दुर्भाग्य देखो सुप्रीम कोर्ट की खंड पीठ कुत्तों पर सुनवाई करती है, लेकिन गोवंश की हत्या का स्वत: संज्ञान नहीं लेती, सुप्रिम कोर्ट कभी गायों की हत्या और उन पर हो रहे अत्याचार का संज्ञान क्यों नहीं लेता ? या वास्तव में अंग्रेज भारत में भी अपने जैसे ही कुत्ता पालन मानसिकता की न्याय व्यवस्था तैयार करके गये!!
अंग्रेजी पद्धति की न्याय व्यवस्था के साथ ही भारत से अंग्रेजी और उर्दू शिक्षा व्यवस्था नहीं हटेगी तो भारत भी नहीं बचेगा, इतना तय है।
कुत्ता पालन भारतीय संस्कृति विरोधी मानसिकता है, यह पाश्चात्य उद्योग है जो गो पालन पर भारी है और हावी हो रहा है इसके लिए विदेशी फंडिंग के समाचार भी शोशल मीडिया पर आते रहते हैं।
कुत्तों का नेचुरल हैवीटैट गली और आंगन ही है, घर के भीतर नहीं, प्रकृति में स्वछंद विचरण करने वाले कुत्ते घर के भीतर स्वयं भी बीमार हो जाते हैं और बीमारी का कारण भी बनते हैं उनके साथ व्यभिचार और अनाचार भी पनप सकत है जिसके अनेक वीडियो शोशल मीडिया पर भी तैरते दिख जाते हैं। इसलिए लिए जानकर ने कहा है। ‘काटे चाटे स्वान के दोऊ भांति विपरीत’।
सामान्य स्थितियों में कुत्तों को न है न कभी मारना चाहिए न बाड़ा बना कर कैद करना चाहिए न सताना चाहिए न घर के अंदर पालना चाहिए, न पागल कुत्तों को परिश्रय देना चाहिए। कुत्तों के प्राकृतिक आवास गलियां व आंगन हैं, घर के भीतर कुत्ते कैद करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत एक अपराध है। कुत्ते की चैन पकड़े सडकों पर बेशर्मी से गंदगी कराते कुत्तों के मालिकों को देख कर क्या लगता है, पूर्व जन्म में कौन मालिक और कौन कुत्ता रहा होगा क्यों कि ये तो जन्म मरण का नेचुरल लेन देन का सिद्धांत है। सडकों पर गंदगी भी पालतू कुत्ते ही करते हैं जिन्हें हम आवारा कुत्ता कहते हैं वे नहीं करते, क्यों कि वे समझदार होते हैं।
जो पागल कुत्ते काटते हों उन्हें तत्क्षण मारने, सभी कुत्तों का रैबीज के लिए टीकाकरण व कुत्तों का #बंध्याकरण अभियान तो तनिक संभव है भी लेकिन #कुत्तों को उनके प्राकृतिक आवास से हटा कर उनको स्यलटर बना कर रखना उनके भोजन की व्यवस्था करना सरकार के लिए असंभव नहीं तो अव्यवहारिक तो है ही है। इतनी सामान्य सी बात कोर्ट में बैठे न्यायमूर्ति नहीं समझ पाते हैं, तो वे शास्त्र की व्यवस्था और गाय की महिमा क्या समझेंगे!
शास्त्रों के अनुसार जिस घर के भीतर कुत्ता पालन होता है वहां देवताओं और पित्रों का वास नहीं होता न उस घर का दृव्य हवि वे गृहण करते हैं। उस घर को बीमारियां और दरिद्रता घेर लेती है। इस लिए कुत्ता नहीं गाय पालने का विधान है। गाय माता में साक्षात गणेश और लक्ष्मी सहित तैंतीस करोड़ देवी देवताओं और चौदह भुवनों का वास है। गाय इस लोक ही नहीं परलोक में भी मनुष्य का तारण करती है। युगों से पूरे संसार में गाय पूज्य ही थी। लेकिन ये कलिकाल का दुष्प्रभाव ही है कि दुर्दांत हिंसक लुटेरे कबीलों की मानसिकता के कारण गाय उपेक्षित है लेकिन कुत्ता मानसिकता कुत्ता इंडस्ट्री फलफूल रही है। उसी भांति अंग्रेजों ने ये कैसी कुत्ता #मानसिकता बना दी भारतीय न्याय व्यवस्था की? अरे सरकार में बैठे पांच सौ मुसलमान और ईसाई मानसिकता के सांसद गाय और #गोवंश हत्या पर चुप्पी साधे हैं, तो कोर्ट ही स्वत: संज्ञान ले कर भारत जैसी सश्य श्यामला देवभूमि पर गो वंश बचाने का आदेश पारित कर देता, कुत्ता पालन मानसिकता के न्यायविदों।
फिर तो संसद में बैठे इन पांच सौ गो हत्या के जिम्मेदारों में भी इतना साहस नहीं जो कोर्ट के आदेश के विरुद्ध चूं कर सकें।
बता दें कि आवारा कुत्तों के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया है, कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में रखने के अपने आदेश को बदलना है या नहीं, कोर्ट को ये फैसला करना है।
जस्टिस विक्रम नाथ की टिप्पणी: “इस समस्या की सबसे बड़ी वजह जिम्मेदार विभागों की लापरवाही है, कोर्ट ने कहा कि स्थानीय ऑथिरिटी वो काम नहीं कर रही है, जो उन्हें करना चाहिए था, उन्हें अपनी जिम्मेदारी लेनी चाहिए” कुत्तोंं की इतनी चिंता और गाय व गो वंश कसाई खानोंं और बकरीद की सामग्री? कौन सी मानसिकता और कैसा सा न्याय!
जहां मनुुष्य केे अस्तित्व और खानेे रहने की ठीक ठाक व्यवस्था नहीं हैै, सूकरों की तरह बढ़ती जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर पर विचार नहीं हो रहा है, वहां कुुत्तों केे लिए स्यलटर बनाने का स्थान उसके लिए बजट, मांसाहारी भोजन जुटाने, डाक्टरोंं की व्यवस्था कितनी संभव है! ✍️डाॅ0 हरीश मैखुरी