नन्दन सिंह रावत की मौत यानी उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के अध्याय का समापन

नन्दन सिंह रावत की मौत यानी उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के अध्याय का समापन

 उत्तराखंड राज्य के प्रमुख आन्दोनलकारी और उक्रांद के बड़े नेता नंदन सिंग रावत अब हमारे बीच नहीं रहे, सोमवार सुबह उनका देहावसान हो गया। उत्तराखंड क्रांति दल ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया और कहा कि “राज्य न्दोनलकारियों की सरकार भारी उपेक्षा कर रही है, बाबा मथुरा प्रसाद बमराडा और नंदनसिंह रावत दोनों राज्य आंदोलनकारियों की सरकार ने इलाज कराने में लापरवाही की है, इससे इन दोनों पुरोधाओं के मन में टीस थी सरकारों की कार्यप्रणाली से दोनों व्यथित थे”

नंदनसिंह रावत का जीवन उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के लिए समर्पित रहा उन्होंने  1985-86 से उत्तराखण्ड क्रांति दल में रह कर राज्य बनने तक निरंतर संघर्ष किया और राज्य बनने के बाद आंदोलनकारियों के हितों  के लिए संघर्ष करते रहे। वे उत्तराखड 36 दिन के बन्द में अपने 98 साथियों  के साथ 2 दिन कोटद्वार अस्थाई जेल में बन्द रहे 1989 में वन अधिनियम के विरोध में सिद्धबली पुल और दुगड्डा पुल में आये बाधक पेड़ों का सफाया किया जिसमें  19 लोगों  पर 11 साल तक मुकदम्मा लड़ा इसमें 5 दिन पौड़ी जेल में रहे। कर्ज माफ़ी के आंदोलन में भी अपने अन्य सहयोगियों के साथ 7 दिन अस्थाई जेल में रहे। सन् 1989 में उन्होंने उत्तराखंड क्रांति दल से अफजलगढ़ विधान सभा से चुनाव लड़ा। 1994 की अगस्तक्रांति में जब स्वर्गीय इंद्र बडोनी और उनके सहयोगियों को पुलिस द्वारा उठाया गया तब नन्दनसिंह रावत के नेतृत्व में 5 क्रांतिकारी अनशन पर बैठे 1 हफ्ते बाद इन सबको भी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर मेरठ भेजा गया। 1994 के आंदोलन में इनका पूरा परिवार आंदोलन में कूदा उनके छोटे बेटे  को पुलिस ने गिएफ्तार कर फतेहगढ़ जेल बन्द किया और दूसरे के खिलाप वारंट जारी किया गया और पकड़े नहीं जाने पर उनके घर की कुर्की कर दी गयी तब उसने अदालत में समर्पण किया। 1996 में “राज्य नहीं  चुनाव नहीं आन्दोलन” में अपने 33 क्रांति कारियों के साथ 2 दिन अस्थाई जेल दुग्गडा में बन्द रहे,  24 जुलाई 2000 में अपने साथियों  के साथ पौड़ी में पृथक राज्य के लिए गिरफ्तारी दी, राज्य बनने के बाद से अभी तक राज्य निर्माण आंदोलनकारियों के हितों  के लिए लड़ते रहे। 
 उन्होंने उत्तराखण्ड क्रांति दल में कोटद्वार नगर अध्यक्ष से सफर की शुरुवात की, दल के जिला अध्यक्ष तथा केंद्रीय उपाध्यक्ष भी रहे वर्तमान में वे “उत्तराखण्ड सम्मान प्रकोष्ठ” के केंद्रीय अध्यक्ष थे। 
26फरवरी सुबह 11. 30 में अपने आवास 2 माह तक बीमारी से लड़ने के बाद यह महान क्रांतिकारी अपनी देह त्याग कर अनन्त में विलीन हो गया और इसी के साथ उत्तराखंड आन्दोलन का एक अध्याय समाप्त हो गया। उनके निधन से समूचे उत्तराखंड में शोक की लहर दौड़ गई। आज हरिद्वार में उनका अंतिम संस्कार होगा।