उत्तराखंड से कैलास मानसरोवर जाने के रास्ते पर सीमा सड़क संगठन ने लखनपुर से नजंग तक सबसे कठिन हिस्से पर ढाई किलोमीटर सड़क निर्माण का मिशन पूरा कर लिया है। उत्तराखंड में पहाड़ का सीना चीर कर सीमा सड़क संगठन बीआरओ ने मुस्किल सड़क बनाकर मुमकिन कर दिखाया है। अब जल्द ही कैलास मानसरोवर मार्ग में बड़ी गाड़ियों चलेंगी जिससे ये तीर्थयात्रा आसान हो जायेगी। वहीं उत्तराखंड के चमोली जनपद में नीति घाटी से भी लफतल और रिमखिम तक मोटर सड़क पंहुचा दी गई है। यहां से मानसरोवर केवल एक दिन का रास्ता है। सरकार को इसी मार्ग से कैलास मानसरोवर मार्ग सुचारू करना चाहिए। 
इस लिंक मार्ग के पूरा होने के साथ ही चुनौतियों से भरी ये 20 दिन की यह धार्मिक यात्रा मात्र एक हफ्ते में पूरी की हो जाएगी। बीआरओ ने जिस सड़क को तैयार किया है वो सड़क घटियाबगड़ से शुरू होकर कैलाश-मानसरोवर के इंट्री पॉइंट लिपुलेख दर्रा तक पहुँचती है। यह चीन को बेचेन करने वाली और भारत को शकून देने वाली उपलब्धि है। पिथौरागढ़ (उत्तराखंड). उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में बनी लिपुलेख सड़क (Lipu lekh pass) के उद्धघाटन के बाद नेपाल की सीमा पर लगातार सक्रियता बनी हुई है. दरअसल, भारत को 12 साल की कड़ी मेहनत के बाद चीन सीमा को जोड़ने वाली इस महत्वपूर्ण सड़क के निर्माण में सफलता मिली है. लेकिन इस सड़क के निर्माण के बाद से नेपाल (Nepal) परेशान दिख रहा है. पहले नेपाल सरकार ने लिपुलेख और कालापानी को अपना बताते हुए सड़क निर्माण पर तीखा विरोध जताया था. वहीं अब भारत से लगे इस इलाके में अपनी चौकसी बढ़ा दी है. नेपाल ने भारत से लगी इस सीमा पर सैनिक तैनात कर दिए हैं.
सैनिक छावनी में तब्दील हो रहा इलाका
कुछ रोज पहले ही नेपाल ने भारत से सटे छांगरु (Chhangru) में स्थाई तौर पर बॉर्डर आउट पोस्ट खोला था. अब जानकारी मिल रही है कि नेपाल इस इलाके को जल्द ही सैनिक छावनी में तब्दील करने जा रहा है. इस छावनी में 160 सैनिकों की तैनाती स्थाई तौर पर होनी है. यह छावनी इंटरनेशनल बॉर्डर से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित होगी.
9 मई को पहुंचे थे नेपाल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
लिपुलेख सड़क के उद्धघाटन के बाद से ही इस इलाके में नेपाल की सक्रियता में तेज़ी देखने को मिली है. 8 मई को लिपुलेख सड़क का उद्धघाटन होने के बाद 9 मई को ही नेपाल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इंद्रजीत राई हेलीकॉप्टर से कालापानी और छांगरु पहुंच गए थे और 13 मई को बीओपी खोलकर रवाना हुए.
पूरे साल रहेगी नेपाली सैनिकों की मौजूदगी
बताया जा रहा है कि नेपाल फ़िलहाल 9 करोड़ की लागत से छावनी बनाने की योजना बना रहा है. छावनी बनने के बाद उच्च हिमालयी इलाके में नेपाली सैनिकों की साल भर मौजूदगी रहेगी. असल में लिपुलेख सड़क का उद्धघाटन होने के बाद नेपाल ने कड़ा विरोध जताया है.
सुगौली संधि के बाद से दोनों इलाके भारत के पास
नेपाल सरकार का दावा है कि कालापानी और लिपुलेख उसका हिस्सा है और भारत ने नेपाल के भू-भाग में जबरन सड़क का निर्माण किया है. जबकि सच्चाई ये है कि ये दोनों इलाके सुगौली संधि के बाद से ही भारत के पास है. जिस कालापानी पर नेपाल दावा जता रहा है, वहाँ 1962 के बाद से ही भारतीय जवानों की तैनाती है. यही नही 1962 में हुए बंदोबस्त के मुताबिक़ कालापानी गर्व्यांग गांव का तोक है. जिसके अभिलेख भी धारचूला राजस्व विभाग के पास मौजूद हैं. लिपुलेख सड़क को लेकर नेपाल की बौखलाहट के पीछे चीनी साजिश भी नजर आ रही है.
सेना प्रमुख ने कहा- किसी और का हो सकता है इशारा
भारतीय सेना प्रमुख एम एम नरवण भी कह चुके हैं कि ये संभव है कि नेपाल किसी अन्य के इशारे पर लिपुलेख दर्रे को जोड़ने वाली सड़क पर आपत्ति जाता रहा है. पिथौरागढ़ से लगे बॉर्डर पर नेपाल की अतिसक्रियता के बावजूद भारतीय सुरक्षा एजेंसियां पहले की ही तरह अपने काम पर लगी हैं. नेपाल बॉर्डर पर तैनात एसएसबी की 11 वीं बटालियन के सेनानायक महेंद्र प्रताप का कहना है कि नेपाल अपनी सीमाओं के भीतर काम कर रहा है. नेपाल बॉर्डर पर एसएसबी पहले की ही तरह सुरक्षा में जुटी है.
