसी दंगे के दौरान एक हिंदू शिक्षक की बेटी और पत्नी को मंजर शफी ने उठा लिया था। बेटी का रेप करके छोड़ दिया गया जबकि शिक्षक की पत्नी को किसी तरह से बचाया जा सका । इस दंगे को भड़काने के पीछे भी मंजर शफी की बड़ी भूमिका थी।  इस शिक्षक और बनवारी लाल गोयल का परिवार संभल छोड़कर जा चुका है ।* 

– *दंगे भड़कने के बाद बनवारी लाल गोयल ने कई हिंदू दुकानदारों को अपने साले मुरारी लाल की कोठी में छिप जाने को कहा था। मुस्लिम आढ़तियों ने इसकी सूचना दंगाइयों को दी। इसके बाद मुस्लिम दंगाइयों की भीड़ ने ट्रैक्टर लगाकर मुरारी लाल की कोठी का गेट तोड़ दिया। यहाँ 24 हिंदुओं की हत्या कर उन्हें गन्ने की खोई और टायर का ढेर लगाकर जला दिया गया । हालात इतने बदतर थे और लाशें ना मिलने की वजह से अधिकतर हिंदुओं ने कपड़ों के पुतले बनाकर बृजघाट पर अपनों का अंतिम संस्कर किया था ।*

– *ऑपइंडिया के पास मौजूद इंटरनल रिपोर्ट बताती है कि दंगे भड़कने की सूचना मिलने पर बनवारी लाल गोयल प्रभावित इलाके में जाने लगे। उनकी पत्नी और बेटे ने उन्हें रोका। लेकिन वे यह कहते हुए दंगा प्रभावित इलाके में चले गए, सब मेरे अपने ही लोग हैं मुस्लिम मेरी बात नहीं काटेंगे लेकिन बनवारी लाल गोयल को मुस्लिम दंगाइयों ने पकड़ लिया। उनसे कहा कि तुम इन पैरों से पैसे लेने आए हो और उनके पैर काट दिए। फिर कहा कि तुम इन हाथों से पैसे लेने आए हो और हाथ भी काट दिए। इसके बाद गर्दन काट कर उनकी हत्या कर दी गई। इस दौरान मुस्लिम दंगाइयों के सामने बनवारी लाल गिड़गिड़ाते रहे कि मुझे काटो मत, गोली मार दो। पर किसी ने नहीं सुनी। इस घटना को हरद्वारी लाल शर्मा और सुभाष चंद्र रस्तोगी ने अपनी आँखों से देखा था। इस कत्लेआम के दौरान दोनों ने एक ड्रम में छिपकर अपनी जान बचाई थी।*

*शर्मा और रस्तोगी भी इस कत्लेआम के गवाह थे। इरफान, वाजिद, जाहिद, मंजर, शाहिद, कामिल, अच्छन जैसे नाम आरोपित थे। लेकिन 2010 में यह केस बंद करना पड़ा, क्योंकि गवाह ही हाजिर नहीं हुए। जज ने यह टिप्पणी करते हुए केस बंद किया कि मैं सोच भी नहीं सकता कि इनलोगों (आरोपितों) को फाँसी नहीं हो रही है। गवाहों पर किस तरह का दबाव रहा होगा इसे इस बात से समझा जा सकता है कि बनवारी लाल के बेटे विनीत गोयल के कारोबारी साझेदार रहे प्रदीप अग्रवाल के भाई की वसीम ने गोली मारकर हत्या कर दी। साथ ही धमकी दी कि यदि उसके खिलाफ किसी ने एफआईआर करवाई तो उसकी भी हत्या कर दी जाएगी। उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ।*

*इंटरनल रिपोर्ट के अनुसार बनवारी लाल के परिवार पर डॉक्टर शफीकुर रहमान बर्क की ओर से भी दबाव डाला गया था। बर्क संभल से समाजवादी पार्टी से सांसद रहे हैं। फिलहाल उनके बेटे जियाउर रहमान बर्क इस सीट से सपा के सांसद हैं।* 

– *दैनिक भास्कर ने संभल के इतिहास के जानकार 58 साल के संजय शंखधर के हवाले से भी इस घटना के बारे में बताया है। शंखधर के अनुार इस दंगे से पहले संभल में हिंदुओं की आबादी 35% थी, अब करीब 20 प्रतिशत ही है। उन्होंने कहा, “1978 का दंगा संभल का सबसे बड़ा दंगा है। लाला मुरारी लाल की कोठी में दंगे से बचने के लिए कई लोग छिपे थे। इसका पता चलते ही दंगाइयों ने उनकी कोठी पर हमला कर दिया। जिसमें 26 लोगों की मौत हो गई। इनमें 24 हिंदू थे।”*

यह पूरा पढ़ना चाहिए…..
*पंजाब में 65000 पादरी, जिस चर्च के 14 साल पहले थे 3 मेंबर- अब हैं उसके 300000 सदस्य: पंज प्यारों की जमीन पर ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ की छाया कैसे…..सबसे बड़ा सवाल यह है कि पंज प्यारों की जमीन पर देखते-देखते ही कैसे ‘पगड़ी वाले ईसाई’ छा गए। इस सवाल का जवाब देने में जितनी देरी होगी, धर्मांतरण माफिया की जड़ें उतनी ही मजबूत होती जाएगी।*

*भारत धर्मांतरण (Religious Conversion) के घातक जाल में उलझा हुआ है। भोले-भाले जनजातीय समाज के लोगों को प्रलोभन दे ईसाई बनाने से मिशनरियों ने इस घातक जाल के धागे जोड़ने शुरू किए। अब यह एक ऐसे जाल के रूप में सामने आ चुका है, जिसमें दलित, पिछड़े, सर्वण… सब उलझे नजर आ रहे हैं। इस घातक जाल की जद में पंजाब (Religious Conversion In Punjab) भी है। इंडिया टुडे मैगजीन ने पंजाब में ईसाई धर्मांतरण पर कवर स्टोरी की है। इससे जो तथ्य सामने आए हैं, वे बताते हैं कि यदि इस पर लगाम न लगी तो परिणाम घातक हो सकते हैं।*
*साल 2022 की शुरुआत में जब पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए, तब यहाँ की आबादी का एक ऐसा वर्ग चर्चा में था जो खुद को दलित भी बताता है और ईसाई भी। वास्तव में ये वो लोग हैं जिन्हें मिशनरियों ने कन्वर्ट कर ईसाई बना दिया है। हालाँकि, आँकड़े यह कहते हैं कि राज्य की 1.26% आबादी ही ईसाई है। लेकिन, यहाँ बढ़ रहे धर्मांतरण के कारण जमीनी हकीकत पूरी तरह बदल चुकी है।*
*पंजाब में ईसाई मिशनरियों द्वारा सिखों के धर्मांतरण की स्थिति का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को सामने आकर धर्मांतरण विरोधी कानून की माँग करनी पड़ी है। यही नहीं, उन्होंने स्पष्ट रूप से यह भी कहा है कि ईसाई मिशनरियाँ चमत्कारिक इलाज और कपट से सिखों का जबरन धर्म परिवर्तन करा रही हैं। पंजाब के सिखों और हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए गुमराह किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया था कि वोट बैंक की राजनीति के कारण सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और यहाँ के गरीब हिंदुओं और सिखों को धर्मांतरित करने के लिए ‘विदेशी ताकतें’ फंडिंग कर रही हैं।*
*यूँ तो पूरे पंजाब में ईसाई मिशनरी सक्रिय होकर सिखों को ईसाई बना रही है और ऐसा लगता है कि यह सब दबे पाँव हो रहा है। लेकिन, जालंधर जिले के खाँबड़ा गाँव में बने चर्च में प्रत्येक रविवार को प्रार्थना करने के लिए मोटर साइकिल से लेकर कारों और किराए की स्कूली बसों में पहुँचने वाले 10-15 हजार लोगों को देखने के बाद यह स्पष्ट होता है कि धर्मांतरण का ‘बाजार’ तेजी से फल-फूल रहा है।*
*इंडिया टुडे की कवर स्टोरी के अनुसार, इस गाँव में हजारों लोगों के जमा होने के पीछे जो व्यक्ति है उसका नाम है- पादरी अंकुर नरूला। अंकुर का जन्म हिंदू खत्री परिवार में हुआ था। लेकिन, साल 2008 में ईसाई मिशनरियों के संपर्क में आने के बाद उसने धर्मांतरण कर लिया। इसके बाद उसने अंकुर नरूला मिनिस्ट्री की स्थापना की और फिर ‘चर्च ऑफ साइंस एंड वंडर्स’ भी शुरू कर दिया। दावा किया जा रहा है कि यहाँ निर्माणाधीन चर्च का निर्माण पूरा होने के बाद यह एशिया के सबसे बड़ा चर्च होगा। शुरुआत में इस चर्च से जुड़े लोगों की संख्या महज 3 थी। लेकिन, बीते 14 सालों में यह संख्या 3 लाख के आँकड़े को पार कर चुकी है।*
*अंकुर नरूला ने खाँबड़ा गाँव 65 एकड़ से अधिक क्षेत्र में धर्मांतरण का साम्राज्य स्थापित किया हुआ है। इसके अलावा पंजाब के नौ जिलों व बिहार और बंगाल के साथ ही अमेरिका, कनाडा, जर्मनी और ग्रेटर लंदन के हैरो में भी उसके ठिकाने हैं। अंकुर नरूला को उसकी मिनिस्ट्री से जुड़े हुए लोग या यह कहें कि धर्मांतरण का शिकार हुए लोग ‘पापा’ बुलाते हैं।*
*ऐसा कहा जाता है कि पंजाब में हो रहे धर्मांतरण के पीछे सबसे बड़ा हाथ नरूला का ही है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, पंजाब में ईसाइयों की कुल जनसंख्या 348000 (3 लाख 48 हजार) थी। लेकिन, अब नरूला मिनिस्ट्री से जुड़े लोगों की संख्या ही 3 लाख से पार हो चुकी है। यानी राज्य में, ईसाई मिशनरियों के जाल में फँसकर ‘पगड़ी वाले ईसाईयों’ की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है।*
*जालंधर ही नहीं, अमृतसर में भी मिशनरियों ने सिखों को ‘पगड़ी वाला ईसाई’ बना दिया है। अमृतसर सिखों का पवित्र शहर है। यहीं पवित्र स्वर्ण मंदिर भी है। लेकिन यहाँ के सेहंसरा कलां गाँव की सकरी गलियों के बीच बना चर्च कथित तौर पर धर्मांतरण का केंद्र है। इस चर्च का पादरी गुरुनाम सिंह है जो कि एक पुलिसकर्मी भी है। इस चर्च में रविवार को प्रार्थना होती है। गुरुनाम सिंह का दावा है कि वह सिर्फ प्रार्थना कराता है। लेकिन, सवाल यह है कि यदि वह सिर्फ प्रार्थना कराता है तो लोग ईसाई कैसे बन रहे हैं?*
*ईसाइयों के लिए पंजाब धर्मांतरण की नई प्रयोगशाला नहीं है। लेकिन यहाँ सैकड़ों पादरी नए हैं। इन पादरियों में अमृत संधू, कंचन मित्तल, रमन हंस, गुरनाम सिंह खेड़ा, हरजीत सिंह, सुखपाल राणा, फारिस मसीह कुछ बड़े नाम हैं। इनका नाम इसलिए बड़ा है क्योंकि ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ की संख्या बढ़ाने में इनका बड़ा योगदान है। पंजाब में इनकी कई शाखाएँ हैं और यूट्यूब पर लाखों फॉलोअर्स भी। ये सभी वे लोग हैं जो या तो पेशे से डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, पुलिस, कारोबारी और जमींदार हैं। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो नौकरी या काम छोड़कर रविवार को प्रार्थना के नाम पर ईसाइयत का प्रचार करते हैं।*
*कपूरथला जिले के खोजेवाल गाँव में बना ओपन डोर चर्च पूर्वी यूरोपीय प्रोटेस्टेंट डिजाइन का है। इस चर्च के पादरी हरप्रीत देओल जट्ट सिख हैं, जिनके ऑफिस में बड़े-बड़े बाउंसर्स तैनात हैं। इसी प्रकार बटाला के हरपुरा गाँव के सर्जन-पादरी गुरनाम सिंह खेड़ा भी जट्ट सिख हैं। पटियाला के बनूर में चर्च ऑफ पीस के पादरी मित्तल बनिया हैं। चमकौर साहिब के रमन हंस मजहबी सिख हैं। इन पादरियों में से कई पादरियों के पास निजी सुरक्षा गार्ड भी हैं।*
*पंजाब में सिखों को ईसाई बनाने के तमाशे ने लाखों लोगों को चर्च तक पहुँचा दिया है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। हालत यह है कि ईसाई मिशनरी और नरूला जैसे लोगों की मिनिस्ट्री यहाँ के सभी 23 जिलों में फैली हुई हैं। ये मिशनरियाँ माझा और दोआबा बेल्ट के अलावा मालवा में फिरोजपुर और फाजिल्का के सीमावर्ती इलाकों में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। पंजाब में ईसाइयत के प्रचार का बेड़ा उठाए लोगों की संख्या का कोई ठोस आँकड़ा नहीं हैं। लेकिन, इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुमान के मुताबिक यहाँ पादरियों की संख्या 65,000 के करीब है।*
*कुछ समय पहले न्यूज़ नेशन ने यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट के आँकड़ों के हिसाब से बताया था कि पंजाब के 12,000 गाँवों में से 8,000 गाँवों में ईसाई धर्म की मजहबी समितियाँ हैं। वहीं अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में 4 ईसाई समुदायों के 600-700 चर्च हैं। इनमें से 60-70% चर्च पिछले 5 सालों में अस्तित्व में आए हैं।*
*कुल मिलाकर आज पंजाब की कुछ-कुछ वैसी ही स्थिति तमिलनाडु जैसे दक्षिण के राज्यों में 1980 और 1990 के दशक में हुआ करती थी। हालाँकि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष एचएस धामी धर्मांतरण पर अधिक चिंतित नहीं हैं। उनका कहना है, “लोग जिंदगी की समस्याओं के हल के लिए पादरियों के पास जाते हैं। देर-सबेर उन्हें सच्चाई पता चलेगी और वे मूल धर्म में लौट आएँगे।” लेकिन ‘घर घर अंदर धर्मसाल’ जैसे अभियान बताते है कि स्थिति कितनी विस्फोटक हो चुकी है। इस अभियान के तहत सिख स्वयंसेवक अपने धर्म का प्रचार करने घर-घर जा रहे हैं।*
*इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि पंज प्यारों की जमीन पर देखते-देखते ही कैसे ‘पगड़ी वाले ईसाई’ छा गए। इस सवाल का जवाब देने में जितनी देरी होगी, धर्मांतरण माफिया की जड़ें उतनी ही मजबूत होती जाएगी।**साभार इंडिया टुडे*

*मनुस्मृति और कथित अंबेडकरवादियों के झूठ का पर्दाफाश*

लेखक- दिलीप पाण्डेय (पत्रकार, यूट्यूबर, रिसर्चर)

एक वीडियो क्लिप बहुत वायरल हो रही है । इंडिया टीवी के कार्यक्रम में मीनाक्षी जोशी नामक एक टीवी एंकर डिबेट शो कर रही थी । उसी डिबेट शो में जेएनयू की पढ़ी हुई आरजेडी की प्रवक्ता प्रियंका भारती भी मौजूद थी । प्रियंका भारती ने विरोध करते हुए लाइव कार्यक्रम में ही मनु स्मृति के पन्नों को फाड़ कर फेंक दिया । इस पर विवाद ट्विटर पर भी शुरू हो गया । जिसमें मीनाक्षी जोशी के एक ट्वीट पर प्रियंका भारती ने कहा कि मैं चंद्रगुप्त मौर्य की वंशज हूं और मीनाक्षी जोशी को 10 थप्पड़ रसीद कर सकती हूं ।

अब मीनाक्षी जोशी को ये जरूर पूछना चाहिए था कि जिस चंद्रगुप्त मौर्य का वंशज होने का दंभ प्रियंका भारती भर रही हैं दरअसल वो चंद्रगुप्त मौर्य मनुस्मृति के हिसाब से ही तो राज कर रहे थे । चंद्रगुप्त मौर्य के वंशजों को आगे राज करने में कोई दिक्कत ना हो इसलिए चंद्रगुप्त को ही सिंहासन पर बिठाने वाले एक ब्राह्मण विष्णु गुप्त चाणक्य ने ही अर्थ शास्त्र की रचना की थी और इस *अर्थ शास्त्र में मौजूद न्याय पद्धति पूरी की पूरी मनु स्मृति से ही ली गई है । यानी चंद्रगुप्त मौर्य का शासन मनु स्मृति का ही शासन है ।*

प्रियंका भारती जैसे कथित अंबेडकरवादियों के पास अपनी कोई बुद्धि नहीं है ये लोग डॉ अंबेडकर के द्वारा दी गई उधार की बुद्धि से ही चल रहे हैं और आपको जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि डॉ अंबेडकर ने चंद्रगुप्त मौर्य के शासन को पूरे भारत के इतिहास का सबसे अच्छा शासन कहा है । एक दिन मैंने एक दलित चिंतक से पूछ लिया कि जिस चंद्र गुप्त मौर्य की प्रशंसा के कसीदे डॉ अंबेडकर ने पढ़े हैं वो तो एक ब्राह्मण चाणक्य के ही शिष्य थे । और *प्रधानमंत्री के रूप में चाणक्य ही पूरी मौर्य शासन व्यवस्था के निर्माता और निर्देशक* थे तो इस पर उस धूर्त दलित चिंतक ने जवाब दिया कि अरे आपको पता नहीं चाणक्य एक काल्पनिक किरदार है और ये हकीकत में कभी था ही नहीं । ये ब्राह्मणवादी साहित्यकारों ने अपनी प्रभु सत्ता स्थापित करने के लिए मुद्रा राक्षस वगैरह कथाओं नाटकों में घुसेड़ दिया है ।

अब यहीं पर पूरा अंबेडकरवाद का पाखंड खुल जाता है क्योंकि चाणक्य कोई काल्पनिक किरदार है ये कोई विद्वान, दुनिया में मानने को तैयार नहीं है । दलित चिंतक खुद को बौद्ध कहते हैं और *बौद्ध इतिहास ग्रंथ महावंश में चंद्रगुप्त मौर्य के वंशावली और शासन का वर्णन करते हुए विष्णु गुप्त चाणक्य का संपूर्ण वर्णन किया गया है  ।*

इतना ही नहीं… जैन इतिहास ग्रंथों और तमाम यूरोपीय इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों ने चाणक्य का उल्लेख किया है । दरअसल चाणक्य ही कथित अंबेडकरवादियों की सबसे बड़ी कमजोरी हैं क्योंकि आज से 2500 साल पहले उन्होंने *एक ब्राह्मण होते हुए भी शूद्र जाति में जन्मे एक व्यक्ति को उसकी योग्यता और देशभक्तिपूर्ण आचरण के अनुरूप राज सिंहासन पर बिठा दिया था अब एक ब्राह्मण द्वारा शूद्र का राज्याभिषेक किए जाने का इतिहास* ही कथित अंबेडकरवादियों के झूठ की इमारत को जमींदोज कर देता है इसीलिए दलित चिंतक चाणक्य के किरदार को काल्पनिक बताकर कन्नी काट जाते हैं । ये हकीकत है इन कथित अंबेडकरवादी झूठे लोगों की ।

इसीलिए मैं प्रियंका भारती जैसे तमाम लोगों से ये कहना चाहता हूं कि कृपया अपने निजी स्वार्थों के लिए भारतीय धर्मग्रंथों का अपमान ना करें और ना ही भारतीय समाज में भेद पैदा करें ।

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*सबसे बड़ी बात ये है कि बाबा साहब के संविधान में जाति प्रमाण पत्र बन जाता है कोई मरते दम तक अपनी जाति नहीं बदल सकता जबकि मनु के संविधान में शूद्र भी तपस्या के दम पर ब्राह्मण वर्ण को प्राप्त हो सकता है ।*धन्यवाद 🙏 सभी लेख व चित्र साभार शोशल मीडिया