आरक्षण खत्म नहीं हुआ तो देश खत्म हो जायेगा

 

दुर्गा नौटियाल, ऋषिकेश

मैं व्यक्तिगत रूप से हमेशा समाज के पिछड़े वर्ग को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव अधिकार देने का पक्षधर रहा हूं। मगर, आज अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के नर्सिंग ऑफिसर ग्रेड-2 के रिजल्ट का विश्लेषण किया तो वास्तव में मुझे लगा कि आरक्षण सामान्य वर्ग के साथ एक बड़ा विश्वासघात है।
इस रिजल्ट का एक विश्लेषण आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश ने नर्सिंग ऑफिसर ग्रेड-2 के लिए 1126 पदों पर आवेदन आमंत्रित किए थे। देश भर से 38605 आवेदन इस पद के लिए आए। चयन परीक्षा में 25814 अभ्यर्थी शामिल हुए। एम्स ने कटऑफ के आधार पर सामान्य वर्ग के लिए 60% ओबीसी के लिए 55℅ व एससी-एसटी के लिए 50% की कट ऑफ तय कर अभ्यर्थियों का चयन किया। हैरानी की बात है कि चयन परीक्षा में शामिल हुए 25814 अभ्यर्थियों में से 1126 पदों के लिए महज 515 अभ्यर्थी क्वालीफाई कर पाए (यह भी चिंतन और मनन का विषय है)।
अब बात करते हैं आरक्षण के आधार पर विभिन्न वर्गों को प्राप्त सीटों की। सामान्य वर्ग के लिए 146 अभ्यर्थियों का चयन हुआ, ओबीसी वर्ग में 220 ओर एससी में 121 और एसटी वर्ग में 28 अभ्यार्थियों का चयन हुआ। सरकारी नौकरियों में आरक्षण के फार्मूले के अनुसार सामान्य वर्ग की मेरिट लिस्ट में ओबीसी, एससी व एसटी वर्ग के अभ्यर्थियों को भी मौका दिया जाता है। जबकि ओबीसी और एससी/एसटी में सामान्य वर्ग उपेक्षित रहता है। अब ध्यान देने योग्य बात यह है कि सामान्य वर्ग में चयनित कुल 146 अभ्यर्थियों में से वास्तव में सामान्य वर्ग के मात्र 66 अभ्यर्थी हैं। जबकि 70 अभ्यर्थी ओबीसी वर्ग और 10 अभ्यर्थी एससी एसटी वर्ग के हैं। (यह सूची एम्स ऋषिकेश की अधिकृत साइट पर मौजूद है)
अब इस सूची के आधार पर विश्लेषण करें तो चयनित 515 अभ्यर्थियों में मात्र 66 सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी चयनित हुए हैं। जबकि 449 चयनित अभ्यर्थी आरक्षण के बूते इस नौकरी को हासिल कर पाए हैं। यानी कि आरक्षण ने सामान्य वर्ग के खाते में ही 80 नौजवानों के भविष्यफल ग्रहण लगा दिया। जबकि आरक्षण में उनका अपने वर्ग की सभी सीटों पर एकाधिकार है।
अब आप स्वयं तय कर सकते हैं की आरक्षण हमारे समाज में किस तरह पढ़े-लिखे और होनहारों को हतोत्साहित कर रहा है।
एक बात और, इस पद के लिए जब आवेदन आमंत्रित किए गए थे तो सामान्य वर्ग के लिए फीस 3000 रुपये थी, ओबीसी के लिए 1000, और SC ST के लिए कोई भी फीस नहीं ली गई। मैं दावा नहीं कर सकता मगर मेरा आंकलन यह है कि एम्स प्रशासन इस परीक्षा के नाम पर सामान्य और ओबीसी वर्ग से फीस की एवज में ही करीब 5 करोड़ रुपए की कमाई कर चुका है। मगर बदले में सामान्य वर्ग को क्या मिला…? आप खुद ही देख लें। ये हाल तो सिर्फ एक संस्थान का है अंदाज लगाया जा सकता है कि समूचे देश को आरक्षण की व्यवस्था ने किस गर्त में धकेल दिया है। और आरोग्य सिस्टम ने योग्यता का किि तरह से अपहरण कर लिया है।