देवभूमि की सुरक्षा का दायित्व संभाले वीरांगना राधाधौनी सेमवाल, इक्कीसवीं शदी में हिजाब आदि से मुंह ढकने की कुप्रथा चिंता का विषय है, सिडनी आतंकी हमले के बाद आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी एल्बेनीज ने सभी पाकिस्तानियों के वीजा रद्द करने की घोषणा की, सउदी अरब ने १७० पाकिस्तानियों को लटकाया फांसी पर, लापता 54′ ये वो सेनिक है जिन्हें शिमला सामझोते में इन्दिरा गांधी पाकिस्तान से लाना भुल गई थी, आज का पंचाग आप का राशिफल

सिडनी आतंकी हमले के बाद आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी एल्बेनीज ने सभी पाकिस्तानियों के वीजा रद्द करने की घोषणा की।
आस्ट्रेलिया में वही समस्या है जो भारत में है वहां कल गोलीबारी करके मार डाला और वहां पहले एक शांति दूत डाक्टर साहब ने अपने कई मरीजों को मौत के घाट उतार दिया था।
जल्द ही वहां से पाकिस्तानी खदेड़े जायेंगे।सिर्फ पाकिस्तानी निकालने से समस्या समाप्त नहीं होगी सभी मुसलमानों को खदेड़ो नहीं तो कल दूसरा जन्नत की ख्वाहिश में क्या कर दे।

असली वालो ने नकली वालो पे जुल्म कर दिया 

अब लिबरल्स की जीभ पेट मे ही सुकड जायेगी.. 

अब एक शब्द नही निकलेगा हलक से।🧐

इसी को कहते है डर ☝️

आज 16 दिसंबर है

आज ही के दिन लापता हुए ‘लापता 54’ ये वो सेनिक है जिन्हें शिमला सामझोते में इन्दिरा गांधी पाकिस्तान से लाना भुल गई थी

जिन्हें सरकारी फ़ाइलों में आज भी लापता 54 के नाम से जाना जाता है

शिमला समझोते में पाकिस्तान के 81 हज़ार सेनिक 12 हज़ार नागरिक इन्दिरा गांधी ने पाकिस्तान को वापस दिए थे ओर अपने 54 सेनिक लेना याद तक नहीं रहाबंगाल के 37945 गाँवों में से 8000 गाँव में 1 भी हिंदू नहीं बचा सब ख़ाली देख लो चमचो

एक कहावत है “भगवान भरोसे मत बैठो…. क्या पता भगवान ने तुम पर भरोसा कर रखा हो”

समाज की लड़ाई सरकारी तंत्र से नहीं लड़ी जाती समाज को ही आगे आना होता है
उत्तराखंड की एक बहन ने समाज की ऐसी ही लड़ाई का बीड़ा उठाया और आज सफल भी हुईं हैं अपने इस युद्ध में

धोनी…. ये उपनाम नाम सुनते ही आपके दिमाग़ में महेंद्र सिंह धोनी आते हैं….. तो आज एक और धोनी से परिचय कर लीजिये… बहन #राधा_धोनी
उत्तराखंड के पहाड़ों की बेटी…. देव भूमि की सच्ची पुत्री..

उत्तराखंड में सरकारी जमीनों… जंगल पर अवैध कब्जे को हज़ारों हज़ार अवैध म•ज़ा•र खड़े कर दिये गए….. सरकारी तंत्र की भ्रष्ट व्यवस्था… और राजनेताओं का तुष्टिकरण…
लड़े कौन…

ऐसे में इसके खिलाफ़ हाथ में कुदाल उठा निकली राधा धोनी ……..

पिछले हफ़्ते जब राधा सेमवाल धोनी को हिंदू रक्षा दल द्वारा आयोजित होली सेलिब्रेशन में बुलाया गया, तो उन्हें फूलों का गुलदस्ता देकर सम्मानित किया गया और एंकर ने उनका परिचय देते हुए कहा कि उन्होंने “370 मजारें गिरा दी हैं, और उनका टारगेट 540 का है।” एंकर आगे कहता है, “मजारें गिराना आसान नहीं है; एक मजार गिराना एक खास सोच को गिराना है… उन लोगों की सोच जो मजारों में विश्वास रखते हैं।”

राधा सेमवाल धोनी एक मिशन वाली महिला हैं। यह मिशन है “मजार-मुक्त उत्तराखंड” या मजारों से मुक्त उत्तराखंड, और उनके अनुसार इसे पाने का रास्ता है उन सभी को गिरा देना। देहरादून की रहने वाली राधा अपने दिन का एक बड़ा हिस्सा राज्य की राजधानी के घने जंगलों के साथ-साथ कई दूसरे जिलों में भी घूमकर मजारों को ढूंढने और फिर उन्हें तोड़ने में बिताती हैं। वह इस तरह के अपने लगभग सभी दौरों को अपने फेसबुक लाइव पर ज़रूर दिखाती हैं।

और अकेली इस बहन के संघर्ष ने हज़ारों लोगों को जगाया….. और सैकड़ों अवैध म•ज़ा•र देवभूमि की पवित्र माटी से खरपतवार की तरह उखाड़ फेंक दिये गए….

एक सेल्यूट तो इस बहन के लिए बनता है

आज के अच्छे नेता 25 वर्ष बाद आपका मकान दुकान खेत खलिहान बचाने नहीं आयेंगे लेकिन आज का अच्छा कानून आपकी 25 पीढ़ियों को बचाएगा

UN ने यानी यूनाइटेड नेशन दुनियाँ की महापंचायत ने…. आज तक कुल 726 लोगों को आतंकवादी घोषित किया है…

इन 726 में कोई एक भी हिन्दू नहीं…. कोई एक भी यहूदी नहीं…

हाँ इन 726 में से “मात्र” 700 वो हैं जो इ•स्•ला•म को मानते हैं…. मु•स्लि•म हैं 

लेकिन फिर भी आ•तं•क•वा•द का कोई म•ज़•ह•ब नहीं होता…. है न कमाल की बात 😊

उत्तराखंड की धामी सरकार ने जबरन धर्मांतरण पर सजा का प्रावधान ऐड करते हुए संशोधित बिल राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा था, लेकिन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने इस विधेयक को पुनर्विचार के संदेश के साथ सरकार को लौटा दिया है।

इक्कीसवीं शदी में मुंह ढकने की कुप्रथा चिंता का विषय है 21वीं सदी में सार्वजनिक सुरक्षा और पूरा चेहरा ढकने की कुप्रथा: एक गंभीर चिंता

21वीं सदी को आधुनिक तकनीक, तेज़ यातायात, शहरी जीवन और बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों का युग कहा जा सकता है। आज समाज का सबसे बड़ा दायित्व है—सार्वजनिक सुरक्षा। ऐसे समय में किसी भी सार्वजनिक स्थान पर पूरा चेहरा ढकना, चाहे वह हिजाब हो या किसी अन्य रूप में, एक गंभीर सुरक्षा जोखिम बन चुका है।

यह मुद्दा केवल धर्म, मजहब या परंपरा का नहीं है, बल्कि सामूहिक सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था का है। हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, बैंक, मॉल, सरकारी कार्यालय और सामाजिक समारोह—इन सभी स्थानों पर व्यक्ति की पहचान का स्पष्ट होना बेहद अनिवार्य है। आज की सुरक्षा व्यवस्थाएँ सीसीटीवी कैमरे, फेस-रिकॉग्निशन सिस्टम, बायोमेट्रिक पहचान और प्रत्यक्ष निगरानी पर आधारित हैं। जब नकाब, हिजाब, पूर्ण घूंघट से चेहरा पूरी तरह ढका होता है, तो ये सभी व्यवस्थाएँ प्रभावहीन हो जाती हैं।

पूरा चेहरा ढकना अपराधियों, असामाजिक तत्वों और आतंकी गतिविधियों के लिए एक आसान आवरण बन सकता है। यह किसी एक समुदाय पर आरोप नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक सच्चाई है कि सुरक्षा एजेंसियाँ चेहरे की पहचान के बिना किसी भी संदिग्ध गतिविधि को रोकने में असमर्थ हो जाती हैं। इससे आम नागरिकों—विशेषकर महिलाएँ, बच्चे और बुज़ुर्ग—अधिक असुरक्षित हो जाते हैं।

कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि यदि कोई महिला स्वेच्छा से हिजाब या नक़ाब पहनती है, तो उसे अनुमति मिलनी चाहिए। लेकिन यह समझना आवश्यक है कि स्वेच्छा का अधिकार भी वहीं तक मान्य होता है, जहाँ तक वह सार्वजनिक सुरक्षा और सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित न करे। जैसे कोई व्यक्ति स्वेच्छा से भी सार्वजनिक स्थान पर हेलमेट पहनकर चेहरा छिपाकर नहीं घूम सकता, उसी प्रकार धार्मिक या सांस्कृतिक कारणों से भी सार्वजनिक स्थलों पर पूरा चेहरा ढकना उचित नहीं ठहराया जा सकता।

अस्पतालों में डॉक्टर और मरीज के बीच स्पष्ट संवाद और पहचान आवश्यक है। स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए यह जानना ज़रूरी है कि परिसर में कौन उपस्थित है। सामाजिक और सार्वजनिक कार्यक्रमों में आपसी विश्वास और पारदर्शिता तभी संभव है, जब चेहरा खुला हो। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि सार्वजनिक जीवन में पूरा चेहरा ढकना—चाहे स्वेच्छा से हो—सामाजिकता के विरुद्ध और सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक कुप्रथा है।

यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए कि यह चर्चा किसी महिला की आस्था या निजी जीवन में हस्तक्षेप के लिए नहीं है। निजी स्थानों पर व्यक्ति को अपनी मान्यताओं के अनुसार जीने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर कुछ साझा नियम होते हैं, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं—ताकि समाज सुरक्षित, व्यवस्थित और विश्वास-आधारित बना रहे।

निष्कर्षतः, 21वीं सदी में सार्वजनिक सुरक्षा से बड़ा कोई तर्क नहीं हो सकता। जबरन हो या स्वेच्छा से—सार्वजनिक स्थानों पर पूरा चेहरा ढकना एक अव्यावहारिक, अनुचित और खतरनाक प्रथा है, जिसे आधुनिक, लोकतांत्रिक और सुरक्षा-सचेत समाज में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। महिलाओं का सशक्तिकरण उन्हें छिपाने में नहीं, बल्कि उन्हें सुरक्षित, स्वतंत्र और समान नागरिक के रूप में सामने लाने में है। साभार मदन शर्मा

इथियोपिया में डिनर के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वंदे मातरम गीत की प्रस्तुति से स्वागत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि
कल प्रधानमंत्री अबी अहमद अली द्वारा आयोजित बैंक्वेट डिनर में, इथियोपियाई गायकों ने वंदे मातरम का एक शानदार गायन किया। यह एक बहुत ही भावुक पल था, वह भी ऐसे समय में जब हम वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं।

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