चित्र में आप जिन महात्मा को देख रहे हैं ये श्री अनंतानंद सरस्वती जी हैं… ये अपने सन्यास जीवन के बाद से किसी भी प्रकार के वाहन का प्रयोग नहीं करते हैं और पैदल ही भ्रमण करते हैं और साथ में केवल एक भिक्षा का पात्र रखते हैं..प्रयागराज महाकुंभ में आने के लिए ये संत भगवान बद्री विशाल से पैदल चलकर आए हैं ऐसे लाखों संत बिना किसी दिखावे के कुंभ स्नान में हैं वे भगवद्प स्वरूप हो चुके हैं। पहले त्रिवेणी स्नान और इन संतो के दर्शन व चरणरज लेने लोग #कुंभ आते थे लेकिन आज ज्ञान और जानकारी के अभाव में और नशेड़ी यू-ट्यूबरों के कारण इन जैसे सच्चे संतो की कोई चर्चा नहीं क्योंकि कहीं न कहीं लोगों की रुचि भी किसी युवती की आँखों और किसी खूबसूरत साध्वी को देखने में ही है! या नाटकबाज आईआईटी वाले मानसिक बीमारों पर अटक गयी है। ये विडम्बना ही है कि कुम्भ में चर्चा का विषय अध्यात्म या चित्र में दिख रहे संत, जेसे व्यक्तित्व न होकर किसी युवती की आंखे हैं … संभवत कलयुग का ऐसा दुष्प्रभाव होता है। आध्यात्म के इस अगाध सागर में आस्था के दुर्लभतम मोती भी हैं और माया की कौड़ीयां भी अब आपको तय करना है कि माया में उलझना है या मायापति को पाना है।
सनातनी संतों की ऐसी भीड़ में गिने चुने तो हजारों वर्ष तक के दुर्लभ संत भी होते हैं उनको ढूंढना सागर में मोती ढूंढने जैसा ही है।
एक बात और एक करोड़ से अधिक संत एक ही दिन में शांतिपूर्ण रूप से स्नान ध्यान दान करके अपने अपने गंतव्य को निकल जाते हैं। सोचो ऐसी भीड़ दुर्दांत हिंसक अरैबिक कबीलों के कनवर्टेड पिछलग्गुओं की होती तो लूटपाट चोरी दंगा अपराध क्या क्या नहीं होता! कुंभ की अधिकांश सुरक्षा व्यवस्था उन्हीं से बचने के लिये होती है। अन्यथा पूरी कुंभ व्यवस्था कुछ पुलिस वाले ही संभाल लेते।
झोला लेकर महाकुंभ पहुंचीं 775 करोड़ की मालकिन सुधा मूर्ति
सुधा मूर्ति, जो कि राजनीति , समाजसेवा और व्यापार जगत में एक प्रमुख नाम हैं. अपनी सादगी के लिए भी जानी जाती हैं. वे और उनके पति नारायण मूर्ति, जो इंफोसिस के को-फाउंडर और अरबपति व्यवसायी हैं, दोनों ही अरबों रुपये के मालिक होते हुए भी सादा जीवन जीने में विश्वास रखते हैं।
हाल ही में सुधा मूर्ति ने अपनी सादगी का एक और उदाहरण प्रस्तुत किया जब वे प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में भाग लेने पहुंचीं। इस दौरान उनके पास केवल एक छोटा सा बैग था, जो उन्होंने अपने कंधे पर टांग रखा था. यह दृश्य आमतौर पर अरबपतियों और बड़े बिजनेस लीडर्स से भिन्न था, जो आमतौर पर बड़ी संख्या में बैग और सामान लेकर यात्रा करते हैं।
महाकुंभ में भाग लेने का अनुभव
महाकुंभ में पहुंचने के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए सुधा मूर्ति ने कहा, “यह मेरे लिए बहुत ही खास अवसर है कि मैं प्रयागराज के पवित्र स्थल पर आकर महाकुंभ का हिस्सा बन रही हूं. यह महाकुंभ 144 साल बाद आयोजित हो रहा है और मैं इससे बहुत उत्साहित और खुश हूं.” उन्होंने बताया कि वे तीन दिनों के लिए महाकुंभ में शामिल होने आई हैं।
नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति की संपत्ति
सुधा मूर्ति के पति नारायण मूर्ति की संपत्ति लगभग 5 बिलियन डॉलर (लगभग 36,690 करोड़ रुपये) है. हालांकि, यह दंपत्ति अपनी संपत्ति के बावजूद पूरी तरह से सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं. दिलचस्प बात यह है कि सुधा मूर्ति ने पिछले 30 वर्षों में कभी अपनी कमाई से एक नई साड़ी नहीं खरीदी, और वे हमेशा एक साधारण साड़ी पहनती हैं।
इसकी एक विशेष वजह है. सुधा मूर्ति ने अपनी काशी यात्रा के दौरान यह संकल्प लिया था कि वे अपनी प्रिय चीज़ों को त्यागेंगी. साड़ी उन्हें बहुत प्रिय थी, लेकिन इसके बाद से उन्होंने अपनी पसंदीदा साड़ी भी नहीं खरीदी. इसके बाद से अधिकांश साड़ियाँ उन्हें उपहार के रूप में प्राप्त हुई हैं।कुंभ स्नान में अस्सी हजार सुरक्षा कर्मियों के बावज़ूद म्लेच्छ इस्लामी अपराधी अयूबखान यहां आयूष बन कर पहले एक संत के यहां घुसा फिर डुबकी लगाते पकड़ा गया। श्री राम हनुमानजी, जय बदरी विशाल ज की। हर हर गगे मैया ✍️हरीश मैखुरी