आज का पंचाग आपका राशि फल, सूर्य षष्ठी यानी छट्ट पर्व की महिमा और महात्म्य , टैफलान कोटिंग यानी धीमा जहर वाले वर्तनों के उपयोग से बचें

🌹………..|| *पञ्चाङ्गदर्शन* ||……….🌹
*श्रीशुभ वैक्रमीय सम्वत् २०७९ || शक-सम्वत् १९४४ || याम्यायन् || नल नाम संवत्सर || शरद ऋतु || कार्तिक शुक्लपक्ष || तिथि षष्ठी || भानुवासर || कार्तिक सौर १४ प्रविष्ठ || तदनुसार ३० अक्तूबर २०२२ ई० || नक्षत्र मूल पूर्वाह्न ७:२६ तक उपरान्त पूर्वाषाढ़ (आप:) || धनुर्धरस्थ चन्द्रमा || सूर्यषष्ठी व्रत/ छठ पूजा ||*📖 *पर्वानुशंसा…………….*✍️
*षष्ठांशा प्रकृतेर्या के सा षष्ठी प्रकिर्तिता।*
*बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा।।*
📝 *भावार्थ* 👉 भारतके बिहार प्रान्तका सर्वाधिक प्रचलित एवं पावन पर्व *’ सूर्यषष्ठी’* प्रमुखरूपसे भगवान् सूर्यका व्रत है। इस व्रतमें सर्वतोभावेन भगवान् सूर्यकी पूजा की जाती है। ये समस्त लोकोंके बालकोंकी रक्षिका देवी हैं। प्रकृतिका छटा अंश होनके कारण इन देवीका एक नाम *’षष्ठी’* भी है।
💐👏 *सुदिनम्* 👏💐​

*༺𝕝 🕉 𝕝༻​​*

             *𝕝𝕝 जय श्री राधे 𝕝𝕝*

             *महर्षि पाराशर पंचांग*

          *🙏☾अथ पंचांगम्☽🙏*

            *दिनाँक : ~

        *30/10/2022, रविवार*

षष्ठी, शुक्ल पक्ष,

कार्तिक

*〠〠〠〠〠⁂⧱⁂〠〠〠〠〠*

(समाप्ति काल)

तिथि——–षष्ठी 27:27:18 तक

पक्ष————————-शुक्ल

नक्षत्र————-मूल 07:24:41

नक्षत्र——–पूर्वाषाढा 29:46:36

योग————सुकर्मा 19:14:27

करण———-कौलव 16:37:48

करण————तैतुल 27:27:18

वार———————–रविवार

माह———————–कार्तिक

चन्द्र राशि———————धनु

सूर्य राशि———————तुला

रितु————————–हेमंत

आयन—————–दक्षिणायण

संवत्सर——————-शुभकृत

संवत्सर (उत्तर)——————-नल

विक्रम संवत—————-2079

गुजराती संवत————–2079

शक संवत——————1944

 

वृन्दावन

सूर्योदय—————06:29:28

सूर्यास्त—————-17:35:49

दिन काल————–11:06:21

रात्री काल————-12:54:19

चंद्रोदय—————-11:32:55

चंद्रास्त—————–21:53:48

 

लग्न—–तुला 12°25′,192°25′

 

सूर्य नक्षत्र——————-स्वाति

चन्द्र नक्षत्र———————मूल

नक्षत्र पाया——————–ताम्र

 

*🚩💮🚩 पद, चरण 🚩💮🚩*

 

भी—- मूल 07:24:41

 

भू—- पूर्वाषाढा 12:59:49

 

धा—- पूर्वाषाढा 18:35:08

 

फा—- पूर्वाषाढा 24:10:42

 

ढा—- पूर्वाषाढा 29:46:36

 

*💮🚩💮 ग्रह गोचर 💮🚩💮*

 

        ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद

==========================

सूर्य=तुला 12 :29 स्वाति , 2 रे 

चन्द्र =धनु 12 °23, ज्येष्ठा, 4 भी 

बुध =तुला 06 ° 34′ चित्रा ‘4 री 

शुक्र=तुला 14°05, स्वाति ‘ 3 रो 

मंगल=मिथुन 01°30 ‘ मृगशिरा’ 3 का 

गुरु=मीन 05°30 ‘ उ o भा o, 1 दू 

शनि=मकर 24°43 ‘ धनिष्ठा ‘ 1 गा       

राहू=(व) मेष 19°25 भरणी , 2 लू 

केतु=(व) तुला 19°25 विशाखा , 4 ता 

 

*🚩💮 शुभा$शुभ मुहूर्त 💮🚩*

 

राहू काल 16:13 – 17:36 अशुभ

यम घंटा 12:03 – 13:26 अशुभ

गुली काल 14:49 – 16:13 अशुभ 

अभिजित 11:40 – 12:25 शुभ

दूर मुहूर्त 16:07 – 16:51 अशुभ

वर्ज्यम 16:21 – 17:50 अशुभ

 

🚩गंड मूल 06:29 – 07:25 अशुभ

 

💮चोघडिया, दिन

उद्वेग 06:29 – 07:53 अशुभ

चर 07:53 – 09:16 शुभ

लाभ 09:16 – 10:39 शुभ

अमृत 10:39 – 12:03 शुभ

काल 12:03 – 13:26 अशुभ

शुभ 13:26 – 14:49 शुभ

रोग 14:49 – 16:13 अशुभ

उद्वेग 16:13 – 17:36 अशुभ

 

🚩चोघडिया, रात

शुभ 17:36 – 19:13 शुभ

अमृत 19:13 – 20:49 शुभ

चर 20:49 – 22:26 शुभ

रोग 22:26 – 24:03* अशुभ

काल 24:03* – 25:40* अशुभ

लाभ 25:40* – 27:17* शुभ

उद्वेग 27:17* – 28:53* अशुभ

शुभ 28:53* – 30:30* शुभ

 

💮होरा, दिन

सूर्य 06:29 – 07:25

शुक्र 07:25 – 08:21

बुध 08:21 – 09:16

चन्द्र 09:16 – 10:12

शनि 10:12 – 11:07

बृहस्पति 11:07 – 12:03

मंगल 12:03 – 12:58

सूर्य 12:58 – 13:54

शुक्र 13:54 – 14:49

बुध 14:49 – 15:45

चन्द्र 15:45 – 16:40

शनि 16:40 – 17:36

 

🚩होरा, रात

बृहस्पति 17:36 – 18:40

मंगल 18:40 – 19:45

सूर्य 19:45 – 20:49

शुक्र 20:49 – 21:54

बुध 21:54 – 22:58

चन्द्र 22:58 – 24:03

शनि 24:03* – 25:08

बृहस्पति 25:08* – 26:12

मंगल 26:12* – 27:17

सूर्य 27:17* – 28:21

शुक्र 28:21* – 29:26

बुध 29:26* – 30:30

 

*🚩💮 उदयलग्न प्रवेशकाल 💮🚩* 

 

तुला > 04:34 से 06:47 तक

वृश्चिक > 06:47 से 09:06 तक 

धनु > 09:06 से 11:36 तक

मकर > 11:36 से 13:14 तक

कुम्भ > 13:14 से 14:44 तक

मीन > 14:44 से 15:16 तक

मेष > 15:16 से 16:50 तक

वृषभ > 16:50 से 19:36 तक 

कर्क > 19:36 से 00:06 तक

सिंह > 00:06 से 02:24 तक

कन्या > 02:24 से 04:26 तक

 

*🚩विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार*

 

       (लगभग-वास्तविक समय के समीप) 

दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट

जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट

कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट

लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट

कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट

 

*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। 

प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। 

चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।

शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥

रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।

अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥

अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।

उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।

शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें।

लाभ में व्यापार करें ।

रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।

काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।

अमृत में सभी शुभ कार्य करें।

 

*💮दिशा शूल ज्ञान———पश्चिम*

परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा चिरौजी खाके यात्रा कर सकते है l

इस मंत्र का उच्चारण करें-:

*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*

*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*

 

*🚩 अग्नि वास ज्ञान -:*

*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*

*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*

*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*

*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*

*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*

 

  6 + 1 + 1 = 8 ÷ 4 = 0 शेष

 मृत्यु लोक पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l

 

*🚩💮 ग्रह मुख आहुति ज्ञान 💮🚩*

 

सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है

 

 बुध ग्रह मुखहुति

 

*💮 शिव वास एवं फल -:*

 

  6 + 6 + 5 = 17 ÷ 7 = 1 शेष

 

 कैलाश वास = शुभ कारक

 

*🚩भद्रा वास एवं फल -:*

 

*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*

*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*

 

*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*

 

* सूर्य षष्ठी महापर्व 

 

*डालछट (बिहार)

 

* सर्वार्थ सिद्धि योग 7:25 तक 

 

*💮🚩💮 शुभ विचार 💮🚩💮*

 

वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते ।

मृदुना रक्ष्यते भूपः सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम् ।।

।। चा o नी o।।

 

दान गरीबी को ख़त्म करता है. अच्छा आचरण दुःख को मिटाता है. विवेक अज्ञान को नष्ट करता है. जानकारी भय को समाप्त करती है.

 

*🚩💮🚩 सुभाषितानि 🚩💮🚩*

 

गीता -: भक्तियोग अo-12

 

ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।,

श्रद्धाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः॥,

 

परन्तु जो श्रद्धायुक्त (वेद, शास्त्र, महात्मा और गुरुजनों के तथा परमेश्वर के वचनों में प्रत्यक्ष के सदृश विश्वास का नाम ‘श्रद्धा’ है) पुरुष मेरे परायण होकर इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम प्रेमभाव से सेवन करते हैं, वे भक्त मुझको अतिशय प्रिय हैं॥,20॥,

 

*💮🚩 दैनिक राशिफल 🚩💮*

 

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।

नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।

विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।

जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।

 

🐏मेष

रुका धन मिलेगा। पूजा-पाठ व सत्संग में मन लगेगा। आत्मशांति रहेगी। कोर्ट व कचहरी के कार्य अनुकूल रहेंगे। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। प्रसन्नता का वातावरण रहेगा। मातहतों का सहयोग मिलेगा। किसी सामाजिक कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सकता है। दूसरे के काम में दखल न दें।

 

🐂वृष

यात्रा सफल रहेगी। नेत्र पीड़ा हो सकती है। लेन-देन में सावधानी रखें। बगैर मांगे किसी को सलाह न दें। बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। व्यावसायिक यात्रा मनोनुकूल रहेगी। धनार्जन होगा। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। अज्ञात भय व चिंता रहेंगे।

 

👫मिथुन

क्रोध व उत्तेजना पर नियंत्रण रखें। विवाद को बढ़ावा न दें। पुराना रोग बाधा का कारण रहेगा। स्वास्थ्य पर खर्च होगा। वाहन व मशीनरी के प्रयोग में लापरवाही न करें। छोटी सी गलती से समस्या बढ़ सकती है। व्यवसाय ठीक चलेगा। मित्र व संबंधी सहायता करेंगे। आय बनी रहेगी। जोखिम न लें।

 

🦀कर्क

आय में निश्चितता रहेगी। अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे। व्यवस्था नहीं होने से परेशानी रहेगी। व्यवसाय में कमी होगी। नौकरी में नोकझोंक हो सकती है। पार्टनरों से मतभेद हो सकते हैं। थकान महसूस होगी। अपेक्षित कार्यों में विघ्न आएंगे। चिंता तथा तनाव रहेंगे।

 

🐅सिंह

जीवनसाथी से सहयोग मिलेगा। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। अप्रत्याशित लाभ के योग हैं। भाग्य का साथ मिलेगा। व्यवसाय ठीक चलेगा। नौकरी में अधिकार बढ़ सकते हैं। जुए, सट्टे व लॉटरी के चक्कर में न पड़ें। निवेश शुभ रहेगा। प्रमाद न करें। उत्तेजना पर नियंत्रण रखें।

 

🙍‍♀️कन्या

प्रयास सफल रहेंगे। किसी बड़े कार्य की समस्याएं दूर होंगी। मित्रों का सहयोग कर पाएंगे। कर्ज में कमी होगी। संतुष्टि रहेगी। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। व्यापार मनोनुकूल चलेगा। अपना प्रभाव बढ़ा पाएंगे। नौकरी में अनुकूलता रहेगी। निवेश शुभ रहेगा। जोखिम व जमानत के कार्य न करें।

 

⚖️तुला

आय में कमी तथा नौकरी में कार्यभार रहेगा। बेवजह लोगों से कहासुनी हो सकती है। दु:खद समाचार मिलने से नकारात्मकता बढ़ेगी। व्यवसाय से संतुष्टि नहीं रहेगी। पार्टनरों से मतभेद हो सकते हैं। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। जल्दबाज न करें। घर-बाहर अशांति रहेगी। कार्य में रुकावट होगी।

 

🦂वृश्चिक

पार्टी व पिकनिक की योजना बनेगी। मित्रों के साथ समय अच्‍छा व्यतीत होगा। स्वादिष्ट भोजन का आनंद मिलेगा। बौद्धिक कार्य सफल रहेंगे। किसी प्रबुद्ध व्यक्ति का मार्गदर्शन प्राप्त होगा। नौकरी में अनुकूलता रहेगी। वाणी पर नियंत्रण रखें। शत्रु सक्रिय रहेंगे। जीवनसाथी के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी।

 

🏹धनु

स्थायी संपत्ति की खरीद-फरोख्त से बड़ा लाभ हो सकता है। प्रतिद्वंद्विता रहेगी। पार्टनरों का सहयोग समय पर मिलने से प्रसन्नता रहेगी। नौकरी में मातहतों का सहयोग मिलेगा। व्यवसाय ठीक-ठीक चलेगा। आय में वृद्धि होगी। चोट व रोग से बाधा संभव है। दूसरों के काम में दखलंदाजी न करें।

 

🐊मकर

दूर से शुभ समाचार प्राप्त होंगे। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। नौकरी में सहकर्मी साथ देंगे। व्यवसाय में जल्दबाजी से काम न करें। चोट व दुर्घटना से बचें। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। घर-बाहर स्थिति मनोनुकूल रहेगी। प्रसन्नता का वातावरण रहेगा। वस्तुएं संभालकर रखें।

 

🍯कुंभ

नई योजना बनेगी। कार्यप्रणाली में सुधार होगा। सामजिक कार्य करने की इच्छा जागृत होगी। प्रतिष्ठा वृद्धि होगी। सुख के साधन जुटेंगे। नौकरी में वर्चस्व स्थापित होगा। आय के स्रोत बढ़ सकते हैं। व्यवसाय लाभप्रद रहेगा। निवेश शुभ रहेगा। घर-बाहर सहयोग व प्रसन्नता में वृद्धि होगी।

 

🐟मीन

आज रुका धन मिलेगा। मन की चंचलता पर नियंत्रण रखें। कानूनी अड़चन दूर होकर स्थिति अनुकूल रहेगी। जीवनसाथी पर आपसी मेहरबानी रहेगी। जल्दबाजी में धनहानि हो सकती है। व्यवसाय में वृद्धि होगी। नौकरी में सुकून रहेगा। निवेश लाभप्रद रहेगा। कार्य बनेंगे। घर-बाहर सुख-शांति बने रहेंगे।

🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏

🌺🌺🌺🌺🙏🌺🌺🌺🌺

*आचार्य नीरज पाराशर (वृन्दावन)*

(व्याकरण,ज्योतिष,एवं पुराणाचार्य)

छठ महापर्व क्या केवल बिहार या पूर्वांचल का ही पर्व है,कौन है छठ माता ब्रह्मा जी की मानस पुत्री
या देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक,चाहे जो भी हो भक्ति और श्रद्धा का ऐसा आलोङन मिलना दुष्कर है, बिहार की रेलों में भारी जन समूह देखिये अपार जनसमूह लोगों को बस डिब्बे में घुसना होता है,फिर तो पहुंच ही जाएंगे मां,माटी,मानुस का संबंध कितना प्रगाढ़ है इससे दिखता है,

दुनिया छुपते या डूबते हुए सूर्य को अशुभ मानती है ,उगते हुए सूर्य को दुनिया सलाम करती है लेकिन वो तो हम ही थे जो जानते थे सूर्य न उगता है या अस्त होता है,इसलिए हम डूबते हुए सूर्य की भी उपासना करते हैं,सूर्य तो देवता हैं जाग्रत देव,जिनके आशीर्वाद से पूरा संसार जीवन का आनंद लेता है,फसलें उगती हैं जीवन चलता है तो सूर्य की उपासना तो पूरे संसार को करनी चाहिये,

छठ के गीत सुनिये समझ मे चाहे इतने न आये लेकिन भक्ति,श्रद्धा,माटी से जुड़े हुए भावनाओ से भरे हुए देशज भाषा मे मन को भावों से भर देते है,बहुत सुंदर पर्व है छठ सनातन का त्यौहार सिर्फ किसी क्षेत्र का नही,फिर ये कैसे हुआ कि इसे एक क्षेत्र विशेष तंक ही सीमित कर दिया गया,ये उन्ही शैतान वामपंथियों की चाल है जिन्होंने महान सनातन धर्म को जातियों में बांटा,उत्तर दक्षिण में बांटा,आर्य द्रविड़ में बांटा और तो और इन्होंने हमारे त्यौहारों को भी नही छोड़ा।  

छठ पूजा 

 मुल्तान शहर – उर्वर पंजाब , मरुभूमि बहावलपुर व सभ्यता के सृजक सिंध की भूमि के बीचो बीच स्तिथ है, इसका सूर्य मन्दिर कभी विश्व का सबसे बड़ा सूर्य मंदिर था।

इस सूर्य मंदिर के भगत उपासक पख्त राजपुत्रों (पख्तून जिन्हें हम पठान भी कहते है) ने महाभारत युद्ध मे भी भाग लिया था। उनकी भूमि काबुल घाटी व अफगानी नांगरहार प्रान्त में स्तिथ थी यह जून (सूर्य का अपभ्रंश) के उपासकों की भूमि थी। जून से ही अंग्रेजी ‘सन’ शब्द का जन्म हुआ वे सब हिन्दू ‘तुर्क शाही’ और बाद में काबुल की हिन्दू शाही सल्तनत में फलते फूलते रहे। यह बात उन दिनों की हैं जब भारत मे गुर्जर प्रतिहार राजा थे।

फिर अरब आये अफगानी व मुल्तान के सूर्य मन्दिरों को रौंदा मुल्तान पर अरबों का कब्जा हो गया सूर्य प्रतिमा में जड़े सुर्ख लाल रूबी लूट लिए हए सूर्य उपासक मुल्तान इत्यादि से बेदखल हो हिंदुस्तान में यहां वहां बसने लगे उनमे से कुछ सूर्य की वैद्यकीय (मेडिकल इम्पोर्टेंस) के जानकार थे उन्होंने इस परंपरा को बिहार में नन्हे पौधे की तरह रोप दिया जो आज वट वृक्ष (बरगद) बन गया हैं।

जिन लोगो को गप्प लगे वो पढ़ ले कि क्यों अफगानी पठानों का सूरी राजवंश ‘सूरी’ कहलाता था। साथ ही वे विकिपीडिया पर मौजूद यह कमेंट पढ़ ले “According to André Wink the cult of this god was primarily Hindu, though parallels have also been noted with pre-Buddhist religious and monarchy practices in Tibet and had Zoroastrian influence in its ritual.”

जिनको इतिहास की कम मालूमात हो वे भी शेर शाह सूरी के नाम पर चिपकाया गया ग्रैंड ट्रंक रोड(उत्तरापथ) को जानते होंगे। यह भी दिलचस्प बात है सूर्य उपासकों के परिवार से मुस्लिम बने शेरशाह सूरी भी आज बिहार में दफ़न हैं। आज सूर्य उपासना अरबी वहशत में पंजाब से तय उजड़ गयी पर बिहार में स्थापित हो गयी साथ ही अरबों के साथ बसे कूर्द लोगों में भी कहीं कहीं यह प्रथा विद्यमान हैं। जो इन सूर्य उपासना पर पढ़ना चाहे वे सम्राट जयपाल, सम्राट आनन्दपाल व समेत त्रिलोचनपाल के संघर्ष को भी पढ़े पढ़े के कैसे काबुल गंधार मुल्तान में हमारी समृद्ध परम्पराओं के यह क्षत्रिय वीर वाहक थे। 

पूरे विश्व में सूर्य क्षेत्र हैं, केवल बिहार में छठ क्यों होता है?

भारत में ओड़िशा का कोणार्क, गुजरात का मोढेरा, उत्तर प्रदेश का थानेश्वर (स्थाण्वीश्वर), वर्तमान पाकिस्तान का मुल्तान (मूलस्थान)।

सूर्य पूजा के वैदिक मन्त्र में उनको कश्यप गोत्रीय कलिङ्ग देशोद्भव कहते हैं। पर कलिङ्ग में अभी कोई सूर्य पूजा नहीं हो रही है।

जापान, मिस्र, पेरु के इंका राजा सूर्य वंशी थे। इंका प्रभाव से सूर्य को भारतीय ज्योतिष में इनः कहा गया है। 

सोवियत रूस में अर्काइम प्राचीन सूर्य पीठ है जिसकी खोज १९८७ में हुई (अर्क = सूर्य)। पण्डित मधुसूदन ओझा ने १९३० पें प्रकाशित अपने ग्रन्थ इन्द्रविजय में इसके स्थान की प्रायः सटीक भविष्यवाणी की थी।

लखनऊ की मधुरी पत्रिका के १९३१ में पण्डित चन्द्रशेखर उपाध्याय के लेख ’रूसी भाषा और भारत’ में प्रायः ३००० रूसी शब्दों की सूची थी जिनका अर्थ वहां आज भी वही है, जो वेद में होता था। उसमें एक टिप्पणी थी कि रूस में भी सूर्य पूजा के लिए ठेकुआ बनता था।

एशिया-यूरोप सीमा पर हेलेसपौण्ट भी सूर्य पूजा का केन्द्र था। (ग्रीक में हेलिओस = सूर्य)।

प्राचीन विश्व के समय क्षेत्र उज्जैन से ६-६ अंश अन्तर पर थे, जिनकी सीमाओं पर आज भी प्रायः ३० स्थान वर्तमान हैं, जहां पिरामिड आदि बने हैं।

बिहार में छठ द्वारा सूर्य पूजा के अनुमानित कारण-

भारत और विश्व में सूर्य के कई क्षेत्र हैं, जो आज भी उन नामों से उपलब्ध हैं। पर बिहार में ही छठ पूजा होने के कुछ कारण हैं।

मुंगेर-भागलपुर राजधानी में स्थित कर्ण सूर्य पूजक थे। गया जिले के देव में सूर्य मन्दिर है। महाराष्ट्र के देवगिरि की तरह यहां के देव का नाम भी औरंगाबाद हो गया। मूल नामों से इतिहास समझने में सुविधा होती है। गया का एक और महत्त्व है कि यह प्राचीन काल में कर्क रेखा पर था जो सूर्य गति की उत्तर सीमा है। अतः यहां सौर मण्डल को पार करनेवाले आत्मा अंश के लिए गया श्राद्ध होता है। सौर मण्डल को पार करने वाले प्राण को गय कहते हैं (हिन्दी में कहते हैं चला गया)।

स यत् आह गयः असि-इति सोमं या एतत् आह, एष ह वै चन्द्रमा भूत्वा सर्वान् लोकान् गच्छति-तस्मात् गयस्य गयत्वम् (गोपथ ब्राह्मण, पूर्व, ५/१४)

प्राणा वै गयः (शतपथ ब्राह्मण, १४/८/१५/७, बृहदारण्यक उपनिषद्, ५/१४/४)

अतः गया और देव-दोनों प्रत्यक्ष देव सूर्य के मुख्य स्थान हैं।

बिहार के पटना, मुंगेर तथा भागलपुर के नदी पत्तनों से समुद्री जहाज जाते थे। पटना नाम का मूल पत्तन है, जिसका अर्थ बन्दरगाह है, जैसे गुजरात का प्रभास-पत्तन या पाटण, आन्ध्र प्रदेश का विशाखा-पत्तनम्। उसके पूर्व व्रत उपवास द्वारा शरीर को स्वस्थ रखना आवश्यक है जिससे समुद्री यात्रा में बीमार नहीं हों। 

ओड़िशा में कार्त्तिक-पूर्णिमा को बइत-बन्धान (वहित्र – नाव, जलयान) का उत्सव होता है जिसमें पारादीप पत्तन से अनुष्ठान रूप में जहाज चलते हैं। यहां भी कार्त्तिक मास में सादा भोजन करने की परम्परा है, कई व्यक्ति दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। उसके बाद समुद्र यात्रा के योग्य होते हैं।

समुद्री यात्रा से पहले घाट तक सामान पहुंचाया जाता है। उसे ढोने के लिए बहंगी (वहन का अंग) कहते हैं। ओड़िशा में भी बहंगा बाजार है। बिहार के पत्तन समुद्र से थोड़ा दूर हैं, अतः वहां कार्त्तिक पूर्णिमा से ९ दिन पूर्व छठ होता है।

भारतीय संस्कृति की महानता देखिए भले हमारे पर्व सनातन धर्म संस्कृति के होते हैं लेकिन हमारी महान धर्म संस्कृति का धन और धन्धे का सबसे बड़ा लाभ विधर्मी यवनों आक्रांताओं के पिछलग्गुओं को भी होता है, जो इस देश की धर्म संस्कृति और भाषा को भी यथा शक्ति नष्ट करने हेतु सतत् क्रियाशील रहे हैं। 

छठ के बारे में कई प्रश्न हैं। इनके यथा सम्भव समाधान कर रहा हूं-

(१) कार्त्तिक मास में क्यों-२ प्रकार के कृत्तिका नक्षत्र हैं। एक तो आकाश में ६ तारों के समूह के रूप में दीखता है। दूसरा वह है जो अनन्त वृत्त की सतह पर विषुव तथा क्रान्ति वृत्त (पृथ्वी कक्षा) का कटान विन्दु है। जिस विन्दु पर क्रान्तिवृत्त विषुव से ऊपर (उत्तर) की तरफ निकलता है, उसे कृत्तिका (कैंची) कहते हैं। इसकी २ शाखा विपरीत विन्दु पर मिलती हैं, वह विशाखा नक्षत्र हुआ। आंख से या दूरदर्शक से देखने पर आकाश के पिण्डों की स्थिति स्थिर ताराओं की तुलना में दीखती है, इसे वेद में चचरा जैसा कहा है। पतरेव चर्चरा चन्द्र-निर्णिक् (ऋक् १०/१०६/८) = पतरा में तिथि निर्णय चचरा में चन्द्र गति से होता है। नाले पर बांस के लट्ठों का पुल चचरा है, चलने पर वह चड़-चड़ आवाज करता है।  

गणना के लिये विषुव-क्रान्ति वृत्तों के मिलन विन्दु से गोलीय त्रिभुज पूरा होता है, अतः वहीं से गणना करते हैं। दोनों शून्य विन्दुओं में (तारा कृत्तिका-गोल वृत्त कृत्तिका) में जो अन्तर है वह अयन-अंश है। इसी प्रकार वैदिक रास-चक्र कृत्तिका से शुरु होता है। आकाश में पृथ्वी के अक्ष का चक्र २६,००० वर्ष का है। रास वर्ष का आरम्भ भी कार्त्तिक मास से होता है जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र में होता है, इसे रास-पूर्णिमा भी कहते हैं। कार्त्तिक मास में समुद्री तूफान बन्द हो जाते हैं, अतः कार्त्तिक पूर्णिमा से ही समुद्री यात्रा शुरु होती थी जिसे ओड़िशा में बालि-यात्रा कहते हैं। अतः कार्त्तिक मास से आरम्भ होने वाला विक्रम सम्वत् विक्रमादित्य द्वारा गुजरात के समुद्र तट सोमनाथ से शुरु हुआ था। पूर्वी भारत में बनारस तक गंगा नदी में जहाज चलते थे। बनारस से समुद्र तक जाने में ७-८ दिन लग जाते हैं, अतः वहा ९ दिन पूर्व छठ पर्व आरम्भ हो जाता है। यात्रा के पूर्व घाट पर रसद सामग्री ले जाते हैं। सामान ढोने के लिये उसे बांस से लटका कर ले जाते हैं जिसे बहंगी (वहन अंगी) कहते हैं। ओड़िशा में भी एक बहंगा बाजार है (जाजपुर रोड के निकट रेलवे स्टेशन)। 

(२) कठिन उपवास क्यों-ओड़िशा में पूरे कार्त्तिक मास प्रतिदिन १ समय बिना मसाला के सादा भोजन करते हैं, जो समुद्री यात्रा के लिये अभ्यस्त करता है और स्वास्थ्य ठीक करता है। बिहार में ३ दिन का उपवास करते हैं, बिना जल का। 

(३) सूर्य पूजा क्यों-विश्व के कई भागों में सूर्य क्षेत्र हैं। सूर्य की स्थिति से अक्षांश, देशान्तर तथा दिशा ज्ञात की जाती है, जो समुद्री यात्रा में अपनी स्थिति तथा गति दिशा जानने के लिये जरूरी है। इन ३ कामों को गणित ज्योतिष में त्रिप्रश्नाधिकार कहा जाता है। अतः विश्व में जो समय क्षेत्र थे उनकी सीमा पर स्थित स्थान सूर्य क्षेत्र कहे जाते थे। आज कल लण्डन के ग्रीनविच को शून्य देशान्तर मान कर उससे ३०-३० मिनट के अन्तर पर विश्व में ४८ समय-भाग हैं। प्राचीन विश्व में उज्जैन से ६-६ अंश के अन्तर पर ६० भाग थे। आज भी अधिकांश भाग उपलब्ध हैं। मुख्य क्षेत्रों के राजा अपने को सूर्यवंशी कहते थे, जैसे पेरू, मेक्सिको, मिस्र, इथिओपिया, जापान के राजा। उज्जैन का समय पृथ्वी का समय कहलाता था, अतः यहां के देवता महा-काल हैं। इसी रेखा पर पहले विषुव स्थान पर लंका थी, अतः वहां के राजा को कुबेर (कु = पृथ्वी, बेर = समय कहते थे। भारत में उज्जैन रेखा के निकट स्थाण्वीश्वर (स्थाणु = स्थिर, ठूंठ) या थानेश्वर तथा कालप्रिय (कालपी) था, ६ अंश पूर्व कालहस्ती, १२ अंश पूर्व कोणार्क का सूर्य क्षेत्र (थोड़ा समुद्र के भीतर जहां कार्त्तिकेय द्वारा समुद्र में स्तम्भ बनाया गया था), १८ अंश पूर्व असम में शोणितपुर (भगदत्त की राजधानी), २४ अंश पूर्व मलयेसिया के पश्चिम लंकावी द्वीप, ४२ अंश पूर्व जापान की पुरानी राजधानी क्योटो है। पश्चिम में ६ अंश पर मूलस्थान (मुल्तान), १२ अंश पर ब्रह्मा का पुष्कर (बुखारा-विष्णु पुराण २/८/२६), मिस्र का मुख्य पिरामिड ४५ अंश पर, हेलेसपौण्ट (हेलियोस = सूर्य) या डार्डेनल ४२ अंश पर, रुद्रेश (लौर्डेस-फ्र्ंस-स्विट्जरलैण्ड सीमा) ७२ अंश पर, इंगलैण्ड की प्राचीन वेधशाला लंकाशायर का स्टोनहेञ्ज ७८ अंश पश्चिम, पेरु के इंका (इन = सूर्य) राजाओं की राजधानी १५० अंश पर हैं। इन स्थानों के नाम लंका या मेरु हैं। 

अन्तिम लंका वाराणसी की लंका थी जहां सवाई जयसिंह ने वेधशाला बनाई थी। प्राचीनकाल में भी वेधशाला थी, जिस स्थान को लोलार्क कहते थे। पटना के पूर्व पुण्यार्क (पुनारख) था। उसके थोड़ा दक्षिण कर्क रेखा पर देव था। औरंगाबाद का मूल नाम यही था, जैसे महाराष्ट्र के औरंगाबाद को भी देवगिरि कहते थे। अभी औरंगाबाद के निकट प्राचीन सूर्यमन्दिर स्थान को ही देव कहते थे। 

ज्योतिषीय महत्त्व होने के कारण सूर्य सिद्धान्त में लिखा है कि किसी भी स्थान पर वेध करने के पहले सूर्य पूजा करनी चाहिये (अध्याय १३-सूर्योपनिषद्, , श्लोक १)। वराहमिहिर के पिता का नाम भी आदित्यदास था, जिनके द्वारा सूर्य पूजा द्वारा इनका जन्म हुआ था। इस कारण कुछ लोग इनको मग ब्राह्मण कहते हैं। किन्तु स्वयं गायत्री मन्त्र ही सूर्य की उपासना है-प्रथम पाद उसका स्रष्टा रूप में वर्णन करता है-तत् सवितुः वरेण्यं। सविता = सव या प्रसव (जन्म) करने वाला। यह सविता सूर्य ही है, तत् (वह) सविता सूर्य का जन्मदाता ब्रह्माण्ड (गैलेक्सी) का भी जन्मदाता परब्रह्म है। गायत्री का द्वितीय पाद दृश्य ब्रह्म सूर्य के बारे में है-भर्गो देवस्य धीमहि। वही किरणों के सम्बन्ध द्वारा हमारी बुद्धि को भी नियन्त्रित करता है-धियो यो नः प्रचोदयात्।

 मग ब्राह्मण मुख्यतः बिहार के ही थे, वे शकद्वीपी इसलिये कहे जाते हैं कि गोरखपुर से सिंहभूमि तक शक (सखुआ) वन की शाखा दक्षिन तक चली गयी है, जो अन्य वनों के बीच द्वीप जैसा है। सूर्य द्वारा काल गणना को भी शक कहते हैं। यह सौर वर्ष पर आधारित है, किसी विन्दु से अभी तक दिनों की गणना शक (अहर्गण) है। इससे चान्द्र मास का समन्वय करने पर पर्व का निर्णय होता है। इसके अनुसार समाज चलता है, अतः इसे सम्वत्सर कहते हैं। अग्नि पूजकों को भी आजकल पारसी कहने का रिवाज बन गया है। पर ऋग्वेद तथा सामवेद के प्रथम मन्त्र ही अग्नि से आरम्भ होते हैं जिसके कई अर्थ हैं-अग्निं ईळे पुरोहितम्, अग्न आयाहि वीतये आदि। यजुर्वेद के आरम्भ में भी ईषे त्वा ऊर्हे त्वा वायवस्थः में अग्नि ऊर्जा की गति की चर्चा है।

पृथु के राजा होने पर सबसे पहले मगध के लोगों ने उनकी स्तुति की थी, अतः खुशामदी लोगों को मागध कहते हैं। मागध (व्यक्ति की जीवनी-नाराशंसी लिखने वाले), बन्दी (राज्य के अनुगत) तथा सूत (इतिहास परम्परा चलाने वाले)-३ प्रकार के इतिहास लेखक हैं। भविष्य पुराण में इनको विपरीत दिशा में चलने के कारण मग कहा है (गमन = चलना का उलटा)। मग (मगध) के २ ज्योतिषी जेरुसलेम गये थे और उनकी भविष्यवाणी के कारण ईसा को महापुरुष माना गया।

सूर्य से हमारी आत्मा का सम्बन्ध किरणों के मध्यम से है जो १ मुहूर्त (४८ मिनट) में ३ बार जा कर लौट आता है (ऋग्वेद ३/५३/८)। १५ करोड़ किलोमीटर की दूरी १ तरफ से, ३ लाख कि.मी. प्रति सेकण्द के हिसाब से ८ मिनट लगेंगे। शरीर के भीतर नाभि का चक्र सूर्य चक्र कहते हैं। यह पाचन को नियन्त्रित करता है। अतः स्वास्थ्य के लिये भी सूर्य पूजा की जाती है। इसका व्यायाम रूप भी सूर्य-नमस्कार कहते हैं।

(४) षष्ठी को क्यों-मनुष्य जन्म के बाद ६ठे या २१ वें (नक्षत्र चक्र के २७ दिनमें उलटे क्रम से) बच्चे को सूतिका गृह से बाहर निकलने लायक मानते हैं। 

मनुष्य भी विश्व में ६ठी कृति मानते हैं। इसके पहले विश्व के ५ पर्व हुये थे-स्वयम्भू (पूर्ण विश्व), परमेष्ठी या ब्रह्माण्ड (गैलेक्सी), सौर मण्डल, चन्द्रमण्डल, पृथ्वी। 

कण रूप में भी मनुष्य ६ठी रचना है-ऋषि (रस्सी, स्ट्रिंग), मूल कण, कुण्डलिनी (परमाणु की नाभि), परमाणु, कोषिका (कलिल = सेल) के बाद ६ठा मनुष्य है। (साभार) 

आजाद_हिन्द_सरकार की स्थापना —-
*******************************
29अक्तूबर/स्थापना-दिवस”
भारत की #स्वाधीनता में #सुभाष_चन्द्र_बोस की #आजाद_हिन्द_फोजफौज’ की बड़ी निर्णायक भूमिका है; पर इसकी स्थापना से पहले भारत के ही एक अंग रहे अफगानिस्तान में भी ‘आजाद हिन्द सरकार’ की स्थापना हुई थी।

जहां अनेक क्रांतिकारी देश के अंदर संघर्ष कर रहे थे, वहां विदेश में रहकर उन्हें शस्त्र, धन एवं उन देशों का समर्थन दिलाने में भी अनेक लोग लगे थे। कुछ देशों से ब्रिटेन की सन्धि थी कि वे अपनी भूमि का उपयोग इसके लिए नहीं होने देंगे; पर जहां ऐसी सन्धि नहीं थी, वहां क्रांतिकारी सक्रिय थे।

उन दिनों राजा महेन्द्र प्रताप जर्मनी में रहकर जर्मन सरकार का समर्थन पाने का प्रयास कर रहे थे। वे एक दल अफगानिस्तान भी ले जाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने मोहम्मद बरकतुल्ला को भी बर्लिन बुला लिया। मो. बरकतुल्ला इससे पूर्व जापान में सक्रिय थे; पर जापान से अंग्रेजों की सन्धि होने के कारण वे अपने एक साथी भगवान सिंह के साथ सेनफ्रांसिस्को आ गये थे।

बर्लिन उन दिनों भारतीय क्रांतिवीरों का एक प्रमुख केन्द्र बना हुआ था। राजा महेन्द्र प्रताप के नेतृत्व में ‘बर्लिन दल’ का गठन किया गया। इसमें मो. बरकतुल्ला के साथ वीरेन्द्र चट्टोपाध्याय के नेतृत्व में काम कर रही ‘राष्ट्रीय पार्टी’ के कुछ सदस्य भी थे। इस दल ने जर्मनी के सम्राट कैसर विल्हेल्म द्वितीय से भेंटकर उन्हें भारतीय क्रांतिकारियों की सहायता के लिए तैयार कर लिया। इस दल ने जर्मनी के शासन के साथ कुछ अनुबन्ध भी किये।

अब राजा महेन्द्र प्रताप के नेतृत्व में एक दल कुस्तुन्तुनिया गया। इसमें जर्मनी एवं आस्ट्रेलया के कुछ सदस्य भी थे। इन्होंने तुर्की के प्रधानमंत्री सुल्तान हिलमी पाशा तथा युद्धमंत्री गाजी अनवर पाशा से भेंट की। तुर्की में सक्रिय भारतीय क्रांतिकारी मौलाना ओबेदुल्ला सिन्धी भी इस दल में शामिल हो गये और ये सब अक्तूबर, 1915 में काबुल जा पहुंचे।

अफगानिस्तान में उन दिनों अमीर हबीबुल्ला खां का शासन था। दल के सदस्यों ने उससे भेंट की। यह भेंट बहुत सार्थक सिद्ध हुई और भारत से दूर अफगानिस्तान की धरती पर 29 अक्तूबर, 1915 को एक अस्थायी ‘आजाद हिन्द सरकार’ की स्थापना हो गयी। इसके राष्ट्रपति राजा महेन्द्र प्रताप, प्रधानमंत्री मौलाना मोहम्मद बरकतुल्ला, गृहमंत्री मौलाना ओबेदुल्ला सिन्धी तथा विदेश मंत्री डा. चम्पक रमण पिल्लई बनाये गये।

इस सरकार ने एक फौज का भी गठन किया, जिसे ‘आजाद हिन्द फौज’ नाम दिया गया। इसमें सीमांत पठानों को सम्मिलित किया गया। धीरे-धीरे इसके सैनिकों की संख्या 6,000 तक पहुंच गयी। इस फौज ने सीमावर्ती क्षेत्रों में अंग्रेज सेना पर हमले किये; पर वे सफल नहीं हो सके। अनेक सैनिक मारे गये तथा जो गिरफ्तार हुए, उन्हें अंग्रेजों ने फांसी दे दी।

इस प्रकार आजाद हिन्द सरकार तथा फौज का यह प्राथमिक प्रयोग किसी ठोस परिणाम तक नहीं पहुंच सका; पर इससे विचलित न होते हुए राजा महेन्द्र प्रताप ने सोने की ठोस चादर पर पत्र लिखकर खुशी मोहम्मद तथा डा. मथुरा सिंह को रूस के जार के पास भेजा। जार ने उन्हें गिरफ्तार कर डा. मथुरासिंह को अंग्रेजों को सौंप दिया। अंग्रेजों ने उन्हें लाहौर में फांसी दे दी।

ऐसे अनेक बलिदानों के बाद भी विदेशी धरती से देश की स्वतंत्रता के कष्टसाध्य प्रयास लगातार चलते रहे।

(संदर्भ : क्रांतिकारी कोश, भाग एक)
………………………………..

नोन #स्टीक_टफलोन_कोटिंग काला जहर😟😤😤😤😤😤😤 😆😤😤😤😤😤😤😤😤😤 ■ टेफलोन कोटिंग या काला जहर ????

टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों का इतना प्रचार या दुष्प्रचार हुआ कि आजकल हर घर में ये काली कोटिंग वाले बर्तन होना शान की बात समझी जाती है।
न जाने कितने ही ये टेफलोन कोटिंग वाले बर्तन हमारे घर में आ गये हैं, जैसे कि नॉन स्टिक तपेली (पतीली), तवा, फ्राई पेन आदि….अब इजी टू कुक, इजी टू क्लीन वाली छवि वाले ये बर्तन हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए है।
मुझे आज भी दादी नानी वाला ज़माना याद आ जाता है, जब चमकते हुए बर्तन किसी भी घर के स्टेंडर्ड की निशानी माने जाते थे, लेकिन आजकल उनकी जगह इन काले बर्तनों ने ले ली है।
हम सब इन बर्तनों को अपने घर में बहुतायत से उपयोग में ले रहे हैं और शायद कोई बहुत बेहतर विकल्प नहीं मिल जाने तक आगे भी उपयोग करते रहेंगे।
किन्तु इनका उपयोग करते समय हम ये बात भूल जाते हैं कि ये काले बर्तन हमारे शरीर को भी काला करके नुकसान पहुंचा रहे हैं।
हम में से कई लोग यह बात जानते भी नहीं हैं कि वास्तव में ये बर्तन हमारी बीमारियाँ बढ़ा रहे हैं और इनका प्रयोग करके हम हमारे अपनों को ही तकलीफ दे रहे हैं।
टेफलोन को 20 वी शताब्दी की सबसे बेहतरीन केमिकल खोज में से एक माना गया है, जिसका प्रयोग इंजीनियरिंग के क्षेत्र जैसे कि स्पेस सुइट और पाइप में उर्जा रोधी के रूप में किया जा रहा है, किन्तु यह भी एक बड़ा सच है की ये टेफलोन कोटिंग का काला जहर स्वास्थ्य के लिए बना ही नहीं है और अत्यंत खतरनाक है।
इसके प्रयोग से श्वास की बीमारी, कैंसर, ह्रदय रोग आदि कई गंभीर बिमारियां भी होती देखी जा रही हैं।
यह भी सच है की जब टेफलोन कोटेड बर्तन को अधिक गर्म किया जाता है, तो आसपास के क्षेत्र में रह रहे पालतू पक्षियों की जान जाने का खतरा तुरंत ही काफी बढ़ जाता है।
एक न्यूज के अनुसार कुछ समय पहले एक घर के आसपास के 14 पालतू पक्षी तब मारे गए, जब टेफलोन के बर्तन को पहले से गरम किया गया और तेज आंच पर खाना बनाया गया ये पूरी घटना होने में सिर्फ 15 मिनिट लगे….टेफलोन कोटेड बर्तनों में सिर्फ 5 मिनिट में 700 डिग्री टेम्प्रेचर तक गर्म हो जाने की प्रवृति होती है और इसी दौरान 6 तरह की खतरनाक गैस वातावरण में फैल जाती हैं इनमे से 2 गैस ऐसी होती हैं जो केंसर को भी जन्म देती हैं।
अध्ययन बताते हैं कि टेफलोन को अधिक गर्म करने से पक्षियों के लिए हानिकारक टेफलोन टोक्सिकोसिस बनती है और इंसानों के लिए खतरनाक पोलिमर फ्यूम फीवर की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है टेफलोन कोटिंग से उत्पन्न होने वाले केमिकल के शरीर में जाने से होने वाली बीमारियाँ इस तरह की होती हैं….
1- पुरुष इनफर्टिलिटी – हाल ही में हुए एक सर्वे में ये बात सामने आई है कि लम्बे समय तक टेफलोन केमिकल के शरीर में जाने से पुरुष इनफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है और इससे सम्बंधित कई बीमारियाँ पुरुषों में देखी जा सकती हैं।
थायराइड – हाल ही में एक अमेरिकन एजेंसी द्वारा किया गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि टेफलोन की मात्र लगातार शरीर में जाने से थायराइड ग्रंथि सम्बन्धी समस्याएं हो सकती है।
2- बच्चे को जन्म देने में समस्या – केलिफोर्निया में हुई एक स्टडी में ये पाया गया है कि जिन महिलाओं के शरीर में जल, भोजन या हवा के माध्यम से पी ऍफ़ ओ (टेफलोन) की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई थी, उन्हें बच्चो को जन्म देते समय अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा. इसी के साथ उनमे बच्चो को जन्म देने की क्षमता भी अपेक्षाकृत कम हो गई, जिससे सीजेरियन ऑपरेशन करना पड़ा।
3- शारीरिक समस्याएं व अन्य बीमारियाँ – पी ऍफ़ ओ की अधिक मात्रा शरीर में पाई जाने वाली महिलाओं के बच्चो पर भी इसका असर जन्मजात शारीरिक विकार या समस्याओं के रूप में देखा गया है ।
4- लीवर केंसर का बढ़ा खतरा – एक अध्ययन में यह भी सामने आया है कि पी ऍफ़ ओ की अधिक मात्रा होने पर लीवर केंसर का खतरा बढ़ जाता है ।
5- केंसर या ब्रेन ट्यूमर का खतरा – एक प्रयोग के दौरान जब चूहों को पी ऍफ़ ओ के इंजेक्शन लगाए गए तो उनमे ब्रेन ट्यूमर विकसित हो गया. साथ ही केंसर के लक्षण भी दिखाई देने लगे।
6- जहरीला पी ऍफ़ ओ 4 साल तक शरीर में बना रहता है – पी ऍफ़ ओ जब एक बार शरीर के अन्दर चला जाता है तो लगभग 4 साल तक शरीर में बना रहता है जो एक बड़ा खतरा हो जाता है।

■ टेफलोन के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय…
1- टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों को कभी भी गैस पर बिना कोई सामान डाले अकेले गर्म करने के लिए न छोड़े।
2- इन बर्तनों को कभी भी 450 डिग्री से अधिक टेम्प्रेचर पर गर्म न करे सामान्यतया इन्हें 350 से 450 डिग्री तक गर्म करना बेहतर होता है।
3- लेकिन हमारे देश में महिलाओं को पता ही नहीं रहता है कि गेस के बर्नर पर रखे बर्तन का टेम्प्रेचर कितना हुआ है, तो वे कंट्रोल कैसे करेंगी???
4- टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों में पक रहा खाना बनाने के लिए कभी भी मेटल की चम्मचो का इस्तेमाल ना करे इनसे कोटिंग हटने का खतरा बढ़ जाता है।
5- टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों को कभी भी लोहे के औजार या कूंचे ब्रश से साफ़ ना करे, हाथ या स्पंज से ही इन्हें साफ़ करे।
6- इन बर्तनों को कभी भी एक दूसरे के ऊपर जमाकर ना रखे।
7- घर में अगर पालतू पक्षी हैं, तो इन्हें अपने किचन से दूर रखें।
8- अगर गलती से घर में ऐसा कोई बर्तन ज्यादा टेम्प्रेचर पर गर्म हो गया है, तो कुछ देर के लिए घर से बाहर चले जाए और सारे खिड़की दरवाजे खोल दे।
9- ये गलती बार-बार ना दोहराएं, क्यूंकि चारो ओर के वातावरण के लिए भी ये गैस हानिकारक होती हैं और लाखों सूक्ष्म जीवों को भी मार देती हैं।
10- टूटे या जगह-जगह से घिसे हुए टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों का उपयोग बंद कर दे. क्यूंकि ये धीरे धीरे आपके भोजन में ज़हर घोल सकते हैं।
11- यदि आपके बर्तन नहीं भी घिसे हैं, तो भी इन्हें हर दो साल में अवश्य ही बदल दें।
12- जहाँ तक हो सके इन बर्तनों प्रयोग ना करिए।
13- इन बातों का ध्यान रखकर आप अपने और अपने परिवार के स्वास्थ रक्षा कर सकते हैं…टेफलोन कोटिंग के काले जहर से अपने परिवार को बचाएं।

* इस व्यक्ति का विकल्प भारतीय राजनीति में कोई नहीं है। इस उम्र में इतनी ऊर्जा सामान्य व्यक्ति के वश की बात नहीं। वर्ष के मुख्य त्यौहार पर जहां दूर दूर से लोग अपने घरों को पहुंच रहे हैं, वहीं मोदीजी उनके साथ दिवाली मना रहे है जो अपने घरों से दूर हैं।*

*भारत के विकास की नई राह खोलने वाले आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के साहस और संकल्प के खिलाफ विपक्ष स्तब्ध और लड़खड़ा रहा है। विपक्ष के पास उनकी आलोचना करने के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जो लोग उनकी आलोचना करते हैं उनके पास सिद्धांत का कोई मूल्य नहीं है, वे सत्ता और पैसे के लिए पार्टी बदलते हैं।*

*विरोधी सुलगते हैं, किलसते हैं, फुंकते हैं पर बराबरी नहीं कर पाते।😊*